जिस तेज़ गति से दुनिया बदलती जा रही है उसी प्रकार हमारी जीवन शैली हमारा खान पान, रहन सहन जीने का अंदाज़ सब कुछ बदल गया है, उसी प्रकार आज़ादी के मायने भी बदल गए है! आज बच्चों को अगर हम आज़ादी के बारे में पूछेंगे तो उनका जवाब होगा- इधर उधर घूमना, देर रात तक टीवी देखना, फेसबुक पर घंटो लगे रहना, चाटिंग करते वक़्त पिज्जा, बर्गेर, चिप्स खाना कूल ड्रिंक्स पीना! जंक फ़ूड बच्चों का आज आम भोजन बन गया है! किसी भी बात में बड़ों की रोक टोक उन्हें पसंद नहीं! स्वछन्द जीवन जीने को वे अपनी आज़ादी समझने लगे है! टीनेज बच्चे शारीरिक मेहनत खेल कसरत से दूर होते जा रहे है! महा नगरों में बच्चों पर किये गए सर्वे बताते है कि अनेक बच्चे मोटापे का शिकार, ब्लड प्रेशर, दातों के रोगों से पीड़ित पाए गए है! बच्चों पर किया गए यहाँ सर्वे बताते है कि बच्चे चिड चिड़े, जिद्दी, आक्रामक होते जा रहे है! उनमे आत्मा विश्वास कि कमी पायी गयी है टीनेजर बच्चों में एक दुसरे का अनुकरण करने की होड़ सी लगी हुई है पब पार्टियों में जाना शराब पीना नशा करना इसी को वे आधुनिक ज़माने के मॉडर्न बच्चे समझने लगे है जीवन के प्रति उनका नजरिया एक दम बदल सा गया है अपनी इन महंगी आदतों को पूरा करने के लिए वे छोटे मोटे अपराध तक करने लगे है उनकी नज़र में मॉरल व्यालूस कोई मायने नहीं रखते माता पिता को यह समझ में नहीं आ रहा है की उनके बच्चे बड़े बड़े स्कूल कॉलेजों में महंगी फीज़ पर पढ़ कर भी बिगड़ क्यूँ रहे है ? आज बच्चे माँ बाप के बुढ़ापे का सहारा नहीं बल्कि सर दर्द बनते जा रहे है काम की व्यस्तता भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी घर की अनेक समस्याएं माता पिता को चाह कर भी अपने बच्चों को घर में स्नेह पूर्ण वातावरण साफ़ सूत्री ज़िन्दगी नहीं दे पा रहे है !
मेरा अपना मानना है कि आज़ादी का मतलब स्वछन्द जीवन नहीं बल्कि मर्यादित जीवन हो तभी हम दुनिया में कुछ हासिल कर पायेंगे वर्ना जिस प्रकार एक कटी पतंग डोर से कट कर निरूद्देश भटक जाती है उसी प्रकार हम भटक सकते है इसलिए एक कुशल पतंग बाज़ अपने पतंग को ज्यादा ढील नहीं देता और ज्यादा खींच कर नहीं रखता उसी प्रकार हम मर्यादा कि डोर से बंध कर ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है !
६४ वे स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर सबको बधाई देते हुए यही कहना चाहती हूँ की आज़ादी हमारे लिए बेश कीमती है उसे विद्वंस करने में नहीं सृजन करने में लगानी चाहिए !
प्रत्येक माता पिता से विनती करती हु की बच्चे परिवार का अभिन्न अंग है उनसे बढ़कर दुनिया में कोई सम्पदा नहीं अपने बच्चों को प्यार से अपने पन से समझने और समझाने की ज़िम्मेदारी सिर्फ आपकी है वर्ना हमारे बच्चे आज़ादी की नाम पर स्वछंदता के नाम पर जीवन की इन भूल भुलय्या गलियों में भटक सकते है !
While entirely agreeing with you and with due respects I say that today's elderly people are responsible for the mess. They failed to trim the generation to suite Indian culture.
जवाब देंहटाएंJai Shri Krishna