मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

पति-पत्नी के रिश्ते को सृजनात्मक बनाएं …

खलील जिब्रान की एक प्यारी सी कहानी है   …  एक गाँव में दो सहेलियां रहती थी ! उनमे से एक शहर में आकर वहीँ बस गई ! वह जात से मालिन थी वही के एक माली से शादी कर ली और शहर में राजी ख़ुशी से रहने लगी ! उसके पास फूलों की बहुत सुन्दर बगिया थी भिन्न-भिन्न प्रकार के सुन्दर फूल थे बगिया में ! मालिन बहुत गरीब थी फिर भी शहर में फूलों को बेचकर दोनों पति-पत्नी का गुजारा हो ही जाता था !

एक दिन अचानक उसके गाँव की सहेली बाजार में मिल गई ! दोनों बचपन की सहेलियां थी, गले मिलकर बड़ी प्रसन्न हुई ! दूसरी जो मछुआरन थी मछलियां बेचने शहर आयी हुयी थी , मछलियां बेचकर साँझ गांव लौटना था उसको, पर अचानक बचपन की सहेली मिल गई और उसने कहा आज यही मेरे घर ठहर जा कल चली जाना गाँव ! अपनी प्यारी सहेली की बात मानकर वह उस रात उसके घर मेहमान बन गयी, गरीब मालिन उसके पास सुन्दर सुन्दर खुशबूदार फूलों के अतरिक्त कुछ ज्यादा नहीं था, सो उसने अपनी सहेली के स्वागत में आसपास मोगरे के, गुलाब के, चमेली के फूल लाकर रख दिए ! और दोनों खाना खाने के बाद देर रात तक बाते करती रही ! मछुआरन को नींद नहीं आ रही थी ! वह इधर से उधर, उधर से इधर करवटे बदल रही थी ! यह देख मालिन ने पूछा क्यों नींद नहीं आ रही ? क्या कोई तकलीफ है तुम्हे ? उसने कहा हाँ तकलीफ तो है यह सारे तुम्हारे फूल यहाँ से हटा दो तभी मै चैन से सो सकुंगी ! इन फूलों की सुगंध मुझे असह्य हो रही है, मुझे रोज मछलियों की गंध में रहने की आदत पड़ गई है, ऐसा कर मैंने जो मछलियां बेचकर टोकरी लायी थी उसे मेरे पास ले आ उसमे जो कपड़ा पड़ा है उसपर थोडा पानी छिड़क दे ताकि, मछलियों की गंध आती रहे और मै आराम से सो सकूँ ! मालिन ने ऐसा ही किया तब जाकर वह मछुआरन सो गयी !

किसी को फूलों की गंध पसंद है तो किसी को मछलियों की, अर्थात इस कहानी का यही मतलब है कि हर मनुष्य अपनी अपनी आदत से स्वभाव से मजबूर है ! चाहे दोस्ती का रिश्ता हो चाहे पति-पत्नी का रिश्ता हो ! एक दूसरे के इस प्रकार के स्वभाव को स्वीकार करना ही समझदारी है ! वर्ना घर में रोज-रोज कलह क्लेश होते ही रहेंगे ! कई बार छोटे-छोटे दिखने वाले कलह क्लेश भी उग्र रूप धारण कर लेते है ! जैसे कि आजकल ऋतिक रोशन सुजान के सेपरेशन की चर्चा जोरों पर है ! हर मनुष्य अपने अपने हिसाब से तर्क दे रहा है ! कितना ही बड़ा सुपर स्टार क्यों न हो है तो आखिर हमारी तरह इंसान ही न ! हमेशा पति-पत्नी के रोज-रोज के इन झगड़ों,क्रोध,वैमनस्य,द्वेष,घृणा का अंत आखिर एक दिन तलाक तक पहुंचा ही देता है !
आपने देखा होगा पौधों में एक निश्चित दुरी हो तभी वे जमीन में पनपते है बढ़ते है वर्ना मर जाते है ! आकाश में तारों को देखिये वे भी एक निश्चित दुरी बनाकर चलते है ! मान लीजिये तारे भी एक दूसरे पर हावी हो जाने की कोशिश भी करते तो सब कुछ तहस नहस हो जाता, लेकिन कभी ऐसा होता नहीं सारी प्रकृति एक सूत्र से एक निश्चित नियम बनाकर चलती है आदमी को छोड़कर ! पति-पत्नी के रिश्तों में भी स्पेस चाहिए अपनी-अपनी निजता का स्पेस, तभी यह रिश्ते भी प्रेम की जमीन में पनपते है, मधुर बने रहते है वर्ना सालों से चला आ रहा रिश्ता भी एक दिन बोझ बन जाता है मामला तलाक तक पहुँच जाता है ! इसके पहले कि, यह रिश्ता बोझ बनकर बिखर जाय, पति-पत्नी के मधुर संबंध को सृजनात्मक बनाये !
अरेंज मैरेज हो चाहे लव मैरेज हो ठीक से अवलोकन करे तो आज दुनिया में दांपत्य जीवन नरक जैसा बन गया है ! कारण क्या है ? शायद अनंत अपेक्षाए, कभी तृप्त न होनेवाली मांग, क्योंकि हर कोई प्रेम मांगता है अटेंशन मांगता है लेकिन देना कोई नहीं जानता है ! काश , कोई यह क्यों नहीं जानता प्रेम दिया जाता है मांगा नहीं जाता ! सारे झगड़े फसादों के पीछे बुनियादी 
कारण मुझे तो यही लगते है .. आपको क्या लगता है ?? 

बुधवार, 4 दिसंबर 2013

एक यादगार सफर …


तेईस नवम्बर को दिल्ली में हमारे कलीग कम करीबी मित्र के बेटे की शादी थी ! इस शादी में हैदराबाद से तक़रीबन हम बीस लोग शामिल हुए थे ! सभी वकील मित्र अपने अपने परिवार के साथ आये हुए थे ! दिल्ली के बेहतरीन होटेल "शांति पैलेस" में हम सबके रहने का इंतजाम किया गया था ! शादी अटेंड करके दूसरे दिन कुछ मित्र वापिस हैदराबाद चले गए ! बाकि के हम चौदह लोग वहाँ से जयपुर, फतेहपुर, आगरा, मथुरा देखने के लिए रवाना हो गए ! प्लान के हिसाब से कुछ खट्टी मीठी यादों के साथ कुल मिलाकर एक बढ़िया सफर रहा ! अभी कुछ दिन पहले ही इस सफर से लौटी हूँ !
हैदराबाद का लड़का दिल्ली की लड़की दोनों बेंगलोर में पढते थे ! दोनों बच्चे डॉक्टर है, पढाई के दौरान दोनों में मित्रता हुयी, मित्रता प्रेम में और फिर दोनों परिवारों की रजामंदी से हुआ प्रेम विवाह ! मुझे लगा मित्रता एक विशेष संबंध है जिसमे जाती-पाती, धर्म, समाज के कोई कायदे कानून मायने नहीं रखते प्रेम ही सब कुछ हो जाता है, प्रेम सारी रुकावटों को पार कर देता है ! मित्रता से ऊँचा रिश्ता और कोई नहीं हो सकता बशर्ते की इस रिश्ते में ईर्ष्या, जलन, एकाधिकार की भावना, झगड़े, अपने प्रिय को खोने का डर न हो तो, नहीं तो यह रिश्ता भी अन्य रिश्तों की तरह एक बंधन बन सकता है !
इस प्रवास के दौरान ट्रेन में मै एक पत्रिका पढ़ रही थी ! एक लेख में बड़ा ही अनोखा शब्द पढने को मिला "Synchronicity" तब तो मेरे पास इसे जानने के लिए कोई साधन नहीं था ! अभी गूगल पर सर्च किया तो पता चला इस शब्द के कई सारे अर्थ निकलते है याने की यह बहुआयामी शब्द है ! इस शब्द का प्रयोग Swiss Psychologist Carl Gustav Jung ने किया है ! किसी अन्य भाषा में इसका उल्लेख नहीं है बिलकुल नया शब्द है सिन्क्रॉनसीटी ! इसका अर्थ जो क़ि मुझे बहुत पसंद आया … " एक खास प्रकार की लयबद्धता जिसको कहते है मित्रता, जिसको कहते है प्रेम, दो व्यक्तियों का संयोगवश मिल जाना, दो व्यक्तियों के एक जैसे विचारों का मिलना, दो हृदयों का अकारण एक साथ धड़कना " !
कितना मजेदार संयोग है न एक जैसे व्यक्तित्व के दो व्यक्तियों का मिलना,मित्रता होना प्रेम होना फिर दोनों शादी के अटूट बंधन में बंध जाना  ! प्रेम विवाह 
एक खास किस्म का मेल मिलाप जिससे सारा उलझा हुआ पजल अचानक हल होने लगता है !