जब खुद के शब्द गूम हो, भाव मौन हो, तब किसी गुमनाम रचनाकार की रचना को गुनगुना लेते है !यह रचना मुझे तो बहुत पसंद है उम्मीद करती हूँ,
आप सबको पसंद आएगी !
आज मेरे प्राण में स्वर
भर गया कोई मनोहर !
क्षितिज के उस पार से
वह मुस्कुराता पास आया
मधुर मोहक रूप में
उस मूर्ति ने मुझको लुभाया
कौन सा सन्देश लेकर सजनि,
वह आया अवनि पर ?
आज मेरे प्राण में स्वर
भर गया कोई मनोहर !
धुल गई थी प्राण में
अपमान की भीषण व्यथा
ले गया वह साथ अपने
दुःख भरी बीती कथा
आंख में आया सजनि,
वह आज मेरे अश्रु बन कर !
आज मेरे प्राण में स्वर
भर गया कोई मनोहर !
कर गया अनुरोध मुझसे
गीत गाऊं मै मधुर सा
भूल जाऊं जन्म का दुःख,
मृत्यु को समझूं अमरता
यह अमर उपदेश उसका सजनि,
कण-कण में गया भर !
आज मेरे प्राण में स्वर
भर गया कोई मनोहर !
स्वप्न से ही भर गया अलि,
आज मेरा जीर्ण अंचल
वेदना की वहि में
तप हो उठे है प्राण उज्वल
दे गया वह सजनि मुझको
जन्म का वरदान सुंदर !
आज मेरे प्राण में स्वर
भर गया कोई मनोहर !
साभार .......
बहुत सुन्दर..मनोहारी रचना सुमन जी...
जवाब देंहटाएंपारखी नज़रें सच्चे मोती पर ही पड़तीं हैं..
सादर
अनु
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव
आज मेरे प्राण में स्वर
भर गया कोई मनोहर !
स्वप्न से ही भर गया अलि,
आज मेरा जीर्ण अंचल
मनमोहक भावपूर्ण लयकारी रचना,,,,बधाई सुमन जी,,,
जवाब देंहटाएंRECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का
bahut hi acchi rachna positiviti se bharpoor ....
जवाब देंहटाएंsarthak sandesh deti ...man khush kar gai rachna ..!!
जवाब देंहटाएंbahut sundar ..
shubhkamnayen ...!!
बड़ा मधुर गीत है ...
जवाब देंहटाएंदहक़ रहे मरूस्थल में,ज्यों पानी लेकर मिलते मीत !
विषव्यापी इस चन्दन बन में,शीतल धारा देते गीत !
यह आध्यात्मिक कविता इस ओर संकेत करती है कि जीवित होना काफी नहीं है। जीवित होने का अर्थ है-प्राण सस्वर हों। और जब प्राणों से स्वरलहरी छूटती है,फिर क्या सुख और क्या दुख,क्या जीवन क्या मरण!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंसार्थक टिप्पणी के लिये !
इस सुंदर रचना को गाकर पढ़ने का आनंड उठाया।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजीवन का अर्थ पहचानना ही आवश्यक है.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.
मन की गहराइयों से निकले भाव जो सदा ही जीवन के सकारात्मक पहलू की और इंगित कर रहे हैं ,बधाई ||
जवाब देंहटाएंजन्म और मृत्यु के इस चक्र से बाहर निकल कर जब मनुष्य अपने जीवन को सार्थक करने के मार्ग पर आगे बढ़ता है, तो उसके प्राण के अणु-अणु में ऊर्जा भर जाते हैं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपृर्ण रचना के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंपोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते