रविवार, 29 जनवरी 2012

"फील गुड"


२४ जनवरी की सुबह गाँव से बड़े भाई साहब ( जेठ जी ) का फ़ोन आया था ! यह कहते हुये की, २६ जनवरी के दिन एक  छोटासा फॅमिली फंक्शन का आयोजन किया हुवा है ! इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिये उन्होंने हम सब को आदेशात्मक स्नेह भरा निमंत्रण दिया था ! और जोर देकर कहा की बच्चों को भी साथ लेकर आना ! इस बार तुम दोनों का कोई बहाना नहीं चलेगा ! उन्होंने अपना अंतिम निर्णय सुना दिया ! खैर बच्चों ने  अपनी-अपनी मज़बूरी बताकर गाँव चलने से इनकार कर दिया ! पर मै बहुत खुश हुयी अपने ससुराल जाने के लिये ! मैंने सोचा ....चलो इसी बहाने थोडा चेन्ज हो जायेगा ! इनको भी अदालत की चार दिन की छुट्टियाँ थी ! चलो चलते है इन्होने भी खुश होते हुये कहा ! बहुत सालों के बाद मै अपने ससुराल जा रही थी ! गाँव में बहुत बड़ा परिवार है हमारा ! जमीन, जायजाद है ! बड़ी दीदी ( जिठानी ) मेरे लिये तो माँ समान है ! और बड़े भाई साहब पिता समान, भला उनका आदेश हम कैसे टाल पाते ? सो अगले दिन बड़े तडके हि, हम दोनों हैदराबाद से गाँव जाने के लिये लक्जरी बस से रवाना हो गए ! बहुत सारी पूरानी यादों को ताज़ा करते हुये, हंसी ख़ुशी करीब दोपहर के एक बजे स्टेशन पहुँच गए ! स्टेशन पर जीप हमारा इंतजार कर रही थी !
बड़े भाई, दीदी ने आगे बढ़कर प्यार से हमारा स्वागत किया ! हमने उनके पैर छुए तो दीदी ने मुझे प्यारसे गले लगा लिया ! इस कार्यक्रम में  हमारा सारा परिवार एकत्रित हुवा था ! गाना,बजाना खाने-पीने और गपशप में चार दिन कैसे बीत गए पता ह़ी न चला !

पता है गाँव में अब भी सर्दी अपने पुरे शबाब पर है ! सुबह-सुबह कोहरा गन्नों के खेतों पर सफ़ेद चादर सा फैल जाता है ! हमारे गाँव से होती हुई कल-कल बहती मांजरा नदी का दृष्य देखने लायक था ! इसी नदी का पानी हैदराबाद शहर को सप्लाई किया जाता है ! बहुत सारी मीठी यादों को ह्रदय में संजोकर लौटी हूँ !
 जब से गाँव से लौटी हूँ फिल गुड अनुभव कर रही हूँ ! कहते है की "फील गुड"  इस शब्द का जन्म राजदरबार में हुआ है ! जो भी हो मनुष्य के जीवन में सिर्फ जीना ह़ी काफी नहीं होता, तन को और मन को प्रसन्न रख्नने के लिये, थोडा रूटीन से हटकर बदले हुये  माहोल में साँस लेना भी उतना ह़ी जरुरी होता है !

सोमवार, 23 जनवरी 2012

Love and Life ............( sumit patil )

There's some part of me which probably holds me back when trying to write about Love . A feeling most people i am sure would feel . This is the "there's nothing called love" kind of feeling . I have been there , sometimes in someway even now the feeling does persist . But then i realize there's no life without love. I ask a simple question -can you live with hatred in your hearts ? Some might call it neutrality but i say you would still have to love being neutral .
    I have heard the phrase since school days that Love is Blind ! It is true but what amazes me is that there's a certain thrill and madness about going blind in Love . Maybe that is the fun . The fact that you could get lost in each others eyes and never wanting to blink is a true gesture of human emotions. But not everybody has the knack of expressing it . I believe that everybody wants to be loved and love their close ones with all their heart. But as i said not everybody can express it the right way and maybe the right way is the wrong way for the other person .
   And when both of them lay by their sides looking at the sky with stars twinkling in their eyes , there's no need for any verbal expression. The silence and the heart felt feeling conveys the message.
   One of the other things i feel is that Love as is Life needs to be earned and so it has its value and importance. And not always are you lucky to have loved the right person or thing . So your thirst for love always stays until you find it . I mention "a thing" in the previous line and why not? It can be a love for Astronomy or Physics or Music. And so there is Love and hence Life and if one hasn't felt the madness and the passion to pursue it , he hasn't lived . 

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

मन के किनारे .....


बहुत बार ऐसा होता है कि, नकारात्मक विचारों से भरा हमारा यह मन अक्सर जीवन में थोड़ी देर के लिये ही सही पर, काफी उथल-पुथल मचा देता है ! इससे मन तो विक्षुब्ध होता ही है इससे जीवन भी खासा प्रभावित होता  है !  ऐसे में मुझे यह कहानी बड़ी प्यारी लगती है !
बुद्ध जब वृद्ध हो गए थे, तब एक दोपहर एक वन में एक वृक्ष के निचे विश्राम करने रुक गए थे ! उन्हें प्यास लगी थी ! आनंद पानी लाने पास के पहाड़ी झरने पर गए ! पर झरने में से अभी-अभी गाड़ियां गुजरी थी ! इसलिए झरने का सारा पानी गन्दा हो गया था ! कीचड़ ही कीचड़ और सड़े पत्ते पानी पर उभर आये थे ! आनंद उस झरने का पानी लिये बिना ही वापस लौट आये थे ! उन्होंने  बुद्ध से कहा "झरने का पानी निर्मल नहीं है, मै पीछे लौटकर नदी से पानी ले आता हूँ!" नदी बहुत दूर थी ! बुद्ध ने उसी झरने का पानी लाने वापस लौटा दिया ! आनंद थोड़ी देर में फिर खाली लौट आये थे ! वह पानी उन्हें लाने योग्य नहीं लगा ! पर बुद्ध ने इस बार भी लौटा दिया ! और तीसरी बार जब आनंद झरने पर पहुंचे  तो देखकर चकित रह गये, झरने का पानी अब बिलकुल निर्मल और शांत दिखाई दे रहा था ! सारी कीचड़ पानी के निचे बैठ गई थी ! जल निर्मल और साफ़-सुथरा पीने योग्य हो गया था ! 
 
हमारी चेतना रूपी झरने पर इसी प्रकार नकारात्मक विचारों क़ी गाड़ियां जब भी गुजरती है ! घबराने की या फिर किसी को दोष देने की जरुरत नहीं है ! बस थोड़ी देर धीरज और शांति के साथ मन के किनारे बैठने की जरुरत है !  नकारात्मक विचारों की कीचड़ अपने आप निचे बैठ जाती है! कभी यह प्रयोग कर के देखिये आप पायेंगे कि, मन अपने पूर्ववत स्वभाव में आ गया है ! मन से लड़ना नहीं सिर्फ मन के किनारे बैठकर थोड़ी देर प्रतीक्षा करना ! बिना प्रतिक्रिया के मन फिर से नया ताजा हो जाता है!

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

अमरबेल ....... ( लघु कथा )


गुलमोहर के पेड़ पर फैली एक अमरबेल थी ! वह फैलते-फैलते, बढ़ते-बढ़ते गुलमोहर के निर्देशों को मानते थक गयी थी! उसका मन परतंत्रता से उब गया था वह अब स्वतन्त्र होना चाहती थी! अपने भोजन पानी के लिये गुलमोहर पर आश्रित  नहीं रहना चाहती थी ! निरंतर गुलमोहर की अवहेलना से तंग आ कर उसने एक दिन विद्रोह कर दिया ! और जोर-जोर से चिल्लाई ताकि, सारा अस्तित्व सुनले ! "मैं अब तुम पर आश्रित हो कर नहीं बढूंगी, कभी नहीं बढूंगी सुना तुमने ?" "मत बढ़ो ! बढ़ने की क्या आवश्यकता है ? ना बढ़ने के श्रम में एक दिन मर जाओगी !" गुलमोहर ने गुस्से से कहा ! कुटिल मुस्कुराहट चेहरे पर लिये अमर बेल बहुत खुश हुई , आखिर उसका विद्रोह सफल जो होने जा रहा था !

         अमर बेल गुलमोहर के पेड़ पर फैलती गयी फैलती गयी धीरे-धीरे गुलमोहर को अपने गिरफ्त में लेने लगी ! गुलमोहर को मिलने वाला सारा प्राकृतिक पोषण अमर बेल अब खुद ग्रहण करने लगी ! बेचारा गुलमोहर!! जिसकी मज़बूत जड़े धरती की आगोश में समायी हुई थी दिन-ब-दिन गुलमोहर दीन-हीन लगने लगा था !  उसकी मुरझाई हुयी टहनियों को देखकर ऐसे लगने लगा जैसे अमर बेल की असहनीय पकड़न से आपने आप को छुड़ाने की नाकाम कोशीश करने लगा है ! 

गुरुवार, 5 जनवरी 2012

व्यस्त जीवन में स्वस्थ रहने की कला ......ध्यान !



तर्कों से गणित के प्रश्न सुलझाये जा सकते है ! किन्तु इधर कुछ वर्षों में जाना की, जीवन के कुछ प्रश्न तर्कों से सुलझाये नहीं जा सकते ! जितना हम इन्हें सुलझाने की कोशीश करते है, उतने ह़ी उलझते चले जाते है ! जब हमारे आशाओं के विपरीत परिणाम आने लगते है तो, मन तनाव से भर जाता है !डिप्रेशन का शिकार हो जाता है ! ऐसे में ध्यान एक ही उपाय है ! तनाव से मुक्त होने के लिये ! ध्यान शब्द का हम हमारे रोज के जीवन में कई बार प्रयोग करते है किन्तु, जिस ध्यान की मै यहाँ पर बात कर रही हूँ वह है मेडिटेशन ! ओशो ध्यान की इस प्रकार व्याख्या करते है ! "Meditation means put the mind aside and watch" यानी की हमारे विचारों को देखना, निरिक्षण करना, साक्षी होना इसका नाम ध्यान है ! जैसे ही हम इन विचारों के साक्षी (witness) होने लगते है तो धीरे-धीरे सारे विचार तिरोहित होने लगते है ! अंत में रह जाती है निर्विचार चेतना ! इस शुद्धतम अवस्था का नाम ही ध्यान है ! ध्यान कोई ज्ञान नहीं है जिसे पुस्तकों में खोजा जा सके, ध्यान कोई कर्म नहीं है जिसे करने से ध्यान प्राप्त किया जा सके लेकिन ध्यान को जो चेतना उपलब्ध हुयी है वह व्यक्ति कोई भी कर्म करे ध्यान बन जाता है ! साधारण भोजन बनाना हो या ऑफिस का काम हो ध्यान बन जाता है !

जिस प्रकार की आज हमारी भाग-दौड़ भरी तनावपूर्ण लाइफ स्टाइल है , जिस प्रकार से हम मशीनों से घिरते जा रहे है, ज़ाहिर सी बात है तनाव तो होगा ही ! इसका स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ेगा ! इन सबके साथ रह कर भी मन को तनाव-मुक्त (relax) ध्यान से किया जा सकता है ! सहज सरल आनंद पूर्ण जीवन जीने की कला का नाम ही ध्यान है ! ध्यान को समझाना जितना कठिन है करना उतना ही सरल है ! व्यस्त जीवन में स्वस्थ रहने का बस यही एक उपाय है !