रविवार, 15 मई 2011

लोग कहते है मौत से बदतर है इंतजार मेरी तमाम उम्र कटी इंतजार में !

कल एक नाटक पढ़ रही थी !  नाटक का नाम था  "वेटिंग फॉर गोडोट" इसके लेखक है सैमुअल बैकेट, बहुत प्यारा सा नाटक है ! लगता है  इस नाटक के द्वारा हमारी ही  मनोदशा का वर्णन किया हुआ है ! संक्षिप्त में कहानी कुछ इस प्रकार है ! दो आदमी बैठे बाते कर रहे है ! वे एक दुसरे से पूछते है कि क्यों भई, कैसे हो क्या हाल-चाल है ?  सब ठीक है ! उनका जवाब ! एक कहता है ऐसा लगता है, वह आज आएगा !  सोचता तो मै भी हूँ ! आना चाहिए कबसे हम राह देख रहे है ! आने का भरोसा तो है वैसे वह भरोसे का आदमी है ! इसप्रकारसे बाते भी करते है और इंतजार भी, राह भी देख रहे है ! दोपहर से साँझ हो जाती है फिर भी कोई नहीं आता ! फिर कहते है दोनों कि, हद हो गई बेईमानी कि भी, नहीं आया  कही कुछ अड़चन तो नहीं आ गई ? कही बीमार तो नहीं पड गया ? दोनों इंतजार करते-करते परेशान हो जाते है ! एक कहता है अब मुझसे तो नहीं होगा तुम्ही करते रहो इंतजार, मै तो चला ! मगर दोनों बैठे है कोई नहीं चला जाता ! वही बैठे है, वही इंतजार कर रहे है ! बड़े मजे कि बात यह है कि पाठक पढ़ते-पढ़ते परेशान होने लगता  है कि आखिर किसका इंतजार कर रहे है वे दोनों ? अगर हम हमारे विचारों के प्रति इमानदार है तो कई बार हमारे साथ भी ऐसा हुआ है !  कभी लगता है दरवाजे पर कोई आने वाला है ! अभी बेल बजेगी !  कई बार मेल चेक करते है ! कई बार कंप्यूटर खोलते,बंद करते है ! कोई खास पोस्ट पढना चाहते है फिर उब जाते है पढना बंद करते है ! टी.वि . खोलते है ! सुबह का अखबार फिर से पढ़ते है ! मन क्या चाहता है किस खोज में, किस इंतजार में लगा रहता है हमें ही समझ में नहीं आता ! पूरा नाटक पढने पर भी पता नहीं चलता कि वेटिंग फॉर गोडोट, याने कि गोडोट कि प्रतीक्षा यह है क्या बला? किसी ने सैमुअल बैकेट को पूछा कि आखिर यह गोडोट कौन है? उन्होंने कहा कि मुझे भी पता नहीं कि गोडोट कौन है ! अगर पता होता तो नाटक में ही लिख न देता !  लगता है बहुत सही कह रहे वो! जिस राह पर किसी के इंतजार में बैठा है यह मन, उस राह पर कभी कोई गुजरता नहीं,वह किसी कि भी रहगुजर नहीं है !      ( philosophy पर आधारित )

7 टिप्‍पणियां:

  1. क्यों नफरतें हैं पालते
    हम लोग प्यार से !
    साँसे हैं कितनी पास
    हमें खुद पता नहीं ?
    जीवन में कई मोड़ , बड़े खतरनाक है !
    रस्ता कहाँ जाता है,हमें खुद पता नहीं !

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  2. सच कहा .. कभी कभी जीवन में ऐसे पल आते अहीं और इंतेज़ार ख़त्म नही होता ... एक के बाद एक ख्याल जुड़ता चला जाता है ... बहुत मनोवेग्ञयानिक ...

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  3. भूले बिछड़े शब्दों का मधुर भावुक संपर्क पुनः प्राप्त हो जाता है आपके ब्लॉग पर आते ही....
    सच कहा .. कभी कभी जीवन में ऐसे पल आते नही और इंतेज़ार ख़त्म नही होता .
    बहुत ही सार्थक लेखन है आपका ! आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं !

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  4. इंतज़ार, इंतज़ार, बस इंतज़ार..

    इसी का नाम तो ज़िंदगी है ,

    हां ! कभी इंतज़ार ज़िंदगी का, कभी इंतज़ार मौत का

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  5. @मुझे भी पता नहीं कि गोडोट कौन है ! अगर पता होता तो नाटक में ही लिख न देता !

    वाह, क्या बात कही है।

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