बुधवार, 26 सितंबर 2012

बुद्धिवादी युग ..... (चिंतन)


आज के इस बुद्धिवादी युग में मनुष्य जैसा है वैसा खुश नहीं है ! या फिर समाज द्वारा स्वीकृत नहीं है ! इसीलिए एक दुसरेसे प्रतियोगिता चल रही है !कुछ खास होने की प्रतियोगिता !आम आदमी खास होना चाहता है ! खास आदमी और खास होना चाहता है !इसीलिए कोई ब्लेड खा रहा है कोई कांच खा रहा है कोई मेंढक,सांप खा रहा है !कोई गड़बड़ घोटाला कर के पैसे खा रहा है ! हरकते कैसी भी क्यों न हो बस कुछ विशीष्ट होना है ! बहुत बार बड़े से बड़े व्यक्तियों से मिलना होता है, तब पाती हूँ उनकी आँखों में क़ि, सब कुछ होते हुये भी उन आँखों में जीवन क़ी कोई चमक नहीं ! जीवन के प्रति कोई धन्यता का भाव नहीं,बस जिए जा रहे है जैसे जीवन एक बोझ समझकर ! चलने फिरने में, बोलने बैठने में कोई लय नहीं कोई पुलक नहीं,.....  न जीवन में कोई शांति है न समाधान ! जो कुछ पास में है उसका आनंद नहीं पर जो नहीं है उसका दुःख बहुत भारी है ! मन में बेचैनी है इसी कारण से, सारा तनाव भी है ! इसके विपरीत प्रकृति में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है ! केवल मनुष्य को छोड़कर अन्य किसी प्राणियों में इस प्रकार के रोग नहीं है ! आम अपने खट्टे,मीठे पन में खुश है ! नीम अपनी निम्बौरियों  क़ी कड़वाहट में खुश है ! गुलाब फ़िक्र नहीं करता कमल जैसा होने क़ी, कमल प्रतिस्पर्धा नहीं करता गुलाब जैसा होने क़ी ! घास पर खिला हुआ फूल भी सुबह सूरज क़ी सुनहरी किरणों के साथ खिलता है ! हवाओं से बाते करता है नाचता है गाता है !पंछी अपने होने में खुश है ! सारी प्रकृति में शांति और सौंदर्य भरा पड़ा है केवल मनुष्य के जीवन को छोड़कर ! इसीलिए हम प्रकृति के सानिध्य में कुछ देर बिताते है तो शांति सुकून पाते है क्योंकि शांति संक्रामक है !

 जीवन का बस थोडा सा समय शांति और सुकून पाने के लिये निकालिए फिर देखिये , एक बिलकुल अभिनव जगत आपके लिये द्वार खोलता हुआ देखेंगे !

मंगलवार, 25 सितंबर 2012

गणेश चतुर्थी .....


भगवान गणेश की पूजा-अर्चना के साथ, हमारे शहर में  दस दिवस तक चलने वाला गणेश चतुर्थी का यह त्यौहार प्रारंभ हुआ है ! हर साल की तरह इस साल भी हमारे शहर में यह त्यौहार बड़े धूम-धाम से मनाया जायेगा ! हर गली,मुहल्लों में,सड़कों-चौराहों पर विभिन्न अवतारों में अनगिनत गणेश प्रतिमाये स्थापित कर भक्तगण विधिवत पूजा-अर्चना करने में लगे है !घर-घर में पूजा अर्चना के साथ गणेश जी का मनपसंद भोजन मोदक बना रही है गृहिणियां ! गणेश पंडालों में, मै बड़ा की तू बड़ा की होड़ करते तक़रीबन ५० हजार गणेश प्रतिमायें स्थापित हुई है !जिस गली का चंदा जितना तगड़ा उतना बड़ा गणेश ! मूषक पर सवार गणपति बाप्पा खुश हो रहे है,मुस्कुरा रहे है जैसे ....हमारे नेतालोग आम आदमी की पीठ पर बैठकर खुश हो रहे होते है वैसे !
कई बार मन में एक प्रश्न उठता है कि, आम आदमी को आम क्यों कहा जाता है ? कौनसे ऐसे आम के विशिष्ठ गुण होते है उसमे ? बहुत खोज बिन क़ी तो पता चला सही में आम के खास गुण होते है उसमे !

 वह यह कि, अगर आम आदमी कच्चा है तो उसपर नमक,मिर्च छिडक कर खाया जा सकता है ! उसकी चटपटी चटनी बनाई जा सकती है !अगर पका हुआ है तो चूसने में बड़ा मजा आता है !
आप क्या कहते हो ?  क्या मै गलत कह रही हूँ ?

बुधवार, 19 सितंबर 2012

आज मेरे प्राण में स्वर .....


जब खुद के शब्द गूम हो, भाव मौन हो, तब किसी गुमनाम रचनाकार की रचना को गुनगुना लेते है !यह रचना मुझे तो बहुत पसंद है उम्मीद करती हूँ,
आप सबको पसंद आएगी !

आज मेरे प्राण में स्वर 
भर गया कोई मनोहर !
क्षितिज के उस पार से 
वह मुस्कुराता पास आया 
मधुर मोहक रूप में 
उस मूर्ति ने मुझको लुभाया 
कौन सा सन्देश लेकर सजनि,
वह आया अवनि पर ?
आज मेरे प्राण में स्वर 
भर गया कोई मनोहर !
धुल गई थी प्राण में 
अपमान की भीषण व्यथा 
ले गया वह साथ अपने 
दुःख भरी बीती कथा 
आंख में आया सजनि,
वह आज मेरे अश्रु बन कर !
आज मेरे प्राण में स्वर 
भर गया कोई मनोहर !
कर गया अनुरोध मुझसे 
गीत गाऊं मै मधुर सा 
भूल जाऊं जन्म का दुःख,
मृत्यु को समझूं अमरता 
यह अमर उपदेश उसका सजनि,
कण-कण में गया भर !
आज मेरे प्राण में स्वर 
भर गया कोई मनोहर !
स्वप्न से ही भर गया अलि,
आज मेरा जीर्ण अंचल 
वेदना की वहि में 
तप हो उठे है प्राण उज्वल 
दे गया वह सजनि मुझको 
जन्म का वरदान सुंदर !
आज मेरे प्राण में स्वर 
भर गया कोई मनोहर !


साभार .......

रविवार, 16 सितंबर 2012

सौदागर ....( कहानी )


टोपियों को बेचने वाला एक सौदागर मेले में अपनी टोपियां बेचकर लौट रहा था ! चुनाव जो नजदीक आ रहे थे !गांधी टोपियां खूब मेले में बिक रही थी ! सौदागर टोपियों क़ी हो रही कमाई पर खुश हो रहा था !दिनभर गांधी टोपियां बेचकर वापिस घर आते,रास्ते में बरगद के एक वृक्ष के निचे थोड़ी देर विश्राम के लिये रुक गया !दिनभर की थकान बहुत थी,ठंडी हवा उपरसे वृक्ष की छाया, झपकी लग गई !जब आँख खुली तो देखा कि, जिस टोकरी में बची हुई टोपियां रखी थी सब नदारद थी ! सौदागर बहुत घबराया चारो तरह देखा, ऊपर देखा तो वृक्ष पर बंदर बैठे थे !कोई सौ पचास बंदर रहे होंगे सब गांधी टोपी लगाये बैठे थे! बिलकुल हमारे संसद सदस्य जैसे लग रहे थे !अब इनसे टोपियां कैसे वापिस ले ? सौदागर बहुत घबराया !इतने में उसे वह बात याद आ गई बंदर नकलची होते है वाली !सौदागर के सिर पर एक टोपी जो बची हुई थी उसने निकाल कर फ़ेंक दी !जैसे ही सौदागर ने अपने टोपी फ़ेंक दी, सारे बंदरों ने अपनी-अपनी टोपियां नीकाल कर निचे फ़ेंक दी !सारी टोपियां बटोर कर सौदागर बड़ा खुश हुआ अपनी जीत पर !और घर लौट कर अपने बेटे को सारा किस्सा सूनाते हुये कहा ...."बेटा देखो कभी ऐसी हालात आ जाए तो अपनी टोपी नीकाल कर फ़ेंक देना !कभी भुलना नहीं मेरी बात याद रखना क्योंकि बंदर बड़े नकलची होते है !तुम जैसा करो उसका ही अनुसरण वे करते है" !

समय के साथ बहुत कुछ बदल गया ! सौदागर बूढ़ा हो गया ! बेटे ने सरकारी स्कूल में चार अक्षर पढ़ लिये !बाप क़ी जगह अब वह टोपिया बेचने लगा !थोडा पढना लिखना जानता था इसलिए गांधी टोपियों पर रंगीन धागे से "मै अन्ना हूँ " लिखकर गाँव-गाँव जाकर बेचने लगा !एक दिन ऐसे ही टोपियां बेचकर लौट रहा था !थका मांदा उसी वृक्ष के निचे विश्राम करने लेट गया !झपकी लग गई आखिर वही हुआ जो कभी उसके पिता के साथ हुआ था !टोकरी में सारी टोपियां नदारद थी !पिता क़ी कही हुई बात उसे याद आई उसने ऊपर देखा !बंदर टोपियां लगाये बड़े मस्त मस्ती में बैठे हुये थे ! बाप के सलाह क़ी याद आ गई उसे, उसने अपनी टोपी नीकाल कर फ़ेंक दी !लेकिन जो हुआ था उसने कभी कल्पना भी नहीं क़ी थी ! एक बंदर पेड़ से निचे उतरा और वह टोपी भी लेकर पेडपर भाग गया क्योंकि एक टोपी कम पड़ गई थी जो उसे नहीं मिली थी !

आखिर बंदर भी अपने बच्चों को समझा गए होंगे कि, मनुष्य बड़ा चालाक प्राणी है उनसे सावधान रहना !उस सौदागर का बेटा कभी न कभी इस वृक्ष के निचे विश्राम करेगा और अपनी टोपी फेंकेगा,
तब तुम जल्द से जल्द उस टोपी को उठा लेना !जो गलती हमने क़ी थी वह तुम कभी न करना !

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

अपने आचरण की फिक्र करना .....( ताओवाद )


चीन की बहुत बड़ी दार्शनिक परंपरा है जिसका नाम है ताओवाद ! ईसापूर्व तीसरी शताब्दी में ताओ दर्शन प्रौढ़ हुआ, और तभी से ताओ ग्रन्थ में ली तजु नामक दार्शनिक का उल्लेख आता है !
ताओ का मतलब होता है मार्ग या फिर यूँ कहे कि, वह नियम जिससे अस्तित्व क़ी हर चीज संचालित होती है ! ताओवाद लोगों को रहस्यपूर्ण, हास्यपूर्ण छोटी छोटी कहानियों द्वारा मार्ग दर्शन करता है !छोटी-छोटी कहानिया पर अर्थ बड़े गंभीर और अर्थपूर्ण होते है !
एक नमूना पेश है ...."कुआन मिन ने ली तजु से कहा , "यदि तुम्हारे शब्द सुंदर या असुंदर है तो वैसी ही उसकी प्रतिध्वनि होगी ! यदि तुम्हारी आकृति छोटी या लंबी हो तो वैसी ही उसकी छाया होगी !शोहरत प्रतिध्वनि है, आचरण छाया है ! इसलिए कहते है, अपने शब्दों के प्रति सावधान रहना क्योंकि कोई न कोई उनसे सहमत होगा ! अपने आचरण की फिक्र करना कोई न कोई उसकी नक़ल करेगा" ! ताओ दर्शन में इस प्रकार की छोटी-छोटी कहानियाँ वह सब कह देती है जो बड़े बड़े दर्शन शास्त्र नहीं कह पाते !

अभिव्यक्ति की आजादी की हम सब बात करते है ! युवा कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी इन दिनों अपने विवादास्पद कार्टूनों के लिए देशद्रोह के विवादों में घिरा है ! आजादी परम संवेदनशीलता है इसका हम किस प्रकार उपयोग करते है यह हमारे  attitude पर निर्भर करता है !

आवश्यक सुचना;- बेहतरीन कवि,कथाकार,समीक्षक हमारे ब्लॉग परिवार के जानेमाने वरिष्ठ सदस्य 
"कलम" ब्लॉग के ब्लॉगर श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी नहीं रहे ! आपका स्नेह कभी भूल नहीं पाऊँगी भाई जी, इश्वर आपकी आत्मा को शांति दे, अश्रुपूरित नेत्रों से भाव भीनी श्रद्धांजलि समर्पित करती हूँ !

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

अनहद नाद एक .....


हम सब फूल है 
इस उपवन के 
फूल न्यारे, ख़ुशबू न्यारी 
क्या जूही, क्या चमेली 
क्या गुलाब पीला,लाल 
रंगबिरंगी इन फूलों से 
मिलकर ही तो सजती है 
पूजा की थाल !
शब्द अलग, भाव अलग 
क्या गीत, क्या कविता,लेख 
विविध गीतों से मिलकर ही तो 
बनता है अनहद नाद एक !
अपनी-अपनी धारणाओं की 
हद में मत बांधो इनको 
सबको अपना-अपना 
सृजन गीत मुक्त कंठ से 
गाने दो सबको क्यों के ....
बेरंग,बेमजा हो जाता है 
उपवन का सौन्दर्य 
एक रंग में,एक रूप में,
एक गीत में, एक ही 
 भाव में .....

सोमवार, 3 सितंबर 2012

गिलहरी और उल्लू ! ( लघु कथा )



वे सर्दी के दिन थे !सुबह होने ही वाली थी !सूरज उगने की तैयारी कर रहा था !पंछी अपने-अपने घोंसलों से बाहर निकलने की प्रतीक्षा कर रहे थे !एक पेड़ पर बैठी गिलहरी इधर से उधर, उधर से इधर शाखा पर फुदकते हुये ...मन ही मन सोच रही थी कि, "जैसे ही सुबह होगी सुहानी सुबह का मजा लुंगी, नर्म-नर्म गुनगुनी धूप सेकुंगी "....! इतने में न जाने कहाँ से एक उल्लू उड़कर आ गया और पेड़ पर बैठ गया ! उसने गिलहरी से कहा "सुन ऐ गिलहरी, रात होने ही वाली है ! मैं इस पेड़ पर रात बिताना चाहता हूँ ! तुम्हारा क्या कहना है मेरा इस पेड़ पर विश्राम करना क्या ठीक रहेगा?" उल्लू ने अपनी बंद होती आखों को बड़े मुश्किल से खोलते हुये कहा !
गिलहरी ने कहा ... "निश्चित तुम रह सकते हो ! देखो हम सब कितने प्यार से आराम से यहाँ इस पेड़ पर रहते है तो, तुम क्यों नहीं रह रह सकते हो " उसने पंछियों के घोसलों की ओर इशारा करते हुये कहा ! लेकिन क्षमा करना मित्र, रात नहीं सुबह हो रही है ! देखो सूरज निकलने ही वाला है गिलहरी ने कहा ! उल्लू ने कहा चुप रह गिलहरी, बकवास बंद कर मुझे पता है कि, रात हो रही है देखो तो चारो ओर अंधेरा घिरने लगा है !गिलहरी ने मन ही मन सोंचा.. कौन व्यर्थ के विवाद में पड़े आखिर ये है तो उल्लू ही ना, नाहक झंझट खड़ी कर देगा ! और सुबह की गुनगुनी धुप सेकने का सारा मज़ा चौपट कर देगा ! लेकिन एक बार उसने उल्लू से सत्य  कहना उचित समझा ! सुनो मित्र.... तुम मानो या ना मानो पर एक बात बताना चाहती हूँ कि, तुम्हारा तो रात में दिन होता है, और दिन में रात होती है लेकिन तुम कैसे मानोगे मेरी बात को, तुम्हारी आँखे बंद जो हो रही है, लेकिन तुम्हारे कहने से सत्य नहीं बदलता ! देखो सूरज निकल रहा है !और मै नर्म गुनगुनी धूप का भरपूर मजा लेने जा रही हूँ !