खलील जिब्रान की एक प्यारी सी कहानी है … एक गाँव में दो सहेलियां रहती थी ! उनमे से एक शहर में आकर वहीँ बस गई ! वह जात से मालिन थी वही के एक माली से शादी कर ली और शहर में राजी ख़ुशी से रहने लगी ! उसके पास फूलों की बहुत सुन्दर बगिया थी भिन्न-भिन्न प्रकार के सुन्दर फूल थे बगिया में ! मालिन बहुत गरीब थी फिर भी शहर में फूलों को बेचकर दोनों पति-पत्नी का गुजारा हो ही जाता था !
एक दिन अचानक उसके गाँव की सहेली बाजार में मिल गई ! दोनों बचपन की सहेलियां थी, गले मिलकर बड़ी प्रसन्न हुई ! दूसरी जो मछुआरन थी मछलियां बेचने शहर आयी हुयी थी , मछलियां बेचकर साँझ गांव लौटना था उसको, पर अचानक बचपन की सहेली मिल गई और उसने कहा आज यही मेरे घर ठहर जा कल चली जाना गाँव ! अपनी प्यारी सहेली की बात मानकर वह उस रात उसके घर मेहमान बन गयी, गरीब मालिन उसके पास सुन्दर सुन्दर खुशबूदार फूलों के अतरिक्त कुछ ज्यादा नहीं था, सो उसने अपनी सहेली के स्वागत में आसपास मोगरे के, गुलाब के, चमेली के फूल लाकर रख दिए ! और दोनों खाना खाने के बाद देर रात तक बाते करती रही ! मछुआरन को नींद नहीं आ रही थी ! वह इधर से उधर, उधर से इधर करवटे बदल रही थी ! यह देख मालिन ने पूछा क्यों नींद नहीं आ रही ? क्या कोई तकलीफ है तुम्हे ? उसने कहा हाँ तकलीफ तो है यह सारे तुम्हारे फूल यहाँ से हटा दो तभी मै चैन से सो सकुंगी ! इन फूलों की सुगंध मुझे असह्य हो रही है, मुझे रोज मछलियों की गंध में रहने की आदत पड़ गई है, ऐसा कर मैंने जो मछलियां बेचकर टोकरी लायी थी उसे मेरे पास ले आ उसमे जो कपड़ा पड़ा है उसपर थोडा पानी छिड़क दे ताकि, मछलियों की गंध आती रहे और मै आराम से सो सकूँ ! मालिन ने ऐसा ही किया तब जाकर वह मछुआरन सो गयी !
किसी को फूलों की गंध पसंद है तो किसी को मछलियों की, अर्थात इस कहानी का यही मतलब है कि हर मनुष्य अपनी अपनी आदत से स्वभाव से मजबूर है ! चाहे दोस्ती का रिश्ता हो चाहे पति-पत्नी का रिश्ता हो ! एक दूसरे के इस प्रकार के स्वभाव को स्वीकार करना ही समझदारी है ! वर्ना घर में रोज-रोज कलह क्लेश होते ही रहेंगे ! कई बार छोटे-छोटे दिखने वाले कलह क्लेश भी उग्र रूप धारण कर लेते है ! जैसे कि आजकल ऋतिक रोशन सुजान के सेपरेशन की चर्चा जोरों पर है ! हर मनुष्य अपने अपने हिसाब से तर्क दे रहा है ! कितना ही बड़ा सुपर स्टार क्यों न हो है तो आखिर हमारी तरह इंसान ही न ! हमेशा पति-पत्नी के रोज-रोज के इन झगड़ों,क्रोध,वैमनस्य,द्वेष,घृणा का अंत आखिर एक दिन तलाक तक पहुंचा ही देता है !
आपने देखा होगा पौधों में एक निश्चित दुरी हो तभी वे जमीन में पनपते है बढ़ते है वर्ना मर जाते है ! आकाश में तारों को देखिये वे भी एक निश्चित दुरी बनाकर चलते है ! मान लीजिये तारे भी एक दूसरे पर हावी हो जाने की कोशिश भी करते तो सब कुछ तहस नहस हो जाता, लेकिन कभी ऐसा होता नहीं सारी प्रकृति एक सूत्र से एक निश्चित नियम बनाकर चलती है आदमी को छोड़कर ! पति-पत्नी के रिश्तों में भी स्पेस चाहिए अपनी-अपनी निजता का स्पेस, तभी यह रिश्ते भी प्रेम की जमीन में पनपते है, मधुर बने रहते है वर्ना सालों से चला आ रहा रिश्ता भी एक दिन बोझ बन जाता है मामला तलाक तक पहुँच जाता है ! इसके पहले कि, यह रिश्ता बोझ बनकर बिखर जाय, पति-पत्नी के मधुर संबंध को सृजनात्मक बनाये !
अरेंज मैरेज हो चाहे लव मैरेज हो ठीक से अवलोकन करे तो आज दुनिया में दांपत्य जीवन नरक जैसा बन गया है ! कारण क्या है ? शायद अनंत अपेक्षाए, कभी तृप्त न होनेवाली मांग, क्योंकि हर कोई प्रेम मांगता है अटेंशन मांगता है लेकिन देना कोई नहीं जानता है ! काश , कोई यह क्यों नहीं जानता प्रेम दिया जाता है मांगा नहीं जाता ! सारे झगड़े फसादों के पीछे बुनियादी
कारण मुझे तो यही लगते है .. आपको क्या लगता है ??
sahi kha hai
जवाब देंहटाएंसटीक सुझाव और अर्थपूर्ण उदहारण साझा किये .....
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा दी......
जवाब देंहटाएंएक वाजिब स्पेस बहुत ज़रूरी है.....न कम न ज्यादा.....
और अपेक्षाएं तो मार डालती हैं रिश्तों को...मगर बिना डिमांड के देना आना भी रिश्ते के निबाह की ज़रूरी शर्त है.....
बहुत बढ़िया पोस्ट...
सादर
अनु
जो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार करना मधुर रिश्ते को मजबूत बनता है !यदि पति पत्नी में किसी बदलना है तो आपसी सहमती से होना चाहिए उसके लिए उसे निजी स्पेस की जरुरत हो सकती है ,उसे स्वीकार होना चाहिए !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य (भाग १)
नई पोस्ट चंदा मामा
बनता --"बनाता" पढ़ें
हटाएंकिसी को --पढ़े
:) अपने लिये जिये तो क्या जिये !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पोस्ट.
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जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19-12-2013 को चर्चा मंच पर टेस्ट - दिल्ली और जोहांसबर्ग का ( चर्चा - 1466 ) में दिया गया है
कृपया पधारें
आभार
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अनंत अपेक्षाए,
कभी तृप्त न होनेवाली मांग,
हर कोई अटेंशन मांगता है लेकिन देना कोई नहीं जानता
हां मनमुटाव और दूरियों के पीछे ऐसे कारण होते हैं…!
आदरणीया सुमन जी
उपयोगी लेख है...
सुंदर गृहस्थी के लिए सुंदर सीख !
श्रेष्ठ सृजन हेतु बधाई और शुभकामनाएं !
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
पता नहीं सही उत्तर क्या है.जिस ग्रामीण परिवेश का मैं हूँ वहां 'स्पेस' लेने-देने के लिए विशेष चिंतन नहीं करना होता है. जीवन शैली ही कुछ ऐसी है की अपने आप सबको स्पेस मिल जाता है. पश्चिम की सभ्यता में आपस में स्पेस देकर परिवार और दाम्पत्य जीवन की सफलता में इजाफा तो नहीं ही हुआ. कैफ़ी साहब ने मशहूर नज़्म 'औरत' में 'स्पेस' को ख़त्म करते हुए कहा है (हालाँकि वह दूसरे परिप्रेक्ष्य में कहा गया है ) ..'उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना ही तुझे'...प्रेम मजबूत हो कुछ इस तरह तो फिर क्या :)
जवाब देंहटाएंजैसे जैसे सभ्यता विकसित होती गई नयी-नयी बिमारियों ने जन्म लेना शुरू किया है,
हटाएंस्पेस यह नयी सभ्यता को लगा हुआ महारोग है, हमारे गाँव अभी भी अछुते है इस रोग से !
स्पेस का मतलब मेरे लिए विचारों की स्वतंत्रता से है !
ध्यान रहे कि, स्वतंत्रता का मतलब स्वच्छंदता नहीं है !
हटाएंदेना लेना से परे भी है प्रेम करना ... जीवन प्रेम करते हुए बीत जाए इससे आगे क्या है ...
जवाब देंहटाएं@ एक दूसरे के इस प्रकार के स्वभाव को स्वीकार करना ही समझदारी है !
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ आपसे , मगर सब समझदार भी नहीं :)
अच्छी पोस्ट ।
जवाब देंहटाएंसामंजस्य के अभाव में प्रेमविवाह से भी प्रेम गायब हो जाता है , मगर आजकल यह सब कहना दकियानूसी समझ कर लोग जीवन स्वयं नरक बनाते हैं !
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख !