शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

भूख, भोजन और आध्यात्म !


भूख, भोजन और आध्यात्म इन तीनों का बड़ा गहरा परस्पर सम्बंध लगता है ! अभी कुछ दिन पूर्व एक आध्यात्मिक शिविर में जाना हुआ ! शहर के कई जाने माने लोग आये हुये थे ! स्वामीजी का प्रवचन सुनने को ! शिविर के कुछ दुरी पर चाय कॉफ़ी के अलावा बहुत सारी खाने की चीज़े रखी हुई थी स्टॉलों पर ! कुछ वालंटियर संस्थाओं ने इनका आयोजन किया हुआ था ! जैसे ही दो घंटे का स्वामी जी का प्रवचन समाप्त हुआ लोग टूट पड़े थे खाने पीने की इन चीज़ों पर, जैसे की बरसों से भूखे हो ! पलक झपकते ही सब कुछ ख़तम हो गया ! "भूखे भजन न होय" वाली बात तब मेरी समझ में आई ! कभी-कभी मन में संशय आता है कि भोजन हमारी शारीरिक ज़रूरत है या मानसिक ? क्यों कि जितने भोजन की कम मात्रा में हमारा पेट भरता है उतने में मन नहीं भरता !  उस पर भोजन चट-पटा और स्वादिष्ट हो तो, और क्या बात है ! आज कल अध्यात्मिक शिविरों में भी हम खूब एन्जॉय कर सकते है ! जैसे कि पॉपकॉर्न खाते हुए हम मूवी देखते है ना बस वैसे ही ! कितना आसान हो गया है ना आजकल सब कुछ ? 
शायद इसी खा-पी कर फल-फूल रही संस्कृति को देख कर ही इन दिनों उपदेशकों की बाढ़-सी आ गयी है ! सलाह देने की, यह मत खाओ वो मत खाओ वगेरे-वगेरे ! हमारी सहज स्वाभाविक भूख को भी कोई दुसरे निर्धारित करे इससे गुलामी की और क्या बात हो सकती है ? भूख प्राकृतिक ज़रूरत है ! भूख मुझे भी लगती है, आपको भी लगती है हम सबको लगती है ! भूख उपदेशक को भी लगती है बस किसी-किसी की भूख स्थूल होती है और किसी की थोड़ी सूक्ष्म होती है ! भूख और भूखों के प्रति मेरे मन में कोई निंदा का भाव नहीं है, यकीन मानिये ! इस प्राकृतिक जरुरत  के लिये भोजन प्यार से आराम से खाईये ! बस इतना ज़रूर ध्यान देने की जरुरत है की, हमारे आस-पास कोई भूखा तो नहीं है !   

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

वर्ष एक बीत गया !


वर्ष २०११ का यह अंतिम महिना है ! बस कुछ ही दिनों में नया वर्ष आने वाला है !
आईए हम सब मिलकर हर्ष और उल्लास के साथ इस वर्ष को विदा करते है !
और पुरे उत्साह और आनंद के साथ नए वर्ष का स्वागत करते है !

एक पल आया 
एक पल गया 
एक पल हँसा गया 
एक पल रुला गया 

जीवन पाटी पर कभी गम के 
कभी खुशियों के रंग भरकर 
दिवस एक बीत गया 
वर्ष एक बीत गया !

समय कहाँ कब रुकता है 
कालचक्र चलता रहता है 
कभी आशा है कभी निराशा 
सफलता में छुपी असफलता 

सुख-दुःख में बंधा है जीवन 
धूप-छाँव का खेल तमाशा 
दूर है मंजील, राही अकेला 
रात है छोटी सपने ज्यादा 

जो साकार इन्हें है करना 
कदम कहते है रुक जाना 
समय कहता है चलते जाना 
दूर मंजील को है पाना 

दिवस एक बीत गया 
वर्ष एक बीत गया !

http://sumitpatil88.blogspot.com/2011/12/joe-satriani-art-of-expression.html 

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

आने वाले समय में ......


आने वाले समय में 
चिड़ियों की चह-चहाट
गुम हो जाएगी !
सुबह सवेरे हमें 
मोबाईल फोन से 
जगाया करेंगी !

बुद्धिवादी युग में 
मनपर निरंतर 
शब्द, विचार 
ध्वनियों के
आघात से,
मनकी शांति  
सिर्फ 
शब्दकोश में 
रह जाएगी !

शनिवार, 17 दिसंबर 2011

कवि और कौवा ....


जिस कवि की मै बात करने जा रहीं हूँ, यह कवि पुराने ज़माने का लगता है ! नहीं तो हमारी तरह आज एक बढ़िया ब्लॉगर होता ! अपनी रचनाओं को ब्लॉग पर रोज छापता और खुश होता ! कमसे कम इस तरह frustrate तो नहीं होता ! खैर कहानी ही पढ़ लीजिये ! आप खुद समझ जायेंगे !

एक कवि जंगल में एक वृक्ष के नीचे बैठा अपनी कवितायें पढ़ रहा था ! और खुश हो रहा था अपनी  कामयाबी पर ! दूर-दूर तक कोई भी नहीं था वहाँ पर ! सिर्फ उस वृक्ष पर एक कौवा बैठा हुआ था ! कवि अपनी कविता में कहने लगा कि, आज मै बहुत खुश हूँ ! आज मै एक प्रसिद्ध कवि होने के साथ-साथ दुनिया में सबसे खुशनसीब इन्सान हूँ! मुझे लगता है कि, मैंने जैसे सारी दुनिया का धन पा लिया है ! इतने में ऊपर बैठा कौवा जोर-जोरसे हंसने लगा ! और कहा ..सो वॉट? इससे क्या हुआ ? कवि कुछ भयभीत कुछ आश्चर्य चकित सा इधर-उधर देखने लगा ! उसने सोचा यहाँ तो कोई भी नहीं है !सिवाय ऊपर बैठे कौए के अलावा ! कवि ने वृक्ष क़ी ओर ऊपर देखकर कहा कौए से, "क्या ये तुम बोल रहे थे ?" ... "निश्चित ही" कौए ने कहा !  "मै ही बोल रहा हूँ ! और तुम्हारी इस  नादानी पर हँस भी रहा हूँ ! क्या तुमने कुछ कवितायें लिखकर सोलोमन का खजाना पा लिया है ? जो इस प्रकार अकड़ रहे हो ? कितने नासमझ हो तुम" कौए ने कहा ! कौए क़ी बात सुनकर कवि को बड़ा गुस्सा आया ! उसने गुस्से से कहा कौए से, "अरे नासमझ कौए तुम क्या समझोगे कविता क्या होती है ? बड़े-बड़े कवि मेरी कविताओं क़ी तारीफ करते नहीं थकते ! और तुम हो क़ी मेरी हर पंक्ति पर सो वॉट ? सो वॉट क़ी दाद दे रहे हो ! नासमझ मै नहीं मुर्ख कौए नासमझ तो तुम हो ! " कवि क़ी इस बात पर कौए ने कहा ! "शायद तुम ठीक कहते हो ! मै जीवन क़ी एक ही कविता क़ी जानता हूँ ! जो जीवन को जानने और समझने से आती है ! बस हम दोनों में फर्क सिर्फ इतना ही है कि, किसीकी नासमझी कविता नहीं बन पाती और किसी क़ी नासमझी कविता  बन जाती है ! " कौए क़ी बात सुनकर कवि गुस्से में अपनी सारी लिखी हुई कविताएँ जमीन पर फेंककर चला गया !

मुझे यह कहानी पढ़कर ऐसा लगा कि, हो न हो कौवा जरुर दार्शनिक रहा होगा ! आप कहते होंगे कौवा और दार्शनिक ? यह कैसे हो सकता है ? मै कहती हूँ क्यों नहीं हो सकता ! जंगल में शेर राजा हो सकता है ! गधा बुद्धु हो सकता है ! लोमड़ी चालाक हो सकती है, तो फिर कौवा दार्शनिक क्यों नहीं हो सकता ? आप इस कहानी को पढ़कर ऐसे ही मजा ले सकते है ! या फिर अपने-अपने मनपसंद अर्थ ढूंड सकते है ! जैसी आपकी मर्जी ! बुद्धि क़ी थोड़ी कसरत भी हो जाएगी ! 

सोमवार, 12 दिसंबर 2011

सर्दी आयी.....



हवा ठंडी 
रात ठंडी 
               
स्वप्न मीठे 
नींद मीठी 
         
भाये मन को
गोद मीठी 
वसुधा की मृदु 
शय्या पर, निशि ने 
ओढ़ ली 
काली रजाई !
           

               

शनिवार, 10 दिसंबर 2011

दुनिया एक चित्रशाला है !

सुबह बगीचे में कई रंगों के गुलाब खिल गए ! और साँझ होते ही सब मुरझा गए ! जमीन पर सारी पंखुड़ियाँ झर गई,यह देखकर रचनाकार का मन उदास हो गया ! प्रकृति का सौन्दर्य क्षणभंगुर क्यों है ? काश सब रंग सारा सौन्दर्य शाश्वत होता ? उसने आकाश की ओर देखकर कहा ......हे इश्वर तुमने सौन्दर्य को शाश्वत क्यों नहीं बनाया ? आकाशवाणी हुई, जवाब मिला कि, दुनिया एक चित्रशाला है ! यहाँ रोज रंग बदलते है ! बदलने ही चाहिए ! इसकी रचना ही मैंने मिटने वाले रंगों से बनाई है ! अगर रंग ऐसे ही ठहर गए तो, इन्हें कौन देखना पसंद करेगा ? सब उदास हो जायेंगे ! सारा अस्तित्व ही बेरंग हो जायेगा ! लोग वही-वही सब देखकर बोर हो जायेंगे ! इसलिए हर रोज मै चीजे बदलता हूँ!
रचनाकार ने सोचा इश्वर की बात कितनी सच है ! सच में रोज रंग बदलने चाहिए ....!!

                                                       
                                                      वाह 
                                                      क्या रंग भरा है 
                                                      तुमने इस दुनिया में,
                                                      या फिर मेरे 
                                                      इन नयनों में !

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

बेटी का जन्मदिन है!

संयुक्त परिवार टूटकर उनकी जगह आये है अब एकल परिवार ! पहले पापा अपने काम काज में व्यस्त रहा करते थे ! अब मम्मी भी बाहर के क्षेत्र में व्यस्त हो गई है ! कभी वह अपने बच्चों की बेस्ट फ्रेंड और प्रथम गुरु हुआ करती थी ! समाज में, अपनी नजर में उसे भी तो अपनी पहचान बनानी है ! यह जरुरी भी है ! घर के हालात और समय की मांग भी यही है कि, वह भी कामकाजी बनकर चार पैसे कमाए ! परिवार में आर्थिक सहयोग करे! वर्ना आजकल इस महंगाई के ज़माने में अकेले आदमी की कमाई कहाँ बस होती है ? खर्चे कितने बढ़ गए है ! नतीजा बच्चे अकेले हो गए है ! उसपर पढाई का बोझ, एकदूसरे से आगे बढ़ने की होड़, गलत माहोल, दोस्तों के बुरी संगत ने बच्चों को बिगाड कर रख दिया है ! ड्रग्स, हुक्का जैसे नशीली चीजों का सेवन कर नशे के आदी हो रहे है ! और अपराधिक गतिविधियों  में भाग लेकर छोटी उम्र में जुर्म जैसे अपराध के दलदल में फंसते जा रहे है! अच्छे-अच्छे महंगे स्कूल-कॉलेजों में पढ़कर भी बच्चे कैसे बिगड़ते जा रहे है ? यही सब सोचकर माता-पिता परेशान हो रहे है ! प्रतिभा को पनपने के लिये चाहिए उचित माहोल, सही शिक्षा बड़ों का मार्गदर्शन ! 
अच्छे संस्कारों की नीव उनके बचपन में ही डालनी चाहिए ! मै बच्चों के प्रति कुछ ज्यादा ही संवेदनशील हूँ ! क्या करूँ माँ हूँ ना ! खैर, इसपर कभी फुरसत से लिखूंगी ! आज कुछ खास बात आप सबसे शेअर करना चाहती हूँ ! आज मेरी बेटी का जन्मदिन है ! वह इंजीनियरिंग के तृतीय वर्ष में पढ़ रही है ! मेरी बेटी मेरी बेस्ट-फ्रेंड ही नहीं मेरी अच्छी टीचर भी है ! उसीने मुझे कंप्यूटर चलाना सिखाया और ब्लॉग बनाने को प्रोत्साहित किया ! इसके लिये मै उसकी बहुत आभारी हूँ ! आधुनिक युग में  इन सब यंत्रो का उपयोग हम नहीं करेंगे तो बच्चों की नजर में हम आउट डेटेड कहलायेंगे ! और उनके साथ रहकर उनको समझने का यह एक अच्छा अवसर है ! ऐसा मै समझती हूँ ! आपको पता है ? मेरी इस प्यारी और सख्त टीचर के लिये मुझे गुरुदक्षिणा के रूप में बहुत कुछ करना पड़ता है ! कभी शॉपिंग तो कभी कुछ ! अपने पापा से पॉकेट मनी लेती है इसके अतिरिक्त भी और पैसे मुझसे लेती है ! खैर यह सब हम माँ बेटी की आपस की बाते है ! आपसे कहूँगी तो नाराज हो जाएगी !
उसे बचपन से स्केच बनाना रंगों से खेलना अच्छा लगता है ! उसके दो एक स्केच ब्लॉग पर डाल रही हूँ जो की मुझे बहुत पसंद है ! उम्मीद करती हूँ आप सभी को भी पसंद आयेंगे ! कैसे लगे जरुर बताना ! बच्चे मेरे हो की आपके हो या फिर किसी के भी, हर बच्चा अनूठा है ! उनमे प्रतिभायें भी अलग अलग है ! किसी बच्चे का दुसरे बच्चे से कोई तुलना नहीं हो सकती ! उनकी भावनाओंकी कद्र करनी होगी ! उचित सम्मान करना  होगा ! उनकी प्रतिभा को निखारना होगा ! हर बच्चा यूनिक है मेरे लिये!

प्रकृति को देखिये अपने आप में कई रंग समेटे हुई है ! कुछ रंग स्पष्ट हमें दिखाई देते है और कुछ को देखने के लिये मन की आँखे चाहिए ! साधना चाहिए! जब सामान्य दृश्य भी मन की आँखों से होकर कागज पर उतरते है तो, निश्चित उनका महत्व अधिक बढ़ जाता है !  उर्जा को बहने के लिये सकारात्मक दिशा मिल जाती है ! सृजन के रूप में!