बुधवार, 17 अक्टूबर 2012

शत-शत दीप जलने दो ....


छलक-छलक आते है ये आँसू 
बिन बादल बरस जाते है ये आँसू 
इन बहते आँसुओं को मत रोको 
इन्हें बहने दो ...
इन आँसुओं के खारेपन में 
जीवन के अनंत दुःख धुल जाने दो !

खूब खिलते उद्यान महकाते 
इन खिलती हृदय कलियों को 
मत तोड़ो इन्हें खिलने दो ...
इन खिलते फूलों की खुशबू से 
जीवन की फुलवारी को 
सदा महकने दो !

केवल शब्द नहीं है ये 
भाव है मन के, इन भावों को 
सीमा में मत बाँधो, इन्हें 
मुक्त आकाश में उड़ने दो ..
इन भावों के मनमंदिर में 
शत-शत दीप जलने दो !


6 टिप्‍पणियां:

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  2. बहुत सुन्दर...
    फैला रहे उजास चहुँ ओर....
    मन रोशन हो...

    सादर
    अनु

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  3. भावों के बिना कैसा जीवन । आंसू, फूल और मन यही तो है जीवन । सुंदर प्रस्तुति सुमन जी ।

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  4. ये आंसू मेरे दिल की जुबान हैं .....

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