शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2012

बांध न मुझ को बाहू पाश में .....


 मै,
सुरभि हूँ 
फूल की ...
महकती हूँ 
पल भर ...
महका कर  
सारा परिसर 
उड़ जाती हूँ 
निस्सीम 
गगन में
हवा संग,
बांध न तू 
रुनझुन-रुनझुन 
कर छंदों की 
मोहक कड़ियों से 
बांध न तू 
नाजूक फूलों की 
लड़ियों से 
बांध न तू 
मुझ को अपने 
बाहू पाश में ....

15 टिप्‍पणियां:

  1. पुष्पराज तू दुष्ट है, मद पराग रज बाँट ।

    तन मन मादकता भरे, लेते हम जो चाट ।

    लेते हम जो चाट, नयन अधखुले हमारे ।

    समझ सके ना रात, बंद पंखुड़ी किंवारे ।

    छलता रे अभिजात्य, भूलता सत रिवाज तू ।

    छोड़े मुझको प्रात, छली है पुष्पराज तू ।।

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  2. आज अकेला भौंरा देखा ,
    धीमे धीमे, गाते देखा !
    काले चेहरे और जोश पर
    फूलों को, मुस्काते देखा !
    खाते पीते केवल तेरी,याद दिलाएं ,ये मधु गीत !
    झील भरी आँखों में कबसे, डूब चुके हैं ,मेरे गीत !

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  3. उम्दा है ..खुसबू को बाँधा नहीं जा सकता

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  4. बांध न मुझ को बाहू पाश में .....


    मै,
    सुरभि हूँ
    फूल की ...
    महकती हूँ
    पल भर ...
    महका कर
    सारा परिसर
    उड़ जाती हूँ
    निस्सीम
    गगन में,
    बांध न तू
    रुनझुन-रुनझुन
    कर छंदों की
    मोहक कड़ियों से
    बांध न तू
    नाजूक फूलों की
    लड़ियों से
    बांध न तू
    मुझ को अपने
    बाहू पाश में

    उड़ने दे निस्सीम गगन में ,छंद मुक्त ,....मन के द्वार .बहुत सुन्दर प्रस्तुति सूक्ष्म समेटे जीवन का सार .

    प्रस्तुतकर्ता Suman पर 10:36 pm

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  5. बहने दे मुझे....उड़ने दे मुझे....पवन संग प्रेम करने दे...

    बहुत सुन्दर!!
    अनु

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  6. सुरभि को कौन बाँध सका है भला

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  7. बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई स्वीकारें

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