शनिवार, 29 मार्च 2014

एक अप्रैल याने की मूर्ख दिवस …

एक अप्रैल हर साल मूर्ख दिवस के रूप में मनाया जाता है ! यूँ तो एक अप्रैल याने की मूर्ख दिवस पश्चिम देशों का त्यौहार है लेकिन अब तो भारत ही नहीं पूरी दुनिया ने इस त्यौहार को दिल से अपना लिया है ! ओशो प्रेमी इस दिन को मुल्ला नसरुद्दीन दिवस के रूप में मनाते है और मुल्ला नसरुद्दीन के चुटकुलों का भरपूर स्वाद लेते है सबका मनोरंजन करते है ! मूर्ख दिवस के अलग-अलग देशों में अलग अलग मान्यताएं, किस्से, कहानियाँ प्रचलित है लेकिन हमारे यहाँ तो रोज की पति-पत्नी की बाते हो या बच्चों की बाते या फिर नेताओं की बाते हो इन शुद्ध देसी दैनंदिन हास्य पूर्ण बातों  का एक अलग ही मजा अलग ही स्वाद होता है ! पति चाहे कितनी ही बड़ी  पोस्ट पर क्यों न हो दुनिया के लिए वह कितना ही बुद्धिमान क्यों न हो लेकिन हर पत्नी की नजर में तो उसका पति घर में मूर्ख, बेवकूफ ही बना रहता है ! और वह नाते रिश्तेदारों में, आस पड़ोस में, सखी सहेलियों में बतियाते एक भी ऐसा मौका नहीं गंवाती उसे मूर्ख साबित करने का ! बेचारा पति हमेशा चुप रहने में ही अपनी भलाई समझता है यह सोचकर कि कौन इस मूर्ख औरत के मुँह लगे ! इसी तरह एक दूसरे को मूर्ख समझने में साबित करने में ही उम्र तमाम बीत जाती है !  

बड़े तो बड़े हमारे बच्चे भी कुछ कम नहीं होते, अभी कल की ही बात है मै अपनी सहेली के साथ उसके घर पर शाम की चाय के साथ गप-शप कर रही थी , पास में उसकी बहु अपने बेटे बंटी को हिंदी का गृह कार्य करा रही थी बंटी की मम्मी ने कहा "बेटे शेर और बिल्ली का वाक्य में प्रयोग करो तो " आपको पता है बंटी ने क्या लिखा उसकी कॉपी में  ?… "पापा जब ऑफिस से घर आते है तो बिलकुल शेर की तरह आते है और घर में बिल्ली की तरह प्रवेश करते है " अब क्या बताएं हंस हंस कर मेरा तो बुरा हाल हुआ था !   

राजनीति में तो आजकल होड़ सी लगी है जनता को मूर्ख बनाने की, हर कोई नेता एक दूसरे को मूर्ख बता कर जनता को कैसे मूर्ख बनायें वोट कैसे बटोरे कुर्सी तक कैसे पहुंचे यही सोच कर कोई मुफ्त की चाय पिला रहा है कोई भाषण पिला रहा है मकसद सिर्फ सेवा की आड़ में मेवा खाना और क्या ! एक नेता चुनावी सभा में जनता को समझा रहे थे ! लेकिन जनता ने बड़ी हुड़दंड मचाई हुई थी हो-हल्ला होने लगा ! नेताजी ने नाराज हो कर गुस्से से कहा  … "लगता है इस सभा में सारे मूर्ख गधे इकट्ठे हो गए है ! क्या अच्छा नहीं होगा कि एक बार में एक ही बोले ?? तभी सभा में से किसी व्यक्ति की आवाज आयी "ठीक है तब आप ही शुरू कीजिये !   

मूर्ख दिवस की एक यह भी विशेषता होती है की इस दिन मूर्ख से मूर्ख भी रसिक बनकर जीवन का रस लेने लगता है हंसना हंसाना एकमेव उद्देश होता है न की किसी के मन को ठेस पहुँचाना ! अब चारो ओर से मूर्खों से घिरा कोई खुद को बड़ा बुद्धिमान समझता हो तो उससे बड़ा मूर्ख और कोई हो सकता है क्या, नहीं न ??

गुरुवार, 13 मार्च 2014

सभी मित्रों को होली की हार्दिक शुभकामनायें ..

हर साल की तरह मौज,मस्ती,रंग,तरंग लिए होली हमारे द्वार पर दस्तक दे रही है ! सर्द हवाओं की सिहरन सूरज की तप्त होती किरणों से जैसे बौखलाई सी लगने लगी है और पहाड़ों के आँचल में छुपने का प्रयास कर रही है ! वन, उपवन, बाग़-बगीचों में कोयल की मीठी कुहू-कुहू सुनायी देने लगी है ! आम्र वृक्षों पर बौराई मंजरियों की सुगंध, कच्चे कैरियों की महक से हवाओं में अनोखी खुशबु भर रही है ! इस मौसम में गाँव में दूर-दूर तक पियराये सरसों के पीले खेत,गेहूं की लहलहाती फसले दिखायी देने लगती है ! अगर इस मौसम का लुत्फ़ उठाना है तो हमारे गाँव आना होगा, शहर में ऐसे नज़ारे कहाँ  ?? खैर सर्द मौसम की विदाई और ग्रीष्म का आगमन हम सबके मन को भाने लगता है ! बदलते मौसम के साथ, बदलते रंगों के साथ हमारे चारो और जीवन का नव विकास दिखायी देने लगता है ! रूटीन जीवन मनुष्य के मन को नीरस बना देता है रोज वही सब काम करो कितना बोरिंग लगता है न ? जिससे मनुष्य एक मशीन की तरह हो जाता है मानसिक तनाव से भर जाता है ! शायद इन्ही सब बातों को ध्यान में रखकर हमारे त्यौहार बने होंगे ताकि मनुष्य अपनों के साथ कुछ पल बैठकर हंस बोल सके नाच गा सके, होली ऐसा ही एक त्यौहार है जिसमे रंग है मस्ती है हास परिहास है ! लेकिन कुछ लोग इस मनभावन उत्सव को भी हानिकारक रंग लगाने कीचड़ फेंकने का उत्सव बना देते है ! बुरा न मानो होली है कहकर दिल खोलकर गंदी-गंदी गालियां बक देते है और इसको कहते है होली !  बाहर के त्यौहार बाहर के रंग सब संकेत है हमारे भीतर मुड़ने के लिए, देखिये न संत गुलाल क्या खूब कहते है इन पंक्तियों को पढ़कर हमें भी असली होली की याद आ ही जाती है   … 

                      सतगुरु घर पर परलि धमारी, होरिया मै खेलौंगी !
                      जूथ जूथ सखियां सब निकरि, परलि ज्ञान कै मारी !
                      अपने प्रिय संग होरी खेलौं, लोग देत सब गारी !
                      अब खेलौं मन महामगन हुवै, छूटलि लाज हमारी !
                      सत् सुकृत सौ होरी खेलौं, संतन की  बलिहारी  !
                      कह गुलाल प्रिय होरी खेलौं, हम कुलवंती नारी !!

                     

शुक्रवार, 7 मार्च 2014

वह नारी है ....

न दीन है 
न हीन है 
है भिन्न 
न कमतर है 
जो हर घर-घर की धुरी है 
वह नारी है   .... 

बेटी है 
बहन है 
पत्नी है 
माँ है 
जो नहीं किसी की परछाई है 
वह नारी है    …. 

सुशिल है 
सुकोमल है 
सहनशील है 
ह्रदय है 
जो हर रिश्ते पर वारी है 
वह नारी है   .... 

आत्मविश्वासु है 
दृढ़निश्चयी है 
आत्मनिर्भर है 
स्वयंसिद्ध निरंतर 
जो प्रगतिपथ पर अग्रसर है 
वह नारी है  .... 

ओज है 
सोज है  
सरोज है 
काव्यमय 
जो अपने अस्तित्व की खोज में है 
वह नारी है 
वही क्रांति है    .... !!

( सभी महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की 
हार्दिक शुभकामनायेँ )