आज अकेला भौंरा देखा , धीमे धीमे, गाते देखा ! काले चेहरे और जोश पर फूलों को, मुस्काते देखा ! खाते पीते केवल तेरी,याद दिलाएं ,ये मधु गीत ! झील भरी आँखों में कबसे, डूब चुके हैं ,मेरे गीत !
मै, सुरभि हूँ फूल की ... महकती हूँ पल भर ... महका कर सारा परिसर उड़ जाती हूँ निस्सीम गगन में, बांध न तू रुनझुन-रुनझुन कर छंदों की मोहक कड़ियों से बांध न तू नाजूक फूलों की लड़ियों से बांध न तू मुझ को अपने बाहू पाश में
उड़ने दे निस्सीम गगन में ,छंद मुक्त ,....मन के द्वार .बहुत सुन्दर प्रस्तुति सूक्ष्म समेटे जीवन का सार .
पुष्पराज तू दुष्ट है, मद पराग रज बाँट ।
जवाब देंहटाएंतन मन मादकता भरे, लेते हम जो चाट ।
लेते हम जो चाट, नयन अधखुले हमारे ।
समझ सके ना रात, बंद पंखुड़ी किंवारे ।
छलता रे अभिजात्य, भूलता सत रिवाज तू ।
छोड़े मुझको प्रात, छली है पुष्पराज तू ।।
बहुत बहुत आभार रविकर जी,
जवाब देंहटाएंआज अकेला भौंरा देखा ,
जवाब देंहटाएंधीमे धीमे, गाते देखा !
काले चेहरे और जोश पर
फूलों को, मुस्काते देखा !
खाते पीते केवल तेरी,याद दिलाएं ,ये मधु गीत !
झील भरी आँखों में कबसे, डूब चुके हैं ,मेरे गीत !
बहुत संदर।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंउम्दा है ..खुसबू को बाँधा नहीं जा सकता
जवाब देंहटाएंबांध न मुझ को बाहू पाश में .....
जवाब देंहटाएंमै,
सुरभि हूँ
फूल की ...
महकती हूँ
पल भर ...
महका कर
सारा परिसर
उड़ जाती हूँ
निस्सीम
गगन में,
बांध न तू
रुनझुन-रुनझुन
कर छंदों की
मोहक कड़ियों से
बांध न तू
नाजूक फूलों की
लड़ियों से
बांध न तू
मुझ को अपने
बाहू पाश में
उड़ने दे निस्सीम गगन में ,छंद मुक्त ,....मन के द्वार .बहुत सुन्दर प्रस्तुति सूक्ष्म समेटे जीवन का सार .
प्रस्तुतकर्ता Suman पर 10:36 pm
बहने दे मुझे....उड़ने दे मुझे....पवन संग प्रेम करने दे...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!!
अनु
उत्कृष्ट रचना.
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएं:-)
सुरभि को कौन बाँध सका है भला
जवाब देंहटाएंजो बंधा
जवाब देंहटाएंगया!
जो बचा
रहा!
बहुत प्यारी सुंदर अभिव्यक्ति,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST LINK...: खता,,,
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंLovely expression!:)
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