बात तब की है जब बुद्ध वृद्ध हो गए थे, तब एक दोपहर एक वन में एक वृक्ष के निचे विश्राम करने रुक गए थे !
उन्हें प्यास लगी थी ! आनंद पानी लाने पास के पहाड़ी झरने पर गए ! पर झरने में से अभी-अभी बैल गाड़ियां गुजरी थी ! इसलिए झरने का सारा पानी गन्दा हो गया था ! कीचड़ ही कीचड़ और सड़े पत्ते पानी पर उभर आये थे ! आनंद उस झरने का पानी लिये बिना ही वापस लौट आये थे ! उन्होंने बुद्ध से कहा "झरने का पानी निर्मल नहीं है, मै पीछे लौटकर नदी से पानी ले आता हूँ!" नदी बहुत दूर थी ! बुद्ध ने आनंद को उसी झरने का पानी लाने वापस लौटा दिया ! आनंद थोड़ी देर में फिर खाली लौट आये थे ! वह पानी उन्हें लाने योग्य नहीं लगा ! पर बुद्ध ने इस बार भी लौटा दिया ! और तीसरी बार जब आनंद झरने पर पहुंचे तो देखकर चकित रह गये, झरने का पानी अब बिलकुल निर्मल और शांत दिखाई दे रहा था ! सारी कीचड़ पानी के निचे
बैठ गई थी ! जल निर्मल और साफ़-सुथरा पीने योग्य हो गया था !
उन्हें प्यास लगी थी ! आनंद पानी लाने पास के पहाड़ी झरने पर गए ! पर झरने में से अभी-अभी बैल गाड़ियां गुजरी थी ! इसलिए झरने का सारा पानी गन्दा हो गया था ! कीचड़ ही कीचड़ और सड़े पत्ते पानी पर उभर आये थे ! आनंद उस झरने का पानी लिये बिना ही वापस लौट आये थे ! उन्होंने बुद्ध से कहा "झरने का पानी निर्मल नहीं है, मै पीछे लौटकर नदी से पानी ले आता हूँ!" नदी बहुत दूर थी ! बुद्ध ने आनंद को उसी झरने का पानी लाने वापस लौटा दिया ! आनंद थोड़ी देर में फिर खाली लौट आये थे ! वह पानी उन्हें लाने योग्य नहीं लगा ! पर बुद्ध ने इस बार भी लौटा दिया ! और तीसरी बार जब आनंद झरने पर पहुंचे तो देखकर चकित रह गये, झरने का पानी अब बिलकुल निर्मल और शांत दिखाई दे रहा था ! सारी कीचड़ पानी के निचे
बैठ गई थी ! जल निर्मल और साफ़-सुथरा पीने योग्य हो गया था !
जब भी हमारे नकारात्मक विचार भी कुछ ऐसे ही चेतना रूपी झरने पर से गुजरने लगते है तो न स्वयं के ग्रहण करने योग्य होते है न दूसरों को बांटने योग्य ही होते है ! जिनके ग्रहण करने से हम खुद को दुखी कर लेते है और उसे बांटकर दुसरे को भी दुख़ी कर देते है ! ऐसे में बस थोड़ी देर धैर्य और शांति के साथ चेतना रूपी झरने के किनारे बैठकर साक्षी रुप से प्रतीक्षा करने की जरुरत होती है तब, और धीरे-धीरे आप चकित रह जायेंगे यह देखकर कि नकारात्मक विचार अपने आप विसर्जित होने लगे है !
बहुत सुन्दर कहानी है दी फिर साथ में आपकी सुन्दर बातें...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
सादर
अनु
बहुत सुंदर कहानी के साथ सुंदर सीख.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : मूक पशुएं और सौदर्य प्रसाधन
बात सौ आने सही पर होता कहाँ है धैर्य :)
जवाब देंहटाएंडॉ जोशी की बात व्यवहारिक लगी , इतना आसान कहाँ होता है !
जवाब देंहटाएंएक पुरानी कहावत है कि बदला वह पुलाव है, जो जितना ठण्डा हो उसके खाने का मज़ा उतना ही आता है. लेकिन यह भी सही है कि नकारात्मक विचारों को भी अगर ठण्डा होने दिया जाए तो वो निथर कर निखर जाते हैं. ठण्डा होते ही इंसान को भेद समझ में आने लगता है कि क्या सार्थक है और क्या नकारात्मक. धैर्य भले ही लोगों को अव्यावहारिक लगे, लेकिन मैंने देखा है कि असम्भव नहीं. अगर धैर्य सहज होता तो बुद्ध झरने का गन्दा पानी ही पी रहे होते!!
जवाब देंहटाएंएक प्रेरक कथा!
ठंडे पुलाव के उदाहरण के जरिये कितने आसानी से कह दिए कि,
हटाएंनकारात्मक ऊर्जा का रूपांतरण कैसे सकारात्मक रुप मे किया जाता है !
बहुत बहुत आभार इस टिप्पणी के लिये मन प्रसन्न हुआ !
अनुकरणीय विचार
जवाब देंहटाएंसुन्दर बात.
जवाब देंहटाएंकिसी से नफरत करना बेहद आसान है , सिर्फ उसकी निंदा को, दो बार ध्यान देकर सुन भर लें फिर वह इंसान चाहे आपके पिता या गुरु ही क्यों न हो, आपके दिल से धीरे धीरे उतरते चले जायेंगे ! नफरत से, घर में,नकारात्मक उर्जा उत्पन्न होती है ! ये लोग अपने मत के खिलाफ, किसी भी सुझाव को सुनते ही भड़क जाते हैं और चेहरे पर लगाया, शालीनता का मुखौटा उतार देते हैं !
जवाब देंहटाएंअक्सर नकारात्मक लोग बेहद कमज़ोर व्यक्तित्व के होते हैं, वे नकार को आसानी से ग्रहण कर लेते हैं, जिस जगह दूसरों की कमियां बतायी जा रही हों, वहां उन्हें आनंद आता है !
भले ही वे कितने ही विद्वान् हों मगर इन असहनशील लोगों की पहचान , बात न मानने की, प्रतिरोध करने की व स्वभाव निराशाबादी ही होता है ! ऐसे लोग, सुनी सुनाई बात पर विश्वास कर, आपकी इमेज बनायेंगे और फिर जीवन भर उसी अंदाज़ में आपसे बात करेंगे !
यह लोग जिद्दी, हठी, और अक्सर अमानवीय होते हैं , इनसे और इनकी स्नेही संगति से कम से कम बच्चों को बचाकर रखें !
सुंदर कहानी के साथ सुंदर सीख
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