शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

उसे भुलाने के लिए ...


मैंने,
उसे भुलाने के लिए 
क्या कुछ नहीं किया 
गीत लिखने का लिया 
सहारा 
बार-बार शब्द बदले 
कई बार भाव बदले 
लेकिन लिखते-लिखते 
हर बार गीत उसीका 
निकला ....

फिर मैंने,
उसे भुलाने के लिए 
चित्रकारी का लिया 
सहारा 
बार-बार रंग बदले 
कई बार तुलिका बदली 
दिल के कैनवास पर 
रेखाएँ बनाते-बनाते 
हर बार चेहरा उसीका 
निकला ....

फिर मैंने,
उसे भुलाने के लिए 
ध्यान,योग साधन 
अपनाया 
सब राग रंग त्यागा 
बार-बार मुद्राएँ बदली 
कई बार आसन बदले 
ध्यान लगाते-लगाते 
अब क्या बताऊँ ?
वो ध्यान भी उसीका 
निकला ....

सब कुछ मुमकिन है 
दुनिया में लेकिन
कितना नामुमकिन है
मन के मीत को 
भुला पाना !

रविवार, 23 दिसंबर 2012

Sudha Pemmaraju Rao


"Suman ji I am hesitant to write in Hindi because my spoken and written Hindi is not so "Shuddh" but I can read and understand every word you write ...and I can "feel'' the depth and beauty of your writings   They resonate with my own feelings !"

सुधा जी,
आपकी जैसी प्यारी दोस्त और मेरी पोस्ट को पढकर गहराई से महसूस कर अपने दोस्तों के साथ शेअर करने वाली पाठक मुझे फेसबुक पर मिली है इससे ज्यादा एक रचनाकार के लिए ख़ुशी और क्या हो 
सकती है ? शुद्ध हिंदी की फ़िक्र मत कीजिये ....भावनाएं अगर सुन्दर सरल हो तो भाषा कोई मायने नहीं रखती सरलता से पाठक के  ह्रदय तक पहुँच ही जाती है बशर्ते कि, पाठक अपने ही विचारों से भरा हुआ न हो तो, मेरा पढाई का माध्यम मराठी है फिर भी हिंदी मुझे बहुत अच्छी लगती है बचपन से हिंदी जो पढ़ती आ रही हूँ ! बात तब की है जब मै मैट्रिक में पढ़ती थी ! कभी पढाई में मन ही नहीं लगा, क्लास में पिछली बेंच पर बैठकर रानू, गुलशन नंदा, कर्नल रंजित जैसे लेखकों के उपन्यास पढ़ना शौक ही नहीं पागलपन सवार था तब , नतीजा यह हुआ कि मैथ्स का एक सब्जेक्ट चला गया ! घर में सब नाराज हो गए परीक्षा में  फेल होने से, पर मुझे कोई फरक नहीं पड़ा, तब लगता कि मैथ्स का जीवन में क्यों और कैसे जरुरत है ? आज सालों बाद ओशो को पढकर लगता है कि , तीन एम का  "मैथ्स,म्यूजिक,मेडिटेशन इन तीनों का जीवन में बहुत बड़ा महत्व है" ! इस प्रकार से उपन्यास पढ़ते पढ़ते हिंदी पढ़ने की शुरुवात हुई थी ....तब सरकारी स्कुलों में टीचरों का ध्यान पिछली बेंच पर कम ही जाता था  ...वैसे आज भी सरकारी स्कूलों में कुछ ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ है ! खैर कभी प्रशंसा पाने के लिए नहीं लिखा जब धंदा सबका (लेखन ) एक जैसा ब्लॉग जगत में हो तो प्रशंसा लेन देन तक ही सिमित हो जाती है, बहुत सुन्दर, बहुत बढ़िया, सुन्दर प्रस्तुती, इस प्रकार के वाक्य छोड़ दे तो एक अच्छा तथ्य परक प्रशंसक मिलना बहुत मुश्किल है ! जितना मुश्किल अच्छा प्रशंसक मिलना उतना ही एक तथ्यपरक आलोचक मिलना भी ! आलोचना मेरे मत से दो प्रकार से की जाती है एक प्रेम से दूसरी घृणा से, प्रेम से की गई आलोचना कई बार रचनाकार को और निखारती है किन्तु आलोचक कोई नहीं चाहता ! टिप्पणियाँ अक्सर भ्रम में डाल देती है कुछेक टिपण्णी छोड़  दे तो,..सो मै तो सबका सकारात्मक उपयोग करती हूँ ! बिना टिप्पणी  किये भी ब्लॉग जगत में बहुत सारे लोगों को पढ़ती हूँ प्यार से !

शब्दों से खेलते खेलते अक्सर खेलना आ ही जाता है वो कहते है ना ..."practice makes man perfect" कई बार इस मुहावरे के बारे सोचते हूँ कि, सिर्फ man को परफेक्ट होने के लिए क्यों कहा गया होगा ? अंतर्मन से एक जवाब आता है वुमैन हमेशा ही परफेक्ट रही है पर उसको कभी साबित करने का मौका कभी किसी ने नहीं दिया, वैसे भी साबित भी किसको और क्यों करे ? अपने लिए लिखे सो  लिखते रहिये ...मुझे भी कुछ खास लिखना नहीं आता लेकिन कोशिश जरुर करती हूँ ! विद्वान् होने का अहंकार छोड़ दे तो जीवन एक पाठशाला है जितना रोज सीखेंगे कम ही लगता है ! मेरे लिए हर मनुष्य एक तारा है कोई छोटा है न बड़ा, जो तारा पृथ्वी के जितने करीब है उतना चमकिला दिखाई देता है एक तारे के बारे समझना जितना मुश्किल है उतनाही एक व्यक्ति और उसके व्यक्तित्व को समझना ! अच्छा साहित्य आत्मा का भोजन है ओशो को छोड़कर कभी किसी साहित्यकार से ईर्ष्या नहीं हुई वे दुनिया के बढ़िया साहित्यकार है प्रेरणा उनसे ग्रहण करती हूँ किन्तु  लिखने के बाद जब अपना लिखा हुआ पढ़ती हूँ तो लगता है बहुत बुरा लिखा ! लेकिन कभी कोई फ़िक्र नहीं करती लोग क्या समझेंगे ? भावनाओं को यदि शब्दों के सुन्दर पंख मिल जाय तो आकाश में उड़ने का आनंद ही कुछ और होता है यदि  लक्ष्य उन रहस्यमय हिमाच्छादित पहाडी शिखरों को बनाया गया हो तो, कौन फ़िक्र करता है किसी भी बात की !

आभार ...

( जाते जाते यह बता दूं कि, Sudha Pemmaraju Rao एक संवेदनशील महिला है ! अमेरिका में रहती है अपने परिवार से बहुत प्रेम करती है ! बागवानी का शौक और अपने पेट्स से बहुत लगाव है ! फेसबुक पर सुन्दर सुन्दर पोस्ट शेअर करती है मेरी अच्छी दोस्त है )

बुधवार, 19 दिसंबर 2012

मानवता यूँ ही शर्मसार होती रहेगी ....


हमने सुना है कि,
वासना अंधी और 
कुरूप होती है 
और इसका ताजा उदाहरण 
हम देख भी रहे है 
सामूहिक बलात्कार काण्ड 
दिल्ली में जो हुआ 
इस घटना से 
मानवता जैसे 
शर्म से पानी-पानी 
हो गई है !
जवान बेटियों के 
माता-पिताओं को 
इस घटना ने 
अन्दर तक 
हिला कर रख दिया है ...
मानवता से विश्वास 
उठने लगा है ..
लडकियां घर से 
बाहर निकलने को 
डरने लगी है असुरक्षित 
महसूस करने लगी है 
खुद को,
सबके मन में 
यक्ष प्रश्न प्रताड़ित करते 
क्या होगा उस पीड़ित 
लड़की का ?
क्या वह बच पाएगी ?
अगर बच भी गई तो 
शारीरिक मानसिक पीड़ा से 
कभी उभर पायेगी ?
स्वस्थ जीवन जी पायेगी कभी ?
गली से लेकर संसद तक 
कई सवाल उठने लगे है 
अपराधियों के 
सजा को लेकर 
उन दरिंदों के साथ कैसा 
सलूक किया जाए ?
कैसी सजा दी जाए ?
लेकिन 
मेरा असली सवाल 
सारी मानव जाती से, 
आदमी को 
इंसान कैसे बनाया जाए ?
अन्यथा मानवता 
यूँ ही 
शर्मसार होती रहेगी 
बार-बार लगातार .....

रविवार, 16 दिसंबर 2012

आओ समय के साथ चले ...


मित्रों, देखते ही देखते पुराना साल बीत जाने को और नए साल की शुरुवात होने को है ! बस कुछ ही दिन शेष रह गए है नए साल के आगमन में ! स्टार होटलों में अभी से बुकिंग हो रही है नए साल के आने की ख़ुशी में, लोग जश्न मनाने की तैयारियाँ कर रहे है ! हर साल हम भी अपने नाते,रिश्तेदारों,मित्रों को नए वर्ष की हार्दिक शुभकानाएं देते है ताकि, उनके जीवन में सब कुछ अच्छा ही अच्छा हो ! लेकिन समय को कुछ और ही मंजूर होता है साल के यह दिन किसी के जीवन में खुशिया ही खुशिया लेकर आते है तो किसी के जीवन में दुखद गुजर जाते है ! हर मनुष्य चाहता है कि, उसके जीवन का हर पल,हर दिन, हर साल सुखद रूप में भोगे पर समय के सामने मनुष्य कितना बेबस और विवश है ... अपने अपने कर्म का फल भोगने के लिए ! कहते है ना ..."डाल से टूटे हुए पत्ते पुना डाल पर नहीं लगते ना ही नदी की धारा में बह गया पानी वापिस नहीं लौटता " ! ऐसे ही अच्छा बुरा जो भी समय गुजर गया वह वापिस नहीं लौटता ! इसीलिए विवेकी मनुष्य समय को नष्ट नहीं करते उसका सदुपयोग कर लेते है ! बहुत बार हम कल की खुशियों के लिए आज अभी की छोटी छोटी खुशियों को नजर अंदाज कर देते है  ...छोटी छोटी खुशियों को इकठ्ठा करने में ही जीवन का सार है ! हमारे पास सिर्फ यही तो एक पल है पूंजी के रूप में, इसे व्यर्थ गंवाने की बजाय  जो इस पल को ख़ुशी से जीने की कला जानता है उसे नए साल का इंतजार नहीं करना पड़ता,  जिसका पूरा साल पुराना बीता हो उसका एक दिन नया कैसे हो सकता है ? सोचने जैसी बात है न ? वर्तमान पल और उस पल के महत्व को न समझ पाने के कारण ही नए वर्ष में हम नए दिन की कामना करते है !

समय का चक्र अविराम गति से चलता रहता है उसे कोई रोक नहीं सकता हर परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए अडिग रहे ! परिस्थितियों को हम बदल नहीं सकते पर खुद को उनके अनुकूल बना कर आगे बढ़ा जा सकता है ! दुनिया को बदलने का ठेका हमने नही लिया है समय के अनुरूप हम बदले तो यही बहुत है ! जब तक जीवन है संघर्ष भी है जीवन कायर व्यक्तियों के लिए नहीं है चुनौतियों से लढ़ने से आत्मशक्ति बढती है क्यों न हम भी इस पल में जीकर समय का सदुपयोग करे अपना समय अच्छे कार्यों में लगायें, आओ समय के साथ चले ....!!

रविवार, 9 दिसंबर 2012

सम्यक आहार...


बिटिया के साथ कल शापिंग करने गई थी ! वापसी में वह मुझे McDonald's में ले गई "भूख लगी है ममा कुछ खा लेंगे यह कहकर " ! उसने हम दोनों के खाने के लिए बर्गर ले आई ! हमारे आस पास बहुत सारे युवा लड़के लडकिया अपने अपने पसंद के खाने का मजा ले रहे थे ! मेरी मनोदशा देख कर बिटिया मंद मंद मुस्कुरा रही थी कारण बहुत बार इस प्रकार का खाना मै अवाइड करती हूँ सिर्फ थोडा बहुत चख लेती हूँ, परहेज है ऐसी बात भी नहीं है ... McDonald's में उसने खाते हुए मेरी तस्वीर लेकर फेसबुक पर टैग कर दी ! उसपर बहुत सारे परिचित के कमेंट्स थे लाईक करते हुए ! एक प्यारा सा कमेंट्स था बेटे का चेन्नई से, कुछ इस प्रकार .."पता नहीं ममा ने बर्गर खाते हुए कितनी बार कहा होगा इसमे कितने फैट्स है ...कितनी कैलोरीज है ? हा ..हा ...हां ..."!

हम अपना आहार अपने रोज के काम, आयु के अनुसार निर्धारित करते है न की दो दिन की जिन्दगी है ....खा ले पी ले, बस मौज कर ले इस प्रकार नहीं ! सिर्फ भोजनभट्ट होकर काम नहीं चलेगा खास कर तब जब हम उम्र के पचास के पार जा रहे हो ! हम किस प्रकार का आहार ग्रहण कर रहे ? उसकी गुणवत्ता क्या है किस प्रकार की भाव दशा में हम अन्न ग्रहण कर रहे है इन सबका अर्थ है ! रोज की इस भाग दौड़ भरी  जिंदगी में ह्रदय रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप कैंसर जैसे घातक रोग शारीरिक श्रम की कमी और रेशेदार भोजन की कमी से हो रहे है ऐसे विशेषज्ञों का कहना है ! मेरे पास एक सर्वे है जो मै अभी अभी पढ़ रही थी ..."सफोला लाइफ स्टडी 2012 " इस कार्यक्रम के अंतर्गत देश के एक दर्जन नगरों में 30-38 आयु वर्ग में 1,12000 लोगों का सर्वेक्षण किया गया हर शहर की स्थिति थोड़ी अलग अलग है    बैंगलुरू के लोगों में कोलेस्ट्राल स्तर हाई है चेन्नई में डायबिटिज सबसे आगे है कलकत्ता में ज्यादा लोग कैंसरग्रस्त पाए गए ! अहमदाबाद में रक्तहीनता की कमी लोगों में पायी गई क्योंकि उनके भोजन में फलों की कमी है ! राजधानी दिल्ली में मोटापे के रोग से पीड़ित लोगों की संख्या अधिक है क्योंकि यहाँ पर्याप्त शारीरिक श्रम की कमी है और मोटापा बढाने वाला भोजन लोग अधिक करते है !

अपने भोजन के प्रति ध्यान देना सबको जरुरी है ताकि तन,और मन दोनों स्वस्थ रहे,  हमारा भोजन हमारी मांस-मज्जा,रक्त,हड्डी बनाने के अतिरिक्त हमारे समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ! ऐसी प्रगति भी किस काम की जिस में मनुष्य अपनी खाने पीने की सुध बुध भी खो दे सम्यक आहार का चुनाव हर दृष्टी से फायदेमंद है !

मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

संगीत जीवन का आधार...


रोटी के बिना हम कविता नहीं लिख सकते, भूखे पेट संगीत भी अच्छा नहीं लगता ! रोटी के लिए पैसा कमाना जरुरी  है लेकिन सबकुछ होते हुए भी जीवन में काव्य न हो संगीत न हो तो जीवन नीरस हो जाता है ! संगीत से हमारा मन ही नहीं बल्कि,पशु-पक्षी और पेड़-पौधे भी संगीत से पोषण ग्रहण करते है ! कृषि वैज्ञानिकों ने पौधों पर प्रयोग कर काफी रोचक जानकारी हासिल की ...अगर फसलों को पुष्पावस्था प्रारंभ होने के पश्चात से लेकर फसल पकने तक फसलों को संगीत सुनाया जाए तो दस से पन्द्रह प्रतिशत उत्पादन अधिक होगा ! खासकर पुराना लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत ! मैंने अपना बचपन का बहुत सारा समय अपने सुन्दर छोटे से गाँव में बिताया है ....तब मै देखती कि, शायद अनजाने में ही सही यही कारण रहा होगा ... गांव की महिलायें जब चक्की पर आटा पीसती बहुत सुन्दर गीत गाया करती थी ! खेतों में धान की बुआइ कटाइ करते समय भी गीत गाया जाता था  और गाय बैलों को चारा चराते जंगल में चरवाहे बंसी बजाते थे ! आज तो गाँव को भी नए ज़माने की हवा लग गई है सब कुछ आधूनिक हुआ है वहाँ भी ..अब तो सब कुछ सपने जैसा लगता है !
हमारे मनीषियों ने भी नाद को जीवन का आधार माना है कुल मिलाकर सारा अस्तित्व ही अंतर्निहित संगीत से ही संचालित होता है ! ओशो कहते है "संगीत ध्यान का सुगमतम उपाय है ! जो संगीत में डूब सकते है उन्हें डूबने की और किसी दूसरी चीज को खोजने की कोई आवश्यकता नहीं है " !

शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

लॉफिंग बुद्धा सुख-समृद्धि का प्रतीक ...


लॉफिंग बुद्धा के बारे में ऐसी मान्यता है कि, इनको घर में रखने से भाग्य में वृद्धि होती है और घर में सकारात्मक उर्जा का प्रवेश होता है ! घर में शांति और सौहाद्रपूर्ण वातावरण बना रहता है ! कुछ लोग लॉफिंग बुद्धा को अपने घर के मुख्य द्वार पर इस प्रकार लगाते है कि, आने वालों की नजर इन पर पड़े और ऐसा लगे कि ,बुद्धा हंसकर घर के अन्दर आने के लिए स्वागत कर रहे है ! लॉफिंग बुद्धाओंकी अनेक प्रकार की प्रतिमाएँ बाजार में उपलब्ध  है ! इन प्रतिमाओं को कुछ लोग अपने दुकान, ऑफिस, शोरुम,व्यसायिक स्थलों पर भी लगाते है !लॉफिंग बुद्धा के बारे में बड़ी प्यारी कहानी प्रचलित है शायद इसे बहुत कम लोग जानते होंगे ! सुना है कि ....तीन बौद्ध भिक्षु रहा करते थे ! इनके बारे कहते है हंसी से ही इनको ज्ञान प्राप्त हुआ था ! इसी कारण दुनिया में उपदेश देने लगे कि, हंसना भी ध्यान करने का एक तरीका है ! उन्होंने इसे "हंसी ध्यान" कहा और जिन्दगी भर जहाँ भी तीनों जाते हंसी का सन्देश फैलाते रहते ! पता है एक दिन क्या हुआ ? उन तीनों बौद्ध भिक्षुमेसे एक मर गया ! जो बाकी के दो बौद्ध भिक्षु उसके पार्थिव शरीर के पास बैठ कर हंसने लगे ! उनके इस अटपटे व्यवहार को देखकर आजू बाजू के लोग नाराज होकर गालियाँ देने लगे ...इसपर उन दोनों ने जो उन लोगों को कहा समझने जैसा है ..."हमारे मित्र ने अपनी पूरी जिन्दगी में लोगों को हंसने का सन्देश दिया ...सारा जीवन उसी में लगा दिया ... अगर हम लोग उसे उसके अंतिम समय में हंसकर विदा नहीं करेंगे तो उसकी आत्मा हम पर हंसेगी कि, हम भी दुसरों की तरह जीवन को गंभीरता के बंधनों में जकड लिया है इसलिए मरने से पहले उसकी इच्छा को पूरा करने के लिए हम लोग हंस रहे है "  
अंत में जब अंतिम संस्कार करने के लिए चिता जलाने की बारी आई मौत से पहले भिक्षु ने कहा था  " चूंकि मै अपनी सारी जिंदगी हंसता रहा हूँ, इसलिए हंसी ने मेरे अन्दर की सारी अशुद्धियाँ साफ हुई है इसलिए कृपया मेरे मृत शारीर को नहलाना मत ..जैसा है वैसे ही जलाया जाए ! उसकी इच्छा के अनुसार भिक्षु के मृत शरीर को कहे अनुसार लिटाया गया और चिता को आग लगा दी गई ! पता है क्या हुआ ....चिता में से पटाखों के धमाके होने लगे ....पहले तो बात किसी के समझ में नहीं आयीं पर जब बात समझ में आयी सारे वहां पर मौजूद लोग हंसने लगे ! दरअसल हुआ यूँ कि, उस भिक्षु ने मरने से पहले अपने चोंगे के भीतर पटाखे बांध लिए थे ताकि, मरने के बाद भी लोगों को हंसा सके ....इसलिए तबसे वे "हंसाने वाले बुद्ध" या लॉफिंग बुद्धा कहलाने लगे !

"जब भी हम हंसते है मन विचार शून्य हो जाता है , विचार शुन्यता में ध्यान घटित होता है कभी इसपर ध्यान देकर देखिए" ...

मंगलवार, 20 नवंबर 2012

यंत्रवत मनुष्य ...

यंत्रों के 
शहर में 
फल-फूल रही 
यंत्रों की माया 
लंबी चौड़ी सड़के 
सड़कों पर 
सुबह से शाम 
भागते दौड़ते 
यंत्रवत मनुष्य ....
  ***
धुवां ही धुवां 
काला कडूवा
धुवां शहर मे 
प्राण वायु  
की कमी 
हवा के
बदन में 
जैसे 
जहर घुला 
हुआ ....

सोमवार, 12 नवंबर 2012

कुछ पटाखे, कुछ फुलझड़ियाँ .....

        (1)
देश सेवा के नाम पर 
मची है लुट ही लुट 
सोनिया के दामाद है 
क्या इसलिए छुट ? 
      *** 

       (2)
भ्रष्टाचार के पेड़ की जड़े
गहरे जमीन में, फैली शाखायें 
आसमान में, फिर भी मनमोहन जी 
कह रहे "पैसा पेड़ पर नहीं लगता" !
      ***

      (3)
देख कर दीवाली पर 
हैरान हो रहे हम 
केजरीवाल फोड़ रहे है 
धमाकेदार पटाखे बम !
     ***

     (4)
मेहनत की कमाई 
पावर है मनी 
बारूद में उड़ा रहे 
ये कैसी मनमानी !
     ***

     (5)
महंगाई के इस दौर में 
हम आपसे कैसे कहे 
हैप्पी दीवाली 
शुभ दीवाली !
    ***

    (6)
शुभ गायब हुआ है 
हमारे जीवन से 
सब लाभ ही लाभ 
देख रहे जब !
    ***

     (7)
यदि उपहार में,
देंगे टिप्पणियाँ अपार 
तभी तो मनेगा 
खुशहाल त्योहार :)
     ***

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

जैसे नभ में छिड़की कुंकुम लाली ....


रुनझुन-रुनझुन 
ज्योति की 
पायल बजी 
जागा प्रभात 
जैसे नभ में छिड़की कुंकुम लाली 
जगमग-जगमग आयी है दिवाली !

आंगन-आंगन 
सजी रंगोली 
बंधी तोरण 
द्वार -द्वार 
फूल मालाओं की झालर न्यारी 
जगमग-जगमग आयी है दिवाली !

मनभावन अल्पना 
रंग रंगोली 
प्रांगण सुचित्रित 
लगती प्यारी 
सुख बन, सुषमा बन घर भर छायी 
जगमग-जगमग आयी है दिवाली !

तम की विकट 
निशा बीती 
चिर-सत्य की 
विजय हुई 
दिगदिगंत के छोर तक गूँजी  जयभेरी 
दीप जले खुशियों के आलोक वृष्टी चहूँ ओर हुई !!

सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

प्रकाश शाश्वत सत्य है ....


अंधेरे का कोई अस्तित्व नहीं प्रकाश ही शाश्वत सत्य है ! लेकिन अंधेरा नहीं है ऐसा भी नहीं, वह है अर्थात होकर भी नहीं जैसा !यहाँ भारत में दिन है तो अमेरिका में रात है इसका मतलब तो यही हुआ न ...अर्थात ही अंधेऱा  परिवर्तनशील है ! प्रकाश का अभाव मात्र अँधेरा है ! रात आप अपने स्टडी रूम मे बैठे कुछ पढ़ रहे है ...लिख रहे है ...अचानक बिजली चली गई ...कमरे मे घुप्प अंधेरा पसरा है मोमबत्ती जलाने के लिए आप माचिस ढूंढते है ऐसे में कई बार आप अपनी ही मेज कुर्सी से टकराएँ होंगे याद कीजिये ! अंधेऱा इतना सामर्थ्यवान है कि, मेज कुर्सी से टकराकर हमारे हाथ, पैर भी तुडवा सकता है ! कभी-कभी तो जानपर भी बन आती है ! इसलिए अँधेरे की सत्ता,महत्ता  उसकी प्रभावी ताकत से इनकार नहीं किया जा सकता !

आज देशभर में भ्रष्टाचार का अंधेरा छाया हुआ है ! अन्ना हजारे जैसे ईमानदार लोग कितने है ? लेकिन अच्छाई की एक किरण ने छाया हुआ अंधेरा तिलमिलाने लगा है ! समय के साथ कभी बुराई का अनुपात बढ़ जाता है तो कभी अच्छाई का अनुपात ! आज बुराई का अनुपात बहुत ज्यादा बढ़ गया है इसलिए उल्लुओं का शासन चल रहा है ....लेकिन सवेरा होने की देर है अपनी दूम दबाकर भागने लगेगा अंधेरा देखना ! आप मानो अथवा मत मानो पर सारा खेल प्रकाश का है किन्तु एक प्रकाश की किरण हम जब तक नहीं चाहेंगे तब तक पूरा सूरज हमारा कैसे हो सकेगा ? बाहर के अंधेरों को दूर करने के लिए हमने मिट्टी के दीपों का बिजली के दीपों का इंतजाम किया है लेकिन हमारे भीतर भी एक अहंकार का अंधेरा है वह तो इन बाहर की रोशनियों से नहीं मिटता ....इसी अहंकार की वजह से भीतर का अंधकार दिखाई नहीं देता ! इसीलिए हमारे उपनिषद में प्रार्थना के मौलिक सूत्र मिलते है ..."तमसो मा ज्योतिर्गमय, असतो मा सद्गगमय,मृत्योर्मा अमृतं गमय" ! इन छोटी-छोटी प्रर्थानाओं में हमारे उपनिषद ही नहीं सभी धर्म ग्रंथों का सार आ गया है ! अहंकार के जाते ही प्रकाश ही प्रकाश, अहंकार के जाते ही सत्य ही सत्य , अहंकार के जाते ही अमृत ही अमृत !

शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

बांध न मुझ को बाहू पाश में .....


 मै,
सुरभि हूँ 
फूल की ...
महकती हूँ 
पल भर ...
महका कर  
सारा परिसर 
उड़ जाती हूँ 
निस्सीम 
गगन में
हवा संग,
बांध न तू 
रुनझुन-रुनझुन 
कर छंदों की 
मोहक कड़ियों से 
बांध न तू 
नाजूक फूलों की 
लड़ियों से 
बांध न तू 
मुझ को अपने 
बाहू पाश में ....

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

चाय के साथ ...


हो न हो 
रिश्तों, नातों का 
प्यार, मुहब्बत का 
एक अटूट नाता है 
चाय के साथ ...

लड़ते-झगड़ते 
रुठते-मनाते 
बातों-बातों में, एक दिन 
प्यार की बात बनी थी 
चाय के साथ ....

चाय पीते हुए 
उसने कहा ..आज 
चाय अच्छी बनी है 
फीकी सुबह मिठास घोल 
गई चाय के साथ ...

प्यार की वही 
पुरानी मीठी खुशबु
चली आई है आज 
एक अर्से बाद
चाय के साथ ....

शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

नकारात्मक विचारों का कबाड़ हटाना भी जरुरी है !


जब भी हम घर में बाजार से नया कोई सामान खरीद कर लाते है, पुराना अनावश्यक सामान  स्टोर रूम में रख देते है ! जैसे ही कोई त्योहार नजदीक आने लगता है सारे घर की साफ सफाई शुरू करते है ! घर को कलरिंग करते है ! ऐसे में स्टोर किया हुआ पुराना सामान या तो फ़ेंक देते है या फिर कबाड़ी वाले को बेच देते है ! हर साल फालतू का व्यर्थ सामान जमा होकर बहुत सारी घर की जगह को घेर लेता है ! इसलिए पुराना कबाड़ हटाना जरुरी है ! ताकि हम खुलकर सांस ले सके ! घर की साफ सफाई पर जीतना ध्यान देते है पर शायद ही कभी मन की सफाई पर ध्यान देते है ! 
काश हम दे पाते,  ...नकारात्मक विचार भी कुछ ऐसे ही अनजाने में हम अचेतन मन (स्टोर रूम ) में जमा करते रहते है ! समय के साथ इन विचारों को अगर नष्ट नहीं किया गया  तो,  यही विचार अनेक रोगों के लिए न्योता बन जाते है ! हमारा तन और मन बिमारियों का घर बन जाता है ! नकारात्मक विचार हमारी कार्य कुशलता को नष्ट तो करते ही  है साथ में  इसका प्रभाव हमारे व्यक्तित्व पर भी पड़ने लगता है  ! घर का अनावश्यक कबाड हटाना जितना जरुरी है उतने ही मन के अनावश्यक विचारों को हटाना ! ध्यान और योग की मदद से हम नकारात्मक विचारों को हटाकर जीवन रूपी बगिया को भीनी-भीनी सुगंध से महका सकते है ! इसके लिए अच्छे  विचार रूपी बीजों को बोना होगा, तभी तो सकारात्मक विचारों के पौधे पनपेंगे !

बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

शत-शत दीप जलने दो ....


छलक-छलक आते है ये आँसू 
बिन बादल बरस जाते है ये आँसू 
इन बहते आँसुओं को मत रोको 
इन्हें बहने दो ...
इन आँसुओं के खारेपन में 
जीवन के अनंत दुःख धुल जाने दो !

खूब खिलते उद्यान महकाते 
इन खिलती हृदय कलियों को 
मत तोड़ो इन्हें खिलने दो ...
इन खिलते फूलों की खुशबू से 
जीवन की फुलवारी को 
सदा महकने दो !

केवल शब्द नहीं है ये 
भाव है मन के, इन भावों को 
सीमा में मत बाँधो, इन्हें 
मुक्त आकाश में उड़ने दो ..
इन भावों के मनमंदिर में 
शत-शत दीप जलने दो !


शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

फिल्म 'इंग्लिश विंग्लिश'

आपको पता है, दुनिया में सबसे मुश्किल काम क्या है ? घर संभालना ....लेकिन सबको लगता है यही एक आसान काम है ! बिना तारीफ बिना मूल्य का अगर कोई काम है तो वह है होममेकर का जॉब ! यह एक ऐसा जॉब है जिसमे 24 घंटे और सातों दिन आप सतत काम करते रहते है !सुबह से देर रात तक न जाने कितने काम गृहिणी को निपटाने पड़ते है ! परिवार के सभी सदस्यों की इच्छाओं का ख्याल रखना पड़ता है ! सबका ध्यान रखते-रखते वह यह भूल ही जाती है कि, मेरा भी स्वतंत्र अस्तित्व है ! कल मेरी बिटिया ने कहा "चलो ममा आज बाहर घूम आते है " और सीधा ले गई फिल्म इंग्लिश विग्लिश दिखाने !मन तो नहीं था पर बिटिया के आग्रह के खातिर जाना पड़ा !जैसे ही फिल्म शुरू हुई बड़ा मजा आया ! फिल्म कब ख़तम हुई पता ही नहीं चला ! इस फिल्म को आप बिना बोर हुए शुरू से अंत तक मजेसे देख सकते है !महिलाओं को खास पसंद आ रही है ये फिल्म,लेकिन परिवार के सभी सदस्य देख सकते है ! श्रीदेवी को लंबे अरसे के बाद परदे पर देखकर अच्छा लगा ! आज भी उनका अभिनय एकदम सशक्त है !इंग्लिश विंग्लिश' मद्यम वर्ग की महिला की कहानी है जो फर्राटे से इंग्लिश बोलना नहीं जानती !एक ऐसी गृहिणी है वह ...जिसका जीवन सिर्फ घर पति बच्चे परिवार तक ही सिमित है ! आजकल के बच्चे अपनी मम्मी को सिर्फ माम नहीं सुपर माम के रूप में देखना चाहते है ! और पति ? कितना सम्मान करता है उसकी भावनाओं का ! गलती उनकी भी नहीं है शायद समय की मांग है कि, गृहिणी भी समय के साथ थोडा खुद को बदले! अंग्रेजी न जानने से ज्यादा अपनों से अपमानित होने का दर्द शशि यानी श्रीदेवी के चेहरे पर साफ दिखाई देता है। बहुत सारे दृश्य मन को छू लेने वाले है ! अगर अब तक इस फिल्म को देखा नहीं है तो देख डालिए ! यह एक अच्छी फिल्म है ! इस पोस्ट को लिखते हुए सोच रही हूँ बिटिया ने क्योंकर मुझे आग्रह करके  'इंग्लिश विंग्लिश' फिल्म दिखाने ले गई होगी भला ? अब पता चला कि, किसी की कमजोरियों को उसके मुह पर बताने से अच्छा है शालीनता से इस फिल्म कों ही दिखाया जाय :)  ये आजकल की लड़कियां भी ना खैर ...! फिर देर किस बात की आज जा रहे है ना  'इंग्लिश विंग्लिश' देखने ?

बुधवार, 10 अक्तूबर 2012

आज बेटे का जन्मदिन है !



आज,
अंतर मन के 
कोने-कोने से 
आया है मधुर भाव 
उभर कर !

ओ मेरे जीवन 
बगिया के फूल  
हंसकर खिलना 
हर एक 
पहर !

विषमता में भी 
मुरझाना नहीं 
देते रहना सौरभ 
लंबी तुम्हारी हो 
उमर ....

गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

"जोरबा-बुद्ध"



कभी हमने काल्पनिक मनुष्य सुपर मैन की कल्पना की थी ! उसी मनुष्य को महर्षि अरविंद कहते है अतिमानव, ओशो कहते है जोरबा बुद्ध !
जोरबा बुद्ध एक ऐसा मनुष्य जो न किसी जाती का होगा,.. न  किसी धर्म का होगा ! जोरबा बुद्ध केवल एक मनुष्य होगा.... उसकी भावनाएं हार्दिक होगी !
वो पृथ्वी को घर, आकाश को छत बनाएगा ! जीवन का आनंद मनायेगा, नाचेगा गायेगा , मृत्यु का उत्सव मनायेगा ! वह बाहर से धनवान भीतर से ध्यानवान होगा ! जोरबा बुद्ध हर दृष्टी से समृद्ध होगा, संपुर्ण होगा ! बुद्ध के बिना जोरबा अधुरा होगा, और जोरबा के बिना बुद्ध अधुरा होगा ! जोरबा बुद्ध के आने से  पृथ्वी का भविष्य सुनहरा होगा ! हवाओं में सुगबुग हो रही है उसके आने की .....!! 

बुधवार, 26 सितंबर 2012

बुद्धिवादी युग ..... (चिंतन)


आज के इस बुद्धिवादी युग में मनुष्य जैसा है वैसा खुश नहीं है ! या फिर समाज द्वारा स्वीकृत नहीं है ! इसीलिए एक दुसरेसे प्रतियोगिता चल रही है !कुछ खास होने की प्रतियोगिता !आम आदमी खास होना चाहता है ! खास आदमी और खास होना चाहता है !इसीलिए कोई ब्लेड खा रहा है कोई कांच खा रहा है कोई मेंढक,सांप खा रहा है !कोई गड़बड़ घोटाला कर के पैसे खा रहा है ! हरकते कैसी भी क्यों न हो बस कुछ विशीष्ट होना है ! बहुत बार बड़े से बड़े व्यक्तियों से मिलना होता है, तब पाती हूँ उनकी आँखों में क़ि, सब कुछ होते हुये भी उन आँखों में जीवन क़ी कोई चमक नहीं ! जीवन के प्रति कोई धन्यता का भाव नहीं,बस जिए जा रहे है जैसे जीवन एक बोझ समझकर ! चलने फिरने में, बोलने बैठने में कोई लय नहीं कोई पुलक नहीं,.....  न जीवन में कोई शांति है न समाधान ! जो कुछ पास में है उसका आनंद नहीं पर जो नहीं है उसका दुःख बहुत भारी है ! मन में बेचैनी है इसी कारण से, सारा तनाव भी है ! इसके विपरीत प्रकृति में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है ! केवल मनुष्य को छोड़कर अन्य किसी प्राणियों में इस प्रकार के रोग नहीं है ! आम अपने खट्टे,मीठे पन में खुश है ! नीम अपनी निम्बौरियों  क़ी कड़वाहट में खुश है ! गुलाब फ़िक्र नहीं करता कमल जैसा होने क़ी, कमल प्रतिस्पर्धा नहीं करता गुलाब जैसा होने क़ी ! घास पर खिला हुआ फूल भी सुबह सूरज क़ी सुनहरी किरणों के साथ खिलता है ! हवाओं से बाते करता है नाचता है गाता है !पंछी अपने होने में खुश है ! सारी प्रकृति में शांति और सौंदर्य भरा पड़ा है केवल मनुष्य के जीवन को छोड़कर ! इसीलिए हम प्रकृति के सानिध्य में कुछ देर बिताते है तो शांति सुकून पाते है क्योंकि शांति संक्रामक है !

 जीवन का बस थोडा सा समय शांति और सुकून पाने के लिये निकालिए फिर देखिये , एक बिलकुल अभिनव जगत आपके लिये द्वार खोलता हुआ देखेंगे !

मंगलवार, 25 सितंबर 2012

गणेश चतुर्थी .....


भगवान गणेश की पूजा-अर्चना के साथ, हमारे शहर में  दस दिवस तक चलने वाला गणेश चतुर्थी का यह त्यौहार प्रारंभ हुआ है ! हर साल की तरह इस साल भी हमारे शहर में यह त्यौहार बड़े धूम-धाम से मनाया जायेगा ! हर गली,मुहल्लों में,सड़कों-चौराहों पर विभिन्न अवतारों में अनगिनत गणेश प्रतिमाये स्थापित कर भक्तगण विधिवत पूजा-अर्चना करने में लगे है !घर-घर में पूजा अर्चना के साथ गणेश जी का मनपसंद भोजन मोदक बना रही है गृहिणियां ! गणेश पंडालों में, मै बड़ा की तू बड़ा की होड़ करते तक़रीबन ५० हजार गणेश प्रतिमायें स्थापित हुई है !जिस गली का चंदा जितना तगड़ा उतना बड़ा गणेश ! मूषक पर सवार गणपति बाप्पा खुश हो रहे है,मुस्कुरा रहे है जैसे ....हमारे नेतालोग आम आदमी की पीठ पर बैठकर खुश हो रहे होते है वैसे !
कई बार मन में एक प्रश्न उठता है कि, आम आदमी को आम क्यों कहा जाता है ? कौनसे ऐसे आम के विशिष्ठ गुण होते है उसमे ? बहुत खोज बिन क़ी तो पता चला सही में आम के खास गुण होते है उसमे !

 वह यह कि, अगर आम आदमी कच्चा है तो उसपर नमक,मिर्च छिडक कर खाया जा सकता है ! उसकी चटपटी चटनी बनाई जा सकती है !अगर पका हुआ है तो चूसने में बड़ा मजा आता है !
आप क्या कहते हो ?  क्या मै गलत कह रही हूँ ?

बुधवार, 19 सितंबर 2012

आज मेरे प्राण में स्वर .....


जब खुद के शब्द गूम हो, भाव मौन हो, तब किसी गुमनाम रचनाकार की रचना को गुनगुना लेते है !यह रचना मुझे तो बहुत पसंद है उम्मीद करती हूँ,
आप सबको पसंद आएगी !

आज मेरे प्राण में स्वर 
भर गया कोई मनोहर !
क्षितिज के उस पार से 
वह मुस्कुराता पास आया 
मधुर मोहक रूप में 
उस मूर्ति ने मुझको लुभाया 
कौन सा सन्देश लेकर सजनि,
वह आया अवनि पर ?
आज मेरे प्राण में स्वर 
भर गया कोई मनोहर !
धुल गई थी प्राण में 
अपमान की भीषण व्यथा 
ले गया वह साथ अपने 
दुःख भरी बीती कथा 
आंख में आया सजनि,
वह आज मेरे अश्रु बन कर !
आज मेरे प्राण में स्वर 
भर गया कोई मनोहर !
कर गया अनुरोध मुझसे 
गीत गाऊं मै मधुर सा 
भूल जाऊं जन्म का दुःख,
मृत्यु को समझूं अमरता 
यह अमर उपदेश उसका सजनि,
कण-कण में गया भर !
आज मेरे प्राण में स्वर 
भर गया कोई मनोहर !
स्वप्न से ही भर गया अलि,
आज मेरा जीर्ण अंचल 
वेदना की वहि में 
तप हो उठे है प्राण उज्वल 
दे गया वह सजनि मुझको 
जन्म का वरदान सुंदर !
आज मेरे प्राण में स्वर 
भर गया कोई मनोहर !


साभार .......

रविवार, 16 सितंबर 2012

सौदागर ....( कहानी )


टोपियों को बेचने वाला एक सौदागर मेले में अपनी टोपियां बेचकर लौट रहा था ! चुनाव जो नजदीक आ रहे थे !गांधी टोपियां खूब मेले में बिक रही थी ! सौदागर टोपियों क़ी हो रही कमाई पर खुश हो रहा था !दिनभर गांधी टोपियां बेचकर वापिस घर आते,रास्ते में बरगद के एक वृक्ष के निचे थोड़ी देर विश्राम के लिये रुक गया !दिनभर की थकान बहुत थी,ठंडी हवा उपरसे वृक्ष की छाया, झपकी लग गई !जब आँख खुली तो देखा कि, जिस टोकरी में बची हुई टोपियां रखी थी सब नदारद थी ! सौदागर बहुत घबराया चारो तरह देखा, ऊपर देखा तो वृक्ष पर बंदर बैठे थे !कोई सौ पचास बंदर रहे होंगे सब गांधी टोपी लगाये बैठे थे! बिलकुल हमारे संसद सदस्य जैसे लग रहे थे !अब इनसे टोपियां कैसे वापिस ले ? सौदागर बहुत घबराया !इतने में उसे वह बात याद आ गई बंदर नकलची होते है वाली !सौदागर के सिर पर एक टोपी जो बची हुई थी उसने निकाल कर फ़ेंक दी !जैसे ही सौदागर ने अपने टोपी फ़ेंक दी, सारे बंदरों ने अपनी-अपनी टोपियां नीकाल कर निचे फ़ेंक दी !सारी टोपियां बटोर कर सौदागर बड़ा खुश हुआ अपनी जीत पर !और घर लौट कर अपने बेटे को सारा किस्सा सूनाते हुये कहा ...."बेटा देखो कभी ऐसी हालात आ जाए तो अपनी टोपी नीकाल कर फ़ेंक देना !कभी भुलना नहीं मेरी बात याद रखना क्योंकि बंदर बड़े नकलची होते है !तुम जैसा करो उसका ही अनुसरण वे करते है" !

समय के साथ बहुत कुछ बदल गया ! सौदागर बूढ़ा हो गया ! बेटे ने सरकारी स्कूल में चार अक्षर पढ़ लिये !बाप क़ी जगह अब वह टोपिया बेचने लगा !थोडा पढना लिखना जानता था इसलिए गांधी टोपियों पर रंगीन धागे से "मै अन्ना हूँ " लिखकर गाँव-गाँव जाकर बेचने लगा !एक दिन ऐसे ही टोपियां बेचकर लौट रहा था !थका मांदा उसी वृक्ष के निचे विश्राम करने लेट गया !झपकी लग गई आखिर वही हुआ जो कभी उसके पिता के साथ हुआ था !टोकरी में सारी टोपियां नदारद थी !पिता क़ी कही हुई बात उसे याद आई उसने ऊपर देखा !बंदर टोपियां लगाये बड़े मस्त मस्ती में बैठे हुये थे ! बाप के सलाह क़ी याद आ गई उसे, उसने अपनी टोपी नीकाल कर फ़ेंक दी !लेकिन जो हुआ था उसने कभी कल्पना भी नहीं क़ी थी ! एक बंदर पेड़ से निचे उतरा और वह टोपी भी लेकर पेडपर भाग गया क्योंकि एक टोपी कम पड़ गई थी जो उसे नहीं मिली थी !

आखिर बंदर भी अपने बच्चों को समझा गए होंगे कि, मनुष्य बड़ा चालाक प्राणी है उनसे सावधान रहना !उस सौदागर का बेटा कभी न कभी इस वृक्ष के निचे विश्राम करेगा और अपनी टोपी फेंकेगा,
तब तुम जल्द से जल्द उस टोपी को उठा लेना !जो गलती हमने क़ी थी वह तुम कभी न करना !

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

अपने आचरण की फिक्र करना .....( ताओवाद )


चीन की बहुत बड़ी दार्शनिक परंपरा है जिसका नाम है ताओवाद ! ईसापूर्व तीसरी शताब्दी में ताओ दर्शन प्रौढ़ हुआ, और तभी से ताओ ग्रन्थ में ली तजु नामक दार्शनिक का उल्लेख आता है !
ताओ का मतलब होता है मार्ग या फिर यूँ कहे कि, वह नियम जिससे अस्तित्व क़ी हर चीज संचालित होती है ! ताओवाद लोगों को रहस्यपूर्ण, हास्यपूर्ण छोटी छोटी कहानियों द्वारा मार्ग दर्शन करता है !छोटी-छोटी कहानिया पर अर्थ बड़े गंभीर और अर्थपूर्ण होते है !
एक नमूना पेश है ...."कुआन मिन ने ली तजु से कहा , "यदि तुम्हारे शब्द सुंदर या असुंदर है तो वैसी ही उसकी प्रतिध्वनि होगी ! यदि तुम्हारी आकृति छोटी या लंबी हो तो वैसी ही उसकी छाया होगी !शोहरत प्रतिध्वनि है, आचरण छाया है ! इसलिए कहते है, अपने शब्दों के प्रति सावधान रहना क्योंकि कोई न कोई उनसे सहमत होगा ! अपने आचरण की फिक्र करना कोई न कोई उसकी नक़ल करेगा" ! ताओ दर्शन में इस प्रकार की छोटी-छोटी कहानियाँ वह सब कह देती है जो बड़े बड़े दर्शन शास्त्र नहीं कह पाते !

अभिव्यक्ति की आजादी की हम सब बात करते है ! युवा कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी इन दिनों अपने विवादास्पद कार्टूनों के लिए देशद्रोह के विवादों में घिरा है ! आजादी परम संवेदनशीलता है इसका हम किस प्रकार उपयोग करते है यह हमारे  attitude पर निर्भर करता है !

आवश्यक सुचना;- बेहतरीन कवि,कथाकार,समीक्षक हमारे ब्लॉग परिवार के जानेमाने वरिष्ठ सदस्य 
"कलम" ब्लॉग के ब्लॉगर श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी नहीं रहे ! आपका स्नेह कभी भूल नहीं पाऊँगी भाई जी, इश्वर आपकी आत्मा को शांति दे, अश्रुपूरित नेत्रों से भाव भीनी श्रद्धांजलि समर्पित करती हूँ !

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

अनहद नाद एक .....


हम सब फूल है 
इस उपवन के 
फूल न्यारे, ख़ुशबू न्यारी 
क्या जूही, क्या चमेली 
क्या गुलाब पीला,लाल 
रंगबिरंगी इन फूलों से 
मिलकर ही तो सजती है 
पूजा की थाल !
शब्द अलग, भाव अलग 
क्या गीत, क्या कविता,लेख 
विविध गीतों से मिलकर ही तो 
बनता है अनहद नाद एक !
अपनी-अपनी धारणाओं की 
हद में मत बांधो इनको 
सबको अपना-अपना 
सृजन गीत मुक्त कंठ से 
गाने दो सबको क्यों के ....
बेरंग,बेमजा हो जाता है 
उपवन का सौन्दर्य 
एक रंग में,एक रूप में,
एक गीत में, एक ही 
 भाव में .....

सोमवार, 3 सितंबर 2012

गिलहरी और उल्लू ! ( लघु कथा )



वे सर्दी के दिन थे !सुबह होने ही वाली थी !सूरज उगने की तैयारी कर रहा था !पंछी अपने-अपने घोंसलों से बाहर निकलने की प्रतीक्षा कर रहे थे !एक पेड़ पर बैठी गिलहरी इधर से उधर, उधर से इधर शाखा पर फुदकते हुये ...मन ही मन सोच रही थी कि, "जैसे ही सुबह होगी सुहानी सुबह का मजा लुंगी, नर्म-नर्म गुनगुनी धूप सेकुंगी "....! इतने में न जाने कहाँ से एक उल्लू उड़कर आ गया और पेड़ पर बैठ गया ! उसने गिलहरी से कहा "सुन ऐ गिलहरी, रात होने ही वाली है ! मैं इस पेड़ पर रात बिताना चाहता हूँ ! तुम्हारा क्या कहना है मेरा इस पेड़ पर विश्राम करना क्या ठीक रहेगा?" उल्लू ने अपनी बंद होती आखों को बड़े मुश्किल से खोलते हुये कहा !
गिलहरी ने कहा ... "निश्चित तुम रह सकते हो ! देखो हम सब कितने प्यार से आराम से यहाँ इस पेड़ पर रहते है तो, तुम क्यों नहीं रह रह सकते हो " उसने पंछियों के घोसलों की ओर इशारा करते हुये कहा ! लेकिन क्षमा करना मित्र, रात नहीं सुबह हो रही है ! देखो सूरज निकलने ही वाला है गिलहरी ने कहा ! उल्लू ने कहा चुप रह गिलहरी, बकवास बंद कर मुझे पता है कि, रात हो रही है देखो तो चारो ओर अंधेरा घिरने लगा है !गिलहरी ने मन ही मन सोंचा.. कौन व्यर्थ के विवाद में पड़े आखिर ये है तो उल्लू ही ना, नाहक झंझट खड़ी कर देगा ! और सुबह की गुनगुनी धुप सेकने का सारा मज़ा चौपट कर देगा ! लेकिन एक बार उसने उल्लू से सत्य  कहना उचित समझा ! सुनो मित्र.... तुम मानो या ना मानो पर एक बात बताना चाहती हूँ कि, तुम्हारा तो रात में दिन होता है, और दिन में रात होती है लेकिन तुम कैसे मानोगे मेरी बात को, तुम्हारी आँखे बंद जो हो रही है, लेकिन तुम्हारे कहने से सत्य नहीं बदलता ! देखो सूरज निकल रहा है !और मै नर्म गुनगुनी धूप का भरपूर मजा लेने जा रही हूँ !

सोमवार, 27 अगस्त 2012

क्या आपका मूड ख़राब है ?

जब भी आपका मूड ख़राब होता है तब आप किसे दोष देते है ...स्वयं को ? परिस्थितियों को या आपके आस पास रहने वाले व्यक्तियों को ! इसके पहले की आप किसी को दोष दे एक बहुत अर्थपूर्ण झेन कहानी पढ़ लीजिये शायद आपका मूड  ठीक हो ! एक मंदिर के द्वार पर दो बौद्ध भिक्षु लड़ रहे थे ! मंदिर पर लगी हुई पताका को देखकर एक भिक्षु कह रहा था कि,पताका को हवा हिला रही है !दूसरा भिक्षु कह रहा था नहीं पताका हिल रही है , इसलिए हवा कंपित हो रही है ! विवाद चल रहा था दोनों में तय करना मुश्किल था, इतनेमे मंदिर से गुरूजी बाहर आये उन्होंने कहा....तुम दोनों नासमझ हो न पताका हिल रही और न हवा हिल रही है, तुम्हारा मन हिल रहा है !
मूड का ख़राब होने का मूल कारण है मन का भटक जाना ! मन अपने केंद्र से भटक कर रज,तम,सत्व इन तीन गुणों से युक्त परिधि पर गोल-गोल घूम रहा है !इसीलिए हम देखते है कि, भावनात्मक बदलाव हो रहे है ! कभी सुख कभी दुःख कभी तनाव तो कभी हमारा मूड आफ हो जाना ! यह सारी मन की ही स्थिति है ! जब भी आपको लगे कि आपका मुड ख़राब है समझ जाना कि यह एक संक्रमण काल है थोड़ी देर में गुजर जायेगा !ऐसे समय में कोई अच्छा साहित्य पढने क़ी कोशीश कोई अच्छा संगीत सुनने क़ी कोशीश आपको बहुत हद तक ख़राब मूड को बाहर फेंकने में मदद करेगी! बिन बुलाये मेहमान के जाने की जैसे घरवाले प्रतीक्षा करते है, ऐसेही कुछ देर प्रतीक्षा कीजिये ! आप पायेंगे कि मन पूर्ववत स्थिति में आ गया है !जब भी हमारा मूड ख़राब हो हम किसी इमोशनल सपोर्ट की जरुरत महसूस करते है ! लेकिन जितनी हो सके भावनात्मक आत्मनिर्भर होने की कोशिश हमें और मजबूत बनाती है ! 


शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

अफवाह ने की है नींद हराम.....

"सो जाओगे तो मर जाओगे" ....यह मै नहीं कह रही हूँ अख़बार की दिलचस्प खबर कह रही है ! दरअसल सो जाओगे तो मर जाओगे वाली अफवाह ने लोगों की नींद हराम की हुई है ! जितनी जुबानी उतनी बाते उतनी ही कहानियाँ ! सेलफोन के जरिये लोग बिना सोच विचार किये इस अफवाह को एक दुसरे तक पहुंचा रहे है ! महाराष्ट्र के जिले अहमदनगर,लातूर,बीड, परभनी आदि शहरों में लगभग रात के बारह बजे के आस पास लोग एक दुसरे को फोन पर यह सुचना दे रहे है कि, भूकंम्प आने वाला है ! लोग दुसरे शहरों में रहने वाले अपने रिश्तेदारों को फ़ोन कर रहे है ! इस तरह खुद जग रहे है और दूसरों को जगा रहे है ! अचानक किसी ने यह अफवाह फैलाई कि, एक प्रसूति गृह में एक नवजात बालिका ने कहा क़ी जो आज रात सोयेगा वह मर जायेगा ! यह अफवाह फैलते -फैलते हमारे शहर हैदराबाद तक पहुँच गई है ! यहा कुछ जगहों पर जगराता वाला माहोल है ! महाराष्ट्र में रहने वाली मेरी दोस्त ने मुझे कल रात फोन किया ! सारी बाते सुनने के बाद मैंने कहा कि,...इन बेकार क़ी अफवाओं पर ध्यान मत दे ! भूकंम्प से मरोगे क़ी नहीं यह मुझे पता नहीं पर बिना नींद के जरुर मरोगी मैंने कुछ नाराजगी से कहा ! लेकिन ये अफवाहे कौन फैला रहा होगा उसने कुछ चिंतित स्वर में कहा ...! अब ये तो कोई लाल बुझक्कड़ ही बता सकता है...मैंने खीजते हुये कहा ! क्यों बेतुका सा जवाब दे रही हो उसने कहा ! बेतुके सवाल के बेतुका ही जवाब होगा ना मैंने कहा .... लाल बुझक्कड़ कौन है ? उसने मासुम-सा सवाल किया ! फालतु के सवाल मत कर फ़ोन रख दे मुझे नींद आ रही मैंने उनींदी आँखों से जम्हाई लेते हुये कहा और फोन रख दिया ! जानती हूँ उसको दुःख हुआ होगा लेकिन मै भी क्या करूँ इतनी पढ़ी लिखी होकर बेकार क़ी अफवाओं पर विश्वास करती है ! पता नहीं कौनसे शताब्दी में रहते है लोग ! आपके मन में भी रोचकता जगी होगी न कि, यह लाल बुझक्कड़ कौन है ? क्यों न मै उसका एक किस्सा ही सुनाउ आपको, आईये सुनते है ...लाल बुझक्कड़ शर्लक होम्स से कम थोड़े ही है (ऐसा मै नहीं खुद लाल बुझक्कड़ का  और उन गांववालों का मानना है ) किस्सा कुछ यूँ हुआ था एक बार उस गांव में चोरी हो गई ! बहुत लोगों ने खोजबीन क़ी पर चोर का पता नहीं चला ! पुलिस आई पर उनको भी कुछ पता नहीं चला चोर का ! आखिर गांव वालों ने पुलिस इन्स्पेक्टर से कहा कि,"हमारे गांव में लाल बुझक्कड़ रहता है वो हर मसले को चुटकियों में बुझ देता है "! बहुत पहुंचे हुये ज्ञानी है हमारे लाल बुझक्कड़ ....एक दफा ऐसा हुआ कि ,गांव से हाथी नीकल गया था ! (गांव वालों ने हाथी देखा हुआ नहीं था कभी ) रात हाथी गांव से निकला और सुबह उसके पैरों के निशान दिखाई दिए ! सारे गांव में चिंता की लहर फैल गई कि .किसके पैर के निशान हो सकते है इतने बड़े बड़े ? पैर के निशान इतने बड़े है तो फिर वो जानवर कितना बड़ा होगा ? फिर लाल बुझक्कड़ ने सुझा दिया कि, घबराने क़ी बात नहीं है ....सीधी सी बात है जरुर हरिण रहा होगा ! उस हरिण ने ही अपने पैरों में चक्की बांध कर उछला होगा ! इस प्रकार लाल बुझक्कड़ ने मसले का हल कर दिया, कहकर गांव वालों ने पुलिस इन्स्पेक्टर को बता दिया ! इन्स्पेक्टर ने कहा यह भी ठीक है चलो देखते है शायद लाल बुझक्कड़ चोर का पता बता दे पूछते है ! लाल बुझक्कड़ को बुलाया गया ! उसने कहा चोर के बारे में बता तो सकता हूँ पर सबके सामने नहीं बताऊंगा ! क्योंकि मै कोई झंझट मोल नहीं लेना चाहता ! चलिए किसी एकांत स्थान पर चलते है वही बताऊंगा पर, कसम खाओ क़ि, किसी को बताओगे तो नहीं ? "पुलिस इन्स्पेक्टर ने स्वीकृति दी क़ि किसी को नहीं बताऊंगा कसम खाता हूँ मगर तुम बता तो दो भैय्या "! पुलिस इन्स्पेक्टर को लेकर लाल बुझक्कड़ बहुत दूर जंगल में ले गया ! बहुत दूर जाने के बाद  इन्स्पेक्टर ने कहा ..."अब तो बता दो यहाँ तो कोई भी नहीं है पशु पक्षी तक नहीं है सुनने को " तब लाल बुझक्कड़ ने इन्स्पेक्टर के कान में फुसफुसाकर कहा क़ि, मुझे पक्का यकीन है देखो किसीको कहना मत चोरी किसी चोर ने क़ी है !

बुधवार, 22 अगस्त 2012

क्रोध का रूपांतरण ......

कल किसी कारणवश बाहर जा रही थी ! सड़क के चौराहे पर ग्रीन सिग्नल मिलते ही वाहनों का काफिला चल पड़ा ! इतने में एक कार ने दूसरी कार को धक्का मारा ! जरासा धक्का क्या लगा कि,गाडी में बैठे दोनों युवक अपनी अपनी कार से उतर पड़े और वही हुआ जो होना था तू-तू मै-मै से लेकर गालियों से लेकर मार-पिट तक मामला चला ! ट्राफिक जैम हुआ लोग उतर कर तमाशा देखने लगे ! तमाशा देखने वालों क़ी कमी थोड़े ही है दुनिया में ? कुछ लोगों को हिंसा फैलाने में मजा आता है तो कुछ को देखने में ! कारण चाहे छोटे हो या बड़े हो लेकिन हर मनुष्य क्रोध से जैसे उबल रहा है ! सुबह उठकर कोई भी समाचार पत्रिका उठाकर देखिये ज्यादातर खबरे अपराध, हिंसा से भरी पड़ी है ! हम जिसे प्रगतिशील युग कह रहे है आज के इस युग पर नजर डालिए तो, हर छोटे-बड़े शहरों में हिंसा हो रही है ! कुछ दिन पूर्व पुणे में एक के बाद एक बम ब्लास्ट हो, या फिर हाल ही में अमेरिका में हुये गुरुद्वारे में निर्दोष लोगों क़ी मारे जाने खबर, थियेटर में जेम्स द्वारा अंधाधुन्द गोलिया चलाकर कई मासूम लोगों क़ी जान लेने क़ी खबर ! इस प्रकार क़ी हिंसा करने वाले विक्षिप्त अपराधियों को यह पता नहीं क़ि कौन मरा है और कितने मरे है ! उन्हें तो बस अपना क्रोध प्रकट करना है ! हर रोज सारे विश्व में होने वाली इन घटनाओं पर हम अपनी-अपनी बौद्धिक क्षमता के अनुसार सोचते है तर्क देते है क़ि, इन हिंसाओं के पीछे कारण क्या है ? दूषित माहोल? आधुनिक शिक्षा ? अच्छी परवरिश की कमी ? मानसिक असंतुलन ....बहुत हद तक ये सब बाते सही होते हुये भी क्रोध का बुनियादी कारण है ध्यान का अभाव! सनातन काल से हमारे बुद्ध पुरुष ध्यान क़ी देशना देते आ रहे है ! महावीर क़ी करूणा हो चाहे बुद्ध क़ी अहिंसा हो किसी क़ी थोपी हुई नहीं बल्कि ध्यान के सूत्रों पर आधारित है ! हमेशा हिंसा क़ी ओर प्रेरित करने वाली क्रोध क़ी उर्जा को ध्यान से रूपांतरित किया जा सकता है ! हिंसक अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा देकर कानून यह सोचता हो क़ि, अपराध कम होंगे हिंसा कम होगी लेकिन यह कभी हुआ था न कभी होगा ! इसका मतलब यह नहीं क़ि अपराधियों को खुला छोड़ दे ! लेकिन एक बड़े पैमाने पर आज मनुष्य को ध्यान याने मेडिटेशन क़ी जरुरत है !

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

हे कृष्ण...



हे कृष्ण,
इनके कहने पर आज 
तुम्हारे मंदिर में आई हूँ 
तुम्हारे चरणों पर चढाने 
कुछ ताजे फूल लाई हूँ 
मंदिर में बढती भीड़ 
और इस भीड़ में 
क्या दम तुम्हारा 
घुटता नहीं ? 
दूध,घी,तेल से 
नहलाने पर देह तुम्हारी 
चिपचिपी होती नहीं ?
सदियों से बांसी प्रार्थनायें
सुन-सुनकर उबता नहीं 
मन तुम्हारा ?
ऐसे में हे कृष्ण,
कैसे खड़े रह सकते हो 
पाँव पर पाँव धरे हुये 
होंटों पर पथराई-सी 
मुस्कुराहट और बांसुरी 
लिये हुये !
बस इतनी सी कृपा कर दो 
स्विस बैंक में कबसे बंद पड़ी 
लक्ष्मी जी को मुक्त कर दो 
ताकि हम सब यह यकीं
कर ले क़ि, तुम हो 
यहीं  कहीं हो ......