रात और दिन है दोनों गहरे प्रेमी
किन्तु स्वभाव दोनों का अलग-अलग
रात है सौन्दर्य प्रिय, आराम पसंद तो,
दिन है कर्मठ, व्यावहारिक !
अक्सर दोनों में इसी बात पर
हो जाती है तू-तू मै-मै !
रात हर वक्त सजती संवरती है तो,
दिन हमेशा भागता दौड़ता है !
कभी लेटे-लेटे रात, नदी के बहते पांनी में
अपनी परछाई को निहारती है तो
कभी बादलों की लटों को अपने
मुखड़े पर बिखरा लेती है !
कभी चंदा-सी खिलखिलाती है तो
कभी सिकुड़कर आधी रह जाती है !
जब भी रात और दिन आमने- सामने
पड़ते तो दोनों में फिर से शुरू तू-तू मै-मै !
रात कहती है कामसे जादा आराम जरुरी है
दिन कहता है आराम से जादा काम जरुरी है !
जब एक दिन दोनों में बहस असह्य हो गई तो,
न्याय मांगने गए अपने रचयिता के पास !
रचयिता ने दोनों को समझाते हुये कहा ....
तुम दोनों महत्वपूर्ण हो मेरे लिये
इसी लिये मैंने तुम दोनों की रचना की है!
गुण-अवगुण तो एक ही पहलु के
दो दृष्टिकोण है! फिर भी दोनों समझे नहीं!
तब हारकर उन्होंने थोड़े समय के लिये
रात को दे दी उजाले वाली चादर और
दिन को दे दी अँधेरी वाली चादर ताकि,
दोनों रात और दिन बनकर अपना-अपना
महत्त्व समझ सके! हुआ भी यही
अपनी-अपनी चादर बदलकर ही
दोनों को पता चला की, वे दोनों कितने
एकदूसरे के लिये महत्वपूर्ण है !
तबसे आजतक दोनों में फिर कभी
झगड़ा नहीं हुआ! नाही दोनों एकदूसरे को
निचा दिखाकर अपमान करते है कभी !
अब दिन रोज सुबह ख़ुशी-ख़ुशी दुनिया को
कर्मठता का पाठ पढ़ाता है! और रात
चंदा की चांदनी लेकर घर-घर जाकर
थकी-हारी दुनिया को सुख और शांति की
नींद सुलाती है! आज भी दोनों अपनी-अपनी
चादर बदल लेते है ............................
इसीलिए हम सब को उन दोनों के
संधि- पलों की खातिर सुबह और शाम
कितने सुहाने लगते है !
सच में, अच्छा बुरा तो कुछ नहीं होता
प्यार और नफरत तो बस हमारी निजी
जरूरतों का ही तो नाम है !
है ना?
किन्तु स्वभाव दोनों का अलग-अलग
रात है सौन्दर्य प्रिय, आराम पसंद तो,
दिन है कर्मठ, व्यावहारिक !
अक्सर दोनों में इसी बात पर
हो जाती है तू-तू मै-मै !
रात हर वक्त सजती संवरती है तो,
दिन हमेशा भागता दौड़ता है !
कभी लेटे-लेटे रात, नदी के बहते पांनी में
अपनी परछाई को निहारती है तो
कभी बादलों की लटों को अपने
मुखड़े पर बिखरा लेती है !
कभी चंदा-सी खिलखिलाती है तो
कभी सिकुड़कर आधी रह जाती है !
जब भी रात और दिन आमने- सामने
पड़ते तो दोनों में फिर से शुरू तू-तू मै-मै !
रात कहती है कामसे जादा आराम जरुरी है
दिन कहता है आराम से जादा काम जरुरी है !
जब एक दिन दोनों में बहस असह्य हो गई तो,
न्याय मांगने गए अपने रचयिता के पास !
रचयिता ने दोनों को समझाते हुये कहा ....
तुम दोनों महत्वपूर्ण हो मेरे लिये
इसी लिये मैंने तुम दोनों की रचना की है!
गुण-अवगुण तो एक ही पहलु के
दो दृष्टिकोण है! फिर भी दोनों समझे नहीं!
तब हारकर उन्होंने थोड़े समय के लिये
रात को दे दी उजाले वाली चादर और
दिन को दे दी अँधेरी वाली चादर ताकि,
दोनों रात और दिन बनकर अपना-अपना
महत्त्व समझ सके! हुआ भी यही
अपनी-अपनी चादर बदलकर ही
दोनों को पता चला की, वे दोनों कितने
एकदूसरे के लिये महत्वपूर्ण है !
तबसे आजतक दोनों में फिर कभी
झगड़ा नहीं हुआ! नाही दोनों एकदूसरे को
निचा दिखाकर अपमान करते है कभी !
अब दिन रोज सुबह ख़ुशी-ख़ुशी दुनिया को
कर्मठता का पाठ पढ़ाता है! और रात
चंदा की चांदनी लेकर घर-घर जाकर
थकी-हारी दुनिया को सुख और शांति की
नींद सुलाती है! आज भी दोनों अपनी-अपनी
चादर बदल लेते है ............................
इसीलिए हम सब को उन दोनों के
संधि- पलों की खातिर सुबह और शाम
कितने सुहाने लगते है !
सच में, अच्छा बुरा तो कुछ नहीं होता
प्यार और नफरत तो बस हमारी निजी
जरूरतों का ही तो नाम है !
है ना?