रविवार, 16 सितंबर 2012

सौदागर ....( कहानी )


टोपियों को बेचने वाला एक सौदागर मेले में अपनी टोपियां बेचकर लौट रहा था ! चुनाव जो नजदीक आ रहे थे !गांधी टोपियां खूब मेले में बिक रही थी ! सौदागर टोपियों क़ी हो रही कमाई पर खुश हो रहा था !दिनभर गांधी टोपियां बेचकर वापिस घर आते,रास्ते में बरगद के एक वृक्ष के निचे थोड़ी देर विश्राम के लिये रुक गया !दिनभर की थकान बहुत थी,ठंडी हवा उपरसे वृक्ष की छाया, झपकी लग गई !जब आँख खुली तो देखा कि, जिस टोकरी में बची हुई टोपियां रखी थी सब नदारद थी ! सौदागर बहुत घबराया चारो तरह देखा, ऊपर देखा तो वृक्ष पर बंदर बैठे थे !कोई सौ पचास बंदर रहे होंगे सब गांधी टोपी लगाये बैठे थे! बिलकुल हमारे संसद सदस्य जैसे लग रहे थे !अब इनसे टोपियां कैसे वापिस ले ? सौदागर बहुत घबराया !इतने में उसे वह बात याद आ गई बंदर नकलची होते है वाली !सौदागर के सिर पर एक टोपी जो बची हुई थी उसने निकाल कर फ़ेंक दी !जैसे ही सौदागर ने अपने टोपी फ़ेंक दी, सारे बंदरों ने अपनी-अपनी टोपियां नीकाल कर निचे फ़ेंक दी !सारी टोपियां बटोर कर सौदागर बड़ा खुश हुआ अपनी जीत पर !और घर लौट कर अपने बेटे को सारा किस्सा सूनाते हुये कहा ...."बेटा देखो कभी ऐसी हालात आ जाए तो अपनी टोपी नीकाल कर फ़ेंक देना !कभी भुलना नहीं मेरी बात याद रखना क्योंकि बंदर बड़े नकलची होते है !तुम जैसा करो उसका ही अनुसरण वे करते है" !

समय के साथ बहुत कुछ बदल गया ! सौदागर बूढ़ा हो गया ! बेटे ने सरकारी स्कूल में चार अक्षर पढ़ लिये !बाप क़ी जगह अब वह टोपिया बेचने लगा !थोडा पढना लिखना जानता था इसलिए गांधी टोपियों पर रंगीन धागे से "मै अन्ना हूँ " लिखकर गाँव-गाँव जाकर बेचने लगा !एक दिन ऐसे ही टोपियां बेचकर लौट रहा था !थका मांदा उसी वृक्ष के निचे विश्राम करने लेट गया !झपकी लग गई आखिर वही हुआ जो कभी उसके पिता के साथ हुआ था !टोकरी में सारी टोपियां नदारद थी !पिता क़ी कही हुई बात उसे याद आई उसने ऊपर देखा !बंदर टोपियां लगाये बड़े मस्त मस्ती में बैठे हुये थे ! बाप के सलाह क़ी याद आ गई उसे, उसने अपनी टोपी नीकाल कर फ़ेंक दी !लेकिन जो हुआ था उसने कभी कल्पना भी नहीं क़ी थी ! एक बंदर पेड़ से निचे उतरा और वह टोपी भी लेकर पेडपर भाग गया क्योंकि एक टोपी कम पड़ गई थी जो उसे नहीं मिली थी !

आखिर बंदर भी अपने बच्चों को समझा गए होंगे कि, मनुष्य बड़ा चालाक प्राणी है उनसे सावधान रहना !उस सौदागर का बेटा कभी न कभी इस वृक्ष के निचे विश्राम करेगा और अपनी टोपी फेंकेगा,
तब तुम जल्द से जल्द उस टोपी को उठा लेना !जो गलती हमने क़ी थी वह तुम कभी न करना !

6 टिप्‍पणियां:

  1. :-)
    बढ़िया कथा सुमन जी....
    हर सेर को सवा सेर मिल ही जाता है....

    सादर
    अनु

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  2. हाहाहाहा...
    बहुत सुंदर लघुकथा
    तभी तो यहां सब टोपी वाले गायब हो गए..

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  3. अपनी गलतियों से बंदर भी सबक लेते हैं,मगर आदमी?

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  4. बहुत अच्छी रचना है |शिक्षा प्रद भी
    आशा

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  5. मस्त कहानी है ...
    बह्दर तो समझ गए इंसान की चाल ... और इंसान ... अभी तक नहीं समझ पाया ...

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