मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

पुस्तक समीक्षा ... (ब्लॉग यंत्र,तंत्र, मंत्र गुटिका)

"डमरू वाले बाबा श्री ताऊ महाराज" ब्लॉग जगत में किसी परिचय के मोहताज नहीं है ! उनके प्रवचनों को सुन-सुन कर भक्तगण बाग़-बाग़ हो जाते है ! वे अपने प्रवचनों में हमेशा यही कहते है कि, हर ब्लोगर हँसता हुआ होना चाहिए ! दुनिया में हँसना ही एक मात्र धर्म होना चाहिए ! उदास लोगों के लिए या सिर्फ भडास निकालने के लिए ब्लॉग जगत नहीं है ! गंभीरता को वे मानसिक बीमारी समझते है और अपने अदभूत चिकित्सा पद्धती (लेखन) से भक्तों के दुःख दर्द दूर करते रहते है ! इन्टरनेट पर सर्च करते हुए उनके साहित्य पर मेरी नजर गई तो सुखद अश्चर्य हुआ ....इतनी प्रचुर मात्रा में लिखा हुआ साहित्य मैंने पहले कभी नहीं देखा किसी बाबा का ! पता नहीं उन्होंने कैसे और कब लिखा होगा इतना सारा ! आप देख लेना यह साहित्य उनको ब्लॉग जगत के क्षितिज पर एक बढ़िया चिन्तक, तत्वदृष्टा के रूप में चमका देगा एक दिन ! हाल ही में उनकी एक पुस्तक नाम है "ब्लॉग यंत्र,तंत्र,मंत्र गुटिका " मेरे हाथ में पड़ी ! बस हाथ में क्या पड़ी पढ़ते ही गई बिना रुके हुए ! इस पुस्तक की विषय वस्तु थोड़ी जटिल होते हुए भी शिल्पगत प्रस्तुती अप्रतिम है हर पढने वाले ब्लोगर को सरल सरस परिस्थिति बना कर मन को  पढ़ने को बाध्य करती है ! इस पुस्तक में प्रवचन क्या है शब्दों और चित्रों का आकर्षक जुलुस है जैसे ! एक प्रवचन में डमरू वाले बाबा श्री ताऊ महाराज कहते है कि, शरीर एक यंत्र है मन मंत्र है और आत्मा तंत्र है जब तक इन तीनों में एक गुटियता याने की एकता नहीं होगी आप अच्छी तरह से ब्लोगिंग नहीं कर सकते ! यंत्र,तंत्र,मंत्र का एक जुट होना ब्लोगिंग में बहुत जरुरी है ! यांत्रिक,मान्त्रिक,तांत्रिक  साधना पद्धति पर आधारित प्रस्तुत पुस्तक लिखी गई है ! जल्द से जल्द इस पुस्तक को आप खरीद लीजिये क्योंकि स्टॉक सिमित है अभी खरीदने वाले को पुस्तक के साथ बाबा श्री का चित्र बिलकुल मुफ्त में दिया जा रहा है ! आप इस चित्र को घर में कही भी किसी भी कमरे में लगा सकते है ताकि,हमारे पूर्वजों का आशीर्वाद सतत बना रहेगा :) कुल मिलाकर यह पुस्तक ब्लॉग जगत की खोई हुई खुशिया वापिस लाने में सक्षम दिखाई दे रही है !

शनिवार, 20 अप्रैल 2013

परमात्मा की अनोखी भेंट .....


पौधों पर 
फूलों का खिलना 
फूलों की मज़बूरी नहीं 
पौधों की ख़ुशी है ....

सुबह-सुबह 
पंछियों का चहकना
गीत गाना, पंछियों की 
मज़बूरी नहीं 
उनकी ख़ुशी है ....

आज के इस 
दौर में विचारों की 
अभिव्यक्ति 
ह्रदय का आनंद नहीं 
खोपड़ी की मज़बूरी है ...

गैर सृजनात्मक 
जीवन शैली से बेहतर 
सृजनात्मक जीवन शैली 
किसी पुरस्कार से 
कम है क्या ...??

आओ,
परमात्मा की 
इस अनोखी 
भेंट का 
सम्मान करे ....!


रविवार, 14 अप्रैल 2013

प्रकृति के साथ छेड़खानी ....


ठंड के दिन थे सुबह का धुंधलका छाया था ! कोहरे में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था ! मुल्ला नसुरुद्दीन कहीं जा रहा था ! मोटर साइकिल पर सवार दो व्यक्ति गिर पड़े थे पेड़ से टकराकर !  नसुरुद्दीन ने उनके पास जाकर देखा एक को बहुत चोट आई थी दूसरा मर चुका था ! चोट खाए व्यक्ति की नसुरुद्दीन ने मदद की चोट खाने से उसका सिर उलटा हो गया था पीठ की तरफ मुंह घूम गया था तब उसने बड़ी मेहनत कर घुमा फिरा कर उसका सिर ठीक किया इस बीच वह आदमी चीखा चिल्लाया फिर शांत हो गया ! तब तक पुलिस भी वहां आ गई थी ! और पुलिस वाले ने पूछा कि, क्या ये दोनों आदमी मर चुके ? नसुरुद्दीन ने कहा एक तो पहले ही मर चूका था जिसे चोट आई थी मैंने उसे सुधारने की बहुत कोशिश की पहले तो वह बहुत चीख पुकार मचाई फिर शांत हो गया ! दरअसल बात कुछ यूँ हुई थी गौर से देखने से पता चला कि, जो आदमी मोटर साइकिल पर पीछे बैठा था उसने ठंड की वजह से उल्टा कोट पहना था , ताकि आगे से सीने  को हवा न लगे इसलिए ! और उलटा कोट देख कर नसुरुद्दीन ने समझा कि, इसका सिर उलटा हो गया है, तो उसने घुमा कर सिर सीधा कर दिया उसी बीच वह आदमी मर गया ! नसुरुद्दीन अगर उसे न सुधारता तो शायद बच भी जाता ! 

जाने अनजाने में जो गलती नसुरुद्दीन ने की है करीब-करीब हमने भी प्रकृति के साथ कुछ ऐसे ही छेड़खानी की है ! नतीजा जंगल कट गए वातावरण में कार्बन डायअक्साइड की मात्रा बढ़ने से विश्व की पर्यावरण व्यवस्था ही बदल गई है ! ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने लगी है ....भीषण गर्मी, पानी,बिजली का संकट गहराने लगा है ! लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे है ! हमारे शहर में कुछ क्षेत्र ऐसे है जहाँ सरकारी टैंकर पानी लेकर आता है तो युद्ध जैसी स्थिति दिखाई देने लगी है ! असंख्य गाँव सूखे की चपेट में है ! गांवों में दूध नहीं है पीने को पानी नहीं है लेकिन शराब जरुर बेचीं और खरीदी जा रही है ! किसान कर्जबाजारी होकर आत्महत्या कर रहे है ! मन में एक दुःख सदा के लिए रह गया है कि,मै अपने बच्चों को मेरे गाँव की वह कल-कल बहती सुन्दर नदी दिखा न सकी जिसमे मै अपने भाईयों के साथ बचपन में खूब तैरा करती थी ! वह सुन्दर-सुन्दर प्राकृतिक दृश्य दिखा न सकी जिसमे मेरा सारा बचपन हंसते-खेलते बीता था !

अधुनिकता की अंधी दौड़ में गलत सलत जीवन शैली अपना कर शुद्ध हवा पानी जैसी आधारभूत जरूरतों को हम कैसे भूलते जा रहे है जिसपर हम सबका जीवन निर्भर है ! क्या तरक्की इसे ही कहते है ? हमने तो जैसे तैसे जीवन जी लिया पर अधुनिक पीढी का आने वाली हमारी पीढ़ी का क्या होगा ? अगर ऐसे ही चलता रहा तो ....! प्रकृति और मनुष्य के बीच कभी जो एक गहरा स्नेह का रिश्ता -नाता था आज बिलकुल ही बिखर गया है ! स्थिति अब नियंत्रण से बाहर होती जा रही है ! काश हम सब प्रारंभ से ही जीवन में संतुलित जीवन शैली अपनाते तो आज स्थिति कुछ बेहतर होती !

मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

मूर्ख दिवस तो एक बहाना है ....


हर कोई आये दिन किसी दुसरे को 
मूर्ख बनाने के चक्कर में लगा ही है 
मूर्ख दिवस तो एक बहाना है 
और हम चौकन्ने रहते है कि,
कोई हमें न मूर्ख बना दे 
फिर भी बन ही गए 
और क्या खूब बन गए ....

सुना है कि,
जिसने आदमी को बना कर 
पृथ्वी पर भेजने से पहले 
उसके कान में कहा कि,
मैंने तुझ जैसा अच्छा 
तुझ जैसा श्रेष्ठ किसी  
दुसरे को नहीं बनाया है 
और आदमी है कि,तबसे 
इसी मजाक के सहारे 
सारी जिन्दगी काट रहा है 
शिष्टाचार वश किसी
दुसरे से कह नहीं पाता ....

पर शायद,
आदमी को यह पता नहीं है कि,
उसने भेजते समय सबके 
कान में भी यही बात कही 
हुई है ...
आदमी की इस मुर्खता पर
खुद जोर-जोर से हँसता होगा
कैसे बेवकुफ बनाया है
कह कर .....!