बुधवार, 22 मई 2013

ताऊ डाट इन ...


ली तजु हु तजु के साथ पढाई कर रहा था ! हु तजु ने उससे कहा, "जब तुम पीछे रहना जानोगे तब मै तुम्हे सिखाना शुरू करूंगा कि कैसा आचरण हो !"
      "कृपा कर मुझे पीछे रहना सिखायें !"
"तुम्हारी छाया को देखो, और तुम समझ जाओगे !"
ली तजु ने पीछे मुड़कर अपनी छाया का निरिक्षण किया ! जब उसका शरीर झुका तब उसकी छाया 
तिरछी थी, जब उसका शरीर सीधा था, तब छाया सीधी थी ! तो झुकना या सीधे खड़े रहना शरीर पर निर्भर करता है न कि छाया पर ! और हम सक्रिय हो या निष्क्रिय यह दूसरों पर निर्भर करता है, न कि स्वयं पर !

"पीछे रहकर आगे रहने" का यही मतलब है !

कल ताओ पर बहुत सारी बोध कथाएं, हास्य कथाएं पढने का सौभग्य मिला उनमे से एक यह कहानी है ! जैसे "ताऊ डाट इन" पर इन दिनों मै बहुत सारी रचनाएँ पढ़ती रही मुझे इन दोनों में ताओवाद और ताऊवाद में बहुत सारी साम्यता दिखाई दी ! कैसे ? आईये जानते है !

ताओवाद चीन की बहुत बड़ी दार्शनिक परंपरा है ! ईसापूर्व तीसरी शताब्दि में ताओ दर्शन प्रौढ हुआ, और तभी से ताओ ग्रंथों में किसी "ली तजु" नाम के रहस्यदर्शी का उल्लेख मिलता है ! ली तजु की ऐतिहासिकता भी हमारे ताऊ डाट इन के रचयिता "ताऊ रामपुरिया" जी की तरह संदिग्ध दिखाई देती है कुछ सूत्रों के अनुसर ली तजु ईसापूर्व ६०० में हुआ और कुछ लोग कहते है ४०० में हुआ ! जो भी हो इनके नाम से जो रचनाएँ प्रचलित है वह कहानियों द्वारा किताब में संकलित है ! ताओ का मतलब होता है मार्ग, या यह कहे कि ऐसा नियम जिससे अस्तित्व की हर चीज संचालित होती है ! 

ताओवादी बनने  के लिए दार्शनिक होने की जरुरत नहीं है उसे बौद्दिक तर्क-वितर्क में पड़ने की भी जरुरत नहीं है वह लोगों को सूत्रों,कहानियों और कविताओं द्वारा मार्ग दर्शन करता है ! ली तजु का व्यक्तित्व उसकी जीवंत अदभुत हास्यपूर्ण कहानियों में मिलता है !

हमारी तरह पश्चिम के विद्वानों ने भी ली तजु के बारे जानने के लिए परेशान थे या उत्सुक थे ! जैसे हम ताऊ के बारे में जानने को उत्सुक रहते है, उन्हें लगा कि सचमुच ऐसा कोई व्यक्ति है भी या नहीं उन्होंने जानने की कड़ी मेहनत की  परन्तु अंत तक एक अनसुलझा रहस्य ही बना रहा !

हमारे ब्लॉग जगत में भी कबसे ताऊ रामपुरिया जी के बारे में जानना भी कुछ इसी प्रकार विवादास्पद रहा है और आज भी है ! यदि कोई मुझसे पूछे ताऊ कौन है ? यह मेरे लिए गैर जरुरी है लेकिन एक बात तय है जो भी दिमाग है इन रचनाओं के पीछे कमाल का है ! एक ऐसा दिमाग जो जीवन के अनुभवों को संपूर्णता में जीना जानता है अभिव्यक्त करना जानता है ! जिसके पास जीवन का बेहतरीन जीवन  दर्शन है जो पाठकों के मनपर पढने के बाद एक अमिट छाप छोड़ देता है ! 

सच में हम हँसना भूलते जा रहे है या ऐसा कुछ नहीं है हमारे आस पास जिससे हम हंस सके,हँसते भी है तो केवल लगता है औपचारिकता निभा रहे है ! ऐसे में आने वाले समय में भी "ताऊ डाट इन" पर ताऊ की रचनाएँ आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत काम आएगी  औषधि की तरह,पुराना उबाऊ लगता है मन को यहाँ तक की विचार भी, ऐसे में कुछ नया पढने जैसा लगा मुझे इन दिनों "ताऊ डाट इन" पर !

शुक्रवार, 10 मई 2013

आदम और हव्वा ...


सुना है कि, जब ईश्वर ने आदम और हव्वा को बनाया था तब वे दोनों ईडन के बगीचे में आनंद पूर्वक रहने लगे थे ! उन दोनों के अलावा उस बगीचे में दूसरा कोई भी नहीं था फिर भी आदम के आने में जरा भी देर हो जाती तो हव्वा एकदम परेशान हो जाती ! आदम से पूछती कि, इतनी देर कहाँ थे ? आने में देर क्यों हुई ? आदम बेचारा हव्वा के इन प्रश्नों से परेशान हो जाता लाख समझाता कि, अरे भई कहाँ जाउँगा तेरे सिवा मेरा कौन है इस बगीचे में ? जाऊंगा भी तो कहाँ जाऊंगा ! जरा बगीचे में टहल रहा था देखो मौसम कितना सुहाना है ...इसीलिए आने में देर हुई ! इसमें इतना बेचैन होने की क्या बात है ? लेकिन हव्वा को आदम की बातों पर विश्वास नहीं होता ! जब रात आदम सो जाता तो हव्वा उसकी पसलियां गिना करती क्योंकि, ईश्वर ने हव्वा को आदम की एक पसली से बनाया था .. ऐसा कहानी कहती है ! वह उसके पसलियों को गिनकर विश्वास करना चाहती कि, पूरी है या नहीं है ! कही एकाध पसली निकाल कर ईश्वर ने कही दूसरी स्त्री तो नहीं बना दी ? हव्वा रोज रात आदम की पसलियां गिनती जब पूरी पसलियां मिलती तभी संतुष्ट हो कर सो जाती ....फिर दुसरे दिन वही प्रश्न वही शक !

इस वैज्ञानिक युग में बहुत कुछ बदल गया है पर आधुनिक आदम और हव्वा के बीच कोई ज्यादा बदलाव नहीं आया है अविश्वास भरे वही प्रश्न वही शक ...इ मेल्स चेक करना, वालेट चेक करना, सेल फोन चेक करना इस प्रकार की कई सारी बाते कई बार आदम की आँखों में हव्वा के प्रति अवहेलना, माथे  पर सलवटे,स्वर में कड़वाहट भर देते है ! प्यार भरे मधुर रिश्ते विश्वास, प्रेम पर टिके होने चाहिए न की शक की बुनियाद पर ...ऐसी बाते कई बार रिश्तों में बहुत बड़ी  दुरिया बना देते है  दे रहे है ...जिन्दगी नरक बनती जा रही है ...होने तो चाहिए थे दोनों सबसे करीबी मित्र पर सबसे करीबी शत्रु बन बैठे है ! दुसरे से प्रेम करने से पहले सोचे आप खुद से कितना प्रेम करते है ? खुद पर कितना विश्वास करते है ? जब तक हम अपने आप से प्रेम नहीं करते दुसरे से कैसे कर पाएंगे ,,,,काश दोनों एक दुसरे की निजता का सम्मान करते ! हर रिश्ते में थोडा तो स्वतंत्रता का स्पेस होना चाहिए तभी रिश्ते फलते फूलते है ! लगता है आज भी कुछ नहीं बदला है ...कही ईश्वर के मना करने के बावजूद  "ज्ञान के वृक्ष" का फल खाने का नतीजा तो नहीं है यह ?

शनिवार, 4 मई 2013

सुखी परिवार ....



ये है हमारा
छोटा सूखी घर 
"स्वीट होम" 
लिखा है 
दरवाजे पर 
एक लैपटाप पर 
ब्लोगिंग करती है 
मम्मी 
दुसरे लैपटाप पर 
पापा 
अक्सर हम 
चारो मिलकर
अपने-अपने 
लैपटाप पर
आपस में    
करते है चैटिंग 
फेस बुक पर ...!!