मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

पति-पत्नी के रिश्ते को सृजनात्मक बनाएं …

खलील जिब्रान की एक प्यारी सी कहानी है   …  एक गाँव में दो सहेलियां रहती थी ! उनमे से एक शहर में आकर वहीँ बस गई ! वह जात से मालिन थी वही के एक माली से शादी कर ली और शहर में राजी ख़ुशी से रहने लगी ! उसके पास फूलों की बहुत सुन्दर बगिया थी भिन्न-भिन्न प्रकार के सुन्दर फूल थे बगिया में ! मालिन बहुत गरीब थी फिर भी शहर में फूलों को बेचकर दोनों पति-पत्नी का गुजारा हो ही जाता था !

एक दिन अचानक उसके गाँव की सहेली बाजार में मिल गई ! दोनों बचपन की सहेलियां थी, गले मिलकर बड़ी प्रसन्न हुई ! दूसरी जो मछुआरन थी मछलियां बेचने शहर आयी हुयी थी , मछलियां बेचकर साँझ गांव लौटना था उसको, पर अचानक बचपन की सहेली मिल गई और उसने कहा आज यही मेरे घर ठहर जा कल चली जाना गाँव ! अपनी प्यारी सहेली की बात मानकर वह उस रात उसके घर मेहमान बन गयी, गरीब मालिन उसके पास सुन्दर सुन्दर खुशबूदार फूलों के अतरिक्त कुछ ज्यादा नहीं था, सो उसने अपनी सहेली के स्वागत में आसपास मोगरे के, गुलाब के, चमेली के फूल लाकर रख दिए ! और दोनों खाना खाने के बाद देर रात तक बाते करती रही ! मछुआरन को नींद नहीं आ रही थी ! वह इधर से उधर, उधर से इधर करवटे बदल रही थी ! यह देख मालिन ने पूछा क्यों नींद नहीं आ रही ? क्या कोई तकलीफ है तुम्हे ? उसने कहा हाँ तकलीफ तो है यह सारे तुम्हारे फूल यहाँ से हटा दो तभी मै चैन से सो सकुंगी ! इन फूलों की सुगंध मुझे असह्य हो रही है, मुझे रोज मछलियों की गंध में रहने की आदत पड़ गई है, ऐसा कर मैंने जो मछलियां बेचकर टोकरी लायी थी उसे मेरे पास ले आ उसमे जो कपड़ा पड़ा है उसपर थोडा पानी छिड़क दे ताकि, मछलियों की गंध आती रहे और मै आराम से सो सकूँ ! मालिन ने ऐसा ही किया तब जाकर वह मछुआरन सो गयी !

किसी को फूलों की गंध पसंद है तो किसी को मछलियों की, अर्थात इस कहानी का यही मतलब है कि हर मनुष्य अपनी अपनी आदत से स्वभाव से मजबूर है ! चाहे दोस्ती का रिश्ता हो चाहे पति-पत्नी का रिश्ता हो ! एक दूसरे के इस प्रकार के स्वभाव को स्वीकार करना ही समझदारी है ! वर्ना घर में रोज-रोज कलह क्लेश होते ही रहेंगे ! कई बार छोटे-छोटे दिखने वाले कलह क्लेश भी उग्र रूप धारण कर लेते है ! जैसे कि आजकल ऋतिक रोशन सुजान के सेपरेशन की चर्चा जोरों पर है ! हर मनुष्य अपने अपने हिसाब से तर्क दे रहा है ! कितना ही बड़ा सुपर स्टार क्यों न हो है तो आखिर हमारी तरह इंसान ही न ! हमेशा पति-पत्नी के रोज-रोज के इन झगड़ों,क्रोध,वैमनस्य,द्वेष,घृणा का अंत आखिर एक दिन तलाक तक पहुंचा ही देता है !
आपने देखा होगा पौधों में एक निश्चित दुरी हो तभी वे जमीन में पनपते है बढ़ते है वर्ना मर जाते है ! आकाश में तारों को देखिये वे भी एक निश्चित दुरी बनाकर चलते है ! मान लीजिये तारे भी एक दूसरे पर हावी हो जाने की कोशिश भी करते तो सब कुछ तहस नहस हो जाता, लेकिन कभी ऐसा होता नहीं सारी प्रकृति एक सूत्र से एक निश्चित नियम बनाकर चलती है आदमी को छोड़कर ! पति-पत्नी के रिश्तों में भी स्पेस चाहिए अपनी-अपनी निजता का स्पेस, तभी यह रिश्ते भी प्रेम की जमीन में पनपते है, मधुर बने रहते है वर्ना सालों से चला आ रहा रिश्ता भी एक दिन बोझ बन जाता है मामला तलाक तक पहुँच जाता है ! इसके पहले कि, यह रिश्ता बोझ बनकर बिखर जाय, पति-पत्नी के मधुर संबंध को सृजनात्मक बनाये !
अरेंज मैरेज हो चाहे लव मैरेज हो ठीक से अवलोकन करे तो आज दुनिया में दांपत्य जीवन नरक जैसा बन गया है ! कारण क्या है ? शायद अनंत अपेक्षाए, कभी तृप्त न होनेवाली मांग, क्योंकि हर कोई प्रेम मांगता है अटेंशन मांगता है लेकिन देना कोई नहीं जानता है ! काश , कोई यह क्यों नहीं जानता प्रेम दिया जाता है मांगा नहीं जाता ! सारे झगड़े फसादों के पीछे बुनियादी 
कारण मुझे तो यही लगते है .. आपको क्या लगता है ?? 

बुधवार, 4 दिसंबर 2013

एक यादगार सफर …


तेईस नवम्बर को दिल्ली में हमारे कलीग कम करीबी मित्र के बेटे की शादी थी ! इस शादी में हैदराबाद से तक़रीबन हम बीस लोग शामिल हुए थे ! सभी वकील मित्र अपने अपने परिवार के साथ आये हुए थे ! दिल्ली के बेहतरीन होटेल "शांति पैलेस" में हम सबके रहने का इंतजाम किया गया था ! शादी अटेंड करके दूसरे दिन कुछ मित्र वापिस हैदराबाद चले गए ! बाकि के हम चौदह लोग वहाँ से जयपुर, फतेहपुर, आगरा, मथुरा देखने के लिए रवाना हो गए ! प्लान के हिसाब से कुछ खट्टी मीठी यादों के साथ कुल मिलाकर एक बढ़िया सफर रहा ! अभी कुछ दिन पहले ही इस सफर से लौटी हूँ !
हैदराबाद का लड़का दिल्ली की लड़की दोनों बेंगलोर में पढते थे ! दोनों बच्चे डॉक्टर है, पढाई के दौरान दोनों में मित्रता हुयी, मित्रता प्रेम में और फिर दोनों परिवारों की रजामंदी से हुआ प्रेम विवाह ! मुझे लगा मित्रता एक विशेष संबंध है जिसमे जाती-पाती, धर्म, समाज के कोई कायदे कानून मायने नहीं रखते प्रेम ही सब कुछ हो जाता है, प्रेम सारी रुकावटों को पार कर देता है ! मित्रता से ऊँचा रिश्ता और कोई नहीं हो सकता बशर्ते की इस रिश्ते में ईर्ष्या, जलन, एकाधिकार की भावना, झगड़े, अपने प्रिय को खोने का डर न हो तो, नहीं तो यह रिश्ता भी अन्य रिश्तों की तरह एक बंधन बन सकता है !
इस प्रवास के दौरान ट्रेन में मै एक पत्रिका पढ़ रही थी ! एक लेख में बड़ा ही अनोखा शब्द पढने को मिला "Synchronicity" तब तो मेरे पास इसे जानने के लिए कोई साधन नहीं था ! अभी गूगल पर सर्च किया तो पता चला इस शब्द के कई सारे अर्थ निकलते है याने की यह बहुआयामी शब्द है ! इस शब्द का प्रयोग Swiss Psychologist Carl Gustav Jung ने किया है ! किसी अन्य भाषा में इसका उल्लेख नहीं है बिलकुल नया शब्द है सिन्क्रॉनसीटी ! इसका अर्थ जो क़ि मुझे बहुत पसंद आया … " एक खास प्रकार की लयबद्धता जिसको कहते है मित्रता, जिसको कहते है प्रेम, दो व्यक्तियों का संयोगवश मिल जाना, दो व्यक्तियों के एक जैसे विचारों का मिलना, दो हृदयों का अकारण एक साथ धड़कना " !
कितना मजेदार संयोग है न एक जैसे व्यक्तित्व के दो व्यक्तियों का मिलना,मित्रता होना प्रेम होना फिर दोनों शादी के अटूट बंधन में बंध जाना  ! प्रेम विवाह 
एक खास किस्म का मेल मिलाप जिससे सारा उलझा हुआ पजल अचानक हल होने लगता है ! 

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

कवि, कविता और नेता …

कवि,कविता और नेता में तुकबंदी के साथ-साथ परस्पर गहरा संबंध भी होता है ! कवि प्राकृतिक प्रतिभा का धनी होता है साथ में एक बेहतर कवि बनने के लिए प्रतिभा, शिक्षा और निरंतर अभ्यास का होना भी बहुत जरुरी होता है ! लेकिन नेताओं को इसकी कोई जरुरत नहीं पड़ती ! इसके आलावा कवि के लिए एक बेहतर जिंदगी के लिए पर्याप्त धन भी चाहिए होता है वर्ना घर के ही लोगों के व्यंग्य बाणों का शिकार होना पड़ सकता है ! वैसे लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा बहुत कम कवियों पर होती है ! कवि की जान कविता में अटकी होती है नेताओं की जान कुर्सी में अटकी होती है इसलिए नेताओं को सालों साल कुर्सी से ही चिपका हुआ हम अक्सर देखते है ! कवि नेताओं पर करोड़ों व्यंग्य कवितायेँ लिख सकता है पर सरकार नहीं चला सकता कभी देखा है आपने कवि को प्रधानमंत्री बनते हुए  ? नहीं न ?  कभी भूल चुक से ऐसा होता भी है अगर कवि प्रधान मंत्री बनता भी है तो भाई लोग उसे पसंद नहीं करते,कोई न कोई तिकड़म बाजी चलाकर उसे ऊपर गद्दी से निचे खिंच कर ही दम लेते है ! कविता लिखने में और सरकार चलाने में बहुत फर्क होता है ! ऐसा मेरा नहीं उनका मानना है ! उल्लू को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है और कवि भले ही धनी न हो पर ज्ञानी जरुर होते है ! कवि और नेता एक ही धरती पर निवास करते है पर एक थोडा संवेदनशील होता है एक बिलकुल ही निर्दयी कसाई की तरह होता है ! समाज और देश की अवस्था, व्यवस्था देख कर कवी रोता है पाठकों को रुलाता है प्रभावित होता है और उसे अपनी रचनाओं में अभिव्यक्त करता है ! और नेता प्रभावित होने का नाटक जनता के सामने करता है मगरमच्छ के आंसू बहाता है ! खैर छोड़िये जितना लिखे कम लगता है !

एक कवि रोज घर में हो रही आर्थिक तंगी और चौबीस घंटे की कांव-कांव से तंग आकर आखिर कर सरकारी नाई बन गया ! और नेताओं के बाल काट कर उस होने वाली आय से घर परिवार का खर्चा पानी चलाने लग गया !
एक दिन एक नेता के बाल काटते समय नाई ने पूछा नेता जी से कि, साहब यह स्विस बैंक वाला मामला क्या है ?
नेताजी जोर-जोर से चिल्लाये और बोले, तू मेरे बाल काट रहा है या मेरी इन्क्वायरी कर रहा है ?
नाई ने कहा माफ कीजिये साहब गलती हो गई बस ऐसे ही पूछ रहा था !

फिर दूसरे दिन किसी दूसरे नेताजी के बाल काटते समय फिर वही सवाल पूछा, साहब यह काला धन क्या होता है ?
नेताजी गुस्से में बोले, तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझसे यह सब जानने की ??
नाई ने फिर से माफी मांगते हुए कहा, माफ कीजिये साहब बस ऐसे ही पूछ लिया गलती हुई !
दूसरे ही दिन सीबीआई वालों ने नाई बने कवि के यहाँ छापा मारा वैसे ढेरों अनछपी कविताओं के आलावा कुछ नहीं मिला उनको ! पूछताछ शुरू हो गयी ! सीबीआई ने नाई से सख्ती से पूछा, क्या तुम सिविल सोसायटी वालों के एजेंट हो ? नहीं नहीं साहब मै तो एक गरीब कवि हूँ घर में रोज आर्थिक तंगी से होने वाली कांव कांव से तंग आकर नाई का काम करने लगा था ! तो तुम बाल काटते समय नेताओं से इस प्रकार के फालतू सवाल क्यों पूछते हो ?? नाई ने कहा, बात दरअसल यह है कि, पता नहीं क्यों जब भी मै स्विस बैंक या काले धन की बात करता हूँ तो नेताओं के बाल अपने आप खड़े हो जाते है , इससे मुझे बाल काटने में आसानी हो जाती है ! बस यही वजह है कि मै नेताओं से इस तरह के सवाल पूछता रहता हूँ !

वजह चाहे जो भी हो बिग बॉस के घर में हो कि मेरे, आपके घर में, कई बार न इस चौबीस घंटे की कांव-कांव से मन बड़ा उब सा जाता है ! और इस उब को मिटाने के लिए चुटकुले से बेहतर और कोई उपाय नहीं लगता मुझे तो, पता नहीं आप उब को मिटाने के लिए क्या करते होंगे मै तो चुटकुले सुनती हूँ और सुनाती हूँ खैर ! यदि चुटकुला नेताओं पर हो तो वाह क्या बात है इनसे कोई बेहतर प्राणी चुटकुले के लायक और कोई हो ही नहीं सकता इसलिए यह चुटकुला सुनाया है कैसा लगा आपको ??
नहीं ऐसे मुस्कुराकर नहीं चलेगा मैंने जैसे कांव-कांव कर दिया है अब आप भी यहाँ आकर 
कांव-कांव कांव-कांव कर दीजिये  देखते है कौन कितने बेहतर तरीके से कांव-कांव करते है :):) !

 ( सूचना :  एक हप्ते के प्रवास में हूँ, वापिस आकर आप सबकी रचनाएं पढूंगी :) )

रविवार, 10 नवंबर 2013

मन को चाहिए चांद-तारे …

भोजन ,
तन की जरुरत है 
रोटी ,कपड़ा ,मकान 
मनुष्य की प्राथमिक 
आवशकतायें  है 
याने की , भूख 
जीवन का सबसे 
बड़ा सच है   !
लेकिन,
मन रूपी परिंदे को 
चाहिए चांद -तारे 
इस सच से परे 
सौंदर्य ,सपने ,
संगीत , काव्य 
इसे मन की 
भूख कहे अथवा 
मन का विलास  !
जब मन 
जीवन की संकुचित 
परिधि पर घूमकर 
कुंठित अनुभव 
करने लगता है ,
सच की खुरदुरी 
जमीन  जब कठोर 
लगने  लगती  है ,
तब वह गढ़ने 
लगता है अपना 
एक  नया आकाश 
जिसको नाम देता है 
प्रेम ,जहाँ  वो अपने 
कल्पना के सुंदर 
पंख फैलाकर स्वैर 
उड़ सके    … !!

शनिवार, 2 नवंबर 2013

तुम्हारी जय हो उल्लू भैया, जयजय कार उल्लू भैया !

तुम माता-पिता हम सबके, तुम्ही सबके भाग्य विधाता 
भिजवा देना दीवाली पर, गाडी,बंगला,एक करोड़ रुपया !
तुम्हारी जय हो उल्लू भैया  .... !


निर्धन कवियों के दुश्मन, ताऊ जी के तुम सगे चाचा !
तुम्हारे आगे पीछे दुनिया सारी, करती रोज ता - ता थैया 
तुम्हारी जय हो उल्लू भैया  … !


चारो ओर तुम्हारे भाई-भतीजे, सब के सब गुणकारी,   
चलाते भ्रष्ट तंत्र सरकारी, जनता का निकला दिवाला !
तुम्हारी जय हो उल्लू भैया  … !


हर शाख-शाख पर दीखते हो,तुम ही तुम बैठे हो भैया 
अब कैसे लगेगी पार हमारी,फंसी मंझधार में नैया !
तुम्हारी जय हो उल्लू भैया  … !


( मित्रों, दीपावली की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ )

सोमवार, 28 अक्तूबर 2013

दीवाली पर धमाके दार बंपर सेल …

सुनिये , सुनिये 
लगी है यहाँ 
दीवाली पर 
कविताओं की 
धमाके दार 
बंपर सेल  !
जांच परख कर 
ले लीजिये 
स्नेह के बदले 
तोल मोल  !
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मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

बादलों में क्यों छुप गए हो आज ...

ओ चाँद ,
चमक तुम्हारी 
बढ़ जायेगी  खास 
फलक पर आओ 
हम भी  महक 
लेंगे  जरा   … 

रूप  अपरूप 
निहार लेंगे 
जी भर कर 
शीतल तुम्हारा 
तुम भी निहार लो 
हमें  जरा   … 

प्यार और पूजा के 
बीच का भाव स्वीकारो 
बादलों  में  क्यों 
छुप गए हो  आज 
स्याह बादल हटाओ  
तो जरा    … 

शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

सपना और यथार्थ …

एक प्राचीन कथा के अनुसार ब्रम्हा ने जब सृष्टि की रचना की तो साथ में यथार्थ और सपने को भी बनाया था ! पर जैसे ही दोनों की रचना हुयी झगडा शुरू हुआ दोनों में कौन श्रेष्ठ है  इस बात का ! यथार्थ ने कहा तुमसे मै श्रेष्ठ हूँ ! सपने ने कहा की मै श्रेष्ठ हूँ ! दोनों का झगडा ब्रम्ह देव तक गया ! दोनों को यूँ झगड़ते देख ब्रम्हा ने कहा अभी सुलझाते है प्रयोग से इस झगड़े को ! उन्होंने कहा कि, तुम में से जो भी अपने पैर जमीन पर गड़ाकर आकाश को छू लेगा वही श्रेष्ठ है ! ब्रम्हा की बात सुनते ही ततक्षण सपने ने आकाश को छू लिया लेकिन उसके पैर जमीन तक पहुँच न सके कारण सपने के पैर नहीं होते ! यथार्थ ने अपने पैर जमीन पर मजबूत गड़ाकर खड़ा हो गया जैसे की कोई पेड़ खड़ा हो, लेकिन ठूंठ की तरह पर हाथ आकाश तक पहुँच न सके क्योंकि यथार्थ के हाथ ही नहीं थे ! दोनों की ओर देखकर ब्रम्ह देव ने मुस्कुराते हुए कहा, कुछ समझ में आया तुम दोनों को ? 
सपना अकेला आकाश में अटक जाता है और यथार्थ अकेला जमीन पर भटक जाता है ! जब तक दोनों में मेल न हो जाए !
और मुझे इस कहानी से यही लगता है कि, सपने और यथार्थ का झगडा कभी मिटेगा नहीं! इसी सपने ने उत्तर प्रदेश में खंडहर हो चुके किले में एक हजार टन सोने के खजाने की खोज के लिए खुदाई का काम करवा दिया है ! मोदी जी ने सरकार के इस अभियान की धज्जिया उड़ाते हुए कहा कि, एक साधू के सपने के आधार पर खजाने की खुदाई से आज पूरी दुनिया में हमारा मजाक उड़ाया जा रहा है ! मुझे उनकी यह बात बहुत पसंद आयी ! यथार्थ परक बात यह थी कि, स्विट्जरलैंड के बैंकों में हिन्दुस्तान के चोर लुटेरों ने जो धन दबाकर रखा है वो एक हजार टन सोने से भी ज्यादा कीमती है किसी तरह उसे वापिस अपने देश लाया जाय तो कोई खजाना खोजने की जरुरत नहीं है ! उस सपने के तो न सर है न पैर है लेकिन इस यथार्थ का सच में सर भी है पैर भी है हम सब जानते है लेकिन काश लंबे हाथ भी होते ?? जो उस काले धन के खजाने तक पहुँच सके   … !! 

बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

कही विद्रोह न कर दे नारी ….

मत पसारे हाथ अपने 
किसी के भी सामने 
दया के लिए वह 
चाहती हूँ  आज 
हर घर -घर में 
नारी सक्षम 
होनी ही चाहिए  
तभी ,
सही मायने में 
नवरात्रि  का उत्सव 
शक्ति की पूजा 
सार्थक कहलाएगी  !
लेकिन गाँव,कस्बों में 
आज भी 
विद्या से वंचित है 
सरस्वती 
पैसे -पैसे के लिए 
मोहताज है
 लक्ष्मी 
दुर्बल कितनी ही 
है  गौरी , दुर्गा 
सबके खाने पर 
बचा खुचा खाती है 
अन्नपूर्णा  आज भी ,
जानती हूँ उनका डर 
पढ़, लिखकर 
आत्मनिर्भर बन कर 
उनके नियमों के खिलाफ 
कही विद्रोह 
न कर दे  नारी   … 

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

गांधी जी के तीन बंदर …


२ अक्तूबर को महात्मा गांधी का जन्मदिन है ! प्रति वर्ष हम सब इस दिन को गांधी जयंती के रूप में मनाते है ! इस दिन को सारी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है ! गांधी जी के तीन बंदर हम सबको बहुमूल्य शिक्षा देते हुए पहला बंदर जिसने अपने हाथ आँखों पर रखे है, कहता है बुरा मत देखो ! दूसरा बंदर जिसने अपने हाथ कानों पर रखे है, कहता है बुरा मत सुनों ! तीसरा बंदर जिसने अपने हाथ मुंह पर रखे है, कहता है बुरा मत बोलो ! इन तीन बहुमूल्य सूत्रों को हमारे देश का बच्चा-बच्चा जानता है इसके बावजूद जिस अनुपात में इन दिनों बुराई बढ़ते ही जा रही है जो कि, हम सब अख़बारों में पढ़ रहे है हमारे आसपास देख रहे है यह हमारे लिए चिंता का और चिंतन का विषय है ! 

आदमी का जिस प्रकार पतन होता जा रहा है पशु भी शरमा जाय देखकर ! क्यों आदमी के आचार और विचार में भिन्नता आ गई है इन दिनों ? सभ्य, सुशिक्षित,सुसंस्कारी कहलाने वाला आदमी भीतर से इतना विक्षिप्त ? देखकर मानवता भी भयाक्रांत है ! लेकिन भयभीत होने से समस्याएं मिटती तो नहीं ! क्या हमने इन सूत्रों को विस्मृत कर दिया है ? या कही भूल हो रही है इन्हें सोचने में समझने में ? आईये इसी संदर्भ में ओशो का एक प्रवचन सुनते है ! अक्सर मेरा प्रयास यही रहता है कि कुछ नया आप सबको सुनाऊ ताकि आप सबको एक नए दृष्टिकोण से परिचित करा सकूँ !

ओशो से किसी मित्र का प्रश्न है  यह बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो,बुरा मत बोलो, इन तीन सूत्रों के संबंध में 
आपका क्या कहना है ?
ओशो कहते है    … सूत्र तो जिंदगी में एक ही है   … बुरे मत होओ ! ये तीन सूत्र तो बहुत बाहरी है ! भीतरी सूत्र तो बुरे मत होओ वही है ! और अगर कोई भीतर बुरा है, और बुरे को न सुने, तो कोई अंतर नहीं पड़ता ! और अगर कोई भीतर बुरा है और बुरे को न बोले, तो कोई अंतर नहीं पड़ता ! ऐसा आदमी सिर्फ पागल हो जायेगा ! क्योंकि भीतर बुरा होगा ! अगर बुरे को देख लेता तो थोड़ी राहत मिलती वह भी नहीं मिलेगी ! अगर बुरे को बोल लेता तो थोडा बाहर निकल जाता, भीतर थोडा कम हो जाता, वह भी नहीं होगा ! अगर बुरे को सुन लेता तो भी तृप्ति मिलती, वह भी नहीं हो सकेगी ! भीतर बुरा अतृप्त रह जाएगा ! नहीं, असली सवाल यह नहीं है ! लेकिन आदमी हमेशा बाहर की तरफ से सोचता है !

असली सवाल है होने का, असली सवाल करने का नहीं है ! मै क्या हूँ, यह सवाल है ! मै क्या करता हूँ, यह गौण है ! भीतर मनुष्य क्या है, उससे करना निकलता है ! हम जैसे है वही हमसे किया जाता है ! लेकिन हम चाहे तो धोखा दे सकते है ! बुराई भीतर दबाई जा सकती है ! दबाई हुई बुराई दुगुनी हो जाती है !

मै यह नहीं कह रहा हूँ कि बुरा करें ! मै यह कह रहा हूँ,बुराई को दबाने से बुराई से मुक्त नहीं हुआ जा सकता ! बुरे होने को ही रूपांतरित होना है ! इसलिए सूत्र तो एक है कि बुरे न हों ! लेकिन बुरे कैसे न होंगे, बुरे हम है ! इसलिए इस बुरे होने को जानना पड़े, पहचानना पड़े ! यही मै कह रहा हूँ कि यदि हम अपनी बुराई को पूरी तरह जान ले तो बुराई के बाहर छलांग लग सकती है !

लेकिन हम बुराई को जान ही नहीं पाते,क्योंकि हम तो यह सोचते है कि बुराई कही बाहर से आ रही है ! बुरे को देखेंगे तो बुरे हो जायेंगे,बुरे को सुनेंगे तो बुरे हो जायेंगे, बुरे को बोलेंगे तो बुरे हो जायेंगे ! हम तो यह सोचते है कि बुराई जैसे कही बाहर से भीतर की तरफ आ रही है ! हम तो अच्छे है, बुराई कैसे बाहर से आ रही है ! यह धोखा है बुराई बाहर से नहीं आती बुराई भीतर है ! भीतर से बाहर की तरफ जाती है बुराई ! गुलाब में कांटे बाहर से नहीं आते, भीतर की तरफ से आते है ! फूल भी भीतर की तरफ से आता है, वह भी बाहर से नहीं आता ! भलाई भी भीतर से आती है, बुराई भी भीतर से आती है, कांटे भी भीतर से फूल भी भीतर से !

इसलिए बहुत महत्वपूर्ण यह जानना है कि भीतर मै क्या हूँ ? वहां जो मै हूँ, उसकी पहचान ही परिवर्तन लाती है, क्रांति लाती है ! लेकिन शिक्षाएं ऐसी ही बाते सिखाए चली जाती है ! वे बहुत उपरी है, बहुत बाहरी है ! इसलिए सारी शिक्षाओं ने मिल कर ज्यादा से ज्यादा आदमी के आवरण को बदला है, उसके अंतस को नहीं ! और आवरण बदल जाए इससे क्या होता है ? सवाल तो अंतस के बदलने का है ! आवरण सुन्दर हो जाए तो भी क्या होता है ? सवाल तो अंतस के सुंदर होने का है !

हाँ, एक कठिनाई हो सकती है कि आवरण सुंदर बनाया जा सकता है और अंतस कुरूप रह जाए, तो आदमी दो हिस्सों में बंट जाए, असली आदमी भीतर हो, नकली आदमी बाहर हो ! जैसा कि है एक आदमी है नकली,जो हम बाहर होते है, और एक आदमी है असली ,जो हम भीतर होते है ! वह जो भीतर है वही है ! और अगर कही कोई परमात्मा है तो उसके सामने जब हम खड़े होंगे तो वह जो भीतर है वही दिखाई पड़ेगा ! वह जो नकली है वह छूट जायेगा, वह साथ नहीं होगा !

इसलिए कोई क्रांति करनी है तो आचरण में करने की उतनी चिंता मत करना, अंतस में करना, क्योंकि अंतस से आचरण आता है ! लेकिन समझाया कुछ ऐसा जाता है कि जैसे आचरण ही अंतस है ! तब आदमी आचरण को ही बदलने में लग जाता है ! आचरण बदल भी जाए तो भी अंतस नहीं बदलता ! अंतस बदले तो ही आचरण बदलता है !

मै सुबह कह रहा था कि , अगर कोई गेहूं बोए तो भूसा भी पैदा हो जाता है ! गेहूं तो अंतस है, भूसा आचरण है, बाहर है ! लेकिन अगर कोई भूसे को बोने लगे,तो गेहूं तो पैदा होता नहीं, भूसा भी सड जाता है ! गेहूं बोना चाहिए, तो भूसा भी आ जाता है बिना बोए ! और भूसा बोया, तो गेहूं तो आता ही नहीं, भूसा सड जाता है ! आचरण भूसा है, अंतस आत्मा है !
                                     इसलिए सूत्र एक है     … बुरे मत होओ !

लेकिन बुरे हम है ,मत होओ कहने से क्या होगा ? बुरे मत होओ, इसका अर्थ हुआ कि जो हम है बुरे उसे जाने, पहचाने ! इतना तय है कि कोई आदमी अपनी बुराई को पहचान ले तो बुरा नहीं रह जाता, बुरा होना असंभव है ! न मालुम कितने हत्यारों ने अदालत में इस बात की स्वीकृति की है कि हम हत्या होश में नहीं किये है ! हम बेहोश थे तब हो गई यह बात ! और कुछ हत्यारों ने तो यह भी कहा है कि उन्हें स्मरण ही नहीं है उन्होंने हत्या कब की ! तो पहले समझा जाता था कि वे झूठ बोल रहे है ! लेकिन अब मनोविज्ञान उनकी स्मृति की खोजबीन करके कहते है कि वे ठीक बोल रहे है ,उनको पता ही नहीं उन्होंने इतने बेहोश हो गए क्रोध में कि हत्या कर गए, वह उनकी स्मृति ही नहीं बनी, जब वे होश में आये तब हत्या हो चुकी थी ! जो गहरे में जानते है, वे कहते है, आदमी बुराई करता है सदा बेहोशी में ! कोई भी आदमी बुराई को होश में नहीं करता, नहीं कर सकता ! इसलिए असली सवाल  है बेहोशी तोड़ने का है !

( नये समाज की खोज, से साभार प्रवचन -४ )

बुधवार, 25 सितंबर 2013

आज मॉर्निंग वाक पर !

इन दिनों सतीश जी का लिखने का उत्साह देखकर कितना अच्छा लगता है न एक मन ने कहा , एक के बाद एक नायाब शेर लिख मार रहे है ! और ताऊ जी  हर दुसरे दिन एक पोस्ट लिखने वाले पता नहीं इन दिनों कहाँ ग़ायब से हो गए है लगभग तीन हफ्ते से एक भी नई पोस्ट नहीं आयी उनकी !ब्लोगिंग के अलावा भी कितने सारे काम होते है किसी काम में व्यस्त होंगे दुसरे मन ने कहा  ! रश्मि प्रभा जी ने भी लिखना कितना कम कर दिया है ! संगीता जी भी पंधरा दिन को एक पोस्ट लिखती है ! रमण जी तो महीने में कभी एखाद पोस्ट डालते है अपने ब्लॉग पर, कुछ मित्रों की वजह से जो रौनक दिखाई देती है हमारे ब्लॉग जगत में पता नहीं क्यों आजकल कुछ सुना -सुना सा लग रहा है टहलते टहलते अचानक मेरे इन विचारों को ब्रेक सा लगता है, मेरे बाजू से जीतनी तेजी से मिसेज वर्मा और मिसेज शर्मा वाकिंग करते  हुए गुजर रही थी उतनी ही तेजी से आपस में टॉकिंग कर रही थी न चाहते हुए भी उनकी बाते मेरे कान में पड़ ही गई  … !

 मिसेज वर्मा मिसेज शर्मा से पूछ रही थी जो की दोनों अच्छी दोस्त भी है   । "लगता है आज अकेली ही आयी हो ? शर्मा जी नहीं आए टहलने क्या बात है ? पता नहीं तुम वर्मा जी को रोज सुबह टहलने कैसे ले आती हो ? मुझे इनको जगाने में बड़ी दिक्कत होती है "! सहेली की बात सुनकर वर्मा साहब की मिसेज ने कहा  … "वो भी कहाँ अपने आप जागते है मुझे जबरदस्ती जगा कर लाना पड़ता है आखिर घर के साथ साथ मुझे उनकी बढती तोंद का भी ख्याल रखना पड़ता है "! मै तो रोज सुबह उनको जगाने के लिए एक तरकीब अपनाती हूँ क्यों न तुम भी वह तरकीब अपनाओ ! कौन सी तरकीब ?सहेली ने पूछा ! मेरी जो पालतू बिल्ली है न मै उस बिल्ली को मजे से सो रहे अपने पति पर फेक देती हूँ ! लेकिन बिल्ली फेकने से कैसे कोई उठता है ?सहेली का मासूम सा प्रश्न सुन कर वर्मा साहब की मिसेज ने कहा   "उठना ही पड़ता है,क्योंकि वो अपने कुत्ते के साथ सोते है उनके कुत्ते और मेरी बिल्ली में जब घमासान युद्ध छिड़ता है अपने आप उठ कर टहलने आ जाते है बड़ा लाभदायक तरीका है आजमा कर देख लेना कल "! 

फिर उनकी बाते मेरे कान की पहुँच से बहुत दूर होती गई      ….! क्या मिसेज शर्मा  अपने सहेली की बतायी हुयी तरकीब अपनायेंगी कल ? क्या मॉर्निंग वाक् पर शर्मा जी टहलने आ जायेंगे ? आपके साथ साथ मुझे भी उत्सुकता है कल के सुबह की  … !

मंगलवार, 17 सितंबर 2013

ताजी चौकाने वाली खबर यह भी है …

दिन जो की 
कल भी वही था 
आज भी वही है 
जो कल आयी थी 
वही तो सुबह है !
हाथ में फीकी 
चाय की प्याली 
साथ में अख़बार 
अख़बार में वही 
बासी खबरे है !
भ्रष्टाचार,कालाबाजारी 
भ्रष्ट अफसर बेईमान नेता 
बाबाओं के वही सब 
काले चिट्टे कारनामे है !
नई सुबह में ऐसी 
क्या खास बात है ?
आम आदमी को प्याज 
कल भी रुलाता था 
आज भी रुला रहा है 
महिलाओं पर अत्याचार 
कल भी होते थे 
आज भी हो रहे है  !
ज्योति बुझाने वालों को 
क्या हक़ बनता है 
उजालों में रहने का ?
नाबालिग अपराधी को 
तीन साल की सजा ?
इस फैसले के दुसरे 
या तीसरे दिन से ही 
नाबालिग बलात्कारियों की 
संख्या में अचानक वृद्धि 
हुई है !
बासी ख़बरों के साथ-साथ 
आज की ताज़ी चौंकाने वाली 
खबर यह भी है  … !!

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

हमारे त्योहार …

इस बार गणेश चतुर्थी पर मेरा बेटा पुणे से हैदराबाद चार दिनों के लिए घर आया हुआ था ! महीनों हुए थे उसे देखे हुए अचानक शुक्रवार की सुबह सुबह उसे सामने देखकर मन में जो भाव थे बता नहीं सकती, आने की बिना खबर दिए अच्छा सरप्राईज दिया उसने हम सबको यहाँ आकर ! घर,परिवार,रिश्तेदार, गणेश चतुर्थी का त्यौहार इन सबके बीच काफी व्यस्त रही मै इन दिनों, न कुछ पढ़ना हुआ न कुछ लिखना हुआ नेट से दूर  … बस अपनों के बीच सबके साथ हँसते खेलते समय कैसे तेजी से बीत गया पता ही न चला ! सबकी अपेक्षाओं पर खरा उतरना एक गृहिणी के लिए बड़ा  मुश्किल काम होता है, खैर कल ही सभी रिश्तेदार अपने अपने घर चले गए है, बेटा वापिस पुणे अपने जॉब पर, आज से फिर मेरा अपना रूटीन शुरू हुआ है !

आप सबके क्या हाल चाल है ? आप भी त्यौहार के मजे ले रहे होंगे है न ? हमारे शहर में तो भगवान गणेश की पूजा अर्चना के साथ दस दिवसीय गणेशोत्सव प्रारंभ भी हो चूका है ! हर गली मुहल्लों ,सड़कों चौराहों पर विभिन्न आकार, प्रकार के गणेश प्रतिमाएं स्थापित कर भक्तगण विधिपूर्वक पूजा अर्चना कर रहे है ! घर-घर में मेरी जैसी गृहिणियां गणेश जी का मनपसंद भोजन "मोदक" बना रही है ! शहर के पंडालों में मै बड़ा की तू बड़ा कहते हुए जैसे होड़ सी लगी है इन गणेश जी की प्रतिमाओं में, क्यों न हो जिस गली का जितना अधिक चंदा उतने बडे गणपति बप्पा विराजमान हुए है ! पंडालों में पूजा अर्चना और प्रसाद वितरण के बाद  बच्चे,बड़े,बूढ़े सभी झूम रहे है नाच रहे है  " oppa gangnam style "  पर, मूषक पर सवार गणपति बप्पा भी खुश हो रहे है अपने भक्तों को झुमते हुए देख कर ! कुल मिलाकर हमारा हैदराबाद शहर इन दिनों भक्ति रस में डूबा हुआ है !दस दिवसीय गणेशोत्सव बड़े धूम धाम से मनाया जायेगा हमेशा की तरह और फिर विसर्जन !

जीवन के शोक,चिंता और दुखों को भुलाकर मनुष्य अपनों के साथ बैठकर कुछ पल मुस्कुरा सके, हंस बोल सके इन्ही सब बातों को ध्यान में रखकर हमारे त्योहार बने होंगे ! हर त्यौहार अपने-अपने  ऐतिहासिक,सामाजिक,धार्मिक महत्व को दर्शाते है जिससे हमारी संस्कृति को समझा जा सके लेकिन आज कल हर त्योहार उसके पीछे की जो भावना रही होगी उसे विस्मृत कर सिर्फ मौज,मस्ती और दिखावे भर के रह गए है आपको क्या लगता है ?

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

"फ्रेश फिश सोल्ड हियर "

मै ये हूँ, मै वो हूँ, उसकी कार से मेरी कार महँगी और बड़ी है, उसके बंगले से मेरा बंगला बड़ा है,उसके मठ से मेरा मठ बड़ा है, उसके चेलों से मेंरे चेले अधिक है, … हम हमारे चारो ओर इसी फाल्स इगो का प्रसार प्रचार होता हुआ अक्सर देखते है ! क्या कभी किसी ने इस मै मै कहने वाले इगो को कभी देखा है ? काश हम इस इगो को समझ पाते खोज पाते,जो भीतर कही है ही नहीं, हम भी उस दुकानदार की तरह सारी तख्तियां निकाल फेंकते जो की केवल दुकाने चलाने के लिए हमारे स्वभाव पर हमने लटकाई हुई है, जिससे हमारा वास्तविक स्वभाव ढक सा गया है ! क्यों न हम उस कहानी को ही सुने जिससे मेरी बात अधिक स्पष्ट हो  ! 

एक गांव में एक आदमी ने मछलियों की एक दुकान खोली, उस गांव में यह पहली ही दुकान थी इसलिए दुकानदार ने बहुत सुन्दर तख्ती बनवाई और उसपर लिखवाया कि, "फ्रेश फिश सोल्ड हियर" अर्थात यहाँ ताजी मछलियां बेचीं जाती है ! पहले दिन पहला ग्राहक आया और उसने उस तख्ती को देखकर कहा  … "फ्रेश फिश सोल्ड हियर " ? कही बासी मछलियां भी बेचीं जाती है ? ताज़ी लिखने की क्या जरुरत है ? दुकानदार ने सोचा ग्राहक ठीक ही तो कह रहा है सो उसने "फ्रेश"शब्द तख्ती से हटा दिया अब रह गया था सिर्फ "फिश सोल्ड हियर" याने की मछलियाँ बेचीं जाती है ! फिर दुसरे दिन एक बूढी औरत आयी और उसने उस तख्ती को देखकर कहा "फिश सोल्ड हियर" ? यहाँ नहीं तो कही और भी मछलियाँ बेचते हो क्या ? उस दुकानदार ने सोचा बूढी औरत सच ही तो कह रही है "हियर" शब्द बिलकुल बेकार है सो उसने उस शब्द को हटाकर केवल तख्ती पर लिख दिया "फिश सोल्ड" ! फिर तीसरे दिन एक आदमी ने उस तख्ती को देखकर कहा "फिश सोल्ड" का क्या मतलब है भाई, मुफ्त भी देते हो क्या  ? उस दुकानदार को लगा यह आदमी भी सच कह रहा है सोल्ड शब्द भी बेकार है सो उसने उसे भी हटा दिया अब सिर्फ उस तख्ती पर रह गया "फिश" ! 

अगले दिन एक बुढा व्यक्ति आया उसने उस तख्ती को देखकर कहा  …  "फिश"? अरे भाई किसी अंधे को भी दूर से ही पता चलता है कि,दुकान में मछलियाँ है दूर से ही इनकी बास जो आ रही है फिर फिश लिखने की क्या जरुरत है ? दुकानदार को लगा यह व्यक्ति भी सही कह रहा है सच में मछलियों की गंध से ही पता चलता है फिश लिखने की कोई जरुरत नहीं है सो उसने फिश शब्द को भी निकाल दिया ! अब सिर्फ दुकान पर खाली तख्ती लटकी हुई थी !
फिर अगले दिन और एक आदमी आ गया उसने उस खाली तख्ती को देखकर कहा   "क्यों भाई व्यर्थ की खाली तख्ती लटकाई है ? इस तख्ती से दुकान पर आड़ पड रही है " और उसके बाद उस दुकानदार ने उस तख्ती को भी निकाल कर फ़ेंक दिया ! एक एक करके हर व्यर्थ चीज हटती चली गई अंत में बच गया था केवल खाली स्पेस,केवल शून्य जो की हमारा स्वभाव है लेकिन हमने न जाने इस प्रकार की कितनी ही मै,मै की तख्तियां उस स्वभाव पर लटकाई 
हुई है !


सोमवार, 26 अगस्त 2013

गाओ इसलिए कि जीवन है गीत … !

जो गीत 
हम गा रहे है 
वही तो गा रहे है 
ये पेड़,ये पौधे 
ये पंछी,ये निर्झर 
निष्प्रयोजन 
किसी खास 
लौकिक प्रयोजन 
के लिए नहीं, 
सृजन 
अपने आप में 
आनंद है ख़ुशी है 
अपने होने का 
प्रकृति के प्रति 
धन्यता का 
काव्यमय जीवन
प्रकृति का सुन्दर 
वरदान है हमारे लिए 
यही प्रयोजन भी,
गाओ इसलिए कि
कर्म है गीत 
गाओ इसलिए कि 
धर्म है गीत 
गाओ इसलिए कि 
प्रेम है गीत 
गाओ इसलिए कि 
अहोभाव है गीत
गाओ इसलिए कि 
जीवन है गीत  …. !!

रविवार, 18 अगस्त 2013

जीवन क्या है ? चाय की प्याली !

सुबह कभी अख़बार देर से आता है तो कुछ लोग बड़े परेशान, बेचैन हो जाते है ! सुबह का अख़बार और सुबह की चाय इन दोनों का हमारे जीवन में बडा गहरा नाता बन गया है इनके बिना लगता है जिंदगी अधूरी और फीकी-फीकी सी है ! फिर राजनितिक मुद्दों पर बहस, चर्चाये व्यर्थ की बकवास करने में सुहानी सुबह उनके हिसाब से तभी सार्थक हो जाती  है !

आपको पता है झेन गुरु सुबह की चाय भी मजे से ध्यान में पीते है उनके लिए चाय भी महज चाय नहीं है, बहुत महत्वपूर्ण बात है ! एक ऐसे ही झेन गुरु सुबह की अपनी चाय पी रहे थे इतने में एक आगंतुक ने उनसे पूछा, जीवन क्या है ? लगता है आने वाला कोई बहुत बड़ा विचारक रहा होगा, गुरु ने कहा   … "चाय की प्याली" आगंतुक को बड़ा आश्चर्य हुआ यह कैसा जवाब है ? चाय की प्याली ! उसने कहा मैंने बहुत सारी किताबे पढ़ी पर ऐसा जवाब कही नहीं मिला यह भी कोई बात हुई भला ? मै आपके इस जवाब से राजी नहीं हो सकता ! गुरु ने कहा, तुम्हारी मर्जी राजी हो या मत होना ! जीवन की प्याली को चाहे चाय की प्याली कहो, अथवा चाय की प्याली मत कहो क्या फर्क पड़ता है !जीवन विराट है और हमारी बुद्धि जीवन की अपेक्षा में बहुत ही छोटी है ! एक नहीं दो नहीं यक्ष सवाल हमारे दिमाग में रोज मचलते रहते है और जवाब एक भी सटीक नहीं मिलता ! तब हम कुछ जवाब रट लेते है और समझते है कि, 
जवाब सटीक दिए है, नतीजा ? जिवंत सवाल और मुर्दा जवाब ! 

जीवन की सार्थकता सवालों को सुलझाने में नहीं पल-पल जीवन के अनुभव से गुजरने में है,हंसी,ख़ुशी से जीने में है, सबके साथ इस अनुभव को बांटने में है ! अनुभव भरी अभिव्यक्ति पर कभी कूड़ा, कचरा कहकर निंदित मत करो जो अपने विचारों का सम्मान करता है वही दूसरों के विचारों का सम्मान कर सकता है !सम्मान और अहंकार बहुत भिन्न बाते है स्मरण रहे ! 

जीवन यदि कोई सवाल होता तो हमने अब तक इसका जवाब दर्शन शास्त्र में खोज लिया होता ! जीवन को जब तक जियेंगे नहीं जानेगे कैसे कि, क्या है ? फिर कैसे सवाल कैसे जवाब, जीवन न सवाल है न जवाब है मेरे हिसाब से रोज एक नये अनुभव से गुजरने का नाम जीवन है !

सोमवार, 12 अगस्त 2013

ऐलिस इन वंडरलैंड ….

 ऐलिस भाग रही थी परियों के देश जाने के लिए ! जहाँ कल्पवृक्ष होगा, खाने को बहुत सारे पकवान,मिठाइयाँ,बहुत से प्रकार के फल जो कभी उसने सपने में भी देखे नहीं थे,मीठे पानी के झरने आहा स्वर्ग सा आनंद क्या कुछ नहीं मिलेगा वहां ? वह भागती गई भागती गई आखिर परियों के देश पहुच गई  … उसने देखा दूर कल्पवृक्ष की छाया में परियों की रानी खड़ी मुस्कुरा रही है और उसे पास आने के लिए इशारा कर रही है ! उसने अपने आस पास देखा कितना सुन्दर है परियों का देश बिलकुल मेरे देश से अलग,वह सब है यहाँ जिसकी उसने कभी कल्पना की थी ! इसीलिए तो जमीन से स्वर्ग तक आने के लिए बड़े प्रयास किये है ! सूरज उग रहा था वह परियों की रानी की दिशा में भागने लगी, सुबह से दोपहर हो गई भागते-भागते उसने खड़े होकर देखा अभी भी रानी और उसके बीच में उतने का उतना ही फासला है !भूखी प्यासी ऐलिस थक गई थी उसने जोर जोर से चिल्लाकर रानी परी से कहा "मै थक गई हूँ भागते-भागते लेकिन अभी तक तुम तक पहुँच नहीं पायी क्या बात है रानी परी "? 

रानी परी ने कहा,सोचो मत, जो सोचता है फिर वह दौड़ नहीं पाता इसलिए सोच म़त बस दौड़ती चलो घबराओ मत, दौड़ो जरुर पहुँच जाओगी ! ऐलिस फिर से दौड़ने लगी सूरज ढलने लगा साँझ से रात होने लगी दौड़ते-दौड़ते उसने फिर चिल्लाकर पूछा रानी परी से "रानी परी यह कैसी समस्या है दौड़ते दौड़ते थक गई हूँ अब तो साँझ से रात भी होने लगी है फिर भी तेरे मेरे बीच फासला ज्यों का त्यों बना हुआ है ! रास्ता अभी भी उतने का उतना ही पार करना है !यह मामला क्या है ? यह कैसी तुम्हारी दुनिया है जहाँ कितना ही कोई दौड़े रास्ता कभी ख़तम ही नहीं होता ? रानी परी ऐलिस की बाते सुनकर हंसने लगी, उसने कहा पागल लड़की किसी भी दुनिया में कोई कितना भी दौड़े कहीं नहीं पहुंचता ! कोई भी रास्ता कभी पूरा नहीं होता, जो भी पाना था  उसके पीछे दौड़ते दौड़ते एक दिन खड़े होकर देखोगी तो फासला उतना ही रहेगा जहाँ से शुरू किया था !

आज मै भी इस वंडरलैंड की ऐलिस बन गई हूँ ! शब्दों के पीछे दौड़ते दौड़ते थकान सी महसूस होने लगी है ! रुकने का मतलब है फिर से कोई तनाव पाल लेना ! दौड़ने का मतलब है बहुत सारा तनाव पाल लेना ! तय नहीं कर पा रहीं हूँ कि क्या करू ? यह कैसी दुनिया है फंतासियों की ? यह कैसा शब्दों का जादुई सम्मोहन है जिससे दूर रहा नहीं जाता !क्या जिंदगी के बासीपन से दूर रखने के लिए हमेशा इसी प्रकार से खुद को गतिमान रखे ? नकारात्मक उर्जा के पनपने के डर से,साफ सुथरे विचारों की अभिव्यक्ति कर ,सकारात्मक उर्जा स्त्रोत से जुड़े रहे ? क्या करे, कोई समाधान है ? क्या  इस ऐलिस के लिए इस वंडरलैंड के किसी रानी परी के पास इन सब प्रश्नों का कोई सटीक जवाब है   …. ??




बुधवार, 7 अगस्त 2013

मौसमी फूल …

कुछ फूल 
मौसमी होते है 
जो विशेष मौसम 
में ही पौधों पर  
खिलते है 
अपने रूप,रंग,
गंध से माली को 
ही नहीं, भौरों,
तितलियों को 
आते-जाते राह 
पथिकों को अपने 
सौन्दर्य से पल भर 
आवाक कर 
देते है  … !
कुछ फूल पौधों पर 
सदाबहार खिलते है 
अपनी विशेष 
खुशबु से भौरों,
तितलियों को 
आकर्षित तो करते 
ही है लेकिन 
आस पास के 
सारे परिसर को 
प्रदूषण मुक्त भी  
रखते  है  … !
इन,
मौसमी फूलों का 
पौधों पर खिलना 
सदाबहार फूलों का 
सदाबहार होना 
क्या इसे प्रकृति की 
भूल माने या की 
चमत्कार  …. ??