पेड़-पौधे जागे
सुबह-सुबह
फुरसत से
फुरसत में,
पंछियों ने मधुर
गीत गाये
सुबह-सुबह
फुरसत से
फुरसत में,
कलि-कुसुमों पर
भौरे इतराये
सुबह-सुबह
फुरसत से
फुरसत में,
आज तन-मन
व्यस्त है
जग के
कोलाहल में
मस्त नहीं है
कविता,
तू भी फुरसत
का तराना है
इसलिए,आज नहीं
कभी फुरसत से
फुरसत में
चली आना
चली आना
कोई मीठा
गीत सुनाने
आज फुरसत
नहीं है … !
आज फुरसत
नहीं है … !
यह सच है
साथ तुम्हारा
मन को भाता
साथ तुम्हारा
थकान मिटाता
किन्तु अक्सर
ऐसा क्यों नहीं
हो पाता … ??
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंनववर्ष शुभ हो मंगलमय हो !
दिल ढूंढता है फुर्सत के रात दिन.....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना ..
सादर
अनु
उसको भी तो चाहियें कुछ पल फुरसत के ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना ... नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...
सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ....नववर्ष की मंगलकामनाएं ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की शुभकामनाएँ !!
नई पोस्ट : नींद क्यों आती नहीं रात भर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...!
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनाए...!
RECENT POST -: नये साल का पहला दिन.
बरसों से नींद न आयी , जग की चिंता में
जवाब देंहटाएंतुम माँ बन मुझे सुलाओ तो,सो सकता हूँ
बहुत ही सारगर्भित रचना, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ
वाह...बहुत बढ़िया प्रस्तुति...आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो
मैं फुर्सत से आया और फुर्सत से पढ़ा. अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंकभी कभी कविता के यूँ ही अचानक आ जाने से ही अछे कविता बन जाती है और कभी तो मान मनोव्वल की बाद भी रूठना जारी रहता है :)
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