शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

उसे भुलाने के लिए ...


मैंने,
उसे भुलाने के लिए 
क्या कुछ नहीं किया 
गीत लिखने का लिया 
सहारा 
बार-बार शब्द बदले 
कई बार भाव बदले 
लेकिन लिखते-लिखते 
हर बार गीत उसीका 
निकला ....

फिर मैंने,
उसे भुलाने के लिए 
चित्रकारी का लिया 
सहारा 
बार-बार रंग बदले 
कई बार तुलिका बदली 
दिल के कैनवास पर 
रेखाएँ बनाते-बनाते 
हर बार चेहरा उसीका 
निकला ....

फिर मैंने,
उसे भुलाने के लिए 
ध्यान,योग साधन 
अपनाया 
सब राग रंग त्यागा 
बार-बार मुद्राएँ बदली 
कई बार आसन बदले 
ध्यान लगाते-लगाते 
अब क्या बताऊँ ?
वो ध्यान भी उसीका 
निकला ....

सब कुछ मुमकिन है 
दुनिया में लेकिन
कितना नामुमकिन है
मन के मीत को 
भुला पाना !

रविवार, 23 दिसंबर 2012

Sudha Pemmaraju Rao


"Suman ji I am hesitant to write in Hindi because my spoken and written Hindi is not so "Shuddh" but I can read and understand every word you write ...and I can "feel'' the depth and beauty of your writings   They resonate with my own feelings !"

सुधा जी,
आपकी जैसी प्यारी दोस्त और मेरी पोस्ट को पढकर गहराई से महसूस कर अपने दोस्तों के साथ शेअर करने वाली पाठक मुझे फेसबुक पर मिली है इससे ज्यादा एक रचनाकार के लिए ख़ुशी और क्या हो 
सकती है ? शुद्ध हिंदी की फ़िक्र मत कीजिये ....भावनाएं अगर सुन्दर सरल हो तो भाषा कोई मायने नहीं रखती सरलता से पाठक के  ह्रदय तक पहुँच ही जाती है बशर्ते कि, पाठक अपने ही विचारों से भरा हुआ न हो तो, मेरा पढाई का माध्यम मराठी है फिर भी हिंदी मुझे बहुत अच्छी लगती है बचपन से हिंदी जो पढ़ती आ रही हूँ ! बात तब की है जब मै मैट्रिक में पढ़ती थी ! कभी पढाई में मन ही नहीं लगा, क्लास में पिछली बेंच पर बैठकर रानू, गुलशन नंदा, कर्नल रंजित जैसे लेखकों के उपन्यास पढ़ना शौक ही नहीं पागलपन सवार था तब , नतीजा यह हुआ कि मैथ्स का एक सब्जेक्ट चला गया ! घर में सब नाराज हो गए परीक्षा में  फेल होने से, पर मुझे कोई फरक नहीं पड़ा, तब लगता कि मैथ्स का जीवन में क्यों और कैसे जरुरत है ? आज सालों बाद ओशो को पढकर लगता है कि , तीन एम का  "मैथ्स,म्यूजिक,मेडिटेशन इन तीनों का जीवन में बहुत बड़ा महत्व है" ! इस प्रकार से उपन्यास पढ़ते पढ़ते हिंदी पढ़ने की शुरुवात हुई थी ....तब सरकारी स्कुलों में टीचरों का ध्यान पिछली बेंच पर कम ही जाता था  ...वैसे आज भी सरकारी स्कूलों में कुछ ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ है ! खैर कभी प्रशंसा पाने के लिए नहीं लिखा जब धंदा सबका (लेखन ) एक जैसा ब्लॉग जगत में हो तो प्रशंसा लेन देन तक ही सिमित हो जाती है, बहुत सुन्दर, बहुत बढ़िया, सुन्दर प्रस्तुती, इस प्रकार के वाक्य छोड़ दे तो एक अच्छा तथ्य परक प्रशंसक मिलना बहुत मुश्किल है ! जितना मुश्किल अच्छा प्रशंसक मिलना उतना ही एक तथ्यपरक आलोचक मिलना भी ! आलोचना मेरे मत से दो प्रकार से की जाती है एक प्रेम से दूसरी घृणा से, प्रेम से की गई आलोचना कई बार रचनाकार को और निखारती है किन्तु आलोचक कोई नहीं चाहता ! टिप्पणियाँ अक्सर भ्रम में डाल देती है कुछेक टिपण्णी छोड़  दे तो,..सो मै तो सबका सकारात्मक उपयोग करती हूँ ! बिना टिप्पणी  किये भी ब्लॉग जगत में बहुत सारे लोगों को पढ़ती हूँ प्यार से !

शब्दों से खेलते खेलते अक्सर खेलना आ ही जाता है वो कहते है ना ..."practice makes man perfect" कई बार इस मुहावरे के बारे सोचते हूँ कि, सिर्फ man को परफेक्ट होने के लिए क्यों कहा गया होगा ? अंतर्मन से एक जवाब आता है वुमैन हमेशा ही परफेक्ट रही है पर उसको कभी साबित करने का मौका कभी किसी ने नहीं दिया, वैसे भी साबित भी किसको और क्यों करे ? अपने लिए लिखे सो  लिखते रहिये ...मुझे भी कुछ खास लिखना नहीं आता लेकिन कोशिश जरुर करती हूँ ! विद्वान् होने का अहंकार छोड़ दे तो जीवन एक पाठशाला है जितना रोज सीखेंगे कम ही लगता है ! मेरे लिए हर मनुष्य एक तारा है कोई छोटा है न बड़ा, जो तारा पृथ्वी के जितने करीब है उतना चमकिला दिखाई देता है एक तारे के बारे समझना जितना मुश्किल है उतनाही एक व्यक्ति और उसके व्यक्तित्व को समझना ! अच्छा साहित्य आत्मा का भोजन है ओशो को छोड़कर कभी किसी साहित्यकार से ईर्ष्या नहीं हुई वे दुनिया के बढ़िया साहित्यकार है प्रेरणा उनसे ग्रहण करती हूँ किन्तु  लिखने के बाद जब अपना लिखा हुआ पढ़ती हूँ तो लगता है बहुत बुरा लिखा ! लेकिन कभी कोई फ़िक्र नहीं करती लोग क्या समझेंगे ? भावनाओं को यदि शब्दों के सुन्दर पंख मिल जाय तो आकाश में उड़ने का आनंद ही कुछ और होता है यदि  लक्ष्य उन रहस्यमय हिमाच्छादित पहाडी शिखरों को बनाया गया हो तो, कौन फ़िक्र करता है किसी भी बात की !

आभार ...

( जाते जाते यह बता दूं कि, Sudha Pemmaraju Rao एक संवेदनशील महिला है ! अमेरिका में रहती है अपने परिवार से बहुत प्रेम करती है ! बागवानी का शौक और अपने पेट्स से बहुत लगाव है ! फेसबुक पर सुन्दर सुन्दर पोस्ट शेअर करती है मेरी अच्छी दोस्त है )

बुधवार, 19 दिसंबर 2012

मानवता यूँ ही शर्मसार होती रहेगी ....


हमने सुना है कि,
वासना अंधी और 
कुरूप होती है 
और इसका ताजा उदाहरण 
हम देख भी रहे है 
सामूहिक बलात्कार काण्ड 
दिल्ली में जो हुआ 
इस घटना से 
मानवता जैसे 
शर्म से पानी-पानी 
हो गई है !
जवान बेटियों के 
माता-पिताओं को 
इस घटना ने 
अन्दर तक 
हिला कर रख दिया है ...
मानवता से विश्वास 
उठने लगा है ..
लडकियां घर से 
बाहर निकलने को 
डरने लगी है असुरक्षित 
महसूस करने लगी है 
खुद को,
सबके मन में 
यक्ष प्रश्न प्रताड़ित करते 
क्या होगा उस पीड़ित 
लड़की का ?
क्या वह बच पाएगी ?
अगर बच भी गई तो 
शारीरिक मानसिक पीड़ा से 
कभी उभर पायेगी ?
स्वस्थ जीवन जी पायेगी कभी ?
गली से लेकर संसद तक 
कई सवाल उठने लगे है 
अपराधियों के 
सजा को लेकर 
उन दरिंदों के साथ कैसा 
सलूक किया जाए ?
कैसी सजा दी जाए ?
लेकिन 
मेरा असली सवाल 
सारी मानव जाती से, 
आदमी को 
इंसान कैसे बनाया जाए ?
अन्यथा मानवता 
यूँ ही 
शर्मसार होती रहेगी 
बार-बार लगातार .....

रविवार, 16 दिसंबर 2012

आओ समय के साथ चले ...


मित्रों, देखते ही देखते पुराना साल बीत जाने को और नए साल की शुरुवात होने को है ! बस कुछ ही दिन शेष रह गए है नए साल के आगमन में ! स्टार होटलों में अभी से बुकिंग हो रही है नए साल के आने की ख़ुशी में, लोग जश्न मनाने की तैयारियाँ कर रहे है ! हर साल हम भी अपने नाते,रिश्तेदारों,मित्रों को नए वर्ष की हार्दिक शुभकानाएं देते है ताकि, उनके जीवन में सब कुछ अच्छा ही अच्छा हो ! लेकिन समय को कुछ और ही मंजूर होता है साल के यह दिन किसी के जीवन में खुशिया ही खुशिया लेकर आते है तो किसी के जीवन में दुखद गुजर जाते है ! हर मनुष्य चाहता है कि, उसके जीवन का हर पल,हर दिन, हर साल सुखद रूप में भोगे पर समय के सामने मनुष्य कितना बेबस और विवश है ... अपने अपने कर्म का फल भोगने के लिए ! कहते है ना ..."डाल से टूटे हुए पत्ते पुना डाल पर नहीं लगते ना ही नदी की धारा में बह गया पानी वापिस नहीं लौटता " ! ऐसे ही अच्छा बुरा जो भी समय गुजर गया वह वापिस नहीं लौटता ! इसीलिए विवेकी मनुष्य समय को नष्ट नहीं करते उसका सदुपयोग कर लेते है ! बहुत बार हम कल की खुशियों के लिए आज अभी की छोटी छोटी खुशियों को नजर अंदाज कर देते है  ...छोटी छोटी खुशियों को इकठ्ठा करने में ही जीवन का सार है ! हमारे पास सिर्फ यही तो एक पल है पूंजी के रूप में, इसे व्यर्थ गंवाने की बजाय  जो इस पल को ख़ुशी से जीने की कला जानता है उसे नए साल का इंतजार नहीं करना पड़ता,  जिसका पूरा साल पुराना बीता हो उसका एक दिन नया कैसे हो सकता है ? सोचने जैसी बात है न ? वर्तमान पल और उस पल के महत्व को न समझ पाने के कारण ही नए वर्ष में हम नए दिन की कामना करते है !

समय का चक्र अविराम गति से चलता रहता है उसे कोई रोक नहीं सकता हर परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए अडिग रहे ! परिस्थितियों को हम बदल नहीं सकते पर खुद को उनके अनुकूल बना कर आगे बढ़ा जा सकता है ! दुनिया को बदलने का ठेका हमने नही लिया है समय के अनुरूप हम बदले तो यही बहुत है ! जब तक जीवन है संघर्ष भी है जीवन कायर व्यक्तियों के लिए नहीं है चुनौतियों से लढ़ने से आत्मशक्ति बढती है क्यों न हम भी इस पल में जीकर समय का सदुपयोग करे अपना समय अच्छे कार्यों में लगायें, आओ समय के साथ चले ....!!

रविवार, 9 दिसंबर 2012

सम्यक आहार...


बिटिया के साथ कल शापिंग करने गई थी ! वापसी में वह मुझे McDonald's में ले गई "भूख लगी है ममा कुछ खा लेंगे यह कहकर " ! उसने हम दोनों के खाने के लिए बर्गर ले आई ! हमारे आस पास बहुत सारे युवा लड़के लडकिया अपने अपने पसंद के खाने का मजा ले रहे थे ! मेरी मनोदशा देख कर बिटिया मंद मंद मुस्कुरा रही थी कारण बहुत बार इस प्रकार का खाना मै अवाइड करती हूँ सिर्फ थोडा बहुत चख लेती हूँ, परहेज है ऐसी बात भी नहीं है ... McDonald's में उसने खाते हुए मेरी तस्वीर लेकर फेसबुक पर टैग कर दी ! उसपर बहुत सारे परिचित के कमेंट्स थे लाईक करते हुए ! एक प्यारा सा कमेंट्स था बेटे का चेन्नई से, कुछ इस प्रकार .."पता नहीं ममा ने बर्गर खाते हुए कितनी बार कहा होगा इसमे कितने फैट्स है ...कितनी कैलोरीज है ? हा ..हा ...हां ..."!

हम अपना आहार अपने रोज के काम, आयु के अनुसार निर्धारित करते है न की दो दिन की जिन्दगी है ....खा ले पी ले, बस मौज कर ले इस प्रकार नहीं ! सिर्फ भोजनभट्ट होकर काम नहीं चलेगा खास कर तब जब हम उम्र के पचास के पार जा रहे हो ! हम किस प्रकार का आहार ग्रहण कर रहे ? उसकी गुणवत्ता क्या है किस प्रकार की भाव दशा में हम अन्न ग्रहण कर रहे है इन सबका अर्थ है ! रोज की इस भाग दौड़ भरी  जिंदगी में ह्रदय रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप कैंसर जैसे घातक रोग शारीरिक श्रम की कमी और रेशेदार भोजन की कमी से हो रहे है ऐसे विशेषज्ञों का कहना है ! मेरे पास एक सर्वे है जो मै अभी अभी पढ़ रही थी ..."सफोला लाइफ स्टडी 2012 " इस कार्यक्रम के अंतर्गत देश के एक दर्जन नगरों में 30-38 आयु वर्ग में 1,12000 लोगों का सर्वेक्षण किया गया हर शहर की स्थिति थोड़ी अलग अलग है    बैंगलुरू के लोगों में कोलेस्ट्राल स्तर हाई है चेन्नई में डायबिटिज सबसे आगे है कलकत्ता में ज्यादा लोग कैंसरग्रस्त पाए गए ! अहमदाबाद में रक्तहीनता की कमी लोगों में पायी गई क्योंकि उनके भोजन में फलों की कमी है ! राजधानी दिल्ली में मोटापे के रोग से पीड़ित लोगों की संख्या अधिक है क्योंकि यहाँ पर्याप्त शारीरिक श्रम की कमी है और मोटापा बढाने वाला भोजन लोग अधिक करते है !

अपने भोजन के प्रति ध्यान देना सबको जरुरी है ताकि तन,और मन दोनों स्वस्थ रहे,  हमारा भोजन हमारी मांस-मज्जा,रक्त,हड्डी बनाने के अतिरिक्त हमारे समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ! ऐसी प्रगति भी किस काम की जिस में मनुष्य अपनी खाने पीने की सुध बुध भी खो दे सम्यक आहार का चुनाव हर दृष्टी से फायदेमंद है !

मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

संगीत जीवन का आधार...


रोटी के बिना हम कविता नहीं लिख सकते, भूखे पेट संगीत भी अच्छा नहीं लगता ! रोटी के लिए पैसा कमाना जरुरी  है लेकिन सबकुछ होते हुए भी जीवन में काव्य न हो संगीत न हो तो जीवन नीरस हो जाता है ! संगीत से हमारा मन ही नहीं बल्कि,पशु-पक्षी और पेड़-पौधे भी संगीत से पोषण ग्रहण करते है ! कृषि वैज्ञानिकों ने पौधों पर प्रयोग कर काफी रोचक जानकारी हासिल की ...अगर फसलों को पुष्पावस्था प्रारंभ होने के पश्चात से लेकर फसल पकने तक फसलों को संगीत सुनाया जाए तो दस से पन्द्रह प्रतिशत उत्पादन अधिक होगा ! खासकर पुराना लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत ! मैंने अपना बचपन का बहुत सारा समय अपने सुन्दर छोटे से गाँव में बिताया है ....तब मै देखती कि, शायद अनजाने में ही सही यही कारण रहा होगा ... गांव की महिलायें जब चक्की पर आटा पीसती बहुत सुन्दर गीत गाया करती थी ! खेतों में धान की बुआइ कटाइ करते समय भी गीत गाया जाता था  और गाय बैलों को चारा चराते जंगल में चरवाहे बंसी बजाते थे ! आज तो गाँव को भी नए ज़माने की हवा लग गई है सब कुछ आधूनिक हुआ है वहाँ भी ..अब तो सब कुछ सपने जैसा लगता है !
हमारे मनीषियों ने भी नाद को जीवन का आधार माना है कुल मिलाकर सारा अस्तित्व ही अंतर्निहित संगीत से ही संचालित होता है ! ओशो कहते है "संगीत ध्यान का सुगमतम उपाय है ! जो संगीत में डूब सकते है उन्हें डूबने की और किसी दूसरी चीज को खोजने की कोई आवश्यकता नहीं है " !