शनिवार, 26 नवंबर 2011

एक पल तो जी ले !

कहाँ मिलेगी
स्नेह तरु की
सघन छाँव !
भटक-भटक कर 
थक गए अब 
ये प्राण !
किसने दिया जो 
ऐसा श्राप
जीवन हुआ 
अभिशाप 
कही ममता की 
छाँव नहीं
जीना कितना 
दुश्वार हुआ !
उगने चाहिए थे
गुलाब 
पेड़ बबुल का
उग रहा !
आओं प्रिय ...
जंगल चले 
पेड़-पौधों की 
छाँव तले !
फूलों संग बैठ 
तितलियों से 
गुफ्तगू कर ले !
प्यार के कुछ
मधुर गीत गायें 
आओं ....
उस मस्ती के 
पल में 
एक पल तो 
जी ले !

रविवार, 20 नवंबर 2011

मॉर्निंग वॉक ...........


जैसे ही सर्द हवाएँ बहने लगी है सर्दी का मौसम आने का संकेत मिल गया ! इस सर्दी में हमें गरमी का अहसास दिलाने अलमारी में कबसे आराम फरमा रहे स्वेटर, शॉल, रजाई सब बाहर निकल कर आ गए है !
सर्दी के इस मौसम में सबको देर तक बिस्तर में दुबक के सोना बहुत अच्छा लगता है ! रोज सुबह जल्दी उठने वाले लोग भी कई बार आलार्म बंद करके फिर सो जाते होंगे है ना ? मेरे साथ भी कई बार ऐसा ही होता है !  सुबह पांच बजे बजने वाली आलार्म बंद कर के फिर सो जाने का मन करता है ! भले ही इन दिनों उठने का मन न करता हो पर अच्छे स्वास्थ्य के लिये उठना तो जरुरी है ! दिनभर के कितने सारे काम जो पड़े रहते है ! काम घर के हो चाहे ऑफिस के दिनभर उर्जावान बने रहना सबके लिये जरुरी है ! उर्जावान बने रहने के लिये हर कोई कुछ न कुछ शारीरिक श्रम करते ही होंगे जैसे की, व्यायाम, यौगिक क्रियाये, ध्यान प्राणायाम वगैरे! इन दिनों मॉर्निंग वॉक भी सेहत के लिये बहुत अच्छी होती है ! एक जैसी दिनचर्या से मन उब सा जाता है !
मुझे मौर्निंग वॉक के लिये osmaniya university के आजू-बाजू का जो सुंदर प्रदेश है वही सबसे उपयुक्त लगता है ! बड़े-बड़े वृक्ष, दूर-दूर तक फैली हरियाली, फूलों से लदे पेड़-पौधे बहुत ही रमणीय स्थान है ! सुबह-सुबह यहाँ पर टहलने बहुत सारे लोग आते है ! हमारे घर के बिलकुल पास में है !
जब भी घर से निकलती हूँ सबसे पहले एक अद्भुत नजारा देखने को मिलता है ! वह है हमारे पडोसी मिस्टर शर्मा जी के बाड़े में लगे हुये पेड़ों के सुंदर फ़ूल ! रास्ते से आने-जाने वालों का ध्यान अपनी ओर  आकर्षित कर लेते है ! अभी कुछ दिन पूर्व ही रिटायर्ड हुये वर्मा साहब जब इस रास्ते से टहलने निकलते है तो उनके हाथ में एक प्लास्टिक की थैली होती है ! और वे इन सुंदर फूलों को तोड़-तोड़ कर थैली में भर रहे होते है ! खुद को धार्मिक कहलाने वाले वर्मा जी को देखकर संकोच वश मै तो कुछ कह नहीं पाती ! पर मन में सोचती हूँ की भगवान के चरणों में  अगर फ़ूल चढ़ाना इतना ही जरुरी है तो, चढ़ा देते अपने दो रूपये के खरीदकर ! यह कैसा धर्मिक अपराध है ? क्या इससे भगवान खुश होंगे ? खैर ....इनके अलावा सुबह-सुबह दिखाई देते है अपने सायकल पर घर-घर जाकर पेपर पहुंचाते पेपरवाले, सड़क के बाजू में सुबह चार बजे से ही दूध के पैकेट बेचने बाले दूधवाले, बंडी पर चाय बनाता चायवाला ! सर्दी में गर्मागर्म चाय का मजा लेते लोग ! जैसे जैसे यूनिवर्सिटी का परिसर करीब आने लगता है सुगन्धित हवा नाकसे टकराकर रोम-रोम में नवस्फूर्ति का संचारण कर देती है ! कतारबद्ध वृक्षों को देखकर ऐसा लगता है जैसे अपनी साधना में लीन साधक बैठे है ! दूर-दूर तक हरियाली और उसपर पड़ी ओस की बुँदे मोतिसी चमकती है ! अपने-अपने घोसलों से निकलकर इस शाख से उस शाख पर फुदकते पंछी ! सारा वातावरण इनके मधुर कलरव से भर जाता है ! इन सब नजारों को देखते हुये टहलने का मजा ही कुछ ओर होता है ! तन और मन दोनों प्रसन्नतासे खिल उठते है ! शरीर फिरसे काम करने के लिये रिचार्ज हो जाता है ! सुबह का भ्रमण आपको तरोताजा और उर्जावान बना देता है ! बशर्ते की आपके हाथ में कुत्ता,कानों में इअर फोन और रास्ते पर चलते हुये अपने मित्रों से व्यर्थ की मुद्दों पर बहस बाजी न हो तभी ! प्रकृति हमसे अनेक-अनेक रूप धारण कर बात कर रही है ! लेकिन उसे सुनने के लिये एक संवेदनशील मन भी चाहिए !
जब वापसी में घर लौट रही होती हूँ तो दिखाई देते है वही फूल रहित पेड़ ! बिलकुल सूने-सूने बिना फूलों के ! पर निराश नहीं ! अब भी हरी भरी पत्तियाँ कलियाँ उन पेड़ों की शोभा बढ़ा रहे है, ताकि फिर कल खिलकर आते जाते मनुष्यों को थोड़ी ख़ुशी थोड़ी मुस्कुराहट बाँट सके ! प्रकृति कितना सब हमें देकर भी कितनी खुश है ! है ना ? और हम स्वार्थी मनुष्य उसे वापिस कुछ लौटाना तो दूर की बात उसका अनेक अनेक तरीकों से दोहन करते है ! प्रकृति हमें देकर जितनी खुश होती है उतने हम उससे लेकर भी कभी खुश नहीं होते ! कभी नहीं ...........

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

भला बूंद की क्या औकात जो सागर के बारे में कुछ कह सके !



हिंदी साहित्य को चार भागों में विभाजित किया गया है - आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल, और आधुनिककाल ! हर काल में साहित्य का अपना अलग महत्व रहा है ! आज का युग वैज्ञानिक युग है ! इस आधुनिक युग में अद्वितीय चिन्तक, वैज्ञानिक, अभिनव क्रान्ति के प्रस्तोता "आचार्य रजनीश" जिनको सारा विश्व आज "ओशो" के नाम से जानते है ! उनका साहित्य आज के युग की ख़ास पसंद है ! उनका साहित्य तीस से भी अधिक भाषाओं में अनुवादित होकर विश्व के कोने-कोने में पहुँच रहा है ! पूना स्थित उनका ओशो कम्यून इंटरनॅशनल है ! विश्व के लगभग सौ देशो से साधक उनके आश्रम में हर साल आते है और अपने आप को ध्यान और साधना में डूबाते है ! कठिन से कठिन विषय को भी सरल बना कर सरस शब्दों में समझा कर नीरस विषय को भी मनोरंजक बना कर श्रोताओं को बहला फुसला कर अपने लक्ष्य की ओर प्रोत्साहित करना सचमुच ओशो जैसे शिक्षक को ही साध्य है ! वे अपने विचार किसी पर थोपते नहीं बल्कि उनको अंतर दृष्टी देकर सही मार्ग पर चलने को प्रेरित करते है ! बुद्ध, महावीर, मोहम्मद, जीसस. अष्टावक्र, कृष्ण और अनेक संत महात्माओं पर उनके अनेक प्रवचन उपलब्ध  है इतना ही नहीं राजनैतिक सामाजिक समस्याओं पर भी प्रकाश डाला है !

मजेदार बात यह है कि उन्होंने अपने हाथ से कुछ भी लिखा नहीं बल्कि अपने शिष्यों, प्रेमियों द्वारा संकलित किया हुआ है ! शिष्य और सद्गुरु के बीच बोला गया संभाषण है जैसे अभी-अभी सुबह खिले हुए ताज़े फूल !

ओशो का मतलब ओशोनिक (oceanic) याने की सागर ! एक ऐसा महासागर जिसके गर्भ में भिन्न-भिन्न प्रकारके अमूल्य रत्न भरे पड़े है ! यह महासागर कभी बुद्ध जैसा शांत गंभीर दीखता है तो कभी कभी रौद्र रूप धारण कर समाज में फैले अंधविश्वासों झूठी  परम्पराओं को, पाखंडों को  तेज रफ़्तार से बहा ले जाता है !
आज से बीस-बाईस साल पहले ओशो की एक पुस्तक मेरे हाथ में पड़ी ! इस पुस्तक को मैंने पढ़ा तो फिर उनको पढ़ती ही गयी जैसे जैसे घर में विरोध बढता गया वैसे वैसे उनसे लगाव भी बढ़ता गया अंततः प्रेम और श्रद्धा की  जीत हुई ! आज मेरे घर में सभी उनसे प्रेम करते हैं उनके साहित्य को बड़े चाव से पढ़ते है ! उस महासागर की मैं एक छोटी सी बूंद हु भला बूंद की क्या औकात जो सागर के बारे में कुछ कह सके ! मैंने उस सागर को चखा है आप सब से उस स्वाद को एक बार चखने के लिए अनुरोध करती हूँ ! फिर आप, आप नहीं रहेंगे बदल जायेंगे ! जीवन को देखने का दकियानूसी अंदाज़ भी बदल जाएगा ! ओशो कहते है"मेरा सन्देश कोई सिद्धांत, कोई चिंतन नहीं है ! मेरा संदेश तो रूपांतरण की एक कीमिया, एक विज्ञानं है" ! बुद्ध पुरुषों की अमृत धारा में ओशो एक नया प्रारंभ है !

संपर्क सूत्र 
ओशो कम्यून  इंटरनॅशनल
१७, कोरेगांव पार्क, पूणे,
महाराष्ट्र 
web site- http://www.osho.com