गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

आज ह्रदय में नई उमंग है !

सभी मित्रों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
आज ह्रदय में 
नई उमंग है !
नव वर्ष की 
नवल प्रभात है !
आओ, हम सब 
मिलकर नव संकल्प 
करे !
नव निर्माण की 
बड़ी रेखा खींचे 
छोटी रेखा को 
बिना मिटायें 
बिना चोट पहुंचाएं !
इस खूबसूरत अस्तित्व में 
इतना योगदान करें  
जाते-जाते  ...!



गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

चाँद ने सारे अस्तित्व पर एक तिलिस्म फैला दिया हो जैसे ...

सदियों से हमारी कल्पनाओं,सपनों,आस्थाओं,मान्यताओं का प्रतिक बना हुआ है चाँद ! किसी की कल्पना में उसमे चरखा कातती बुढ़िया दिखाई दी तो किसी को उसमे हिरन दिखाई दिया, तो किसी को उसमे अपने प्यारे मामा चंदामामा की छवि दिखाई दी ! कवियों, गीतकारों की लेखनी को चाँद में प्रेरणा स्त्रोत दिखाई दिया ! और किसी को करवा चौथ के व्रत का आराध्य जो उनके स्वामियों के दीर्घ जीवन की प्रार्थनाओं को सुनने वाला अस्थारूपी दैवत !

अरबों साल पहले हुई कुदरती उथल-पुथल से धरती से जो टुकड़े निकले चाँद उन्ही से बना हुआ है, वैज्ञानिकों ने इस प्रकार चाँद के अस्तित्व का पर्दाफाश किया ! चाँद को धरती का उपग्रह बना दिया ! पुरानी मान्यताएं, आस्थाएं बालू की भींत की तरह ढह गयी अब चाँद पर थे तो केवल पत्थर, धूल, और चट्टानें !

लेकिन आधुनिक पीढ़ी को एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण मिला चाँद को छूने की जिज्ञासा हुई ! अब वह दिन दूर नहीं जब आने वाले समय में चाँद पर बस्तियां भी बन जाएँगी ! जो भी हो एक बात सत्य है सूरज की रोशनी में जो चीजें खुरदुरी और आकर्षण विहीन दिखाई देती है वही चीजें हमें चाँद की दूधिया, रोशनी में बड़ी सम्मोहक और दिलचस्प दिखाई देने लगती है ऐसे लगता है चाँद ने सारे अस्तित्व पर एक तिलिस्म फैला दिया हो जैसे !


मंगलवार, 8 सितंबर 2015

तनाव आज विश्व समस्या बनकर उभर रही है !

तनाव,डिप्रेशन आज हम अकेले की समस्या नहीं है तनाव आज संपूर्ण विश्व समस्या बनकर उभर रही है ! आज हमारा रिश्ता नाता कहीं दूर तक संसार से तो जुड़ गया है लेकिन हमारे अपने मूल अस्तित्व से छूट गया है ! "ध्यान" से छूटकर धन से जुड़ गया है ! प्रेम से छूटकर नफरत से जुड़ गया है ! शांति से छूटकर तनाव से जुड़ गया है ! जहाँ भी देखो हर मनुष्य हाई ब्लड प्रेशर, डिप्रेशन कोई न कोई बीमारी का शिकार है ! सारे प्राइवेट अस्पताल सरकारी अस्पताल मरीजों से भरे पड़े है ! आज एक शारीरिक मानसिक संपूर्ण स्वस्थ व्यक्ति खोजना मुश्किल हो गया है ! मनुष्य बाहर से जितना साधन संपन्न दिखाई देता है भीतर से उतना ही दीनहीन दुखी,विक्षुब्ध और चिंतित दिखाई देता है आज  ! और प्रत्येक मनुष्य ने यह स्वीकार ही कर लिया है कि सबकी जीवन दशा एक-सी है मै अकेला थोड़ा ही हूँ !
 
इसी संदर्भ में हमारी हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उल्लेखनीय चार युगों और उनकी विशेषताओं की सुन्दर अलंकारिक बात कुछ इस प्रकार से बताई गई है ! सतयुग अर्थात सत्य का युग जिसके सत्य,तप,शुद्धता और दया जैसे चार स्तंभ थे, जैसे एक मेज की भांति पूर्ण संतुलित युग था ! त्रेतायुग अर्थात त्रेता का अर्थ है तीन,उस युग में एक स्तंभ टूट कर गिर गया संतुलन जरा सा गड़बड़ा गया तो मनुष्य भी दुःखी  मर्यादाविहीन होता गया ! फिर आया द्वापर याने की दो पैर, और दो स्तंभ टूट कर गिर गए फिर मनुष्य और भी दुःखी,चिंतित होता गया ! अब हम चौथे युग कलियुग में जिसे हम आधुनिक युग भी कहते है निम्म तल पर आ गए है ! एक पैर पर खड़े है सोचिये कितनी देर खड़े रह सकते है ? और जीवन भीतर से और अधिक दीनहीन होता जा रहा है ! आज जब हमने अपने शरीर,मन,आत्मा से संबंध तोड़कर सारा का सारा जीवन का संतुलन बिगाड़ लिया है तब तनाव कैसे न होगा भला !

सुबह कोई भी अख़बार खोल कर देखिये हिंसा से भरे हुए है ! असमय दरवाजे पर घंटी बजी तो हम चौंक जाते है ! असमय फोन की घंटी बजे तो डर लगता है ! कोई घर आ गया तो डर कोई घर से बाहर गया तो डर, किसी को मन की बात कहने को डर पता नहीं कौन कब इसका गलत फायदा उठा ले सोचकर,ऐसे लगता है जैसे हम सब डर और दहशत के माहोल में जीने को मजबूर हो गए है हमारा निर्दोष,निर्भय जीवन खो गया लगता है !

बुधवार, 19 अगस्त 2015

"मास्टर पीस"

दुनिया से  बेखबर
समाज में व्याप्त
उपेक्षित,निंदित,
भूखी,नंगी गरीबी
किसी छायाकार की
चित्र प्रदर्शनी में
प्रशंसकों के बीच
मास्टर पीस
कहलाती है … !

शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

एक मनुष्य के भीतर अच्छाई बुराई दोनों की संभावनायें है !

बच्चा जब जन्म लेता है तो साथ में जीवन को परमात्मा के उपहार के तौर पर लाता है ! उसकी चेतना बिलकुल कोरे कागज के समान होती है ! और लोग उसपर अपने अपने सहूलियत के हिसाब से एक नाम का ठप्पा, एक जाती ठप्पा, एक धर्म का ठप्पा, एक देश का ठप्पा लगा देते है ! और जैसे जैसे वह बच्चा बड़ा होने लगता उसमे यह संस्कार कूट कूट कर भर दिया जाता है कि जरुरत पड़े तो इन ठप्पों की खातिर अपनी जान दे देना ! उसे कभी यह अहसास नहीं करवाते की तुम्हारी जान इन सबसे ऊपर है तुम्हारा जीवन सबसे कीमती है ! और बच्चा उन्ही संस्कारों की वजह से जिंदगी भर एक दुश्चक्र में फंस कर परमात्मा के दिए हुए उस जीवन रूपी कीमती उपहार का क्या हश्र कर लेता है इसी संदर्भ में मुझे ओशो की सुनाई हुई यह कहानी बहुत प्यारी लगती है !

किसी देश में एक चित्रकार था ! वह जब अपनी युवावस्था में था तो सोचा कि मै एक ऐसा चित्र बनाऊं, जिसमे भगवान का आनंद झलकता हो ! मै ऐसी दो आँखे चित्रित करूँ जिनमे अनंत शांति झलकती हो ! मै एक ऐसे व्यक्ति को खोजूं जिसका चित्र जीवन के जो पार है, जगत के जो दूर है उसकी खबर लाता हो ! और वह अपने देश के गांव-गांव घूमा, जंगल-जंगल छान मारा और आखिर एक पहाड़ पर एक चरवाहे को उसने खोज लिया ! उसकी आँखों में कोई झलक थी ! उसके चेहरे की रूप-रेखा में कोई दूर की खबर थी ! उसे देखकर ही लगता था कि मनुष्य के भीतर परमात्मा भी है ! उसने उसके चित्र को बनाया ! उस चित्र की लाखों प्रतियां गांव-गांव, दूर-दूर के देशों में बिकी ! लोगों ने उस चित्र को घर में टांगकर अपने को धन्य समझा !

फिर बीस वर्ष बाद, वह चित्रकार बूढ़ा हो गया था ! और उस चित्रकार को एक ख़याल और आया … जीवन भर के अनुभव से उसे पता चला था कि आदमी में भगवान ही अगर अकेला होता तो ठीक था, आदमी में शैतान भी दिखाई पड़ता है ! उसने सोचा कि मै एक चित्र और बनाऊं, जिसमे आदमी के भीतर शैतान की छवि हो, तब दोनों चित्र पुरे मनुष्य के चित्र बन सकेंगे ! वह फिर गया बुढ़ापे में जुआघरों में, शराबघरों में, पागलघरों में, उसने खोजबीन की उस आदमी की जो आदमी न हो, शैतान हो ! जिसकी आँखों में नरक की लपटे जलती हो, जिसके चहरे की आकृति उस सबका स्मरण दिलाती हो, जो अशुभ है, कुरूप है, असुंदर है ! वह पाप की प्रतिमा की खोज में निकला ! एक प्रतिमा उसने परमात्मा की बनायी थी, वह एक प्रतिमा पाप की भी बनाना चाहता था ! और बहुत खोजने के बाद एक कारागृह में उसे एक कैदी मिल गया ! जिसने न जाने कितनी हत्याएं की थी और जो थोड़े ही दिनों के बाद मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहा था ! फांसी पर लटकाया जाने को था ! उस आदमी की आँखों में नरक के दर्शन होते थे, घृणा जैसे साक्षात थी ! उस आदमी के चहरे की रुपरेखा ऐसी थी कि वैसा कुरूप मनुष्य खोजना मुश्किल था ! उस चित्रकार ने उसका चित्र बनाया ! जिस दिन उसका चित्र बनकर पूरा हुआ, वह अपने पहले चित्र को भी लेकर कारागृह को आया और दोनों चित्रों को पास-पास रखकर देखने लगा कि कौन-सा चित्र श्रेष्ठ बना है ! तय करना मुश्किल था ! चित्रकार खुद मुग्ध हो गया था ! दोनों चित्र अदभुत थे ! कौन-सा श्रेष्ठ था, कला की दृष्टी से, यह तय करना मुश्किल था ! और तभी उस चित्रकार को पीछे किसी के रोने की आवाज सुनाई पड़ी ! लौटकर देखा ,तो वह कैदी जंजीरों में बंधा रो रहा है, जिसकी उसने तस्वीर बनायीं थी ! चित्रकार हैरान हुआ उसने कहा कि मेरे दोस्त तुम रो क्यों रहे हो ? चित्रों को देखकर तुम्हे तकलीफ हुई ? उस कैदी ने कहा इतने दिनों तक छिपाने की कोशिश की, लेकिन आज मै हार गया हूँ ! शायद तुम्हे पता नहीं कि पहली तस्वीर भी तुमने मेरी ही बनायीं थी ! ये दोनों तस्वीरें मेरी ही है !
कहने का सार बस इतना-सा है कि एक मनुष्य के भीतर अच्छाई बुराई दोनों की संभावनायें है बहुत कम मनुष्य सौभाग्यशाली होते है जो अपने भीतर अच्छाई को उभार पाते है !

मंगलवार, 7 जुलाई 2015

डायरेक्ट मार्केटिंग ...

प्रवेश शुल्क प्रति व्यक्ति पांच हजार के हिसाब से दो दिवसीय आध्यत्मिक शिविर था हमारे शहर में, पहले दिवसीय प्रवचन के अंत में स्वामी जी ने अपनी लिखी हुयी किताबों के ढेर की ओर इशारा करते हुए भक्तों से कहा … "कल के कोर्स के लिए मेरी लिखी दो किताबे खरीदनी जरुरी है प्रति किताब की कीमत मात्र २५०/- रुपये है ! इसके आलावा किसी रिश्तेदारों, मित्रों को उपहार स्वरूप भी किताबे खरीदना चाहो तो खरीद 
सकते हो" ! स्वामीजी की बात का असली मकसद जानकर कई सारे भक्त नाराज हो गए उनमे हमारे एक प्यारे मित्र भी शामिल थे जो यहाँ के High Court में अपनी प्रैक्टिस करते है कुछ ज्यादा ही नाराज हो गए परिणामस्वरूप अपने माल (किताब) की डायरेक्ट मार्केटिंग कर रहे स्वामी जी ने सदा के लिए एक अच्छे भक्त (ग्राहक) को खो दिया !
कहने का मतलब इतना ही था की इन आध्यामिक शिविरों का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के जीवन को ध्यान संपन्न प्रेम संपन्न बनाकर रूपांतरित करना न होकर केवल अपना व्यापर चलाना मात्र होता है !

गुरुवार, 25 जून 2015

उथली सांत्वनाएँ ...


दुःख,
मेरे अपने है
खरे है !
समस्यायेँ
मेरी अपनी है
खरी है !
काम कैसे आयेंगे
समाधान
उथली सांत्वनाएँ
मित्र,
किसी और की    ... !

रविवार, 14 जून 2015

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पौराणिक कथा !




हम पौराणिक कथाओं की गहराई में शायद ही कभी पहुँच पाते है ! इस तरह तो बिलकुल भी नहीं जिस तरह कोई दार्शनिक, वैज्ञानिक चिंतक अपनी पैनी दृष्टी से देखता है तो सुधी पाठको की दृष्टी को ही नहीं दृष्टिकोण को ही बदल देता है, आईये जानते है कैसे ! कल ओशो की एक किताब में इस कथा को पढ़ रही थी तो सोचा आप तक पहुँचाउ ताकि, आप भी उतना ही आनंद उठा सके जितना मैंने इस कथा को पढ़कर सोचकर उठाया है !

ब्रम्ह पुराण में एक गाथा कही जाती है कि सर्वांग सुंदरी अहिल्या को देखकर सभी देव-दानव विचलित हो उठे थे ! लेकिन गौतम ऋषि उसी तरह गंभीर बने रहे, इसलिए ब्रम्हा ने वह सुंदरी गौतम ऋषि को
दे दी … ! एक बार जब गौतम तीर्थ-दर्शन के लिए गए, तो राजा इंद्र ने उन्ही का रूप धारण कर लिया, और आश्रम के भीतर अहिल्या के पास पहुँच गए … तभी गौतम ऋषि आए और उन्होंने अहिल्या को और इंद्र को श्राप दिया ! ( इस कहानी को भली भांति आप सब जानते है ) चलिए अब हम इस प्रतीकात्मक कहानी के गहरायी में उतरते है … 

गौतम किरण-विज्ञान के पहले ज्ञाता थे ! तम के पार जा सके, अँधेरे के पार  इसलिए गौतम नाम हुआ ! अहिल्या का अर्थ है जो हिल न पाए ! यह रासायनिक पदार्थ था गौतम ऋषि की प्रयोगशाला में ! 
इंद्र सूरज-मंडल के अंतर की एक  किरण का नाम है ! वही किरण प्रयोगशाला में आयी तो खोज का काम आगे बढ़ा ! श्राप देने का अर्थ है कीलित कर देना ! वही किरण कीलित हुयी तो पदार्थ के चमक उठने पर गौतम ने, उसमे अपना ही रूप देखा ! भग का अर्थ है योनि, वह नाड़ी जो सात ग्रहों की किरणों को धरती पर लाती है ! और जो गौतम ने कहा इंद्र, तुम हजार भग वाले हो जाओ, उसका अर्थ है तुम हजार नाड़ियों वाले हो जाओ और ब्रम्हांड की शक्ति को धरती पर ले आओ ! और गौतम ऋषि ने अहिल्या से कहा … तुम शिला बन जाओ इसी तरह प्रयोगशाला में रहो, जब तक मेरी खोज पूरी नहीं होती ! साथ ही वरदान दिया जब तुम गोमती नदी में मिल जाओगी, अति सुंदर हो जाओगी ! यह किसी बहती हुई नदी से मिलना रासायनिक खोज का दुनिया में विचरण करने का संकेत है, विज्ञान का लोगों तक पहुँच जाना … !









मंगलवार, 9 जून 2015

जब बर्तन साफ सुथरा खाली हो … !

बतायें तो
"खाली दिमाग शैतान का घर"
वाला मुहावरा
किसी शैतानी दिमाग की
उपज है या
खाली दिमाग की ?

क्योंकि,
एक स्वादिष्ट व्यंजन
तभी बनाया जा सकता है
जब बर्तन ( दिमाग )
साफ सुथरा
और खाली हो … !

गुरुवार, 4 जून 2015

भोजन का संबंध प्रेम से है …

मनुष्य के लिए स्वास्थ्यवर्धक भोजन जितना जरुरी है उतना ही प्रेम भी जरुरी है ! एक गृहिणी अपने रसोई घर में केवल भोजन ही नहीं बनाती बल्कि भोजन के द्वारा परिवार के सदस्यों के लिये प्रेम भी परोसती है ! महान दार्शनिक जे. कृष्णमूर्ति कहते है कि "प्रेम मनुष्य को सभी दूसरे गुण प्राप्त करने के योग्य बनाता है और इसके बिना बाकी का कुछ भी कभी भी पर्याप्त नहीं होता है "!

बुधवार, 27 मई 2015

वाह रे रिश्तेदार ...

जिंदगी भर
जिनकी पीठ पीछे
बुराई करने वाले
आज अचानक
शवयात्रा में उनकी
अच्छाईयों की चर्चा
कर रहे थे बार-बार
वाह रे रिश्तेदार !
इसे ही कहते है
जीवित का निरादर
मुरदे का सम्मान … !

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

बोन्साई जीवन ...

वन्य पेड़
की ही तरह
जीवन का पेड़ भी
फैलने फूलने की
विराट क्षमता
रखता है लेकिन,
बागवानी के कुछ
शौक़ीन लोग
ठीक ढंग से
कटाई, छंटाई कर
देखने में
सुन्दर,आकर्षक
बोन्साई बना
देते है उसे  … !

गुरुवार, 26 मार्च 2015

उनकी मक्का बेहतर नहीं हो सकती ...

एक सूफी संत थे, जो खेती करके अपने समय का सदुपयोग करते थे ! उनकी खास बात यह थी कि वह बहुत अच्छे किस्म की मक्के की फसल उगाते थे, जिसे अकसर पुरस्कार भी मिलते थे ! हर वर्ष वह अपनी मक्का को राज्य के कृषि मेले में भेजते, जहाँ उनको सम्मान भी मिलता और इनाम भी मिलते !

एक वर्ष एक अखबारी रिपोर्टर ने उनसे यह जानने के लिए इंटरव्यू लिया कि वह इतने अच्छी किस्म का मक्का कैसे उगाते  है ? रिपोर्टर को दिलचस्प जानकारी यह मिली कि सूफी संत अपने  मक्के के बीजों को अपने पड़ोस में बाँटते  थे ! रिपोर्टर ने पूछा आप अपने सबसे अच्छे बीज पड़ोसियों के साथ कैसे बाँट लेते है, जबकि वे भी आपकी ही तरह प्रति वर्ष प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेते है ?

सूफी ने जवाब दिया, "क्यों न बाँटू  ?" क्या आपको मालूम नहीं कि हवा पकी हुयी मक्के के बीजों को उडाकर एक खेत से दूसरे खेत तक पहुंचा देती है अगर मेरे पडोसी निम्म स्तर के बीजों का प्रयोग करेंगे, तो क्रासपॉलिनेशन (पराग संक्रमण) से मेरी मक्का की गुणवत्ता पर भी कुप्रभाव पड़ेगा ! अगर मुझे अच्छी मक्का उगानी है, तो जरुरी है कि मै अपने पड़ोसियों को भी अच्छी मक्का उगाने में मदद करूँ !"
उनकी मक्का बेहतर नहीं हो सकती, जब तक उनके पड़ोसियों की मक्का बेहतर न हो जाती !

सूफी संत की दी हुयी यह मिसाल हमारे सकारात्मक लेखन के साथ-साथ क्या जीवन के अनेक पहलुओं पर भी लागु नहीं होती ??

सोमवार, 23 मार्च 2015

मनुष्य से प्रेम करने का मतलब है ... !


हमें,
मनुष्य को
प्रेम करने से ज्यादा
मनुष्यता (humanity) से
प्रेम करना अधिक
सरल लगता है
क्योंकि,
मनुष्य से प्रेम
करने का मतलब है
अच्छाईयों के
साथ-साथ उसकी
बुराईयों से भी
प्रेम  करना
जो की कठिन 
लगता है   
स्वीकारना   .... !

रविवार, 8 मार्च 2015

"महिला दिवस" की सार्थकता ... !

नारी एक अभिव्यक्ति है
और अभिव्यक्ति जब
घर की चार दिवारी से निकल कर
आकाश की ऊंचाई छूने लगती है
तो सुनीता विलियम्स बन जाती है !
जब भीतर की गहराई छूने लगती है
तो सहजो,दया,मीरा, बन जाती है !
हर सीमा रेखा से परे धरती पर
सारी सभ्यता संस्कृति,
तब न पुरुष प्रधान होगी
न नारी प्रधान
केवल हार्दिक कहलायेगी !
सही मायने में तभी "महिला दिवस" की
सार्थकता होगी ... !

शनिवार, 7 मार्च 2015

स्त्री अपने आप में पूर्ण है स्त्री प्रकृति जैसी है जिसका स्वभाव है देना,  ! 

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

प्रेम ..

लोक व्यवहारके चलते
अनेक शब्द
भले ही
इन दिनों
अपने अर्थ उसकी
उपयोगिता
खो रहे हो
लेकिन,
प्रेम अब भी
एक ऐसा शब्द है
जिसमे जादू है …
हम जिससे भी
प्रेम करते है
उसीके अनुरूप
हमें बना देता है
प्रेम रसायन है … !

रविवार, 1 फ़रवरी 2015

जीवन को रसमय बना दे कुछ वैसा ....


नमक,मिर्च,मसालों की
नपी तुली मात्रा
जहाँ भोजन को
स्वादिष्ट बनाती है
वहीँ अधिक मात्रा
भोजन के पोषक
तत्वों को नष्ट
कर देती है !
साहित्य में भी
यही सच है !
सुगम साहित्य
आत्मा की भूख है
भूख प्राकृतिक है
मुझे भी लगती है
आप ही की तरह
पढ़ना मै भी चाहती हूँ
लेकिन क्या ?
कुछ ऐसा जो
सुपाच्य, स्वास्थ्यवर्धक
जीवन को रसमय
बना दे कुछ वैसा … !!

सोमवार, 19 जनवरी 2015

देश,धरती की दुर्गति ...

हम,
गति कहे या इसे
देश,धरती की दुर्गति
चार बच्चे पैदा करने की
सलाह को
संत,महंत,नेताओं की
जाहिल नीति .... !


समय के साथ
शब्द भी अपने अर्थ
खो देते है शायद,
'अष्ट पुत्र सौभाग्यवती'
तब आशीष समान
अब चार बच्चे भी
 लगती है गाली … !

बुधवार, 7 जनवरी 2015

सुबह-सुबह स्वर्ग के दरवाजे पर दस्तक हुयी ...

ठक-ठक ठक-ठक सुबह-सुबह स्वर्ग के दरवाजे पर दस्तक हुयी ! कौन है ? भीतर से देवदूत की आवाज आयी ! कृपया दरवाजा खोलिए बाहर खड़े व्यक्ति ने कहा ! देवदूत ने जरा सी खिड़की खोली और पूछा कौन हो और क्या चाहते हो ?? मै भीतर आना चाहता हूँ बाहर खड़े व्यक्ति ने कहा ! यह बताओ की शादीशुदा हो या गैर शादीशुदा हो देवदूत ने प्रश्न किया ! जी, शादीशुदा हूँ उस व्यक्ति ने विनम्रता से कहा ! ठीक है नरक तो तुमने धरती पर ही देख लिया अब स्वर्ग में आ जाओ स्वागत है कहते हुए देवदूत ने दरवाजा खोल दिया ! अभी दरवाजा बंद किया ही था की फिर से दस्तक हुई ठक-ठक !
देवदूत ने फिर से जरा सी खिड़की खोली और खिड़की से झांक कर अपना प्रश्न दोहराया कौन हो और क्या चाहते हो ?? बाहर खड़े उस व्यक्ति ने कहा जो अभी-अभी भीतर गया है मै उसीका मित्र हूँ हम दोनों साथ-साथ मरे थे लेकिन उसकी चाल हमेशा मेरी चाल से थोड़ी अधिक तेज थी इसलिए वह जरा तेजी से यहाँ आ गया सो, दरवाजा खोलिए ! देवदूत ने पहले वाले व्यक्ति से किया गया प्रश्न दोहराया शादीशुदा हो या गैर शादीशुदा ?? बाहर खड़े व्यक्ति ने कहा एक नहीं तीन बार की है चौथी के चक्कर में बुरा फंस गया कुछ पछतावे भरे स्वर में उसने कहा … !!
पहली शादी एक ही भूल समझ कर माफ़ करने लायक है दूसरी बार शादी अनुभव अभी कच्चा है पका नहीं समझ कर फिर भी माफ़ी लायक है लेकिन बार-बार की गयी गलती की यहाँ माफ़ी नहीं हो सकती ! यह स्वर्ग है कोई धरती का पागलखाना समझा है देवदूत ने खिड़की  बंद करते हुए कहा … !!

सुबह-सुबह स्वर्ग के दरवाजे पर दस्तक हुयी !

ठक-ठक ठक-ठक सुबह-सुबह स्वर्ग के दरवाजे पर दस्तक हुयी ! कौन है ? भीतर से देवदूत की आवाज आयी ! जी, दरवाजा खोलिए बाहर खड़े व्यक्ति ने कहा ! देवदूत ने जरा सी खिड़की खोलकर पूछा क्या चाहते हो ??   जी, मै भीतर आना चाहता हूँ बाहर खड़े व्यक्ति ने कहा ! पहले यह बताओ कि शादीशुदा हो या गैर शादीशुदा हो ? देवदूत ने प्रश्न किया ! जी, शादीशुदा हूँ उस आदमी ने विनम्रता से कहा ! ठीक है नरक तो तुमने भोग ही लिया है अब स्वर्ग के सुख भोगने आ जाओ स्वर्ग में स्वागत है देवदूत ने दरवाजा खोलते हुए कहा ! अभी दरवाजा बंद किया ही था की फिर से दस्तक हुई ठक-ठक ठक-ठक ! देवदूत ने फिर से जरा सी खिड़की खोली और खिड़की से झांककर फिर से वही प्रश्न दोहराया कौन हो और क्या चाहते हो ?? बाहर खड़े व्यक्ति ने कहा जो अभी-अभी भीतर गया है मै उसीका मित्र हूँ हम दोनों साथ-साथ मरे थे मैंने आत्महत्या कर ली वह मारा गया था उसकी चाल हमेशा मुझसे जरा तेज थी सो, वह जरा तेजी से आ गया मै जरा लेट हो गया इसलिए मुझे आने में जरा सी देर हो गयी अब तो दरवाजा खोलिए ! देवदूत ने फिर से पहले व्यक्ति से किया हुआ प्रश्न दोहराया शादीशुदा हो या गैर शादीशुदा हो ?? बाहर खड़े व्यक्ति ने कहा एक नहीं तीन बार की है चौथी के चक्कर में सब मामला गड़बड़ हो गया उसने कुछ पछतावे भरे दुखी स्वर में कहा  … !
पहली बार शादी एक ही भूल है दूसरी बार शादी अनुभव की कमी है तीसरी बार शादी गले का फंदा ! माफ़ करना यह स्वर्ग है कोई धरती का पागलखाना नहीं है एक बार की हुई भूल माफ़ी लायक है दूसरी बार की हुई भूल अनुभव की कमी है लेकिन बार-बार की हुई भूल भूल नहीं पागलपन है देवदूत ने यह कहते हुए दरवाजा जोरसे बंद करते हुए कहा    …!!