इन दिनों मम्मी पापा की परेशानी बढ़ने लगी है कारण है बच्चों की दिन प्रति दिन बढती पॉकेट मनी !
मल्टी-नैशनल कंपनियों के चलते देश की आर्थिक व्यवस्था में काफी सुधार हुआ है लोगों के वेतन कई गुना बढ़ गए है ! जैसे ही मम्मी पापा का वेतन बढ़ा मध्य वर्गीय परिवारों की आय में, जीवन शैली में बदलाव आ गया! घर में हर सुख सुविधा के साधन आने लगे! टीवी, कंप्यूटर, इंटरनेट, अब स्टेटस सिम्बल ही नहीं बल्कि ज़रूरत के साधन बन गए है जब मम्मी पापा का वेतन बढ़ा तो ज़ाहिर है बच्चों की पॉकेट मनी पर भी इसका असर पड़ने लगा! अब ५००-१००० से बच्चों का काम नहीं चल सकता! उनकी पॉकेट मनी में इन दिनों ३००० से लेकर ५००० तक का इजाफा हुआ है! इस बढ़ते पॉकेट मनी को लेकर कॉलेज गोइंग छात्र अमित और तन्नु का कहना है कि इन दिनों महेंगायी बढ़ गयी है पेट्रोल डीज़ल के दाम बढ़ गए है, खाने पीने कि वस्तुए महेंगी हो गयी है हमें अपने पॉकेट मनी में से सेल-फोन रीचार्गे कराना, कैंटीन जाना अपने दोस्तों में अपना स्टेटस मेंटेन करना पड़ता है ! ये दोनों सही कहते है ! चारों तरफ से लाइफस्टाइल का प्रेशर बच्चों के दिमाग पर पड़ने लगा है ! आज हर मध्य वर्गीय परिवार के बच्चे साईकिल कि जगह महेंगे बाईक्स या फिर लेटेस्ट मॉडेल की कार से जाना पसंद करते है! उनको ब्रेसलेट, बेल्ट, बैग, से लेकर लेटेस्ट मॉडेल के कपडे ब्रांडेड होना ज़रूरी समझते है उनको किताबों से ज्यादा ज़रूरी महेंगे मोबाईल फोन होना ज़रूरी समझते है! कॉफ़ी डे में बैठना, के.ऍफ़.सी , मेक डोनाल्ड में खाना पसंद करते है ! बड़े बड़े मॉल्स, शौप्पर्स स्टॉप की चमक धमक उनको अपनी ओर आकर्षित करने लगे है ! इन मॉल्स में बड़ी संख्या में कॉलेज छात्र इन दिनों खरीददारी करते हुए पाए जा सकते है! इस प्रकार से चारो ओर से लाइफस्टाइल का प्रेशर बच्चों के दिमाग पर पड़ने लगा है तो ५००-१००० रु की पोच्केट मनी कैसे बस होगी भला?
जो भी हो बढती महंगाई हो या फिर बच्चों की लापरवाह मानसिकता हो अच्छी खासी तगड़ी पॉकेट मनी का बोझ मम्मी पापा के वेतन पर भी पड़ने लगा है ! घर का बजट बिगड़ गया है!
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जवाब देंहटाएंबच्चों को इतनी आजादी नहीं देनी चाहिए। कभी कभी इनकार कर देना चाहिए पैसे देने से । जरूरी है की वो पैसे की कीमत समझें। .
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राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण हो
जवाब देंहटाएंhttp://biharicomment.blogspot.com
सही यही होगा कि बच्चे पैसे के महत्व को समझे और उसे समझदारी से इस्तेमाल करें । पर इसके लिये मां और पिता को बच्चों के साथ समय ब्ता कर और अपने व्यवहार से समझाना होगा ।
जवाब देंहटाएंब्ता की जगह कृपया बिता कर पढें .
जवाब देंहटाएंआप का लेख बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित है, और जागरूकता पूर्ण है,
जवाब देंहटाएंबहुत - बहुत शुभ कामना
कामनाओं का कोई अंत नहीं। इन्हीं के कारण जीवन में आय और व्यय की आपस में रस्साकसी चलती रहती है। अंत में आय बौनी हो जाती है और व्यय विराट हो जाता है। व्यय को आय से कम रखने में ही भलाई है। इस समस्या को संयम द्वारा हल किए जाने का सुझाव भारतीय मनीषियों ने दिया है। संयम को साधना भी एक कला है। इसे कैसे साधा जाए! इसे ’खुशहाली का मंत्र’ नामक नाटक में मैंने स्पष्ट किया है। जो संयम को नहीं साधता वह अपने लिए मुसीबतों को न्योता खुद देता है।
जवाब देंहटाएंसद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
sab kuch high profile hota ja raha hai.
जवाब देंहटाएंआजके युवा-युवतियों की मजबूरियों का यथार्थ चित्रण किया है आपने,मगर पॉकेट-मनि कुछ ज्यादा ही ब्यक्त हुआ है,निम्न माध्यम वर्गीय परिवार के लिये.
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