सोमवार, 24 नवंबर 2014

शब्द और मन की श्रेष्ठता …

चीन में प्रसिद्द दार्शनिक हुआ था जिनका नाम है लाओत्सू ! लाओ का मतलब होता है आदरणीय वृद्ध ! हमारे बहुत सारे वृद्ध केवल वृद्ध होते है आदरणीय नहीं होते आदर देना हमारी मज़बूरी होती है और त्सू का मतलब होता है गुरु ! लाओत्से एक ऐसे ही आदरणीय वृद्ध गुरु हुए है जिनके छोटे-छोटे बहुमूल्य उपदेश ही ताओ नाम से प्रसिद्ध हुए है ! लाओत्सू का एक एक विचार कितना मौलिक है आप इस विचार से लगा सकते है !

"मन की श्रेष्ठता उसकी अतल निस्तब्धता में है"  

और हमारे मन की   ?? यह तो हर कोई अपने अपने मन से पूछने जैसा सवाल है ! शब्दों से खेलना भी एक कला है जो जीतनी सफाई से शब्दों से खेलता है उतना ही बड़ा विद्वान कहलाता है ! जिसके पास जिंदगी का जितना गहरा अनुभव होता है उसी अनुपात में वह शब्दों में गोलाई और भावों में गहराई भर लाता है ! इसके आलावा नियमित वाचन लेखन का भी बहुत बड़ा योगदान होता है ! कई बार अच्छा अनुभवी भी अपने अनुभव को अच्छे शब्दों में अभिव्यक्त  नहीं कर पाता ! सारा खेल शब्दों का है, और हम तो शब्दों के इस खेल से ही तो सामने वालों की क्षमता का अंदाजा लगाते है ! खेले खूब खेले शब्दों के इस खेल से किसी को कोई मनाई नहीं है हमारा तो पेशा ही है शब्दों से खेलने का :)   !

शब्दों के इस खेल के पीछे बहुत सारे कारण होते है, कोई इसलिए शब्दों से खेलता है कि चुप रहना मुश्किल लगता है क्योंकि चुप्पी हमें काटती है बोलने के लिए शब्द उकसाते है बोलकर कहकर थोड़ा सुकून मिलता है ! कोई इसलिए बोलते है कि सारे लोग बोल रहे फिर मै ही चुपचाप सा क्यों  बैठूं ! ऐसे बहुत से कारण है जिसके विस्तार में हमें जाना नहीं है ! लेकिन क्या आपको पता है जहाँ शब्द हमें दूसरों से जोड़ तो देते है वही खुद से तोड़ देते है याने की दूर कर देते है  ! हम क्या है इसका परिचय शब्दों में बहुत कम निस्तब्धता में अधिक पाया जाता है ! निस्तब्धता हमें दूसरों से दूर करती है पर खुद के नजदीक कर देती है  ! लाओत्सू कहते है चुप रहना निस्तब्ध होना नहीं है !

 आपको याद होगा कई बार हम गुस्से में भी चुप बैठते है याने की चुप रहना नेगेटिव क्रिया है ! चुप रहने में और निस्तब्ध होने में जमीन आसमान का अंतर और गुणवत्ता का फर्क है ! यही फर्क लाओत्से केवल एक लाईन में ही हमें समझाते है वो कहते है  … "मन की श्रेष्ठता उसकी निस्तब्धता में है "  मतलब बोलने में नहीं ! और मुझे लगता है क्या पता निस्तब्धता को छूकर जब किसी के शब्द कंठ से बाहर आते होंगे तब इतने ही अद्भुत लगते होंगे जितने कि लाओत्सू के या किसी अन्य दार्शनिक, रहस्यदर्शियों के कवियों के लगते है ! 

कई बार किसी का एक छोटा सा विचार भी एक छोटी सी कविता भी मन को निशब्द कर देती है निस्तब्ध कर देती है !

गुरुवार, 6 नवंबर 2014

जो मृत्यु के पार न जाए वह संपत्ति नहीं है !

हम देखते है कि आज संसार के अच्छे बुरे हर काम पैसे के बल पर होते है ! निन्यान्नव प्रतिशत समस्यायें पैसे के द्वारा सुलझाई जा सकती है! आज का युग तो पैसों को ईश्वर की ताकत से ज्यादा ताकतवर मानता है ! हर घर-घर में उसीकी चर्चा उसीकी पूजा होती है ! मुर्ख को विद्वान बनाना रंक को राजा बनाना पापी को पुण्यात्मा बनाने की ताकत पैसे में है अर्थात आज के युग में पैसा ही सर्व शक्तिमान है ! मै मानती हूँ पैसे में कोई बुराई नहीं होती बुराई होती है मन के लोभ में लालच में, संपत्ति स्वाभाविक हो ईश्वरीय हो तभी सुखदायक होती है नहीं तो जीवन में अनेक विप्पति आती है इसी की वजह से ! तभी तो जाग्रत व्यक्तियों ने संपत्ति का त्याग कर दिया मतलब त्यागा नहीं छूट गया कहना ज्यादा बेहतर होगा !

 ऐसे ही एक अलौकिक संत हुए गुरु नानक देव जी जिन्हे सिखों का प्रथम गुरु माना जाता है ! उनके जीवन से जुडी बहुत सारी सुन्दर-सुन्दर घटनाएँ है इसी से जुड़ा एक प्रकरण है यह … नानक लाहोर के पास किसी गाँव में ठहरे थे ! एक व्यक्ति ने उनसे कहा, मै आपकी सेवा करना चाहता हूँ ! मेरे पास बहुत धन है आपके किसी उपयोग में लगा दूँ तो बड़ा अनुग्रह होगा ! नानक कई बार टालते गए लेकिन उसने फिर से दुबारा अपनी प्रार्थना नानक जी के सामने दोहराई ! नानक जी ने तब उस व्यक्ति को कपडे सीने के एक सुई देते हुए कहा, इसे रख लो और जब हम मर जाएं तो इसे वापिस लौटा देना ! सुई को मरने के बाद कैसे लौटाया जा सकता है वह व्यक्ति चौंक गया नानक जी की बात सुनकर,लेकिन लोगों के सामने कुछ भी पूछना उचित नहीं लगा एकदम अस्वीकार करना भी उचित नहीं था ! संकोच करते हुए सुई ले तो गया मगर रातभर सोचता रहा सोचता रहा सुई मृत्यु के पार कैसे जा सकेगी वह ग्लानि महसूस करने लगा कि नाहक उसने धन से सेवा करने की आकांक्षा की थी ! रातभर सो न सका सुबह पांच बजे ही भागता हुआ नानक जी के पास पहुंचा उनके पैरों पर गिर पड़ा और कहा, अभी जिन्दा हूँ यह सुई वापिस ले ले, मरने पर लौटाना मेरे बस की बात नहीं है ! मैंने बहुत चेष्टा की बहुत सोचा अपनी सारी संपत्ति भी लगा दूँ तो भी जिस मुट्ठी में यह सुई होगी वह इसी पार रहेगी उस पार ले जाने का कोई उपाय नहीं ! इस सुई को आप वापिस ले ले ! फिर मै तुमसे एक बात पूछूं ? तेरे पास क्या है जिसे तू पार ले जा सकता है ? उस व्यक्ति ने कहा, मैंने कभी इस बारे में सोचा नहीं लेकिन अब सोचता हूँ तो लगता है ऐसा कुछ भी नहीं है मेरे पास जिसे उस पार ले जा सकूँ ! फिर नानक जी ने कहा, जो मृत्यु के इस पार है वह केवल विपत्ति हो सकती है संपत्ति नहीं हो सकती ! कितनी सार्थक बात कही है सच में  जब तक संपत्ति से बड़ी कोई सार्थक की अनुभूति न हो  तब तक निरर्थक चीजे हाथ से छूटती नहीं !