बुधवार, 17 दिसंबर 2014

खरपतवारों ने मिलकर .....

गुलाब के
पौधों का
पोषक तत्व
ग्रहण कर
खुद ब खुद
उग आये
खरपतवारों ने
मिलकर,
फल-फूल खिलने
से पहले ही
नष्ट करना
शुरू कर दिया है
उन नाजुक
पौधों को !

सोच रही हूँ   …
अब तो तू भी
चिंतित हो रहा
होगा
अपनी इस
बगिया की
दिन ब दिन
उजड़ती हालात
पर,
आंसू बहा रहा
होगा मेरी तरह
या फिर
सोच रहा है
खरपतवार नाशक
कोई  दवा के
 बारे में … ??

बुधवार, 10 दिसंबर 2014

११ दिसंबर सद्गुरु ओशो का जन्मदिन है ... !

११ दिसंबर को सद्गुरु ओशो का जन्मदिन होता है ! हम सब ओशो प्रेमी, साधक अपनी अपनी ख़ुशी के अनुसार इस महोत्सव दिन को मनाते है और ख़ुशी के इस उत्सव में आप सब आमंत्रित है !

ओशो "जिनका न कभी जन्म हुआ न मृत्यु" उनके द्वारा कहे गए ये शब्द न केवल उनके अपने संबंध में है, बल्कि सभी बुद्ध पुरुषों के संबंध में कहे गए है क्योंकि बुद्ध पुरुष समय के भीतर अवतरित होते हुए भी समय के पार होते है !
यह तो हमारी अपनी ख़ुशी होती है आदर व्यक्त करने की, उनके जन्मदिवस के उपलक्ष में एक छोटी सी आदरांजलि है यह  … 

"मानसून आते ही ठंडी-ठंडी हवायें सरसराने लगती है हृदयाकाश में छाये भावों के मेघ मन की धरती पर बरसने को उतावले हो जाते है बारिश की इन भाव भरी रिमझिम फुहारों से जब मन की मिट्टी गीली होने लगती है तब बो देती हूँ इस गीली मिट्टी में फूलों के मन पसंद बीज और जब यह बीज टूटकर,गलकर अंकुरित हो पौधे हवावों की सरसराती ताल पर फूलों सहित झूम झूम कर नाचने, गीत गाने लगते है तब फूलों की इस सुगंध से सारा जीवन महकने लगता है  जैसे ".....!

कभी ऊपरी यह पंक्तियाँ कविता रूप में लिखी थी क्योंकि सद्गुरु वो मानसून होता है जिस साधक के भी जीवन में प्रवेश करता है सब कुछ बदलने लगता है ! मन की मिट्टी का जरखेज होकर उस मिट्टी में पड़े हुए बीज का फूल बनकर खिलना ही उस बीज की सार्थकता होती है ! हर बीज के प्राणों में जाने अनजाने यही प्यास होती है शायद ! बीज से फूल बन खिलने की प्रक्रिया से गुजरने की कला एक अद्भुत कीमिया है, विज्ञानं है जो एक कुशल बागबान कहे या सद्गुरु यही हमें सीखा सकते है हर बीज के प्राणों में यह प्यास तीव्र से तीव्रतर होती जाये यही कामना करते हुए    … 
 सद्गुरु ओशो के चरणों में शत-शत नमन !

मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

अपनी आत्मरक्षा हेतु ...

अपनी आत्मरक्षा हेतु
उसने भी अब
हथियार उठाना सिख
लिया है
प्रतिक्रिया स्वरूप
परिणाम जानते हो
इसका  ??
बड़ी तेजी से स्त्रैण
गुणों का नष्ट होना
आज दो
कल दो सौ
परसो दो हजार
असंख्य
गुलाब गैंगों का
अस्तित्व में आना    … !

सोमवार, 24 नवंबर 2014

शब्द और मन की श्रेष्ठता …

चीन में प्रसिद्द दार्शनिक हुआ था जिनका नाम है लाओत्सू ! लाओ का मतलब होता है आदरणीय वृद्ध ! हमारे बहुत सारे वृद्ध केवल वृद्ध होते है आदरणीय नहीं होते आदर देना हमारी मज़बूरी होती है और त्सू का मतलब होता है गुरु ! लाओत्से एक ऐसे ही आदरणीय वृद्ध गुरु हुए है जिनके छोटे-छोटे बहुमूल्य उपदेश ही ताओ नाम से प्रसिद्ध हुए है ! लाओत्सू का एक एक विचार कितना मौलिक है आप इस विचार से लगा सकते है !

"मन की श्रेष्ठता उसकी अतल निस्तब्धता में है"  

और हमारे मन की   ?? यह तो हर कोई अपने अपने मन से पूछने जैसा सवाल है ! शब्दों से खेलना भी एक कला है जो जीतनी सफाई से शब्दों से खेलता है उतना ही बड़ा विद्वान कहलाता है ! जिसके पास जिंदगी का जितना गहरा अनुभव होता है उसी अनुपात में वह शब्दों में गोलाई और भावों में गहराई भर लाता है ! इसके आलावा नियमित वाचन लेखन का भी बहुत बड़ा योगदान होता है ! कई बार अच्छा अनुभवी भी अपने अनुभव को अच्छे शब्दों में अभिव्यक्त  नहीं कर पाता ! सारा खेल शब्दों का है, और हम तो शब्दों के इस खेल से ही तो सामने वालों की क्षमता का अंदाजा लगाते है ! खेले खूब खेले शब्दों के इस खेल से किसी को कोई मनाई नहीं है हमारा तो पेशा ही है शब्दों से खेलने का :)   !

शब्दों के इस खेल के पीछे बहुत सारे कारण होते है, कोई इसलिए शब्दों से खेलता है कि चुप रहना मुश्किल लगता है क्योंकि चुप्पी हमें काटती है बोलने के लिए शब्द उकसाते है बोलकर कहकर थोड़ा सुकून मिलता है ! कोई इसलिए बोलते है कि सारे लोग बोल रहे फिर मै ही चुपचाप सा क्यों  बैठूं ! ऐसे बहुत से कारण है जिसके विस्तार में हमें जाना नहीं है ! लेकिन क्या आपको पता है जहाँ शब्द हमें दूसरों से जोड़ तो देते है वही खुद से तोड़ देते है याने की दूर कर देते है  ! हम क्या है इसका परिचय शब्दों में बहुत कम निस्तब्धता में अधिक पाया जाता है ! निस्तब्धता हमें दूसरों से दूर करती है पर खुद के नजदीक कर देती है  ! लाओत्सू कहते है चुप रहना निस्तब्ध होना नहीं है !

 आपको याद होगा कई बार हम गुस्से में भी चुप बैठते है याने की चुप रहना नेगेटिव क्रिया है ! चुप रहने में और निस्तब्ध होने में जमीन आसमान का अंतर और गुणवत्ता का फर्क है ! यही फर्क लाओत्से केवल एक लाईन में ही हमें समझाते है वो कहते है  … "मन की श्रेष्ठता उसकी निस्तब्धता में है "  मतलब बोलने में नहीं ! और मुझे लगता है क्या पता निस्तब्धता को छूकर जब किसी के शब्द कंठ से बाहर आते होंगे तब इतने ही अद्भुत लगते होंगे जितने कि लाओत्सू के या किसी अन्य दार्शनिक, रहस्यदर्शियों के कवियों के लगते है ! 

कई बार किसी का एक छोटा सा विचार भी एक छोटी सी कविता भी मन को निशब्द कर देती है निस्तब्ध कर देती है !

गुरुवार, 6 नवंबर 2014

जो मृत्यु के पार न जाए वह संपत्ति नहीं है !

हम देखते है कि आज संसार के अच्छे बुरे हर काम पैसे के बल पर होते है ! निन्यान्नव प्रतिशत समस्यायें पैसे के द्वारा सुलझाई जा सकती है! आज का युग तो पैसों को ईश्वर की ताकत से ज्यादा ताकतवर मानता है ! हर घर-घर में उसीकी चर्चा उसीकी पूजा होती है ! मुर्ख को विद्वान बनाना रंक को राजा बनाना पापी को पुण्यात्मा बनाने की ताकत पैसे में है अर्थात आज के युग में पैसा ही सर्व शक्तिमान है ! मै मानती हूँ पैसे में कोई बुराई नहीं होती बुराई होती है मन के लोभ में लालच में, संपत्ति स्वाभाविक हो ईश्वरीय हो तभी सुखदायक होती है नहीं तो जीवन में अनेक विप्पति आती है इसी की वजह से ! तभी तो जाग्रत व्यक्तियों ने संपत्ति का त्याग कर दिया मतलब त्यागा नहीं छूट गया कहना ज्यादा बेहतर होगा !

 ऐसे ही एक अलौकिक संत हुए गुरु नानक देव जी जिन्हे सिखों का प्रथम गुरु माना जाता है ! उनके जीवन से जुडी बहुत सारी सुन्दर-सुन्दर घटनाएँ है इसी से जुड़ा एक प्रकरण है यह … नानक लाहोर के पास किसी गाँव में ठहरे थे ! एक व्यक्ति ने उनसे कहा, मै आपकी सेवा करना चाहता हूँ ! मेरे पास बहुत धन है आपके किसी उपयोग में लगा दूँ तो बड़ा अनुग्रह होगा ! नानक कई बार टालते गए लेकिन उसने फिर से दुबारा अपनी प्रार्थना नानक जी के सामने दोहराई ! नानक जी ने तब उस व्यक्ति को कपडे सीने के एक सुई देते हुए कहा, इसे रख लो और जब हम मर जाएं तो इसे वापिस लौटा देना ! सुई को मरने के बाद कैसे लौटाया जा सकता है वह व्यक्ति चौंक गया नानक जी की बात सुनकर,लेकिन लोगों के सामने कुछ भी पूछना उचित नहीं लगा एकदम अस्वीकार करना भी उचित नहीं था ! संकोच करते हुए सुई ले तो गया मगर रातभर सोचता रहा सोचता रहा सुई मृत्यु के पार कैसे जा सकेगी वह ग्लानि महसूस करने लगा कि नाहक उसने धन से सेवा करने की आकांक्षा की थी ! रातभर सो न सका सुबह पांच बजे ही भागता हुआ नानक जी के पास पहुंचा उनके पैरों पर गिर पड़ा और कहा, अभी जिन्दा हूँ यह सुई वापिस ले ले, मरने पर लौटाना मेरे बस की बात नहीं है ! मैंने बहुत चेष्टा की बहुत सोचा अपनी सारी संपत्ति भी लगा दूँ तो भी जिस मुट्ठी में यह सुई होगी वह इसी पार रहेगी उस पार ले जाने का कोई उपाय नहीं ! इस सुई को आप वापिस ले ले ! फिर मै तुमसे एक बात पूछूं ? तेरे पास क्या है जिसे तू पार ले जा सकता है ? उस व्यक्ति ने कहा, मैंने कभी इस बारे में सोचा नहीं लेकिन अब सोचता हूँ तो लगता है ऐसा कुछ भी नहीं है मेरे पास जिसे उस पार ले जा सकूँ ! फिर नानक जी ने कहा, जो मृत्यु के इस पार है वह केवल विपत्ति हो सकती है संपत्ति नहीं हो सकती ! कितनी सार्थक बात कही है सच में  जब तक संपत्ति से बड़ी कोई सार्थक की अनुभूति न हो  तब तक निरर्थक चीजे हाथ से छूटती नहीं !

रविवार, 28 सितंबर 2014

ताउम्र जवां बने रहने का नुस्खा ..

जिंदगी भी ना 
अच्छे-बुरे 
तीखे-कड़वे 
खट्टे-मीठे 
अनुभव लेने की 
आला पाठशाला है  !
यहाँ,
इन अनुभवों के 
नित नवे पाठ 
पढ़िए लेकिन 
रात सोने से 
पहले 
पढ़े पाठ भुला 
दीजिये !
ताउम्र जवां,
खूबसूरत,स्वस्थ, 
तनावरहित बने 
रहने का 
खास नुस्खा 
यह जरूर 
अपनाईये !
महंगे क्रीम 
कॉस्मेटिक सभी 
बेकार है इस 
कीमती नुस्खे के 
सामने  .... :)

शनिवार, 13 सितंबर 2014

भाषा सेतु है ....


भाषा सेतु है 
जो जोड़ देती है 
एक दूसरे से 
व्यक्ति व्यक्ति से 
देश दुनिया से 
प्रेम मार्ग से,

और मौन 
अस्तित्व की भाषा है 
जो जोड़ देती है 
खुद को खुद से 
शरीर,मन,आत्मा से 
प्रकृति परमात्मा से 
ध्यान मार्ग से,

जब भी मिलो 
दूसरे से 
मिलो प्यार से 
जब भी मिलो 
खुद से
ध्यान से  .... !!

रविवार, 10 अगस्त 2014

सिकंदर और कौये की आपबीती …

बात तब की है जब सिकंदर भारत की यात्रा पर आया हुआ था ! सिकंदर ने सुना था कि, भारत के किसी मरुस्थल में ऐसा झरना बहता है जो भी उस झरने का पानी पीता है वह अमर हो जाता है !
उस झरने का पता लगाने के लिए उसने अपने सिपाहियों को चारोंओर दौड़ा दिया  ! आखिर एक दिन उस झरने का पता मिल गया ! सिकंदर की ख़ुशी देखने लायक थी, उसने उस झरने के चारो तरफ यह सोचकर सिपाहियों का पहरा लगा दिया कि, कोई दूसरा उस झरने तक नहीं पहुँच सके इसलिए ! एक छोटी सी गुफा में वो झरना बह रहा था वह अकेला उस झरने के पास पहुंच कर देखा कि, बड़ा ही साफ स्वच्छ स्फटिक मणि जैसा झरना बह रहा है ! सिकंदर ने अब तक ऐसा साफ स्वच्छ पानी कहीं नहीं देखा था ! सामने अमृत और अमर होने की प्यास शायद किसी के मन को भी डावांडोल कर सकती है ! सो उसने भी जल्दी से अंजुली भर ली और उस पानी को पीने जा ही रहा था कि, एक आवाज उसके कानों में गूंजी "सिकंदर रुक जा " ! उसने अपने चारो और देखा और घबराते हुए पूछा ये कौन है इस गुफा में ?? इतने में एक कौये की आवाज उस गुफा में गूंजी    … "यह मै हूँ सिकंदर इधर मेरी तरफ देख, और मेरी आपबीती सुनने के बाद ही तुम इस झरने का पानी पीना " ! पानी से भरी अंजुली छूट गयी हाथ से,कौये की बात सुनकर घबरा गया  ! उसने कहा कौये से कहो क्या कहना चाहते हो ? उस कौये ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि तू जिस प्रकार आदमियों में सिकंदर है मै अपनी बिरादरी में सिकंदर हूँ मैंने भी इस झरने के बारे में खूब सूना था बहुत खोज की थी अंत में इसे खोजकर जी भर कर पानी पी लिया इस बात को कई सादिया बीत गयी लेकिन अब मरना चाहता हूँ ! रोज सुबह से शाम कांव-कांव, कांव-कांव करते थक गया हूँ लेकिन मरता नहीं हूँ कई बार जहर पीया खुद को फांसी पर चढ़ाया, पहाड़ से कूद पड़ा, आग में झुलसना चाहा लेकिन कोई असर नहीं होता कितना ही कोशिश क्यों न करूँ आखिर जिंदा बच जाता हूँ ! अब जिंदगी एक बोझ सी लगने लगी है मै अब मरना चाहता हूँ ! अगर तुम्हारे पास इस अमृत को बेअसर करने को कोई एंटीडोट हो तो मुझे बताओ ? और मेरी इस आपबीती को सुनकर सोच समझकर यह फैसला करो की इस झरने का पानी पीना चाहते हो अथवा नहीं पीना चाहते हो ! अगर जल्दबाजी में पानी पीयोगे तो मेरी तरह पछताओगे फिर कभी नहीं मर पाओगे सोच लेना ! कौये की इस कहानी को सुनकर सिकंदर पल भर सोचा और ज्यों वहां से भागा फिर पीछे मुड़कर भी नहीं देखा कहीं मन प्रलोभन में पड़कर उस झरने का पानी पी न ले इसलिए !

कहानी किसी और सन्दर्भ में कही गयी होगी लेकिन मुझे यह कहानी पढ़कर ऐसा लगा मनुष्य वाणी में अपनी आपबीती सुनाने वाला यह कौआ और कोई नहीं एक ब्लॉगर की आत्मा है जिसने इस मरुस्थल में ब्लॉगिंग नाम के झरने का पानी पी लिया है और अमर हो गया है ! अब कितना ही पछताये मरने का कोई उपाय नहीं है ! रात दिन कांव-कांव करना अब उसकी नियति बन गयी है ! प्रशंसा के चंद शब्द उसे रोज जीने को मजबूर कर देते है :)  !  भले ही कितना भी थक ले अब मरने का कोई उपाय नहीं है ! यह कहानी चेतावनी स्वरूप है उस सिकंदर के लिए जिसने अभी तक इस ब्लॉगिंग नाम के झरने का पानी नहीं पीया है लेकिन पीना चाहता है ! सावधान ! यहाँ जो भी एक बार आता है इस झरने का पानी पीता है अमर हो जाता है ! फिर कितना भी सर पटक ले, घायल हो ले यहाँ अब मरने कोई उपाय नहीं है सोच ले ! 
कांव-कांव-कांव कांव :)

बुधवार, 6 अगस्त 2014

सृजन की ये कैसी मीठी,मधुर वेदना …

क्या चाह है वो 
नभ बाहों में 
भर लेने की,
या की 
खोज है वो 
खुद को 
पा लेने की,
या फिर 
तृष्णा है वो 
बूंद-बूंद कर 
पूरा सागर ही 
पी लेने की,
आहा !
सृजन की ये 
कैसी मीठी, मधुर 
वेदना है जो 
जन्म देती है 
हर बार एक 
नयी रचना को    … !!

सोमवार, 21 जुलाई 2014

बदलाव प्रकृति का नियम है …

जीवन में हर चीज बदल रही है !
नाजुक चीजे कुछ ज्यादा ही,
प्रेम उतनाही नाजुक है 
जितना की गुलाब का फूल !
लेकिन गुलाब जितना नाजुक 
उतना ही आँधी,वर्षा, तेज धूप 
के विरुद्ध शक्तिशाली,संघर्षरत !
जो सुबह-सुबह सूरज की 
सुनहरी किरणों के साथ 
खिलता खिलखिलाता है !
हवा की सरसराती तालपर 
झूमता,डोलता, नाचता  है !
और साँझ होते ही मुरझाने 
लगता है    … 
बदलाव प्रकृति का नियम है !
चीजों को बदलकर नित नविन 
शक्ल में ढाल देती है प्रकृति !
इस प्राकृतिक प्रक्रिया से
प्रेम भी अछूता नहीं होता !
परिस्थितियों की आँधियों 
और वक्त की तेज धूप से 
वो भी मुरझाने लगता है 
बिलकुल इसी गुलाब की 
तरह   … 


www.youtube.com/watch?v=4nnJDMmjmxU

शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

शत-शत नमन करे …

ओशो ने कभी 
न गीत लिखे 
न लिखी कभी 
कोई कविता 
लेकिन उनके 
एक-एक प्रवचन 
किसी गीत किसी 
कविता से कम नहीं 
वे स्वयं में गीत है 
कविता है 
अगर उसका एक 
छंद भी 
ढंग से हमारे दिल को 
छू ले तो परिवर्तन 
निश्चित है    …। 

   ****

जीवन की रिक्त 
    पाटी पर 
जिसने पूनम 
    बन कर 
इंद्रधनुषी शाश्वत 
     रंग भरे 
आओ,आज उस  
   सद्गुरु के 
    चरणों में 
शत-शत नमन 
      करे     .... !!

गुरुवार, 3 जुलाई 2014

जाने का उत्सव भी मनायें …

यदि,
जन्मदिन एक उत्सव है तो 
मृत्यु दिन का मातम क्यों ? 
उत्सव क्यों नहीं हम मनाते 
सोच कर देखा जाय तो 
न हम जन्म लेते है 
न हम कभी मरते है !
दरअसल हम एक ग्रह से 
दूसरे ग्रह पर केवल 
विजिट वीजा पर 
आते-जाते रहते है !
और इस आने जाने के 
बीच में हम हमारे 
नाम,धाम,जाती,धर्म 
उससे जुड़े सुख-दुःख 
उससे जुडी समस्याओं 
में फंस कर 
शब्द,विचार,शास्त्र,
सिद्धांतो के चक्कर में 
पड कर  
यह भूल ही जाते है 
कि तिथि के अनुसार 
हम पृथ्वी ग्रह पर
विजिट करने आये थे 
तो एक दिन जाना 
भी पड़ेगा  !
यदि आने का उत्सव 
मनाया है तो, क्यों न 
जाने का उत्सव भी 
हंसी ख़ुशी से मनायें 
क्योंकि,
और भी विजिटर्स 
लाईन में खड़े है यहाँ 
आने के लिये   .... !!

शुक्रवार, 20 जून 2014

शब्दकोष से निकल कर …

उफ्
मेरे भीतर
भीड़ 
मेरे बाहर 
भीड़ 
भीड़ ही भीड़ 
ऐसे लग रहा है 
जैसे … 
विचार नहीं 
सड़क पर 
दौड़ रही है 
ट्रैफिक,
जरा शब्दकोष से 
निकल कर 
बाहर तो 
आ जाओ 
  शांति     … !!

शुक्रवार, 9 मई 2014

माँ ..

            
  बिटिया ने बनाया हुआ स्केच !

सीता इतिहास मे 
हुयी भी थी या नहीं 
मुझे पता नही लेकिन,
उसके होने के जीवित 
प्रमाण मौजूद है 
आज भी माँ के 
अस्तित्व में !
न खुल कर कुछ 
कह पायी थी कभी 
न खुल कर हंस 
पायी थी कभी  
पति के रामराज मे, 
कर्तव्यों की बलिवेदी पर 
अपनी भावनाओं की 
बलि चढ़ाती  माँ !
पिता के जाने के 
बरसो बाद भी 
न खुल कर कभी 
रो पाती है अपने 
बेटों के राज मे 
माँ … !!
                                      

शनिवार, 3 मई 2014

एक सुहानी शाम ...

एक सुहानी शाम 
बाहों में बाहें डाल  
मेरी प्यारी बिटिया ने कहा,
ममा तुम कितनी अच्छी हो 
कितनी प्यारी हो मुझे 
तुम पर है गर्व !
जब भी स्कूल से शाम 
घर आती हूँ  
लगता है घर स्वर्ग !
मै भी बड़ी होकर 
तुम्हारी जैसी बनूंगी 
कहलाउंगी गुणी !
कुछ उदास सी होकर
 मै उसको बोली 
बेटा,
छाया का क्या अस्तित्व 
कैसा जीवन ??
जब कि आत्मनिर्भरता का 
आज है जमाना !
अक्सर तेरे पापा देते है ताना 
सुबह अखबार भी छूती हूँ 
तो कहते है    … 
तुझे कौनसे दफ्तर है जाना 
दिनभर घर मे रहती हो 
आराम से पढ़ लेना !
गृहिणी के काम का न 
होता कोई मूल्यांकन 
न कोई प्रशंसा ! 
तभी कहती हूँ बेटा,
खूब पढ़ लिखकर 
डॉक्टर बनना इंजीनियर बनना 
मेरी जैसी नहीं 
तुम अपने जैसी बनना !
तुम मेरा प्रतिबिंब हो भले ही 
मेरी परछाई कभी न बनना ! 
बिटिया उसकी रुचि के अनुसार 
आज इंजीनियर बन गयी है !
पिछले तीन-चार महिने से 
एक प्रतिष्ठित कंपनी मे 
जॉब भी कर रही है !
अच्छे खासे पैसे कमा रही है 
एक राज की बात बताऊँ ?
आजकल वही मेरी 
ए टी एम भी है  … :)
कभी सुना था मैने  
बेटा अपने माता-पिता को 
स्वर्ग ले जाता है !
लेकिन आज देख रही हूँ 
बेटी स्वर्ग को ही 
घर पर लाते हुए ...
सुबह दो दो अख़बार 
के साथ      .... :)



रविवार, 27 अप्रैल 2014

नकारात्मक विचार ...

बात तब की है जब बुद्ध वृद्ध हो गए थे, तब एक दोपहर एक वन में एक वृक्ष के निचे विश्राम करने रुक गए थे ! 
उन्हें प्यास लगी थी ! आनंद पानी लाने पास के पहाड़ी झरने पर गए ! पर झरने में से अभी-अभी बैल गाड़ियां गुजरी थी ! इसलिए झरने का सारा पानी गन्दा हो गया था ! कीचड़ ही कीचड़ और सड़े पत्ते पानी पर उभर आये थे ! आनंद उस झरने का पानी लिये बिना ही वापस लौट आये थे ! उन्होंने  बुद्ध से कहा "झरने का पानी निर्मल नहीं है, मै पीछे लौटकर नदी से पानी ले आता हूँ!" नदी बहुत दूर थी ! बुद्ध ने आनंद को उसी झरने का पानी लाने वापस लौटा दिया ! आनंद थोड़ी देर में फिर खाली लौट आये थे ! वह पानी उन्हें लाने योग्य नहीं लगा ! पर बुद्ध ने इस बार भी लौटा दिया ! और तीसरी बार जब आनंद झरने पर पहुंचे  तो देखकर चकित रह गये, झरने का पानी अब बिलकुल निर्मल और शांत दिखाई दे रहा था ! सारी कीचड़ पानी के निचे 
बैठ गई थी ! जल निर्मल और साफ़-सुथरा पीने योग्य हो गया था ! 


जब भी हमारे नकारात्मक विचार भी कुछ ऐसे ही चेतना रूपी झरने पर से गुजरने लगते  है तो न स्वयं के ग्रहण करने योग्य होते है न दूसरों को बांटने योग्य ही होते है ! जिनके ग्रहण करने से हम खुद को दुखी  कर लेते है और उसे बांटकर दुसरे को भी दुख़ी कर देते है ! ऐसे में बस थोड़ी देर धैर्य और शांति के साथ चेतना रूपी झरने के किनारे बैठकर साक्षी रुप से प्रतीक्षा करने की जरुरत होती है तब, और धीरे-धीरे आप चकित रह जायेंगे यह देखकर कि नकारात्मक विचार अपने आप विसर्जित होने लगे है ! 

गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

मुखौटे ...

हर दिन,
हर रिश्ता हमें 
सौ प्रतिशत अटेन्शन 
मांगता है 
अनंत रिश्तों से
जुड़े हुए हम 
जब ऐसा नहीं 
कर पाते तब 
एक कुशल 
अभिनेता की तरह 
अभिनय करने लगते है 
अनंत मुखौटे 
ओढ़ कर दिन भर,
और अभिनय 
करते-करते जब 
थक जाते है 
सोने से पहले
रात की खूंटी पर 
टांग देते है सारे 
मुखौटे उतार कर 
तब पहचान ही 
नहीं पाते कि 
हमारा असली 
चेहरा कौनसा है   … ??

मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

मेरी प्रिय कहानी …


समर्थ रामदास जी के जीवन काल में घटी एक प्यारी सी कहानी है यह जो कि मेरी प्रिय कहानी है ! संत रामदास एक बार रामायण की कथा सुना रहे थे दूर-दूर से लोग कथा श्रवण करने आने लगे हनुमान को भी इस बात की खबर लग गयी ! हनुमान भी कंबल ओढ़ कर जिज्ञासावश नियमित कथा श्रवण करने आने लगे कि देखे यह आदमी हजारो साल पहले घटी घटना को सच कहता है या झूठ कहता है यह देखने !  लेकिन रामदास हमेशा ऐसे कथा को प्रेम से कहते जैसे उन्होंने अपने आँखों देखि कह रहे हो, लेकिन एक दिन एक जगह थोड़ी मुश्किल हो गयी ! कथा में एक जगह समर्थ ने कहा कि "हनुमान लंका गए अशोक वाटिका में सीता से मिलने तो वहाँ उन्होंने देखा कि चारो तरफ सफ़ेद ही सफ़ेद फूल खिले हुए है "!  हनुमान जी श्रोताओं में कंबल ओढ़कर छिपे बैठे थे, गुस्से में आ गए कंबल फ़ेंक कर खड़े हो गए ! और कहा कि "यह बात झूठ है और तो सब कथा ठीक है मगर सफ़ेद फूलों वाली घटना बिलकुल झूठ है इसमे संशोधन करो "! फूल सफ़ेद नहीं थे, फूल लाल थे ! 

रामदास भी कहाँ मानने वाले थे, कहा अपनी बकवास बंद कर और चुपचाप शांति से कथा का आनंद लो, यह तुम्हारा काम नहीं यह निर्णय करना कि फूल सफ़ेद थे या लाल थे, मैंने जो कह दिया सो कह दिया रामदास संशोधन नहीं करता ! हनुमान ने कहा यह तो हद्द हो गयी मै  खुद गवाह हूँ इस बात का मै खुद अशोक वाटिका में गया था तुम कभी गए ही नहीं तो फिर कैसे कह सकते हो कि फूल सफ़ेद थे ! दोनों के बीच जब झगड़ा अधिक बढ़ा तो हनुमान ने गुस्से से कहा कि "फिर श्री राम के पास चलते है वही इसका निर्णय करेंगे" और रामदास को राजी कर अपने  कंधे पर बिठाकर श्री राम के पास चल दिए ! श्री राम जी ने अपने दोनों प्रिय भक्तों की बात ध्यान से सुनकर हनुमान से कहा    … "हनुमान तुम नाहक इन बातों में मत उलझो रामदास ठीक कहता है फूल सफ़ेद ही थे ! हनुमान का क्रोध बढ़ता ही जा रहा था यह तो ज्यादती हो गयी हनुमान ने सीता से पूछा अब तो वही मात्र इस घटना की गवाह थी ! सीता ने कहा "हनुमान तुम इस कथा के झंझट में मत पड़ो मैंने भी देखा था अशोक वाटिका में फूल सफ़ेद ही थे लेकिन तुम क्रोध से इतने भरे थे कि तुम्हारी आँखे लाल सुर्ख हो गयी थी इसलिए तुम्हे सफ़ेद फूल लाल दिखायी दे रहे थे "!

याद कीजिये हम भी कहीं ऐसे ही किसी की पोस्ट तो पढने नहीं जाते है ?? किसी के विचारों का यूजफुल होना यूजलेस होना हमारी आँख पर हमारी धारणाओं पर तो निर्भर नहीं करता ?? कि हम किस प्रकार से उस पोस्ट को पढ़ रहे है ! अगर हम उस पोस्ट में सार्थक की जगह हमारी धारणाओं की वजह से निरर्थक को ही देख रहे है और आँखे गुस्से से लाल है दुश्मनी से मन लहूलुहान है फिर तो कुछ भी सार्थक कैसे दिखायी देगा ! ऊपर की कहानी में सच में ऐसा हुआ या नहीं यह बात महत्वपूर्ण नहीं है, कहानियाँ सिर्फ प्रतीकात्मक होती है और समय के साथ बदलती रहती है ! 

शनिवार, 29 मार्च 2014

एक अप्रैल याने की मूर्ख दिवस …

एक अप्रैल हर साल मूर्ख दिवस के रूप में मनाया जाता है ! यूँ तो एक अप्रैल याने की मूर्ख दिवस पश्चिम देशों का त्यौहार है लेकिन अब तो भारत ही नहीं पूरी दुनिया ने इस त्यौहार को दिल से अपना लिया है ! ओशो प्रेमी इस दिन को मुल्ला नसरुद्दीन दिवस के रूप में मनाते है और मुल्ला नसरुद्दीन के चुटकुलों का भरपूर स्वाद लेते है सबका मनोरंजन करते है ! मूर्ख दिवस के अलग-अलग देशों में अलग अलग मान्यताएं, किस्से, कहानियाँ प्रचलित है लेकिन हमारे यहाँ तो रोज की पति-पत्नी की बाते हो या बच्चों की बाते या फिर नेताओं की बाते हो इन शुद्ध देसी दैनंदिन हास्य पूर्ण बातों  का एक अलग ही मजा अलग ही स्वाद होता है ! पति चाहे कितनी ही बड़ी  पोस्ट पर क्यों न हो दुनिया के लिए वह कितना ही बुद्धिमान क्यों न हो लेकिन हर पत्नी की नजर में तो उसका पति घर में मूर्ख, बेवकूफ ही बना रहता है ! और वह नाते रिश्तेदारों में, आस पड़ोस में, सखी सहेलियों में बतियाते एक भी ऐसा मौका नहीं गंवाती उसे मूर्ख साबित करने का ! बेचारा पति हमेशा चुप रहने में ही अपनी भलाई समझता है यह सोचकर कि कौन इस मूर्ख औरत के मुँह लगे ! इसी तरह एक दूसरे को मूर्ख समझने में साबित करने में ही उम्र तमाम बीत जाती है !  

बड़े तो बड़े हमारे बच्चे भी कुछ कम नहीं होते, अभी कल की ही बात है मै अपनी सहेली के साथ उसके घर पर शाम की चाय के साथ गप-शप कर रही थी , पास में उसकी बहु अपने बेटे बंटी को हिंदी का गृह कार्य करा रही थी बंटी की मम्मी ने कहा "बेटे शेर और बिल्ली का वाक्य में प्रयोग करो तो " आपको पता है बंटी ने क्या लिखा उसकी कॉपी में  ?… "पापा जब ऑफिस से घर आते है तो बिलकुल शेर की तरह आते है और घर में बिल्ली की तरह प्रवेश करते है " अब क्या बताएं हंस हंस कर मेरा तो बुरा हाल हुआ था !   

राजनीति में तो आजकल होड़ सी लगी है जनता को मूर्ख बनाने की, हर कोई नेता एक दूसरे को मूर्ख बता कर जनता को कैसे मूर्ख बनायें वोट कैसे बटोरे कुर्सी तक कैसे पहुंचे यही सोच कर कोई मुफ्त की चाय पिला रहा है कोई भाषण पिला रहा है मकसद सिर्फ सेवा की आड़ में मेवा खाना और क्या ! एक नेता चुनावी सभा में जनता को समझा रहे थे ! लेकिन जनता ने बड़ी हुड़दंड मचाई हुई थी हो-हल्ला होने लगा ! नेताजी ने नाराज हो कर गुस्से से कहा  … "लगता है इस सभा में सारे मूर्ख गधे इकट्ठे हो गए है ! क्या अच्छा नहीं होगा कि एक बार में एक ही बोले ?? तभी सभा में से किसी व्यक्ति की आवाज आयी "ठीक है तब आप ही शुरू कीजिये !   

मूर्ख दिवस की एक यह भी विशेषता होती है की इस दिन मूर्ख से मूर्ख भी रसिक बनकर जीवन का रस लेने लगता है हंसना हंसाना एकमेव उद्देश होता है न की किसी के मन को ठेस पहुँचाना ! अब चारो ओर से मूर्खों से घिरा कोई खुद को बड़ा बुद्धिमान समझता हो तो उससे बड़ा मूर्ख और कोई हो सकता है क्या, नहीं न ??

गुरुवार, 13 मार्च 2014

सभी मित्रों को होली की हार्दिक शुभकामनायें ..

हर साल की तरह मौज,मस्ती,रंग,तरंग लिए होली हमारे द्वार पर दस्तक दे रही है ! सर्द हवाओं की सिहरन सूरज की तप्त होती किरणों से जैसे बौखलाई सी लगने लगी है और पहाड़ों के आँचल में छुपने का प्रयास कर रही है ! वन, उपवन, बाग़-बगीचों में कोयल की मीठी कुहू-कुहू सुनायी देने लगी है ! आम्र वृक्षों पर बौराई मंजरियों की सुगंध, कच्चे कैरियों की महक से हवाओं में अनोखी खुशबु भर रही है ! इस मौसम में गाँव में दूर-दूर तक पियराये सरसों के पीले खेत,गेहूं की लहलहाती फसले दिखायी देने लगती है ! अगर इस मौसम का लुत्फ़ उठाना है तो हमारे गाँव आना होगा, शहर में ऐसे नज़ारे कहाँ  ?? खैर सर्द मौसम की विदाई और ग्रीष्म का आगमन हम सबके मन को भाने लगता है ! बदलते मौसम के साथ, बदलते रंगों के साथ हमारे चारो और जीवन का नव विकास दिखायी देने लगता है ! रूटीन जीवन मनुष्य के मन को नीरस बना देता है रोज वही सब काम करो कितना बोरिंग लगता है न ? जिससे मनुष्य एक मशीन की तरह हो जाता है मानसिक तनाव से भर जाता है ! शायद इन्ही सब बातों को ध्यान में रखकर हमारे त्यौहार बने होंगे ताकि मनुष्य अपनों के साथ कुछ पल बैठकर हंस बोल सके नाच गा सके, होली ऐसा ही एक त्यौहार है जिसमे रंग है मस्ती है हास परिहास है ! लेकिन कुछ लोग इस मनभावन उत्सव को भी हानिकारक रंग लगाने कीचड़ फेंकने का उत्सव बना देते है ! बुरा न मानो होली है कहकर दिल खोलकर गंदी-गंदी गालियां बक देते है और इसको कहते है होली !  बाहर के त्यौहार बाहर के रंग सब संकेत है हमारे भीतर मुड़ने के लिए, देखिये न संत गुलाल क्या खूब कहते है इन पंक्तियों को पढ़कर हमें भी असली होली की याद आ ही जाती है   … 

                      सतगुरु घर पर परलि धमारी, होरिया मै खेलौंगी !
                      जूथ जूथ सखियां सब निकरि, परलि ज्ञान कै मारी !
                      अपने प्रिय संग होरी खेलौं, लोग देत सब गारी !
                      अब खेलौं मन महामगन हुवै, छूटलि लाज हमारी !
                      सत् सुकृत सौ होरी खेलौं, संतन की  बलिहारी  !
                      कह गुलाल प्रिय होरी खेलौं, हम कुलवंती नारी !!

                     

शुक्रवार, 7 मार्च 2014

वह नारी है ....

न दीन है 
न हीन है 
है भिन्न 
न कमतर है 
जो हर घर-घर की धुरी है 
वह नारी है   .... 

बेटी है 
बहन है 
पत्नी है 
माँ है 
जो नहीं किसी की परछाई है 
वह नारी है    …. 

सुशिल है 
सुकोमल है 
सहनशील है 
ह्रदय है 
जो हर रिश्ते पर वारी है 
वह नारी है   .... 

आत्मविश्वासु है 
दृढ़निश्चयी है 
आत्मनिर्भर है 
स्वयंसिद्ध निरंतर 
जो प्रगतिपथ पर अग्रसर है 
वह नारी है  .... 

ओज है 
सोज है  
सरोज है 
काव्यमय 
जो अपने अस्तित्व की खोज में है 
वह नारी है 
वही क्रांति है    .... !!

( सभी महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की 
हार्दिक शुभकामनायेँ )

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

आम को खास होने की क्या जरुरत थी ?

कमल प्रतियोगिता 
नहीं करता गुलाब से 
गुलाब जैसा होने की 
गुलाब फ़िक्र नहीं करता 
कमल जैसा होने की 
क्या जूही क्या चमेली 
नीम की कड़वाहट में 
औषधीय गुण देख कर 
मुग्ध होती है कचनार 
की कलि, 
आम अपने खट्टे मीठे 
सहज स्वाभाविक गुण में 
कितना लोकप्रिय था 
उसे खास होने की 
क्या जरुरत थी ??
खास होने के चक्कर में 
उसने अपनी सहज 
स्वाभाविकता खो दी  … !

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

हमारे महानगरों में कूड़ा कचरा एक भयावह समस्या …


कल कूड़े कचरे पर सतीश सक्सेना जी की लिखी रचना पढ़ रही थी, उनकी रचना ने मुझे इस लेख को आप तक पहुँचाने के लिए प्रेरित किया आभार सतीश जी ! कूड़ा कचरा आज हमारे महानगरों में एक भयावह समस्या बनती जा रही है ! कचरा किसी के लिए व्यर्थ की चीज है तो किसी के लिए अनर्थ और किसी के लिए जीवन जीने के लिए उपयोगी है ! कैसे आईये इस लेख द्वारा जानते है ! इस लेख को लिखा है न्यूयार्क के एक लेखक ने नाम है एंड्रूऑडो पोर्टर ने और हम तक पहुंचाया है ओशो प्रेमी अनिल सरस्वती ने ! अनिल जी, अगर आप मुझे पढ़ रहे है तो आभार इस महत्वपूर्ण लेख के लिए !

पोर्टर लिखता है    … "मै एक लेखक हूँ, मेरी अच्छी खासी आय है, मेरे पास सुविधाओं का भंडार है ! बस कमी है तो एक चीज की, वह है समय ! मेरे घर में उपयोग के बाद बहुत सी प्लास्टिक और कांच की बोतले जमा होती रहती है जिन्हे मै सुपर मार्केट में जाकर लौटा सकता हूँ और बदले में मुझे मिलेंगे  ५ सेंट प्रति बोतल ! यदि मै बीस बोतलें लौटाता हूँ तो एक डॉलर मिलता है ! अब जितना समय मै इन बोतलों को जाकर लौटाने में लगाउंगा उससे कही अधिक मूल्य का समय गँवा दूंगा ! मै इन बोतलों को कचरे में फ़ेंक देता हूँ ! इस कचरे को उठवाने के लिए मै नियमित रूप से पैसे देता हूँ ! जहाँ मेरे लिए प्लास्टिक की बोतलों का कोई मूल्य नहीं वही भारत में कचरा बीनने वाले बच्चे के इन दो रुपये प्रति बोतल से भरी एक बोरी बड़ी मूलयवान है क्योंकि आज उसने अपना खाना नहीं खाया है "!
पोर्टर आगे लिखता है "जहाँ नार्वे के निवासी अपने कचरे को उठवाने और उसे छांटने के लिए  ११४ डॉलर प्रति टन भुगतान करने के लिए तैयार वही बहुत से देशों के किसान इस कचरे को अपने खेतों में खाद की भांति उपयोग करने के लिए पैसे देते है !"
तारा बाई एक दस वर्षीय बच्ची है जो मुम्बई के कूड़ेदानो से प्लास्टिक और धातुओं से बनी चीजों को इकठ्ठा करती है ! जब उससे पूछा गया कि क्या उसे अपने काम से नफरत है तो वह गुस्से से सर हिलाती हुई बोली, 'नफरत का सवाल ही नहीं है, मै इस काम के कारण जिन्दा हूँ !"
तारा एक किसान की बेटी है ! उनके गांव में आयी बाढ़ से बर्बाद हो वे मुंबई आ गए पर भीख मांगना गंवारा न था तो उसका परिवार कचरा बीनने लगा ! कचरे के ढेरों में रेंगते कीड़ों के बीच से उठाना होता है उन्हें अपनी आजीविका का साधन !
कोई नहीं जानता भारत में कितने कचरा बीनते बच्चे है ! मात्र राजधानी दिल्ली में  ३००००० कचरा बीनने वाले है ! यह आठ घंटा काम करके ५० से १०० रुपये तक कमाते है ! इनके अधिकारों के लिए काम करने वाली एक संस्था चिंतन के अनुसार वे दिल्ली नगर पालिका के ६०००००  रुपये प्रतिदिन बचाते है ! जो काम प्रशासन को करना चाहिए वह बच्चे कर रहे है ! अपने आजीविका के लिए काम कर रहे यह बच्चे  ५० रुपये प्रतिदिन कमाने के लिए प्रत्येक दिन एक भयावह जीवन जीते है ! इन्हे अपनी चपेट में लेने वाले रोगों की सूचि में कैंसर,दमा,टीबी और चर्म रोग शामिल है !
इस असहनीय कार्य से पैदा हुए प्रभाव को कम करने के लिए यह बच्चे कच्ची आयु में ही धूम्रपान, शराब और अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करने लगते है !
अब इन कचरा बीनते बच्चों के पास कोई चुनाव नहीं है ! उन्हें जीवित रहने के लिए अपने जीवन को खतरे में डालना अनिवार्य है ! लेकिन पोर्टर और हम में से वे लोग जिनके पास चुनाव सुविधा है, अपने प्रयास कर सकते है !
भारत के महानगरों में घरों से निकलने वाला कचरा एक भयावह समस्या बनता जा रहा है!
मुंबई का सबसे बड़ा कचरा संग्रह देवनार कचरा स्थल पर होता है ! ११० हेक्टेयर में फैली इस जगह पर ९२ लाख टन कचरे का ढेर लगा है ! मुंबई के घरों से हर रोज  १०००० टन कचरा निकलता है !
देवनार इलाके के पास बसी बस्तियों में प्रत्येक  १००० से ६० बच्चे जन्म लेते ही मर जाते है ! बाकी मुंबई में यह औसत ३० बच्चे प्रति हजार है ! इसके पास रहने वाले लोग मलेरिया, टीबी, दमा और चर्म रोगों से ग्रसित रहते है !
राजधानी दिल्ली भी इससे पीछे नहीं है ! १९५० से लेकर आज तक यहाँ १२ बड़े कचरे संग्रह स्थल बनाये जा चुके है जिनमे लाखों टन कचरा जमा है ! एक जगह पर कचरे का ढेर सात मंजिला ऊँचा है ! इनमे कचरा जमा करने की क्षमता तेजी से घट रही है !
भारत में बढती हुयी जनसँख्या और विकास दर के साथ यह समस्या एक विकराल रूप लेती जा रही है !
भारत में २०२० तक जनसंख्या का अनुमान  … १,३२,०००००० लोग ! भारत में प्रत्येक व्यक्ति आधा किलो कचरा रोज उत्पन्न करता है ! इस गणित से पूरा भारत हर दिन २०२० में  ६,६०,०००  टन कचरा पैदा करेगा यह सारा कचरा कहाँ जायेगा किसी को कोई अनुमान नहीं !