मंगलवार, 20 नवंबर 2012

यंत्रवत मनुष्य ...

यंत्रों के 
शहर में 
फल-फूल रही 
यंत्रों की माया 
लंबी चौड़ी सड़के 
सड़कों पर 
सुबह से शाम 
भागते दौड़ते 
यंत्रवत मनुष्य ....
  ***
धुवां ही धुवां 
काला कडूवा
धुवां शहर मे 
प्राण वायु  
की कमी 
हवा के
बदन में 
जैसे 
जहर घुला 
हुआ ....

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपने सही कहा,आज शहरो में मनुष्य यंत्रवत हो गया है,,,

    recent post...: अपने साये में जीने दो.

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  2. अब सब यंत्र ही बचा है .... सटीक अभिव्यक्ति

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  3. बेहद उम्दा सटीक रचना
    अरुन शर्मा - www.arunsblog.in

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  4. बहुत सही विश्लेषण आज की जिन्दगी और प्रदूषण गागर में सागर भर दिया सुमन जी बधाई

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  5. बहुत सही । हवा के बदन में जहर घुला है ।

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