रविवार, 27 अप्रैल 2014

नकारात्मक विचार ...

बात तब की है जब बुद्ध वृद्ध हो गए थे, तब एक दोपहर एक वन में एक वृक्ष के निचे विश्राम करने रुक गए थे ! 
उन्हें प्यास लगी थी ! आनंद पानी लाने पास के पहाड़ी झरने पर गए ! पर झरने में से अभी-अभी बैल गाड़ियां गुजरी थी ! इसलिए झरने का सारा पानी गन्दा हो गया था ! कीचड़ ही कीचड़ और सड़े पत्ते पानी पर उभर आये थे ! आनंद उस झरने का पानी लिये बिना ही वापस लौट आये थे ! उन्होंने  बुद्ध से कहा "झरने का पानी निर्मल नहीं है, मै पीछे लौटकर नदी से पानी ले आता हूँ!" नदी बहुत दूर थी ! बुद्ध ने आनंद को उसी झरने का पानी लाने वापस लौटा दिया ! आनंद थोड़ी देर में फिर खाली लौट आये थे ! वह पानी उन्हें लाने योग्य नहीं लगा ! पर बुद्ध ने इस बार भी लौटा दिया ! और तीसरी बार जब आनंद झरने पर पहुंचे  तो देखकर चकित रह गये, झरने का पानी अब बिलकुल निर्मल और शांत दिखाई दे रहा था ! सारी कीचड़ पानी के निचे 
बैठ गई थी ! जल निर्मल और साफ़-सुथरा पीने योग्य हो गया था ! 


जब भी हमारे नकारात्मक विचार भी कुछ ऐसे ही चेतना रूपी झरने पर से गुजरने लगते  है तो न स्वयं के ग्रहण करने योग्य होते है न दूसरों को बांटने योग्य ही होते है ! जिनके ग्रहण करने से हम खुद को दुखी  कर लेते है और उसे बांटकर दुसरे को भी दुख़ी कर देते है ! ऐसे में बस थोड़ी देर धैर्य और शांति के साथ चेतना रूपी झरने के किनारे बैठकर साक्षी रुप से प्रतीक्षा करने की जरुरत होती है तब, और धीरे-धीरे आप चकित रह जायेंगे यह देखकर कि नकारात्मक विचार अपने आप विसर्जित होने लगे है ! 

गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

मुखौटे ...

हर दिन,
हर रिश्ता हमें 
सौ प्रतिशत अटेन्शन 
मांगता है 
अनंत रिश्तों से
जुड़े हुए हम 
जब ऐसा नहीं 
कर पाते तब 
एक कुशल 
अभिनेता की तरह 
अभिनय करने लगते है 
अनंत मुखौटे 
ओढ़ कर दिन भर,
और अभिनय 
करते-करते जब 
थक जाते है 
सोने से पहले
रात की खूंटी पर 
टांग देते है सारे 
मुखौटे उतार कर 
तब पहचान ही 
नहीं पाते कि 
हमारा असली 
चेहरा कौनसा है   … ??

मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

मेरी प्रिय कहानी …


समर्थ रामदास जी के जीवन काल में घटी एक प्यारी सी कहानी है यह जो कि मेरी प्रिय कहानी है ! संत रामदास एक बार रामायण की कथा सुना रहे थे दूर-दूर से लोग कथा श्रवण करने आने लगे हनुमान को भी इस बात की खबर लग गयी ! हनुमान भी कंबल ओढ़ कर जिज्ञासावश नियमित कथा श्रवण करने आने लगे कि देखे यह आदमी हजारो साल पहले घटी घटना को सच कहता है या झूठ कहता है यह देखने !  लेकिन रामदास हमेशा ऐसे कथा को प्रेम से कहते जैसे उन्होंने अपने आँखों देखि कह रहे हो, लेकिन एक दिन एक जगह थोड़ी मुश्किल हो गयी ! कथा में एक जगह समर्थ ने कहा कि "हनुमान लंका गए अशोक वाटिका में सीता से मिलने तो वहाँ उन्होंने देखा कि चारो तरफ सफ़ेद ही सफ़ेद फूल खिले हुए है "!  हनुमान जी श्रोताओं में कंबल ओढ़कर छिपे बैठे थे, गुस्से में आ गए कंबल फ़ेंक कर खड़े हो गए ! और कहा कि "यह बात झूठ है और तो सब कथा ठीक है मगर सफ़ेद फूलों वाली घटना बिलकुल झूठ है इसमे संशोधन करो "! फूल सफ़ेद नहीं थे, फूल लाल थे ! 

रामदास भी कहाँ मानने वाले थे, कहा अपनी बकवास बंद कर और चुपचाप शांति से कथा का आनंद लो, यह तुम्हारा काम नहीं यह निर्णय करना कि फूल सफ़ेद थे या लाल थे, मैंने जो कह दिया सो कह दिया रामदास संशोधन नहीं करता ! हनुमान ने कहा यह तो हद्द हो गयी मै  खुद गवाह हूँ इस बात का मै खुद अशोक वाटिका में गया था तुम कभी गए ही नहीं तो फिर कैसे कह सकते हो कि फूल सफ़ेद थे ! दोनों के बीच जब झगड़ा अधिक बढ़ा तो हनुमान ने गुस्से से कहा कि "फिर श्री राम के पास चलते है वही इसका निर्णय करेंगे" और रामदास को राजी कर अपने  कंधे पर बिठाकर श्री राम के पास चल दिए ! श्री राम जी ने अपने दोनों प्रिय भक्तों की बात ध्यान से सुनकर हनुमान से कहा    … "हनुमान तुम नाहक इन बातों में मत उलझो रामदास ठीक कहता है फूल सफ़ेद ही थे ! हनुमान का क्रोध बढ़ता ही जा रहा था यह तो ज्यादती हो गयी हनुमान ने सीता से पूछा अब तो वही मात्र इस घटना की गवाह थी ! सीता ने कहा "हनुमान तुम इस कथा के झंझट में मत पड़ो मैंने भी देखा था अशोक वाटिका में फूल सफ़ेद ही थे लेकिन तुम क्रोध से इतने भरे थे कि तुम्हारी आँखे लाल सुर्ख हो गयी थी इसलिए तुम्हे सफ़ेद फूल लाल दिखायी दे रहे थे "!

याद कीजिये हम भी कहीं ऐसे ही किसी की पोस्ट तो पढने नहीं जाते है ?? किसी के विचारों का यूजफुल होना यूजलेस होना हमारी आँख पर हमारी धारणाओं पर तो निर्भर नहीं करता ?? कि हम किस प्रकार से उस पोस्ट को पढ़ रहे है ! अगर हम उस पोस्ट में सार्थक की जगह हमारी धारणाओं की वजह से निरर्थक को ही देख रहे है और आँखे गुस्से से लाल है दुश्मनी से मन लहूलुहान है फिर तो कुछ भी सार्थक कैसे दिखायी देगा ! ऊपर की कहानी में सच में ऐसा हुआ या नहीं यह बात महत्वपूर्ण नहीं है, कहानियाँ सिर्फ प्रतीकात्मक होती है और समय के साथ बदलती रहती है !