शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

उसे भुलाने के लिए ...


मैंने,
उसे भुलाने के लिए 
क्या कुछ नहीं किया 
गीत लिखने का लिया 
सहारा 
बार-बार शब्द बदले 
कई बार भाव बदले 
लेकिन लिखते-लिखते 
हर बार गीत उसीका 
निकला ....

फिर मैंने,
उसे भुलाने के लिए 
चित्रकारी का लिया 
सहारा 
बार-बार रंग बदले 
कई बार तुलिका बदली 
दिल के कैनवास पर 
रेखाएँ बनाते-बनाते 
हर बार चेहरा उसीका 
निकला ....

फिर मैंने,
उसे भुलाने के लिए 
ध्यान,योग साधन 
अपनाया 
सब राग रंग त्यागा 
बार-बार मुद्राएँ बदली 
कई बार आसन बदले 
ध्यान लगाते-लगाते 
अब क्या बताऊँ ?
वो ध्यान भी उसीका 
निकला ....

सब कुछ मुमकिन है 
दुनिया में लेकिन
कितना नामुमकिन है
मन के मीत को 
भुला पाना !

18 टिप्‍पणियां:

  1. ...बहुत ही सुन्दर रचना!...अपने आप में एक अनूठा विषय समेटे हुए है!..बार बार पढ़ी जा सकती है!

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  2. बहुत सुंदर .... जब मन मीट से मिला हो तो हर प्रयास में उसी का रूप दिखता है ।

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  3. बेटी दामिनी

    हम तुम्हें मरने ना देंगे
    जब तलक जिंदा कलम है

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  4. बहुत दिनों से, बोझिल है ,
    मन,कर्जा चढ़ा मानिनी का !
    चलते थे,भारी मन लेकर,
    मन में बोझ,संगिनी का !
    दारुण दुःख में साथ निभाएं,कहाँ आज हैं,ऐसे मीत !
    प्यार के करजे उतर न पायें ,खूब जानते मेरे गीत ! २५

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  5. बहुत सुन्दर। नव वर्ष-2013 की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ। मेरे नए पोस्ट पर आपके प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद।

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  6. कुछ चीजें कभी भुला पाना संभव नहीं है...
    सुंदर रचना।।।
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।।।

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  7. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना ।

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  8. दिन तीन सौ पैसठ साल के,
    यों ऐसे निकल गए,
    मुट्ठी में बंद कुछ रेत-कण,
    ज्यों कहीं फिसल गए।
    कुछ आनंद, उमंग,उल्लास तो
    कुछ आकुल,विकल गए।
    दिन तीन सौ पैसठ साल के,
    यों ऐसे निकल गए।।
    शुभकामनाये और मंगलमय नववर्ष की दुआ !
    इस उम्मीद और आशा के साथ कि

    ऐसा होवे नए साल में,
    मिले न काला कहीं दाल में,
    जंगलराज ख़त्म हो जाए,
    गद्हे न घूमें शेर खाल में।

    दीप प्रज्वलित हो बुद्धि-ज्ञान का,
    प्राबल्य विनाश हो अभिमान का,
    बैठा न हो उलूक डाल-ड़ाल में,
    ऐसा होवे नए साल में।

    Wishing you all a very Happy & Prosperous New Year.

    May the year ahead be filled Good Health, Happiness and Peace !!!

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  9. जो दिल में रहते हैं उन्हें भुला पाना आसान नहीं होता ....
    सुन्दर पंक्तियाँ ...
    आपको २०१३ की मंगल कामनाएं ...

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  10. फिर मैंने,
    उसे भुलाने के लिए
    ध्यान,योग साधन अपनाया
    सब राग रंग त्यागा
    बार-बार मुद्राएँ बदली
    कई बार आसन बदले
    ध्यान लगाते-लगाते
    अब क्या बताऊँ ?
    वो ध्यान भी उसीका
    निकला ....



    kyaa baat hai ...!!

    kaun hai wo ...???:))

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    1. हा ...हा ... यह बड़ी राज की बात पूछी है आपने पर बताने से रचना की खूबसूरती चली जाती है ...मजेदार है टिप्पणी आभार !

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  11. जिज्ञासा वही हरकीरत जी वाली थी पर जवाब तो आप दे ही चुकी हैं. बहुत ही बेहतरीन और सटीक संप्रेषण है, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  12. सब कुछ मुमकिन है
    दुनिया में लेकिन
    कितना नामुमुकिन है
    मन के मित को
    भुला पाना !

    इस स्टेंजा में "मित" की जगह शायद "मीत" होना था, देखियेगा.

    रामराम.

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