मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

हुक्के के धुएं में बर्बाद होता बचपन !

आज के छात्राओं में उन बेशुमार महँगी आद्तोंमे आज हुक्का गुडगुडाना आदत ही, नहीं बल्कि लत बनती जा रही है !हैदराबाद के शहर खासकर शैक्षणिक संस्थान वाले क्षेत्र में इन दिनों अनेक हुक्का सेण्टर अपना धंदा धड़ल्ले से चला रहे है ! गेम जोन, साइबर कैफे ,इन्टरनेट सेण्टर, पब आदि स्थानोपर भारी मात्रां में यूवा वर्ग खासकर टीनेजर कॉलेज छात्र अपने माँ बाप की गाढे पसीने की कमाई हुक्के के धुएं में उड़ाते हुए देखे जा सकते है !प्राप्त जानकारी के अनुसार इन हुक्का सेंटरों में विभिन्न फ्लेवरों की आड़ में जैसे ब्लैक बैरी, स्ट्राबैरी , आरेन्ज फ्लेवर, पान मसाला आदि फ्लेवरों में कोकीन, हेरोइन, ब्राउन शुगर जैसे मादक पदार्थ आसानीसे उपलब्ध करवाए जा रहे है !इन मादक पदार्थों से भरे हुक्का गुड़गुड़ाने के लिए १० से १५ मिनिट के १०००, रूपये से लेकर २,५०० हजार रूपये वसूले जा रहे है !कुछ दिन पूर्व विभिन्न सेंटरों पर पुलिस ने छापे मारकर वहां से ५० से ६० टीनेजर छात्राओ को हिरासत में लिया जो मजे से हुक्का गुडगुडा रहे थे इन छात्राओं को पुलिस थाने ले जाकर उनके अभिभावकों को बुलाकर उनसे सलाह मशवरा कर छात्रोंके भविष्य का ख्याल कर बिना कोई कारवाही किए छोड़ दिया गया इसके आलावा हुक्का सेंटरों के प्रबंधको को संबधित नियमों का पालन करते हुए नाबालिग बच्चों को प्रवेश न देने तथा हुक्का सेवन न करने देने की सक्त हिदायत दी गई पुलिस की इस चेतावनी के बावजूद छात्रओंकी भीड़ में कोई कमी नहीं है !
इन सेंटरोंके संचालक मौज मस्ती के नाम पर छात्रोंको प्रोत्साहित कर चंद पैसों के लिए अपना ईमान बेचकर स्टुडेंट्स को नशे का आदी बनाकर उनके उज्वल भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे है समय रहते इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाही नहीं की गई तो छात्रओंका उज्वल भविष्य हुक्के के धुएं में बर्बाद हो सकता है !

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

बढती पॉकेट मनी मम्मी पापा का बिगड़ता बजट !!

इन दिनों मम्मी पापा की परेशानी बढ़ने लगी है कारण है बच्चों की दिन प्रति दिन बढती पॉकेट मनी !
मल्टी-नैशनल कंपनियों के चलते देश की आर्थिक व्यवस्था में काफी सुधार हुआ है लोगों के वेतन कई गुना बढ़ गए है ! जैसे ही मम्मी पापा का वेतन बढ़ा मध्य वर्गीय परिवारों की आय में, जीवन शैली में बदलाव आ गया! घर में हर सुख सुविधा के साधन आने लगे! टीवी, कंप्यूटर, इंटरनेट, अब स्टेटस सिम्बल ही नहीं बल्कि ज़रूरत के साधन बन गए है जब मम्मी पापा का वेतन बढ़ा तो ज़ाहिर है बच्चों की पॉकेट मनी पर भी इसका असर पड़ने लगा! अब ५००-१००० से बच्चों का काम नहीं चल सकता! उनकी पॉकेट मनी में इन दिनों ३००० से लेकर ५००० तक का इजाफा हुआ है! इस बढ़ते पॉकेट मनी को लेकर कॉलेज गोइंग छात्र अमित और तन्नु का कहना है कि इन दिनों महेंगायी बढ़ गयी है पेट्रोल डीज़ल के दाम बढ़ गए है, खाने पीने कि वस्तुए महेंगी हो गयी है हमें अपने पॉकेट मनी में से सेल-फोन रीचार्गे कराना, कैंटीन जाना अपने दोस्तों में अपना स्टेटस मेंटेन करना पड़ता है ! ये दोनों सही कहते है ! चारों तरफ से लाइफस्टाइल का प्रेशर बच्चों के दिमाग पर पड़ने लगा है ! आज हर मध्य वर्गीय परिवार के बच्चे साईकिल कि जगह महेंगे बाईक्स या फिर लेटेस्ट मॉडेल की कार से जाना पसंद करते है! उनको ब्रेसलेट, बेल्ट, बैग, से लेकर लेटेस्ट मॉडेल के कपडे ब्रांडेड होना ज़रूरी समझते है उनको किताबों से ज्यादा ज़रूरी महेंगे मोबाईल फोन होना ज़रूरी समझते है! कॉफ़ी डे में बैठना, के.ऍफ़.सी , मेक डोनाल्ड में खाना पसंद करते है ! बड़े बड़े मॉल्स, शौप्पर्स स्टॉप की चमक धमक उनको अपनी ओर आकर्षित करने लगे है ! इन मॉल्स में बड़ी संख्या में कॉलेज छात्र इन दिनों खरीददारी करते हुए पाए जा सकते है! इस प्रकार से चारो ओर से लाइफस्टाइल का प्रेशर बच्चों के दिमाग पर पड़ने लगा है तो ५००-१००० रु की पोच्केट मनी कैसे बस होगी भला?
जो भी हो बढती महंगाई हो या फिर बच्चों की लापरवाह मानसिकता हो अच्छी खासी तगड़ी पॉकेट मनी का बोझ मम्मी पापा के वेतन पर भी पड़ने लगा है ! घर का बजट बिगड़ गया है!

रविवार, 22 अगस्त 2010

बहनों ने रक्षा का जिम्मा अब अपने ऊपर लिया है

कल राखी का त्यौहार है, रेडियो पर गीत बज रहा है राखी कहती है तुमसे भैय्या मेरे भैय्या रखना लाज बहन की ! दुनिया पूरी तरह से बदल चुकी है इस तरह के पुराने गीत भी अब विदा होने चाहिए ! बहनों ने अपनी रक्षा का जिम्मा अपने ऊपर लिया है वह अपने भाइयों के मुकाबले किसी भी बात में कम तर नहीं है! पढ़ लिख कर वह काबिल और स्वावलंबी बन कर अपनी ही नहीं अपने माँ बाप का सहारा बन रही है सुबह से श्याम देर रात तक हर क्षेत्र में काम करने की हिम्मत जताने लगी है! वह अपने भाइयों की दया पर जीना उनसे रक्षा की भीख माँगना अपना अपमान समजने लगी है ! सदियों पहले वह बेटी बन कर पिता के आश्रय में जवानी में पति के सरक्षण में बुढ़ापे में बेटों की रहमो करम पर जीती आई है! पर अब वह पढ़ लिख कर आर्थिक सम्पन्नता हासिल कर किसी की दया की पात्र नहीं बल्कि अपने हक के लिए लड़ना चाहती है! इन दिनों बहुत कुछ तेजी से बदल गया है! उसी अनुपात में रिश्तों में दरारे बढ़ गयी है! इसी बदलाहट के चलते बहन भाई के रिश्ते में वह बचपन वाली मिठास और स्नेह नहीं रहा है ! भले ही आज के माता पिताओं ने अपने बेटे और बेटियों ने कोई फरक नहीं समझते फिर भी भाई अपने बहन को हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धक समझता है! पढाई में अगर बहन उससे अव्वल है तोह उसे बहुत बुरा लगता है घर की हर वस्तुओं पर वह अपना एकाधिकार समझता है! अपनी बहन से कोई भी वस्तु अधिकार पूर्वक बल पूर्वक हासिल करना अपना हक समझता है! बेचारी बहन हमेशा अपनी तमाम इच्छाओं को दबाकर हालात से समझोता करना समझदारी समझती है भाई बहन के हर फैसले में अपने टांग लड़ाना ज़रूरी समझता है! बहन को किस कॉलेज में एडमिशन लेना है कोनसा विषय चुनना कोनसे कपडे पहनना सब कुछ वही तय करता है उसके कही आने जाने पर रोक टोक लगाना डरा धमका कर अपनी बात मनवाना जन्म सिद्ध अधिकार समझता है!
सदियों से भाई पैतृक संपत्ति पर अपना एकाधिकार समझता आया है अगर गलती से कोई बहन संपत्ति पर अपना हक जताती है तोह वह बहन से सारे रिश्ते नाते तक तोड्लेता है! कानून ने भले ही पैतृक संपत्ति पर समान अधिकार भले ही दिए हो किन्तु बहन अपना हक मांगे यह भाइयों को बिलकुल बर्दाश नहीं होता! एक दुसरे पर जान निछावर करने वाले भाई बहन पल भर में जान के दुश्मन तक बन जाते है आज ऑनर किल्लिंग के ज्यादा तर मामले हम सब के सामने है इस ऑनर किल्लिंग के जितने भी मामले है उनमे ज़्यादातर लड़कियों के हत्याए उनके भाइयों ने की हुई है! जिन बहनों ने रक्षा हेतु अपने प्यारे भाइयों के हातों पर राखी बाँधी होगी वाही हाथ अपने बहनों को जान से मारने में क्षण भर भी नहीं कामपे होंगे परिवार की इज्जत के नाम पर बहनों की निर्मम हत्याए करना उसको ऑनर किल्लिंग का नाम देना दरिंदगी, वहिशी पन नहीं तो और क्या है?
रक्षा बंधन सिर्फ एक दिन भाई की कलाई पर राखी बांधकर प्रेम जताने का त्यौहार नहीं बल्कि इस एक दिन के जरिये भाई बहन हमेशा एक दुसरे को यह एहसास दिलाते रहे की वे एक दुसरे की लिए कितने महत्त्वपूर्ण है! जिस प्रकार बहन अपने भाई की लम्बी आयु की उसके समृध्ही की भगवान् से प्रार्थना करती है भाई भी यह प्रण करे की अपने बहन को हर तरह से आज़ादी दूंगा! उसके सुख दुःख में सदैव सहयोग करूँगा उन तमाम सारी खुशिया उस पर लुटाऊंगा जिसकी वह हक़दार है तभी रक्षा बंधन का यह त्यौहार सार्थक बन सकता है!

रविवार, 15 अगस्त 2010

टीनेजर की नजरों में आजादी के मायने !

जिस तेज़ गति से दुनिया बदलती जा रही है उसी प्रकार हमारी जीवन शैली हमारा खान पान, रहन सहन जीने का अंदाज़ सब कुछ बदल गया है, उसी प्रकार आज़ादी के मायने भी बदल गए है! आज बच्चों को अगर हम आज़ादी के बारे में पूछेंगे तो उनका जवाब होगा- इधर उधर घूमना, देर रात तक टीवी देखना, फेसबुक पर घंटो लगे रहना, चाटिंग करते वक़्त पिज्जा, बर्गेर, चिप्स खाना कूल ड्रिंक्स पीना! जंक फ़ूड बच्चों का आज आम भोजन बन गया है! किसी भी बात में बड़ों की रोक टोक उन्हें पसंद नहीं! स्वछन्द जीवन जीने को वे अपनी आज़ादी समझने लगे है! टीनेज बच्चे शारीरिक मेहनत खेल कसरत से दूर होते जा रहे है! महा नगरों में बच्चों पर किये गए सर्वे बताते है कि अनेक बच्चे मोटापे का शिकार, ब्लड प्रेशर, दातों के रोगों से पीड़ित पाए गए है! बच्चों पर किया गए यहाँ सर्वे बताते है कि बच्चे चिड चिड़े, जिद्दी, आक्रामक होते जा रहे है! उनमे आत्मा विश्वास कि कमी पायी गयी है टीनेजर बच्चों में एक दुसरे का अनुकरण करने की होड़ सी लगी हुई है पब पार्टियों में जाना शराब पीना नशा करना इसी को वे आधुनिक ज़माने के मॉडर्न बच्चे समझने लगे है जीवन के प्रति उनका नजरिया एक दम बदल सा गया है अपनी इन महंगी आदतों को पूरा करने के लिए वे छोटे मोटे अपराध तक करने लगे है उनकी नज़र में मॉरल व्यालूस कोई मायने नहीं रखते माता पिता को यह समझ में नहीं आ रहा है की उनके बच्चे बड़े बड़े स्कूल कॉलेजों में महंगी फीज़ पर पढ़ कर भी बिगड़ क्यूँ रहे है ? आज बच्चे माँ बाप के बुढ़ापे का सहारा नहीं बल्कि सर दर्द बनते जा रहे है काम की व्यस्तता भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी घर की अनेक समस्याएं माता पिता को चाह कर भी अपने बच्चों को घर में स्नेह पूर्ण वातावरण साफ़ सूत्री ज़िन्दगी नहीं दे पा रहे है !
मेरा अपना मानना है कि आज़ादी का मतलब स्वछन्द जीवन नहीं बल्कि मर्यादित जीवन हो तभी हम दुनिया में कुछ हासिल कर पायेंगे वर्ना जिस प्रकार एक कटी पतंग डोर से कट कर निरूद्देश भटक जाती है उसी प्रकार हम भटक सकते है इसलिए एक कुशल पतंग बाज़ अपने पतंग को ज्यादा ढील नहीं देता और ज्यादा खींच कर नहीं रखता उसी प्रकार हम मर्यादा कि डोर से बंध कर ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है !
६४ वे स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर सबको बधाई देते हुए यही कहना चाहती हूँ की आज़ादी हमारे लिए बेश कीमती है उसे विद्वंस करने में नहीं सृजन करने में लगानी चाहिए !
प्रत्येक माता पिता से विनती करती हु की बच्चे परिवार का अभिन्न अंग है उनसे बढ़कर दुनिया में कोई सम्पदा नहीं अपने बच्चों को प्यार से अपने पन से समझने और समझाने की ज़िम्मेदारी सिर्फ आपकी है वर्ना हमारे बच्चे आज़ादी की नाम पर स्वछंदता के नाम पर जीवन की इन भूल भुलय्या गलियों में भटक सकते है !

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

" आधुनिक साहित्य "


भला बूंद की क्या औकात जो सागर के बारे में कुछ कह सके !


हिंदी साहित्य को चार भागों में विभाजित किया गया है - आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल, और आधुनिककाल ! हर काल में साहित्य का अपना अलग महत्व रहा है ! आज का युग वैज्ञानिक युग है ! इस आधुनिक युग में अद्वितीय चिन्तक वैज्ञानिक अभिनव क्रान्ति के प्रस्तोता "आचार्य रजनीश" जिनको सारा विश्व आज "ओशो" के नाम से जानते है ! उनका साहित्य आज के युग की ख़ास पसंद है ! उनका साहित्य ज्यादा से ज्यादा भाषाओँ में अनुवादित होकर सारे विश्व के कोने कोने में पहुँच रहा है ! पूना स्थित उनके आश्रम में हर साल दूर दूर के देशों से साधक आते है और अपने आप को ध्यान और साधना में डूबोते  है ! कठिन से कठिन विषय को भी सरल बना कर सरस शब्दों में समझा कर नीरस विषय को भी मनोरंजक बना कर श्रोताओं को बहला फुसला कर अपने लक्ष्य की ओर प्रोत्साहित करना सचमुच ओशो जैसे शिक्षक को ही साध्य है ! वे अपने विचार किसी पर थोपते नहीं बल्कि उनको अंतर दृष्टी देकर सही मार्ग पर चलने को प्रेरित करते है ! बुद्ध, महावीर, मोहम्मद, जेसस, अष्टावक्र, कृष्ण, संत महात्माओं पर उनके अनेक प्रवचन प्रचलित है इतना ही नहीं राजनैतिक सामाजिक समस्याओं पर प्रकाश डाला है !
मजेदार बात यह है कि उनहोंने लिखा नहीं अपने शिष्यों प्रेमियों द्वारा संकलित किया हुआ है ! शिष्य और सद्गुरु के बीच बोला गया संभाषण है जैसे अभी सुबह सुबह खिले हुए ताज़े फूल !
ओशो का मतलब ओशोनिक (oceanic) याने कि सागर ! एक ऐसा महासागर जिसके गर्भ में भिन्न भिन्न अमूल्य रत्न भरे पड़े है ! यह महासागर कभी बुद्ध जैसा शांत गंभीर दीखता है तो कभी कभी रौद्र रूप धारण कर समाज में फैले अंधविश्वासों, झूठी परम्पराओं, पाखंडों को तेज रफ़्तार से बहा ले जाता है !
आज से पच्चीस साल पहले ओशो कि एक पुस्तक मेरे हाथ में पड़ी ! इस पुस्तक को मैंने पढ़ा तो फिर उनको पढ़ती ही गयी जैसे जैसे घर में विरोध बढता गया वैसे वैसे उनसे लगाव भी बढ़ता गया अंततः प्रेम कि जीत हुई ! आज मेरे घर में सभी उनसे प्रेम करते हैं उनके साहित्य को चाव से पढ़ते है ! उस महासागर कि मैं एक छोटी सी बूंद हु भला बूंद कि क्या औकात जो सागर के बारे में कुछ कह सके ! मैंने उस सागर को चखा है आप सब से एक बार चखने के लिए अनुरोध करती हूँ ! फिर आप आप नहीं रहेंगे बदल जायेंगे ! जीवन को देखने का दकियानूसी अंदाज़ भी बदल जाएगा ! उस प्यारे सदगुरु ओशो के चरणों में समर्पित मेरी यह रचना शायद आपको भी पसंद आ जाये !
" जब तुमसे प्रेम हुआ है "
तुमको अपना हाल सुनाने
लिख रही हु पाती
प्रिय प्राण मेरे
यकीन मानो
अपना ऐसा हाल हुआ है
जबसे मुझको प्रेम हुआ है !
जग का अपना दस्तूर पुराना
चरित्रहीन कहकर देता ताना
बिठाया चाहत पर
पहरे पर पहरा
नवल है प्रीत प्रणय कि
कैसे छुपाऊं
ह्रदय खोल कर अपना
कहो किसको बताऊँ
अपना भी जैसे
लगता पराया है
जबसे मुझको प्रेम हुआ है
कौन समझाए इन नैनों को
बात तुम्हारी करते है
पलकों पर निशिदिन
स्वप्न तुम्हारे सजाते है
जानती हूँ स्वप्नातीत
है रूप तुम्हारा
मन-प्राण मेरा
उस रूप पर मरता है
जबसे मुझको प्रेम हुआ है
तुम्हारी याद में,
तुम तक पहुंचाने को
नित नया गीत लिखती हूँ
भावों कि पाटी पर प्रियतम
चित्र तुम्हारा रंगती हूँ
किन्तु छंद न सधता
अक्षर-अक्षर बिखरा
थकी तूलिका बनी
आड़ी तिरछी रेखाएं
अक्स तुम्हारा नहीं ढला है
जबसे मुझको प्रेम हुआ है !

" भ्रष्टाचार का वायरस "


"सोने की चिड़िया कहलाने वाले हमारे भारत देश को भ्रष्टाचार के दीमक ने इस कदर खोकला कर दिया है की इस दीमक को ख़तम कर देश को बचाना मेरे हिसाब से अब मनुष्य के बस की बात नहीं रही ! इसीलिए मैंने भगवान् को माध्यम बना कर एक छोटा सा व्यंग्य किया है!"


हम सब भगवान् को जग के पालनहार साथ में सृष्टि के कुशल रचनाकार के रूप में जानते हैं ! उनहोंने धरती आकाश की रचना की पर वे खुश नहीं हुए ! चाँद तारें बनाये, पशु पक्षी सारी सुन्दर प्रकृति बनायीं फिर भी खुश नहीं हुए उनको इन सब में कुछ न कुछ कमी महसूस हुई तब जा के उनहोंने मनुष्य की रचना की और कहते है की भगवान् अपनी इस अपूर्व रचना पर इतने प्रसन्न हुए की तब से आज तक उन्हें फिर कुछ बनाने का मन ही नहीं हुआ अब तो वे आनंद मग्न ध्यान में लीन रहने लगे !
आज भी वे इसी तरह आँखें मूँद कर ध्यान मग्न बैठे हुए थे कि किसी के क़दमों कि आहट हुई ! उन्होंने अपनी आखें खोल कर देखा अपने बूढ़े विश्वासपात्र मंत्री जी चिंता मग्न सिर झुकाए सामने खड़े थे ! उनके लम्बे सफ़ेद केश, झुकी हुई कमर, घुटनों तक लहराती श्वेत शुभ्र दाढ़ी, उनकी उम्र का अंदाजा लगाना कठिन था ! खैर, भगवान् ने मंत्री जी से आने का कारण पूछते हुए कहा - " कहिये मंत्री जी क्या बात है आपकी चिंता को देख कर लगता है कि कोई बहुत बढ़ी समस्या है ! धरती पर सब ठीक तो है ना ?" ,भगवान् ने प्रश्न किया ! " नहीं प्रभु, धरती पर ख़ास कर के भारत में हालात कुछ ठीक नहीं हैं ! चोरी, डकैती, मिलावटखोरी, पृथक प्रान्तों को लेकर झगडे आन्दोलन आसमान छूती महंगाई ने आम जनता की कमर तोड़ दी है जनता त्राहि त्राहि पुकार रही है ऊपर से भ्रष्टाचार का वायरस मनुष्य के दिमाग में घुस कर मनुष्य की नैतीकता विचारशीलता मानवीय संवेदनाओं को तहस नहस कर रहा है ! लगभग धरती पर सारी मानव जाती भ्रष्टाचार के इस वायरस से प्रभावित हो रही है ! जिस प्रकार कंप्यूटर में वायरस उसके डाटा को नष्ट करता है उसी प्रकार मनुष्य के मस्तिष्क को भ्रष्टाचार का वायरस विकृत कर रहा है ! हे प्रभु, समय रहते इस वायरस का निवारण नहीं हुआ तो धरती पर मानवता खतरे में पड़ सकती है ! " मंत्री जी ने चिंता व्यक्त की ! इतनी देर से मंत्री जी की बातें बड़ी ध्यान से सुन रहे भगवान् ने कहा यह तो बड़ी चिंता का विषय है मंत्री जी ! हमारी प्रिय रचना जो की मनुष्य जिस पर हमें बहुत गर्व है उस रचना को ऐसे नष्ट होते हुए हम नहीं देख सकते किन्तु आप यहाँ वायरस का बार बार उल्लेख कर रहे है कंप्यूटर, डाटा , इन सब का क्या मतलब है? यह शब्द हमारे लिए नितांत अपरिचित है भगवान् ने कहा ! मंत्री जी तनिक मुस्कुराए और कहा हे इश्वर आप तो हमेशा अपने सृजन में व्यस्त रहते है ! मंत्री होने के नाते हमारी ज़िम्मेदारी को हम खूब जानते है तीनों लोकों की जानकारी मुझे ही तो रखनी पढ़ती है, आपने ही तो ये ज़िम्मेदारी हमे सौपी है ! उसी जानकारी के अनुसार बुद्धि जीवियों द्वारा ईजाद किया हुआ यह एक यन्त्र है जो की मानव मस्तिष्क जैसा है उसी को धरती वासी कंप्यूटर कहते है ! इसकी सहायता के बिना मनुष्य आज कुछ भी नहीं कर सकता ! मनुष्य कंप्यूटर का उपयोग हर क्षेत्र में करने लगा है जैसे की शिक्षा क्षेत्र, बड़े बड़े प्रतिष्ठानों में, चिकित्सा क्षेत्र,अंतरिक्ष यात्रा इत्यादी की जानकारी कंप्यूटर पलक झपकते ही देता है वह भी त्रुटिहीन जानकारी ! इतना ही नहीं कंप्यूटर में गूगल इंजिन एक ऐसा खोजी इंजिन है जो की बच्चे बड़े,बूढ़ों में बहुत ही लोक प्रिय हो रहा है ! मुझे तो यह आशंका है की जल्द ही गूगल खोजते खोजते कही हम तक ना पहुँच पाय ! इसके साथ-साथ मंत्री जी ने कंप्यूटर की कार्य प्रणाली साथ में मेमोरी, इनपुट, ओउटपुट, कण्ट्रोल, मेमोरी , विंडो , किबोर्ड , माउस डाटा क्या है वायरस कंप्यूटर में कैसे प्रवेश करता है इन सबकी जानकारी जो की हम सब जानते है मंत्रीजी ने सविस्तार जानकारी भगवान् को दी ! बहुत देर से कंप्यूटर की अजब गजब जानकारी सुन रहे भगवान् के मन में कई रोचक प्रश्न जागे ! अब तक वे स्वयं को बहुत बड़े रचना कार समझते थे किन्तु मनुष्य के इस आविष्कार के बारे में सुन उनको मनुष्य के प्रति किंचित इर्ष्या सी हुई पर अपने चेहरे के भावों को बड़ी सफाई से छुपाते हुए मंत्री जी से प्रश्न पुछा की मंत्री जी बताईये फिर मनुष्य और कंप्यूटर दोनों में श्रेष्ट कौन है ?
निसंदेह मनुष्य ही श्रेष्ठ है प्रभु यह तो आप भी जानते है मनुष्य में मानवीय गुणों के साथ अच्छे बुरे की परख चिंतन मनन करने की क्षमता अनुभव करने की जो चेतना आपने मनुष्य को प्रदान की वह कंप्यूटर में कहाँ ? वह तो अपने स्वामी द्वारा दिए हुए आदेश का पालन करने वाला यन्त्र मात्र है किन्तु भ्रष्टाचार का वायरस मनुष्य की इन तमाम योग्यताओं को नष्ट कर रहा है इस तकनिकी गड़बड़ को आपको ही सुधारना होगा नहीं तो धरती पर मानवता का नामोनिशान तक मिट सकता है मंत्रीजी ने आशंका व्यक्त की !
भगवान् अत्यंत चिंतित हुए क्या करना चाहिए उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था फिर उन्होंने अपने मंत्रीजी से ही सलाह लेना उचित समझा ! मंत्रीजी आप ही बताईये हमें क्या करना चाहिए ताकि मनुष्य जाती को इस भयंकर वायरस से बचाया जा सके तब मंत्री जी ने बड़ी प्रसन्नाता से कहा -हे प्रभु इस ब्र्श्ताचार के वायरस निवारण हेतु हमें तुरंत एंटी वायरस बनाना होगा तभी धरती पर नैतिक मूल्यों को बचाया जा सकता है ! भगवान् अपने बूढ़े मंत्रीजी की बात मानकर एंटी वायरस बनाने अपने प्रयोगशाला की ओर चल दिए !
आज भारत में अनेक समस्याएं विकराल रूप धारण कर रहे है ! यहाँ वहां प्रांतीय पृथकता  को लेकर झगडे आन्दोलन साम्प्रदायिक झगडे काला बाजारी महंगाई कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराध भारत की समृधि विकास के लिए घातक बनते जा रहे है ! स्वार्थ साधन ही आज के नेताओं का लक्ष बना हुआ है ! इनके मन में राष्ट्रीय भावनाओं का कोई महत्व नहीं है ! नाही ये देश के हित के बारे में सोचते है उनको तो बस अपनी अपनी कुर्सी से लगाव है ! इसीलिए भारतीय नागरिक होने के नाते हमारा दायित्व बनता है की सही नेताओ का चयन करने की कोशिश करे ! राष्ट्रीय एकता के लिए सही दायित्व का निर्वाह कर अपने संकीर्ण विचारों को त्याग कर राष्ट्र के हित में सोचे समझे मनन चिंतन करे और देश की समृधि के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे 
 !