गुरुवार, 26 मई 2011

जीवन है एक सरगम ! (गीत)

आज क्यों दर्द भरे है
स्वर वीणा के !

चाहे हंसकर गाओ
चाहे गाओ रोकर
जीवन है एक
सरगम !

नित जीवन गीत
सुनाने वाले
सरगम के
आज क्यों दर्द भरे है
स्वर वीणा के !

प्रात कभी एक
हंसा गए
साँझ कभी एक
रुला गए
रूठे सहज-सरल
भाव मन के !

आज क्यों दर्द भरे है
स्वर वीणा के !

जब ढीले-ढाले
कुछ अधिक कसे
हुये हो तार मन के
कैसे हो स्वरसाधन ?
बिखर-बिखर गए
तार वीणा के !

आज क्यों दर्द भरे है
स्वर वीणा के !

रोज की हमारी भागदौड़, एकदुसरेसे आगे होने की प्रतियोगिता,जीवन के संघर्ष में न जाने हमारे ह्रदय  का संगीत कहीं खो गया है ! विचारोंके अराजक कोलाहल में मन वीणा के तार बिखर गए है !

शनिवार, 21 मई 2011

२२ मई १९८७

विवाह बंधन जैसे सबके जीवन में एक महत्त्वपूर्ण घटना है वैसे हि मेरे लिए भी जीवन की महत्त्वपूर्ण घटना है! यह सही है कि सहिष्णुता, सहनशीलता, पारस्परिक समर्पण और संवेदनशीलता, सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है जो कि आधुनिक समाज में करीब-करीब लुप्त होते जा रहे है! विवाह बंधन किसी के लिए सुखद घटना तो किसी के लिए दुखद घटना साबित होती है! किसी कि झोली में फूल ही फूल, किसी कि झोली में कांटे ही कांटे, किन्तु जीवन को इन बातों से कोई मतलब नहीं वह तो अनवरत चलता ही रहता है! हमारे सुख-दुखों से उसे कोई लेना देना नहीं है! पर हमारा मन बड़ा गणितज्ञ है! जब भी कुछ अवकाश मिला नहीं कि बैठ जाता है सुख-दुखों का हिसाब-किताब  करने! जब पाता है कि सुख कि अपेक्षा दुःख के ही अनगिनत पल थे ज़िन्दगी में, तब मन अवसाद से भर जाता है, उदास हो जाता है! ऐसे में प्यारा बेटा आकर यह कहे कि "Love you Mamma", प्यारी बेटी आकर कहे "Love you Mommy, wish you a Happy Marriage Anniversay", तब सारे दुःख सारी परेशानिया सिकुड़कर बौने से लगने लगते है! लगता है सच में इतने प्यारे-प्यारे बच्चे न होते तो जिंदगी का इतना लम्बा सफ़र काटना कितना मुश्किल हो जाता! ऐसे मासूम बच्चों पर माता पिता सौ जनम भी कुर्बान करे कम है! यह तो प्रकृति का नियम ही है कि प्रत्येक व्यक्ति का स्वभाव, विचार भिन्न-भिन्न होते है! दो व्यक्ति कभी एक जैसे नहीं सोच सकते! वैसे भी कौन पति-पत्नी एक दुसरे कि अपेक्षाओं पर खरे उतरते है? एक दुसरे को समझने-समझाने में हि, लड़ने-झगड़ने में हि जिंदगी का लम्बा समय गुजर जाता है!
               मेरे लिए वैवाहिक जीवन अब तक एक बढ़िया प्रयोग और घर-गृहस्ती प्रयोगशाला से कम नहीं रहा है! यह मत पूछिए कि "नतीजे क्या निकले?", यह मैं नहीं बता पाऊँगी, मैं क्या शायद कोई भी शादी-शुदा जोड़ा बता नहीं पायेगा! शायद सफल दाम्पत्य जीवन का यही रहस्य हो! किन्तु एक बात सत्य है इन सब प्रयोगों से गुजर कर हि मनुष्य का मन परिपक्व बनता है, यह भी क्या कम अचीवमेंट है?    

रविवार, 15 मई 2011

लोग कहते है मौत से बदतर है इंतजार मेरी तमाम उम्र कटी इंतजार में !

कल एक नाटक पढ़ रही थी !  नाटक का नाम था  "वेटिंग फॉर गोडोट" इसके लेखक है सैमुअल बैकेट, बहुत प्यारा सा नाटक है ! लगता है  इस नाटक के द्वारा हमारी ही  मनोदशा का वर्णन किया हुआ है ! संक्षिप्त में कहानी कुछ इस प्रकार है ! दो आदमी बैठे बाते कर रहे है ! वे एक दुसरे से पूछते है कि क्यों भई, कैसे हो क्या हाल-चाल है ?  सब ठीक है ! उनका जवाब ! एक कहता है ऐसा लगता है, वह आज आएगा !  सोचता तो मै भी हूँ ! आना चाहिए कबसे हम राह देख रहे है ! आने का भरोसा तो है वैसे वह भरोसे का आदमी है ! इसप्रकारसे बाते भी करते है और इंतजार भी, राह भी देख रहे है ! दोपहर से साँझ हो जाती है फिर भी कोई नहीं आता ! फिर कहते है दोनों कि, हद हो गई बेईमानी कि भी, नहीं आया  कही कुछ अड़चन तो नहीं आ गई ? कही बीमार तो नहीं पड गया ? दोनों इंतजार करते-करते परेशान हो जाते है ! एक कहता है अब मुझसे तो नहीं होगा तुम्ही करते रहो इंतजार, मै तो चला ! मगर दोनों बैठे है कोई नहीं चला जाता ! वही बैठे है, वही इंतजार कर रहे है ! बड़े मजे कि बात यह है कि पाठक पढ़ते-पढ़ते परेशान होने लगता  है कि आखिर किसका इंतजार कर रहे है वे दोनों ? अगर हम हमारे विचारों के प्रति इमानदार है तो कई बार हमारे साथ भी ऐसा हुआ है !  कभी लगता है दरवाजे पर कोई आने वाला है ! अभी बेल बजेगी !  कई बार मेल चेक करते है ! कई बार कंप्यूटर खोलते,बंद करते है ! कोई खास पोस्ट पढना चाहते है फिर उब जाते है पढना बंद करते है ! टी.वि . खोलते है ! सुबह का अखबार फिर से पढ़ते है ! मन क्या चाहता है किस खोज में, किस इंतजार में लगा रहता है हमें ही समझ में नहीं आता ! पूरा नाटक पढने पर भी पता नहीं चलता कि वेटिंग फॉर गोडोट, याने कि गोडोट कि प्रतीक्षा यह है क्या बला? किसी ने सैमुअल बैकेट को पूछा कि आखिर यह गोडोट कौन है? उन्होंने कहा कि मुझे भी पता नहीं कि गोडोट कौन है ! अगर पता होता तो नाटक में ही लिख न देता !  लगता है बहुत सही कह रहे वो! जिस राह पर किसी के इंतजार में बैठा है यह मन, उस राह पर कभी कोई गुजरता नहीं,वह किसी कि भी रहगुजर नहीं है !      ( philosophy पर आधारित )

शनिवार, 7 मई 2011

"मदर्स डे" पर खास ...........


मेरी माँ 

सबको अपनी-अपनी माँ प्यारी होती है,
मुझको अपनी माँ सबसे प्यारी लगती है !
सरल सुन्दर मन की मधु, मिश्री-सी मीठी,
प्रेम और ममता की सरिता लगती है !
मेरी हर उलझन को चुटकी में सुलझाती,
घर को सजाकर कैसे सुंदर स्वर्ग बनाती.
माँ कभी पहेली कभी सहेली लगती है !
मेरी ख़ुशी में वह ख़ुशी से खिल जाती, 
दुःख में मेरे फूल सी मुरझाती,
माँ आँगन की फुलवारी लगती है !
कमजोर होता है जब मन, लड़खड़ाते है कदम,
अपने विश्वास भरे हाथों से थाम,
माँ कोई अनजानी प्रेरणा लगती है !
सुघड़ हाथों से तराश-तराशकर शिल्प बनाती,
माँ है विश्वास, माँ है प्रेरणा, माँ सर्वश्रेष्ठ,
भगवान की अनुपम भेंट लगती है !

माँ के लिए कभी लिखी यह पंक्तियाँ आज भी मुझे बहुत प्यारी लगती है ! दस साल पहले की बात है ! तब मै बहुत बीमार पड गई थी मेरे दोनों बच्चे बहुत छोटे थे ! तब माँ ने जिस प्रकार मेरे बच्चों को मेरे घर को संभाला मेरी जिस प्रकारसे सेवा की,  मुझे यह कहते हुये दिलासा देती की, तुझे कुछ नहीं होगा भगवान पर विश्वास रख, माँ की कही हुई बाते आज भी मै नहीं भुला पाई !  मुझे ठीक होने में लगभग एक वर्ष का समय लगा! मृत्यु के करीबसे गुजरने पर ही पता चला जीवन कितना सुंदर है ! और हम व्यर्थ के बातों में सारी जिन्दगी गुज़ार देते है !

आज मदर्स डे पर सभी माताओंको मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनायें !  
आज मदर्स डे के खास मौके पर मेरी बिटिया ने मुझे दिया हुआ गिफ्ट !

मंगलवार, 3 मई 2011

कुछ फूल, कुछ कांटे........

गर किसीको फूलोंकी चाह दिलमे है तो, कांटो को भी गलेसे लगाना पड़ेगा ! यही जीवन की सच्चाई है ! जीवन में अगर सुख है तो दुःख भी है! फूल है तो कांटे भी है ! जीवन को समग्रता में स्वीकार ही समझदारी है ! हर संवेदनशील वेक्ति यही करेगा !  या करना चाहिए ! हर घर-घर में पति-पत्नी के बीच अक्सर कलह क्लेश होते ही रहते है कभी-कभी छोटे झगडे भी उग्र रूप धारण कर लेते है ! हमेशा सौ में से निंन्यानव झगडे ग़लतफ़हमीयों के कारण होते है ! इगो के कारण होते है ! कोई यह मानने को तय्यार ही नहीं होता की, गलती किसकी है ! इतना मन अहंकारसे भर गया है इसीलिए दोनों के बीच कभी सुलह नहीं हो पाती! रोज-रोज के इन झगड़ों,क्रोध, वैमनस्य,द्वेष,घृणा में लगता है जीवन का संगीत कही खो गया है ! अक्सर लोगोंको हमने कहते सुना है की घर में दो बर्तन है तो टकरायेंगेही टकरानेसे आवाज तो होंगी ! आवाज हो, पर सिर्फ कर्णकर्कश हो यह जरुरी तो नहीं है !  आवाज मधुर,सुरीली भी हो सकती है ! बशर्ते की बजाने वाला संगीतकार ठीक -ठाक हो उसके मस्तिष्क के तार (इगो) बिलकुल खिंचे हुये न हो ताकि विवेक से काम लिया जा सके ! और ह्रदय के तार बिलकुल ढीले -ढाले न हो ताकि प्रेम पैदा हो सके ! तभी जीवन से कुछ खुशियाँ पाने की उम्मीद हम कर सकते है ! अगर मस्तिष्क और ह्रदय दोनों में संतुलन करना हमें आजाता है तो घर में कलह क्लेश की सम्भावना बहुत कम रह जाती है !