जिस कवि की मै बात करने जा रहीं हूँ, यह कवि पुराने ज़माने का लगता है ! नहीं तो हमारी तरह आज एक बढ़िया ब्लॉगर होता ! अपनी रचनाओं को ब्लॉग पर रोज छापता और खुश होता ! कमसे कम इस तरह frustrate तो नहीं होता ! खैर कहानी ही पढ़ लीजिये ! आप खुद समझ जायेंगे !
एक कवि जंगल में एक वृक्ष के नीचे बैठा अपनी कवितायें पढ़ रहा था ! और खुश हो रहा था अपनी कामयाबी पर ! दूर-दूर तक कोई भी नहीं था वहाँ पर ! सिर्फ उस वृक्ष पर एक कौवा बैठा हुआ था ! कवि अपनी कविता में कहने लगा कि, आज मै बहुत खुश हूँ ! आज मै एक प्रसिद्ध कवि होने के साथ-साथ दुनिया में सबसे खुशनसीब इन्सान हूँ! मुझे लगता है कि, मैंने जैसे सारी दुनिया का धन पा लिया है ! इतने में ऊपर बैठा कौवा जोर-जोरसे हंसने लगा ! और कहा ..सो वॉट? इससे क्या हुआ ? कवि कुछ भयभीत कुछ आश्चर्य चकित सा इधर-उधर देखने लगा ! उसने सोचा यहाँ तो कोई भी नहीं है !सिवाय ऊपर बैठे कौए के अलावा ! कवि ने वृक्ष क़ी ओर ऊपर देखकर कहा कौए से, "क्या ये तुम बोल रहे थे ?" ... "निश्चित ही" कौए ने कहा ! "मै ही बोल रहा हूँ ! और तुम्हारी इस नादानी पर हँस भी रहा हूँ ! क्या तुमने कुछ कवितायें लिखकर सोलोमन का खजाना पा लिया है ? जो इस प्रकार अकड़ रहे हो ? कितने नासमझ हो तुम" कौए ने कहा ! कौए क़ी बात सुनकर कवि को बड़ा गुस्सा आया ! उसने गुस्से से कहा कौए से, "अरे नासमझ कौए तुम क्या समझोगे कविता क्या होती है ? बड़े-बड़े कवि मेरी कविताओं क़ी तारीफ करते नहीं थकते ! और तुम हो क़ी मेरी हर पंक्ति पर सो वॉट ? सो वॉट क़ी दाद दे रहे हो ! नासमझ मै नहीं मुर्ख कौए नासमझ तो तुम हो ! " कवि क़ी इस बात पर कौए ने कहा ! "शायद तुम ठीक कहते हो ! मै जीवन क़ी एक ही कविता क़ी जानता हूँ ! जो जीवन को जानने और समझने से आती है ! बस हम दोनों में फर्क सिर्फ इतना ही है कि, किसीकी नासमझी कविता नहीं बन पाती और किसी क़ी नासमझी कविता बन जाती है ! " कौए क़ी बात सुनकर कवि गुस्से में अपनी सारी लिखी हुई कविताएँ जमीन पर फेंककर चला गया !
मुझे यह कहानी पढ़कर ऐसा लगा कि, हो न हो कौवा जरुर दार्शनिक रहा होगा ! आप कहते होंगे कौवा और दार्शनिक ? यह कैसे हो सकता है ? मै कहती हूँ क्यों नहीं हो सकता ! जंगल में शेर राजा हो सकता है ! गधा बुद्धु हो सकता है ! लोमड़ी चालाक हो सकती है, तो फिर कौवा दार्शनिक क्यों नहीं हो सकता ? आप इस कहानी को पढ़कर ऐसे ही मजा ले सकते है ! या फिर अपने-अपने मनपसंद अर्थ ढूंड सकते है ! जैसी आपकी मर्जी ! बुद्धि क़ी थोड़ी कसरत भी हो जाएगी !
बात तो सही है ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
:) khoob likha hai...
जवाब देंहटाएंजी,सुमन जी.आपकी बात से सहमत हूँ.
जवाब देंहटाएंकाक भुसंडी जी भी बहुत बड़े दार्शनिक और परम राम भक्त हैं
जिन्होंने गरुड़ जी का भ्रम निवारण किया.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
आपका इंतजार रहता है जी.
……शानदार प्रस्तुतिकरण्...आपके लेखन और व्यक्तिगत मानस से मैं सहमत हूँ !!!!
जवाब देंहटाएंअच्छी चुटीली कथा....
जवाब देंहटाएंसादर...
सुन्दर सीख भरी कहानी , अच्छी लगी .
जवाब देंहटाएंबहुत खूब :)
जवाब देंहटाएंकई अर्थों को समेटे हुए एक अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंकौआ ठीक ही कह रहा है। अधिकतर कवियों की कविताओं में जो संवेदना दिखती है,वह उनके जीवन का हिस्सा नहीं होती। सब बाहर-बाहर। इसलिए,खलिल जिब्रान या टैगोर जैसा कोई कवि युगों में पैदा होता है जिसकी कविताओं में धर्म प्रवाहित होता हो।
जवाब देंहटाएंगूढ रचना, आभार!
जवाब देंहटाएंकहानी के माध्यम से बहुत सच्ची बात कह दी समुद में डूबकर मोती पाना उनसे ज्यादा सुकून ,ख़ुशी देता है जो बाहर से खरीदते हैं |जीवन को पूर्ण रूप से समझ कर ही सच्ची कविता बनती है इस प्यारी कहानी के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंएक सौ फीसदी कटु सत्य......
जवाब देंहटाएंकौंवा होता ही समझदार है
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