"Suman ji I am hesitant to write in Hindi because my spoken and written Hindi is not so "Shuddh" but I can read and understand every word you write ...and I can "feel'' the depth and beauty of your writings They resonate with my own feelings !"
सुधा जी,
आपकी जैसी प्यारी दोस्त और मेरी पोस्ट को पढकर गहराई से महसूस कर अपने दोस्तों के साथ शेअर करने वाली पाठक मुझे फेसबुक पर मिली है इससे ज्यादा एक रचनाकार के लिए ख़ुशी और क्या हो
सकती है ? शुद्ध हिंदी की फ़िक्र मत कीजिये ....भावनाएं अगर सुन्दर सरल हो तो भाषा कोई मायने नहीं रखती सरलता से पाठक के ह्रदय तक पहुँच ही जाती है बशर्ते कि, पाठक अपने ही विचारों से भरा हुआ न हो तो, मेरा पढाई का माध्यम मराठी है फिर भी हिंदी मुझे बहुत अच्छी लगती है बचपन से हिंदी जो पढ़ती आ रही हूँ ! बात तब की है जब मै मैट्रिक में पढ़ती थी ! कभी पढाई में मन ही नहीं लगा, क्लास में पिछली बेंच पर बैठकर रानू, गुलशन नंदा, कर्नल रंजित जैसे लेखकों के उपन्यास पढ़ना शौक ही नहीं पागलपन सवार था तब , नतीजा यह हुआ कि मैथ्स का एक सब्जेक्ट चला गया ! घर में सब नाराज हो गए परीक्षा में फेल होने से, पर मुझे कोई फरक नहीं पड़ा, तब लगता कि मैथ्स का जीवन में क्यों और कैसे जरुरत है ? आज सालों बाद ओशो को पढकर लगता है कि , तीन एम का "मैथ्स,म्यूजिक,मेडिटेशन इन तीनों का जीवन में बहुत बड़ा महत्व है" ! इस प्रकार से उपन्यास पढ़ते पढ़ते हिंदी पढ़ने की शुरुवात हुई थी ....तब सरकारी स्कुलों में टीचरों का ध्यान पिछली बेंच पर कम ही जाता था ...वैसे आज भी सरकारी स्कूलों में कुछ ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ है ! खैर कभी प्रशंसा पाने के लिए नहीं लिखा जब धंदा सबका (लेखन ) एक जैसा ब्लॉग जगत में हो तो प्रशंसा लेन देन तक ही सिमित हो जाती है, बहुत सुन्दर, बहुत बढ़िया, सुन्दर प्रस्तुती, इस प्रकार के वाक्य छोड़ दे तो एक अच्छा तथ्य परक प्रशंसक मिलना बहुत मुश्किल है ! जितना मुश्किल अच्छा प्रशंसक मिलना उतना ही एक तथ्यपरक आलोचक मिलना भी ! आलोचना मेरे मत से दो प्रकार से की जाती है एक प्रेम से दूसरी घृणा से, प्रेम से की गई आलोचना कई बार रचनाकार को और निखारती है किन्तु आलोचक कोई नहीं चाहता ! टिप्पणियाँ अक्सर भ्रम में डाल देती है कुछेक टिपण्णी छोड़ दे तो,..सो मै तो सबका सकारात्मक उपयोग करती हूँ ! बिना टिप्पणी किये भी ब्लॉग जगत में बहुत सारे लोगों को पढ़ती हूँ प्यार से !
शब्दों से खेलते खेलते अक्सर खेलना आ ही जाता है वो कहते है ना ..."practice makes man perfect" कई बार इस मुहावरे के बारे सोचते हूँ कि, सिर्फ man को परफेक्ट होने के लिए क्यों कहा गया होगा ? अंतर्मन से एक जवाब आता है वुमैन हमेशा ही परफेक्ट रही है पर उसको कभी साबित करने का मौका कभी किसी ने नहीं दिया, वैसे भी साबित भी किसको और क्यों करे ? अपने लिए लिखे सो लिखते रहिये ...मुझे भी कुछ खास लिखना नहीं आता लेकिन कोशिश जरुर करती हूँ ! विद्वान् होने का अहंकार छोड़ दे तो जीवन एक पाठशाला है जितना रोज सीखेंगे कम ही लगता है ! मेरे लिए हर मनुष्य एक तारा है कोई छोटा है न बड़ा, जो तारा पृथ्वी के जितने करीब है उतना चमकिला दिखाई देता है एक तारे के बारे समझना जितना मुश्किल है उतनाही एक व्यक्ति और उसके व्यक्तित्व को समझना ! अच्छा साहित्य आत्मा का भोजन है ओशो को छोड़कर कभी किसी साहित्यकार से ईर्ष्या नहीं हुई वे दुनिया के बढ़िया साहित्यकार है प्रेरणा उनसे ग्रहण करती हूँ किन्तु लिखने के बाद जब अपना लिखा हुआ पढ़ती हूँ तो लगता है बहुत बुरा लिखा ! लेकिन कभी कोई फ़िक्र नहीं करती लोग क्या समझेंगे ? भावनाओं को यदि शब्दों के सुन्दर पंख मिल जाय तो आकाश में उड़ने का आनंद ही कुछ और होता है यदि लक्ष्य उन रहस्यमय हिमाच्छादित पहाडी शिखरों को बनाया गया हो तो, कौन फ़िक्र करता है किसी भी बात की !
आभार ...
( जाते जाते यह बता दूं कि, Sudha Pemmaraju Rao एक संवेदनशील महिला है ! अमेरिका में रहती है अपने परिवार से बहुत प्रेम करती है ! बागवानी का शौक और अपने पेट्स से बहुत लगाव है ! फेसबुक पर सुन्दर सुन्दर पोस्ट शेअर करती है मेरी अच्छी दोस्त है )