बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

परंपराओं का अंधानुकरण कितना सही है ! ( स्मृति )


प्रतिदिन अपने चारो ओर विभिन्न तरह की घटनाएँ घटती रहती है ! कही अनुकूल तो कही प्रतिकूल ! हर पल घटती इन घटनाओं को देखते हुए ऐसा लगता है क़ि जीवन घटनाओं का क्रम मात्र है ! कोई इन घटनाओं का मूक अनुभव करता है तो कोई उन्हें रचनाओं के माध्यम से अभिव्यक्त करता है! ऐसी ही एक घटना का जिक्र मै यहाँ पर कर रही हूँ, जो मेरी स्मृति में बसी हुई है !
स्नेहा, मेरी अच्छी पड़ोसन होने के साथ-साथ अच्छी सहेली भी है ! मेरे और उसके बच्चे एक ही उम्र के होने के कारण अधिकतर इकट्ठे ही खाते-खेलते है ! हमारे पारिवारिक संबंध बहुत ही अच्छे और मधुर है ! स्नेहा स्वभाव से शालीन और सुशील है, पर थोड़ी अंधविश्वासी है ! बिना सोचे-समझे किसी भी बात को आंख मूंदकर मान लेती है ! उसके इस स्वभाव के कारण हम दोनों में कभी-कभी मीठी तकरार भी हो जाती है, किंतु उसका असर हमारी दोस्ती पर कभी नहीं पड़ा ! एक बार स्नेहा क़ी बहन सुनीता, जो अमेरिका में रहती है, अपने परिवार के साथ दिवाली क़ी छुट्टियाँ  मनाने भारत आयी ! बहन के आने क़ी ख़ुशी में स्नेहा के घर दिवाली का आनंद दुगुना हो गया ! दोनों बहने मिलकर खूब सारी तैयारियां करने लगी ! दिवाली का त्योहार आने में कुछ ही दिन बाकी थे ! सुबह से शाम तक खूब सारी शॉपिंग होती, फिर खरीदी गई चीजों पर चर्चा और साथ ही होती बच्चों क़ी मस्ती ! गहने,कपडे, मित्रों-रिश्तेदारों के लिये तोहफे आदि क़ी खरीददारी हो चुकी थी ! सिर्फ लॉकर से त्योहार पर पहनने के लिये स्नेहा के गहने लाने थे, सो वह काम भी हो गया! दिवाली के दिन सुबह से ही दोनों बहने विशेष पकवान बनाने व घर की सजावट में जुट गयी! शाम होते होते सारी तय्यरियाँ पूरी हो गयी ! सारा घर आंगन रोशनाई से भर गया! गली मोहल्ले में आतिशबाजी का शोर बढ़ने लगा! बच्चे बूढ़े बिना भेद-भाव के इसका मज़ा उड़ाने लगे ! फुलझड़ियों की चमक और पटाखों के शोर ने निराला समां बाँध दिया था! बड़ी ही धूम-धाम से लक्ष्मी जी की पूजा की गयी! पकवानों का स्वाद चखने के बाद बारी आई ताश खेलने की! देर रात तक ताश की बाजिया चलती रही! रात के तीन बज गए! स्नेहा के पति घर के दरवाजे व खिड़कियाँ बंद करने की सलाह दे कर अपने बिस्तर पर चले गए! किन्तु स्नेहा  ने यह कहते हुये उनकी बात का विरोध किया कि आज कि रात घर कि खिड़कियाँ व दरवाजे खुले रखने से लक्ष्मी जी घर में प्रवेश करती है! यदि यह सब बंद हो तो लक्ष्मी जी नाराज़ हो कर लौट जाती है! ताश खेलते-खेलते एक-एक करके न जाने सब लोग कब जाकर सो गए पता ही नहीं चला! सुबह दरवाजे के बाहर खड़ी कामवाली बाई ने आवाज़ दी तो आँख खुली! स्नेहा ने कमरे से बाहर जाकर देखा तो  आंख खुली कि खुली रह गयी! चोर सारा कीमती सामान, गहने आदि सब बटोर कर चम्पत हो गए थे! उसमे स्नेहा क़ी बहन का भी काफी सारा सामान था! शायद चोर- समाज में इस बात का विश्वास होगा कि अगर दिवाली के दिन अच्छा माल हाथ लगा तो  वर्ष भर सफलता मिलेगी! अंध विश्वास के चलते स्नेहा और उसके परिजनों को सिवाय पछतावे के कुछ नहीं मिला! त्योहार का सारा उत्साह व जोश तो काफूर हो गया!
इस वैज्ञानिक युग में भी परम्पराओं का अन्धानुकरण पागलपन ही है! परम्पराओं को ज़रूर निभाना चाहिए, किन्तु निश्चित सीमा तक ही! हमारा समाज कभी मानसिक व भौतिक रूप से इतना संपन्न रहा होगा कि किसी को दरवाजे लगाने और किसी को चोरी करने कि ज़रूरत ही रही नहीं होगी! आज चारो ओर भौतिक संपदाए तो बढ़ रही है पर आदमी तंग दिल होता जा रहा है! भौतिक संपदाए हमें आराम तो देती है पर वास्तविक रूप से मन को आनंद प्रदान नहीं कर सकती! वास्तविक आनंद तो एक दुसरे के प्रति प्रेम व सौहार्द्र से ही मिलता है क्योंकि प्रेम ही एक ऐसा सेतु है, जो एक को दुसरे से जोड़ता है! 
मिट्टी के दिये घर-आंगन को ही प्रकाशित करते है! किन्तु मन का अंधकार दूर करने के लिये हमें ज्ञान के प्रकाश क़ी छोटी- सी किरण क़ी ज़रूरत होती है, जिसका अनुसरण कर प्रकाश के स्त्रोत तक पहुंचा जा सकता है! और जीवन को आलोकित किया जा सकता है! तभी तो हम वास्तविक अर्थों में दिवाली मना सकेंगे! अज्ञान ही अंधकार है और ज्ञान ही प्रकाश !  आप सब क़ी दीवाली शुभ हो !

(हिंदी मिलाप पत्रिका में पुरस्कृत रचना!)   

11 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई अज्ञान ही अन्धकार है ....मगर समझ नहीं आता !
    आभार अच्छी रचना के लिए !

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  2. आपकी बातों से पूरी तरह सहमत
    अच्छा लेख, बधाई

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  3. किसी परम्परा की नींव भी सहजता से नहीं पड़ती। या तो उनका संबंध हमारी संस्कृति के मूल से होता है अथवा सदियों के अनुभव से। इतना ज़रूर है कि देश,काल और परिस्थिति के अनुसार, परम्पराओं के स्वरूप में आवश्यक परिवर्तन करने चाहिए और जो फिर भी निर्वाह योग्य न हों,उनका समाप्त हो जाना ही अच्छा!

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  4. बिलकुल सही लिखा है आपने .......कभी -कभी अन्धविश्वासी होना हमें कहीं का नहीं छोड़ता है

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  5. अज्ञान ही अंधकार है और ज्ञान ही प्रकाश ! आप क़ी भी दीवाली शुभ हो !

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  6. अरे आप जाग रहे हैं तभी तक तो लक्ष्मी जी आयेंगी । सो जाने पर दरवाजा खुला रखें या बंद उन्हें तो लौट ही जाना है । इस लेख से आशा है कई लोगों की आंखें खुल जायेंगी ।

    काफी भारी कीमत चुकानी पडी आपकी स्नेहा जी को इस अंधविश्वास की ।

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  7. बहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
    आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  8. रचना के प्रकाशन की बधाई. व्यावहारिक सुझाव दिए हैं आपने इस रचना के माध्यम से.

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  9. राह रौशन कर देने वाली पोस्‍ट.

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  10. बहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!

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