गुरुवार, 24 मार्च 2011

मेरी प्रिय कहानी !


जरुरत से जादा वर्षा होने की वजह से इस साल फसल बहुत कम हुई थी ! यह देखकर एक किसान जोरजोर से रोने लगा चिल्लाने लगा भगवान् को भला बुरा कहने लगा हे निर्दयी ईश्वर तुम कितने निष्टुर हो फसलोंपर कभी जोरजोर से बारिश बरसाते हो तो कभी कम बरसाते हो, अधिक वर्षा से फसल तबाह हो जाती है तो कभी पानी के अभाव में सारी फसल मर जाती है कभी जादा धूप तो कभी आंधी ,तुफान तो कभी ओले बरसाकर सारी फसल नष्ट कर देते हो कैसे नादान हो तुम ईश्वर? तुम्हे तो यह भी पता नहीं की फसलों को कितनी धुप,कितनी वर्षा चाहिए! शायद तुम किसान नहीं हो ना इसलिए इन बातों का तुमको ज्ञान नहीं अगर मै तुम्हारी जगह होता तो फसलों को जरुरत के हिसाब से वर्षा करता ? संयोगवश वहांसे गुजरते अदृश्य ईश्वर की कानों मे किसान की बाते पड गयी ! वे ततक्षण किसान के सामने प्रगट हुये और कहा की हे किसान ऐसी बात है तो मै तुमको एक मन्त्र देता हूँ  उस मन्त्र का उपयोग कर जितनी वर्षा चाहिए,धुप चाहिए तुम मन्त्र का जाप कर प्राप्त कर सकते हो और अपने मनमुताबिक  फसल को प्राप्त कर सकते हो अगर कभी तुम्हे मन्त्र लौटाना हो तो मुझे याद कर लो मै तुम्हे यही मिलूँगा कहकर ईश्वर अन्तर्धान हुए ! किसान  बहुत खुश हुआ इस वर्ष उसने गेहूं की बुआई की और जरुरत के मुताबिक फसलों को खाद, पानी धुप देने लगा देखते ही देखते बिज जमीन में टूटकर अंकुर बने,फिर पौधे होते -होते गेहूं की फसल लहलहाने लगी सारा खेत गेहूं की फसल से भर गया था ! किसान मन ही मन अति प्रसन्न हुआ क्योंकि इस बार खूब फसल होगी और अच्छी कमाई की अपेक्षा है किन्तु फसल जब पककर काटने आयी तो किसान को अश्चर्य का धक्का लगा क्योंकि गेहूं की बालीयों में बीज ठोस नहीं थे ! सारे बीज कमजोर मरे-मरे से थे किसान छाती पीटकर रोने लगा सारी मेहनत वर्ष भर की बेकार जो गयी ! उसने ईश्वर को याद किया कमजोर बिजोंके बारे में पूछा तब ईश्वर ने कहा अरे नादान किसान जब तुम जमीन में बीज बोते हो तो मै कभी धुप कभी छाँव कभी वर्षा तो कभी आंधी तुफान भेजता हूँ इन सबसे लड़कर हि तो बीज पकते है फसल बढती है ! संघर्ष से हि तो बीज पक्के और ठोस बनेंगे ! किसान को सारी बात समझ में आई उसने ईश्वर का दिया हुआ मन्त्र वापिस लौटा दिया !
               छोटी-छोटी असफलता के चलते आयेदिन पत्रिकाओं की सुर्खियोंमे किसी पढेलिखे युवा द्वारा आत्महत्या की खबर पढ़ती हूँ तो मुझे यह कहानी याद आती है ! जीवन की हर छोटी बड़ी समस्याओं से हिम्मत से लड़कर ही तो कोई समाधान पाया जा सकता है ! हर मुश्किल का हल केवल आत्महत्या तो नहीं हो सकता संघर्ष से हि तो जीवन में परिपक्वता आती है ! 

बुधवार, 16 मार्च 2011

महाविकास या महाविनाश !


जब हिरोशिमा नागासाकी पर पहला अणुबम गिरा तो लाखो लोग सोते-सोते ही समाप्त हो गए  थे!  आज  जापान में यही स्थिति कुदरत ने पैदा कर दी है!
!कुदरत के इस विनाशकारी भूकंप ने जापान को उसी कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है !फुकुशीमा परमाणु सयंत्र के चौथे रिएक्टर में फिर से आग लग गई है जिसपर काबू नहीं पाया जा सका  ४८ घंटे जापान ही नहीं पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे !
        आइन्स्टीन को किसी ने  पूछा था तीसरे महायुद्ध में किन-किन अस्रों शस्त्रोंका प्रयोग होगा? आइन्स्टीन ने कहा तीसरे का तो पता नहीं लेकिन चौथे के बाबत मै बता सकता हूँ पूछने वाला बहुत हैरान हुआ तीसरे के बाबत पता नहीं पर चौथे के बारे कैसे बता सकते है उसने पूछा तब आइन्स्टीन ने जवाब दिया की अगर चौथा महायुद्ध हुआ जिसकी कोई सम्भावना नहीं है, तो आदमी पत्थर के औजारोंसे लडेगा क्योंकि तीसरा महायुद्ध मनुष्य के सारे विकास को उसकी सारी समृद्धि को नाश कर देगा !
जानकारी के अनुसार दुनिया में प्रति घण्टा लगभग ५० करोड़ रूपये इस प्रकारके घातक विनाशकारी अस्त्रोंको बनाने में खर्च होते है २४ घंटोमे बारह अरब रूपये (यह अकड़े पुराने है अब जादा भी हो सकते है ) जब की हर तीन आदमियों में दो आदमी भूखे है ! विकास के नाम पर जो सामूहिक मरने की तय्यारी देशोंमे चल रही है इसे हम क्या नाम दे महाविकास या महाविनाश 

शनिवार, 5 मार्च 2011

मानव सेवा ही माधव सेवा

         संसार में आज मनुष्य  व्यस्तमय प्राणीयोंमेसे  एक है! अपने जीवन को सुखी और समृद्ध  बनाने के लिए हर एक मनुष्य प्रयत्नशील है समृद्धि चाहे धन  की हो, चाहे पद प्रतिष्ठा की, ज़िन्दगी की इस भाग दौड़ में किसी के पास इतना समय नहीं है की दो मीठे बोल, बोल सके मदद की बात तो दूर की है हमारी इच्छाएं उस सागर में उठने वाली लहरों की तरह है जो सागर में उठ रही है और गिर रही है परुन्तु पहुँच कही नहीं पाती, हमारी इच्छाएं भी उसी प्रकार है एक पूरी होते ही दूसरी फिर खड़ी हो जाती है शायद लहर कहीं पहुँच भी जाए पर हमारी इच्छाओं का कभी अंत ही नहीं होता ! 
          हम अधिकाँश कार्य अपने लिए ही करते है पर थोडा सा समय हम किसी ज़रूरत मंद के लिए  या परोपकार करने में लगाते  तो हमें मन का सच्चा आनंद प्राप्त होता है मदद किसी न किसी रूप में चाहे आर्थिक हो या अन्य तरीकोंसे हम जरुरतमंदकी, सेवा कर सकते है यही मानवता का सही धर्म है  जिससे हमें आत्मिक शांति और सुख मिलता है! हमें कुछ बाते प्रकृतिसे भी सीखनी चाहिए जो मनुष्य के कल्याण के लिए हमेशा तत्पर रहते है पेड़ हमें फूल फल और छाया देते है नदियाँ हमें जीवन जल देती है हरी भरी प्रकृति मनुष्य के मन को प्रफुल्लित करती है किन्तु बदले में हमसे कुछ नहीं मांगती है !
          भारतीय संस्कृति की पृष्ठभूमि मानव की कल्याण भावना पर ही निहित है वास्तव में परोपकार के समान दूसरा कोई धर्म और पुण्य नहीं है मानवता का उद्देश और हमारे जीवन की सार्थकता इसी में है की हम सदैव दूसरों के काम आये हमारे व्यस्तमय जीवन में से थोडा सा समय निसहाय्य लोगों के लिए खर्च करे उनकी सेवा में बिताए यही जीवन की सार्थकता है सच्चा आनंद तो पाने की बजाय किसी को देने से ही उपलब्ध होता है क्योंकि मानव सेवा की माधव सेवा है! सब सुखी हो सब निरोग हो सबका कल्याण हो किसी को भी जीवन में कोई दुःख न हो यही हमारे मन की भावनाएं होनी चाहिए!

                किसी कवी ने सच ही कहा है -
                               "The Best Way To Pray God
                                Is To  Love His Creation"  

                                                                
Published in(Magazine) -Lions Club Of Hyderabad Central City(Service Through Sacrifice)