बुधवार, 1 जनवरी 2014

कभी फुरसत से फुरसत में आना … !

पेड़-पौधे जागे 
सुबह-सुबह 
फुरसत से 
फुरसत में, 
पंछियों ने मधुर 
गीत गाये 
सुबह-सुबह 
फुरसत से 
फुरसत में, 
कलि-कुसुमों पर 
भौरे इतराये 
सुबह-सुबह 
फुरसत से 
फुरसत में,
आज तन-मन 
व्यस्त है 
जग के 
कोलाहल में 
मस्त नहीं है 
कविता, 
तू भी फुरसत 
का तराना है 
इसलिए,आज नहीं 
कभी फुरसत से 
फुरसत में 
चली आना 
कोई मीठा 
गीत सुनाने
आज फुरसत 
नहीं है    … ! 
यह सच है 
साथ तुम्हारा 
मन को भाता 
साथ तुम्हारा 
थकान मिटाता 
किन्तु अक्सर 
ऐसा क्यों नहीं 
हो पाता    … ??

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर !
    नववर्ष शुभ हो मंगलमय हो !

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  2. दिल ढूंढता है फुर्सत के रात दिन.....
    बहुत बढ़िया रचना ..

    सादर
    अनु

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  3. उसको भी तो चाहियें कुछ पल फुरसत के ...
    बढ़िया रचना ... नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...

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  4. सुंदर रचना ....नववर्ष की मंगलकामनाएं ....

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...!
    नव वर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनाए...!
    RECENT POST -: नये साल का पहला दिन.

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  6. बरसों से नींद न आयी , जग की चिंता में
    तुम माँ बन मुझे सुलाओ तो,सो सकता हूँ

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  7. बहुत ही सारगर्भित रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  8. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.

    शुभकामनाएँ

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  9. वाह...बहुत बढ़िया प्रस्तुति...आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...

    नयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो

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  10. मैं फुर्सत से आया और फुर्सत से पढ़ा. अच्छा लगा.

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  11. कभी कभी कविता के यूँ ही अचानक आ जाने से ही अछे कविता बन जाती है और कभी तो मान मनोव्वल की बाद भी रूठना जारी रहता है :)

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