मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

मुझे लगा भावना कोई और चीज होनी चाहिए !

लोग जिस तरह से अपने प्रिय नेता के मरने पर छाती पीट-पीट कर रोते हुए उन्मादी भावनायें व्यक्त करते है,पूरी दुनिया के लिए यह एक जिज्ञासा का विषय है ! ऐसे में मुझे शाही परिवार में जन्मे लियो टाल्सटाय जो एक बेहतरीन लेखक भी थे का लिखा यह संस्मरण आप सबसे साझा करने का मन हुआ ! भावना व्यक्त करने का यह भी एक नमूना देखिये !

उन्होंने लिखा, मैं बचपन में अपने माँ के साथ थिएटर में नाटक देखने जाता था ! नाटक में जहाँ कहीं भी ट्रेजडी सीन होता मेरी माँ ऐसे धुँआधार रोती कि कभी-कभी उनके आँसुओं से चार-चार रुमाल भीग जाया करते और नौकर हमेशा रुमाल लिए खड़े रहते ! टाल्सटाय लिखते है कि मैं उनके बगल में बैठा रोते हुए अपने माँ को देखकर सोचता कि वो कितनी भावनाशील महिला है !

लेकिन जब मैं बड़ा हुआ तब मुझे असल बात का पता चला ! थिएटर जाते समय उनका आदेश था उसकी बग्घी  खड़ी रहे और कोचवान बग्घी पर ही बैठा रहे क्या पता थिएटर से कब उसका जाने का मन करे और दूसरा कोचवान समय पर न मिले ! कई बार ऐसा होता की बाहर बर्फ पड़ती रहती,जब तक वह नाटक देखते रहती,तब तक एखाद,दो कोचवान मर जाते ठंड से ! मरे हुए कोचवान को तुरंत हटाकर दूसरे कोचवान को बिठाया जाता बग्घी पर ! मेरी माँ की नजरों के सामने यह सब होता लेकिन वह निर्विकार कुछ न कहती कोई भाव न दिखते मुझे उनके चेहरे पर ! नाटक में ट्रेजडी सीन देख कर रोने वाली माँ असल जीवन में भावनाविहीन कैसे हो सकती है ? यह कैसी भावना
है ? मुझे लगा भावना कोई और चीज होनी चाहिए
या यह भावना नहीं है .. !