मंगलवार, 29 जनवरी 2013

पंडित तोताराम ...


हमारे भारतीय परिवारों में पालतू पशु-पक्षी पालना आम बात है जैसे की कुत्ते, बिल्ली, तोता वगैरे-वगैरे .....! कई तोते अपनी मीठी आवाज में घर के सदस्यों के नाम पुकारना राम-राम बोलना, सीटी मारना जैसी आदाओं से हर किसी का ध्यान अपनी और खींच लेते है ! हाल ही में इसी सन्दर्भ में एक कहानी पढ़ने को मिली वैसे भी तोतों पर बहुत सारे किस्से प्रचलित है ......!"एक पंडित जी ने एक तोता पाला था, बड़ा धार्मिक तोता था हमेशा राम-राम जपता रहता ! वह भी अपने मालिक की तरह राम नाम की चदरिया ओढ़े रहता, बगल में माला लिए बैठे रहता ! दूर-दूर तक उस तोते की ख्याति थी ! एक दिन पंडित जी के पास एक बूढी महिला आयी उस तोते को देखने ! पंडित जी के तोते को राम-राम जपते देख बड़ी खुश हुई और उसने भी एक तोता ख़रीदा ! लेकिन उस महिला का तोता बड़ा नालायक निकला ! जब महिला उसे अच्छी-अच्छी बाते सिखाने की कोशिश करती वह गन्दी गालियाँ बकने लगता ! दरअसल वह तोता एक अफीमची के पास से ख़रीदा गया था ! बूढी महिला कहती कहो बेटा राम-राम तो वह कहता मै नहीं कहूँगा मै तो यही गालियाँ बकुंगा ...महिला परेशान यह कैसा तोता है ? पंडित जी से इस बारे में बात की पंडित जी ने कहा ...."तू ऐसा कर तेरे उस तोते को यहाँ ले आ ! दस पन्द्रह दिन मेरे तोते के सत्संग में सब ठीक हो जायेगा ! मेरा तोता बड़ा ही ज्ञानी,गुणी  है ""! बूढी महिला पंडित जी की बात सुन कर अपने तोते को ले आई दोनों को एक ही पिंजरे में बंद कर दिया ! सात-आठ दिन के बाद पंडित जी एकदम भागे हुए आये उस महिला के पास  ...बूढी महिला से कहा गुस्से में ..."ले जा अपना तोता अपने घर जबसे तेरा तोता आया है मेरे तोते ने राम-राम कहना ही बंद कर दिया है चदरिया फ़ेंक दी है माला फेक दी है ...आज सुबह मैंने उसे कहा कि, भाई, राम-राम क्यों नहीं कहता ? तो लगा गालियाँ देने ...मैंने कहा लेकिन अब तक तो तू राम नाम जपता था अब क्यों नहीं ? कहने लगा जिस (प्रेयसी ) के लिए जपता था वह बात तो पूरी हो गई अब कैसा जपना " ?

जब से आधुनिक मनुष्य का सुख आत्म केन्द्रित हुआ है तब से वह बिलकुल अकेला उदास .. और तनाव में जी रहा है ..इसी वजह से या तो मशीनों के साथ या पालतू प्राणियों के साथ रहने में ही सुखी सुरक्षित महसूस करने लगा है ! घर है परिवार है भीड़ है फिर भी कही न कही भीतर बिलकुल खालीपन है इसी खालीपन को भरने के सारे प्रयास करता हो क्या पता ?  पालतू प्राणी बहुत हद तक मनुष्य के अहंकार को तृप्ति देते है अपने स्वामी की आज्ञा पालन करके, प्रेम जताकर  ...ऊपर दी हुयी कहानी केवल अविश्सनीय हंसी के योग्य भले ही लगती हो ..लेकिन इस विडियो में डांस करते इस अनोखे तोते के बारे मे आपका
 क्या ख्याल है ?

शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

कैसे कोई पढ़े तुम्हारी इस रचना को ?
















                             
                             हे ईश्वर,
                             क्या तुम ही 
                             नित नवी कविता 
                             लिख देते हो 
                             सूरज के किरणों की 
                             कलम बना कर 
                             धरती के कागज पर 
                             रोज सुबह ?

                            पेड़-पौधों में 
                             पंछियों की मधुर 
                             कलरव में 
                             फूलों की लिपि में 
                             जीवन उत्सव के 
                             क्या तुम ही 
                             अर्थ नए
                             रच देते हो 
                             रोज सुबह ?

                              जिसके नैपथ्य में 
                              शब्द कम,गंधवान 
                              मौन अधिक 
                              भर देते हो 
                              कैसे कोई पढ़े 
                              तुम्हारी इस 
                               रचना को ....??

बुधवार, 16 जनवरी 2013

धर्म और विज्ञान !


मैंने सुना कि, एक गांव में दो मित्र रहा करते थे ! दोनों का स्वभाव बिलकुल भिन्न था  एक था आस्तिक और दूसरा था नास्तिक ! अक्सर दोनों में इसी बात पर बहस हो जाती और सारा गांव उनकी बहस बाजी से परेशान रहता ! दोनों बड़े विद्वान् तार्किक थे ! इनके तर्कों से तय कर पाना मुश्किल था कि कौन सही है कौन गलत ! तंग आकर गांववालों ने कहा आज ही फैसला हो जाना चाहिए कि, कौन सही है कौन गलत है ! नाहक हम लोगों को परेशानी उठानी पड़ रही है ! आखरी बार विवाद हुआ उस दिन दोनों में, सारा गांव इकठ्ठा हुआ देखने ! आस्तिक ने परमात्मा के लिए दलीले दी नास्तिक ने उसके विरोध में दलीले दी दोनों ने एक दुसरे के तर्कों का खंडन किया, दोनों ने अपना समर्थन किया ! दोनों बड़े पंडित थे ! एक से एक तर्क दोनों ने लोगों के सामने रखे ! और फिर रात होते होते कुछ ऐसा हुआ कि, जिसकी किसीने कल्पना नहीं की थी ! जो आस्तिक था वह नास्तिक हो गया, जो नास्तिक था वह आस्तिक हो गया ! विवाद का इस प्रकार अंत हुआ कि, दोनों एक दुसरे के तर्कों से राजी हो गए लेकिन गांववालों की परेशानी फिर भी कायम रही क्योंके, उस गाँव में फिर एक नास्तिक रहा फिर एक आस्तिक रहा जाहिर सी बात है गाँव की समस्या जैसे थी वैसे ही रही होगी !

आज देश में वही हो रहा है कभी उस गांव में हुआ था ! पूरब, पश्चिम दोनों संस्कृतियों में विवाद है कौनसी संस्कृति अच्छी कौनसी बुरी ..और समस्याये वही की वही ! पश्चिम  की संस्कृति विज्ञानं से हार रही है भौतिक सुखों से उब रही है ...छोटे-छोटे बच्चों के हाथों में जब खिलौनों की जगह पिस्तोल,गन आ जाते है तो चिंता का विषय है वहां भी ! पूरब की  संस्कृति धर्म से हार रही है क्योंकि पाखंड बढ़ा है ....इनकी आस्तिकता भी आज के दौर में सिवाय एक पाखंड के सिवा कुछ नहीं है, पूरब की संस्कृति, सभ्यता के लिए भी यह चिंता और चिंतन का विषय है ! इसी संदर्भ में कल अनुराग जी के ब्लॉग पर एक अच्छी पोस्ट पढ़ने को मिली निचे मेरी टिप्पणी उनके पोस्ट के सन्दर्भ में थी यहाँ पेस्ट कर रही हूँ  ताकि, आप सबको समझने में और अधिक आसानी होगी !

पूरब और पश्चिम की संस्कृति को मै इस प्रकार से देखती हूँ .....
"देश यदि शरीर है तो संस्कृति उस देश की आत्मा है ! पूरब  की संस्कृति से धर्म विकसित हुआ जिसने जन्म दिया आध्यात्म वाद  ( धर्म से मेरा मतलब संप्रदाय नहीं "मै कौन हूँ "इस तत्व को जानने का
 विज्ञान ) पश्चिम की संस्कृति से विज्ञान विकसित हुवा जिसने जन्म दिया भौतिक वाद, जिससे मनुष्य साधन संपन्न तो बहुत हुआ पर आत्मा के तल पर कोई विकास नहीं हुआ ! पूरब ने भौतिक सुखों को अनदेखा किया आत्मा को ही सर्वोपरि माना, पश्चिम ने आत्मा को अनदेखा किया भौतिक सुखों को ही सर्वोपरि माना  इसीकारण आज हम देखते है दोनों संस्कृतियों में एक दुसरे के प्रति निंदा का भाव भी है आकर्षण भी है ! आज के दौर में दोनों एक दुसरे के विपरीत दिशा में लौट रही है! हमारे ही शहर में आज हर घर में कमसे कम एक व्यक्ति अमेरिका में है ! डॉलर्स का नाम सुनते ही भारतीयों के मुह से लार टपकती है ! उनके डालर्स के प्रति तो प्रेम, आसक्ति है और संस्कृति के प्रति निदा का भाव है यह दोगला पन है इनमे, हमारे यहाँ के नेता संत, महंत सब इसी श्रेणी में आते है ! पश्चिम की संस्कृति यहाँ का रुख करने का कारण वही था है अभी भी ओशो के आश्रम में,भौतिक सुखों से वे भी उब गए है आत्मा की उन्हें तलाश है और इन्हें भौतिक सुखों की, मेरी बहन सालों से अमेरिका में है उसकी बातों से, आपके कहे अनुसार मेरी समझ के अनुसार मुझे लगता है आज जिस हालातों से हमारा देश गुजर रहा है उसे देखते हुए ...पाश्चात्य संस्कृति कई बेहतर लगती है मुझे ! लेकिन मेरा अपना मानना यही है कि, जब तक भौतिक सुखों की जरुरत को नहीं समझेंगे तब तक आत्मा का विकास भी संभव नहीं है ! रही होगी कभी हमारी संस्कृति उन्नत लेकिन आज नहीं है ...निचे से लेकर ऊपर तक सबका नैतिक पतन होते हुए साफ दिखाई दे रहा है ! बलात्कारी एक दिन में पैदा नहीं होता इसके लिए मै जिम्मेदार मानती हूँ माता -पिता को, समाज को,शिक्षा को, सरकार,कानून को संस्कृति को" !

समय के साथ संस्कृति में बदलाव आने चाहिए ...जब तक धर्म और विज्ञान समान मात्रा में विकसित नहीं होंगे मनुष्य का संपूर्ण विकास संभव नहीं ! विज्ञान यह समझाए कि, भौतिक सुखों के बिना आत्मा का विकास संभव नहीं, धर्म यह घोषणा करे कि, आत्मा और शरीर दोनों एक दुसरे के पूरक है दोनों अलग नहीं, दोनों का सुख अलग नहीं संपूर्ण जीवन ही परमात्मा का वरदान है ! पुरानी सारी व्यवस्था बिगड़ चुकी है और नई पीढ़ी के लिए हमने नई कोई व्यवस्था विकसित करने की बजाय पुरानी व्यवस्था उनके हाथों में थमा दी है, इसीकारण हम देख रहे है आज नई पीढ़ी भी एक प्रकार से संक्रमण काल से गुजर रही है ! नई पुरानी पीढ़ी में असमंजस की स्थिति बनी हुई है ! यह मेरी अपनी सोच है जरुरी नहीं आप भी मेरी इन बातों से सहमत हो लेकिन आप क्या सोचते हो इतना तो बता ही सकते हो !

रविवार, 13 जनवरी 2013

पतंगाची उडान ....

मित्रो, आज मकर संक्रांति है, देश के विभिन्न प्रान्तों में इस पर्व को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है! मराठी में भी इसका ख़ास महत्व है! आईए आज एक ख़ास मेहमान से आप सबसे मिलवाती हूँ!

है तो यह मेरे भाई, मार्गदर्शक मित्र इसके आलावा एक बढ़िया ब्लागर भी  है ! लिखते तो है अंग्रेजी में, पर मराठी हम दोनों की मातृभाषा है इसलिए कभी जायका बदलने के लिए मराठी में भी लिखना होता है  आज इस पर्व के निमित्त कुछ मराठी में फेसबुक पर  उनका लिखा मुझे बहुत सुन्दर और सरल लगा  आपसे साझा कर रही हूँ ....वैसे मराठी हिंदी से काफी मिलती जुलती है आप भी इस माँ और मासी जितने अंतर को जरुर समझ जायेंगे पढ़कर ....तो फिर मजा लीजिये उनकी मराठी रचना का !
 
मकर संक्राति की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ ....!!


शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

बदलाव ....

आश्रम में तोड़ फोड़ 
शिविर में लगाई आग 
विरोध के दौरान 
थोडा धैर्य रखिए 
हो रहा बदलाव ...!

        ***
तब उस विंडो के सामने 
खड़े रहने की थी मनाई 
अब इस विंडो के सामने 
दिन-रात बैठने आजादी 
क्या यह बदलाव नहीं ...?

शनिवार, 5 जनवरी 2013

भूख की बीमारी ....( लघु कथा )


एक युवक अक्सर बीमार रहता, बीमारी ही कुछ ऐसी थी ! भूख की बीमारी ! उसे दिन रात भूख ही भूख लगती ...वैसे देखा जाय तो, बीमारी भी कुछ खास नहीं थी ! भूख तो प्राकृतिक थी दरअसल उसने भोजन के विरोध में बहुत सारी बाते गलत सलत सुन ली थी ! किताबों में पढ़ लिया था कि, उपवास करना पूण्य है ! जितना वह भोजन के बारे में सोचता भूख उतनी ही तीव्र होती ! जीतनी भूख को दबाने की कोशिश करता भूख उतनी ही परेशान करने लगती ! बड़ी मुश्किल में पड़ गया था वह कभी कभी लगातार खाते ही रहता तो कभी उपवास करता कई दिनों तक ! जब ज्यादा खा लेता तो पश्चात्ताप करता क्योंकि ज्यादा भोजन करने की तकलीफ झेलनी पड़ती उसे  चौबीस घंटे भोजन के बारे में सोच सोच कर विक्षिप्त सा हो गया था वह ! आखिर घरवाले  भी उसके इस बीमारी से परेशान हो गए थे ! उसका शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य दिन ब दिन गिरता ही जा रहा था ! घरवालों ने आखिर उसे डाक्टर को दिखाया ! डाक्टर ने जाँच पड़ताल कर कहा कि, घबराने की कोई बात नहीं यह कोई खास बीमारी नहीं जिसका इलाज संभव न हो, किसी अच्छे हिल स्टेशन पर चले जाओ हवा पानी के बदलाव से तुम जल्द ही ठीक हो जाओगे डाक्टर ने कहा !

सलाह के अनुसार वह एक पहाड़ पर गया वहां हिल स्टेशन के एक कमरे में रहने लगा ! एक दिन उसकी पत्नी ने सोचा कि, शायद उसका पति हिल स्टेशन पर जाकर भोजन की बीमारी से मुक्त हो गया होगा, उसने ख़ुशी-ख़ुशी बहुत सारे फूल उस पहाड़ पर भिजवाये और साथ में एक पत्र लिखा कि, मै बहुत खुश हूँ और उम्मीद करती हूँ कि, तुम बहुत जल्द वहां से स्वस्थ होकर लौटोगे ! मेरी शुभकामनायें तुम्हारे साथ है ! यह सुन्दर फूल भेज रही हूँ तुम्हारे लिए प्रेम सहित !

दुसरे दिन पत्नी के सेल फोन पर उसका मैसेज था ...लिखा था .."मेनी-मेनी थैंक्स फॉर दी लवली फ्लावर्स, दे आर सो डिलीशियस " !