मंगलवार, 12 नवंबर 2013

कवि, कविता और नेता …

कवि,कविता और नेता में तुकबंदी के साथ-साथ परस्पर गहरा संबंध भी होता है ! कवि प्राकृतिक प्रतिभा का धनी होता है साथ में एक बेहतर कवि बनने के लिए प्रतिभा, शिक्षा और निरंतर अभ्यास का होना भी बहुत जरुरी होता है ! लेकिन नेताओं को इसकी कोई जरुरत नहीं पड़ती ! इसके आलावा कवि के लिए एक बेहतर जिंदगी के लिए पर्याप्त धन भी चाहिए होता है वर्ना घर के ही लोगों के व्यंग्य बाणों का शिकार होना पड़ सकता है ! वैसे लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा बहुत कम कवियों पर होती है ! कवि की जान कविता में अटकी होती है नेताओं की जान कुर्सी में अटकी होती है इसलिए नेताओं को सालों साल कुर्सी से ही चिपका हुआ हम अक्सर देखते है ! कवि नेताओं पर करोड़ों व्यंग्य कवितायेँ लिख सकता है पर सरकार नहीं चला सकता कभी देखा है आपने कवि को प्रधानमंत्री बनते हुए  ? नहीं न ?  कभी भूल चुक से ऐसा होता भी है अगर कवि प्रधान मंत्री बनता भी है तो भाई लोग उसे पसंद नहीं करते,कोई न कोई तिकड़म बाजी चलाकर उसे ऊपर गद्दी से निचे खिंच कर ही दम लेते है ! कविता लिखने में और सरकार चलाने में बहुत फर्क होता है ! ऐसा मेरा नहीं उनका मानना है ! उल्लू को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है और कवि भले ही धनी न हो पर ज्ञानी जरुर होते है ! कवि और नेता एक ही धरती पर निवास करते है पर एक थोडा संवेदनशील होता है एक बिलकुल ही निर्दयी कसाई की तरह होता है ! समाज और देश की अवस्था, व्यवस्था देख कर कवी रोता है पाठकों को रुलाता है प्रभावित होता है और उसे अपनी रचनाओं में अभिव्यक्त करता है ! और नेता प्रभावित होने का नाटक जनता के सामने करता है मगरमच्छ के आंसू बहाता है ! खैर छोड़िये जितना लिखे कम लगता है !

एक कवि रोज घर में हो रही आर्थिक तंगी और चौबीस घंटे की कांव-कांव से तंग आकर आखिर कर सरकारी नाई बन गया ! और नेताओं के बाल काट कर उस होने वाली आय से घर परिवार का खर्चा पानी चलाने लग गया !
एक दिन एक नेता के बाल काटते समय नाई ने पूछा नेता जी से कि, साहब यह स्विस बैंक वाला मामला क्या है ?
नेताजी जोर-जोर से चिल्लाये और बोले, तू मेरे बाल काट रहा है या मेरी इन्क्वायरी कर रहा है ?
नाई ने कहा माफ कीजिये साहब गलती हो गई बस ऐसे ही पूछ रहा था !

फिर दूसरे दिन किसी दूसरे नेताजी के बाल काटते समय फिर वही सवाल पूछा, साहब यह काला धन क्या होता है ?
नेताजी गुस्से में बोले, तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझसे यह सब जानने की ??
नाई ने फिर से माफी मांगते हुए कहा, माफ कीजिये साहब बस ऐसे ही पूछ लिया गलती हुई !
दूसरे ही दिन सीबीआई वालों ने नाई बने कवि के यहाँ छापा मारा वैसे ढेरों अनछपी कविताओं के आलावा कुछ नहीं मिला उनको ! पूछताछ शुरू हो गयी ! सीबीआई ने नाई से सख्ती से पूछा, क्या तुम सिविल सोसायटी वालों के एजेंट हो ? नहीं नहीं साहब मै तो एक गरीब कवि हूँ घर में रोज आर्थिक तंगी से होने वाली कांव कांव से तंग आकर नाई का काम करने लगा था ! तो तुम बाल काटते समय नेताओं से इस प्रकार के फालतू सवाल क्यों पूछते हो ?? नाई ने कहा, बात दरअसल यह है कि, पता नहीं क्यों जब भी मै स्विस बैंक या काले धन की बात करता हूँ तो नेताओं के बाल अपने आप खड़े हो जाते है , इससे मुझे बाल काटने में आसानी हो जाती है ! बस यही वजह है कि मै नेताओं से इस तरह के सवाल पूछता रहता हूँ !

वजह चाहे जो भी हो बिग बॉस के घर में हो कि मेरे, आपके घर में, कई बार न इस चौबीस घंटे की कांव-कांव से मन बड़ा उब सा जाता है ! और इस उब को मिटाने के लिए चुटकुले से बेहतर और कोई उपाय नहीं लगता मुझे तो, पता नहीं आप उब को मिटाने के लिए क्या करते होंगे मै तो चुटकुले सुनती हूँ और सुनाती हूँ खैर ! यदि चुटकुला नेताओं पर हो तो वाह क्या बात है इनसे कोई बेहतर प्राणी चुटकुले के लायक और कोई हो ही नहीं सकता इसलिए यह चुटकुला सुनाया है कैसा लगा आपको ??
नहीं ऐसे मुस्कुराकर नहीं चलेगा मैंने जैसे कांव-कांव कर दिया है अब आप भी यहाँ आकर 
कांव-कांव कांव-कांव कर दीजिये  देखते है कौन कितने बेहतर तरीके से कांव-कांव करते है :):) !

 ( सूचना :  एक हप्ते के प्रवास में हूँ, वापिस आकर आप सबकी रचनाएं पढूंगी :) )

रविवार, 10 नवंबर 2013

मन को चाहिए चांद-तारे …

भोजन ,
तन की जरुरत है 
रोटी ,कपड़ा ,मकान 
मनुष्य की प्राथमिक 
आवशकतायें  है 
याने की , भूख 
जीवन का सबसे 
बड़ा सच है   !
लेकिन,
मन रूपी परिंदे को 
चाहिए चांद -तारे 
इस सच से परे 
सौंदर्य ,सपने ,
संगीत , काव्य 
इसे मन की 
भूख कहे अथवा 
मन का विलास  !
जब मन 
जीवन की संकुचित 
परिधि पर घूमकर 
कुंठित अनुभव 
करने लगता है ,
सच की खुरदुरी 
जमीन  जब कठोर 
लगने  लगती  है ,
तब वह गढ़ने 
लगता है अपना 
एक  नया आकाश 
जिसको नाम देता है 
प्रेम ,जहाँ  वो अपने 
कल्पना के सुंदर 
पंख फैलाकर स्वैर 
उड़ सके    … !!

शनिवार, 2 नवंबर 2013

तुम्हारी जय हो उल्लू भैया, जयजय कार उल्लू भैया !

तुम माता-पिता हम सबके, तुम्ही सबके भाग्य विधाता 
भिजवा देना दीवाली पर, गाडी,बंगला,एक करोड़ रुपया !
तुम्हारी जय हो उल्लू भैया  .... !


निर्धन कवियों के दुश्मन, ताऊ जी के तुम सगे चाचा !
तुम्हारे आगे पीछे दुनिया सारी, करती रोज ता - ता थैया 
तुम्हारी जय हो उल्लू भैया  … !


चारो ओर तुम्हारे भाई-भतीजे, सब के सब गुणकारी,   
चलाते भ्रष्ट तंत्र सरकारी, जनता का निकला दिवाला !
तुम्हारी जय हो उल्लू भैया  … !


हर शाख-शाख पर दीखते हो,तुम ही तुम बैठे हो भैया 
अब कैसे लगेगी पार हमारी,फंसी मंझधार में नैया !
तुम्हारी जय हो उल्लू भैया  … !


( मित्रों, दीपावली की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ )