शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

मन की शांति …

I can't sleep mom  I can't "  एक सैड स्माईली के साथ अभी कुछ दिन पहले वॉट्सअप पर मेरे बेटे का यह मेसैज था मेरे लिए ! जिस बच्चे की नींद खो गयी हो उसकी माँ चैन से कैसे सो सकती है भला ?? मैंने तुरत फुरत में फोन लगाया तो पता चला कि, ऑफिस में काम का प्रेशर बढ़ गया है, इसकी वजह से स्ट्रेस है समय पर न खाना हो रहा न सोना, सब कुछ जैसे अस्त व्यस्त सा हो रहा है इन दिनों उसने कहा  .... !

मेरे पिता एक मामूली किसान थे, उन्होंने अपने बच्चों को यहाँ हैदराबाद के हॉस्टेल में रखकर पढ़ाया लिखाया था ! अकसर मैंने अपने पिता को धुप,सर्दी,गर्मी, बारिश में अपने खेतों में कड़ी मेहनत करते हुए पाया पर कभी काम की वजह से प्रेशर और स्ट्रेस में मैंने उनको कभी नहीं देखा अंत तक !

जब इन्होने अपनी खुद की प्रैक्टिस शुरू की थी तो हमारे पास अलग से ऑफिस बनाने की ऐपत ही नहीं थी नाही ऑफिस में काम संभालने के लिए एक जूनियर को रखने की ! तब हमने तीन कमरे के छोटे से किराये के घर में एक कमरा ऑफिस का बनाया था ! हम दो हमारे दो बच्चे और इनके बहन का एक लड़का बड़े भाई का एक लड़का हमारे पास ही पढते थे,कुल मिलाकर छह प्राणी घर में,घर की नाजुक परिस्थिति देखकर मैंने एक फैसला किया था ! जैसे ही बच्चे स्कूल चले जाते मैंने अपनी अधूरी पढ़ाई फिर से शुरू की और साथ में टाईपिंग सीखी और इनके ऑफिस का सारा काम संभाल लिया ! इनके काम की फ़ीस के आलावा मुझे पेपर टाइपिंग के जो भी पैसे मिलते उससे घर की बहुत सारी जरूरते पूरी हो जाती ! इसके अलावा एक दो सीनियर वकीलों का काम भी ये कर देते थे तो बड़ी मुश्किल से इस काम के महीने को हजार रुपये मिलते थे तब ! कहने का मतलब संघर्ष हमेशा से ईमानदार लोगों के साथ रहा है , काम तब भी था आज भी है लेकिन हमने कभी काम का प्रेशर अपने ऊपर नहीं लिया न ही स्ट्रेस को जीवन में कोई जगह दी ! हसते खेलते हम अपना अपना काम करते गए करते गए, एक नहीं दो नहीं पुरे पच्चीस साल बीत गए इस कड़े संघर्ष में, तब जाकर हम अपने लक्ष्य पर पहुंचे ! लक्ष्य हमारा बहुत छोटा सा था अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा, एक बेहतर जीवन देने का, लेकिन बेटे के इस मैसेज ने मुझे यह सोचने पर मुझे मजबूर कर दिया कि, क्या हम कामयाब हुए है इसमे ?? 

सोचती हूँ आज की आधुनिक शिक्षा पद्धति ने हमारे बच्चों एक बेहतरीन कंपनी में नौकरी तो दी है लेकिन जीवन का आनंद नहीं दिया है, न चैन न सुकून भरी जिंदगी दी है, दी है तो केवल भाग दौड़, एक दूसरे के आगे होने की प्रतियोगिता, जिससे इन सब के बीच मन की शांति कही खो सी गयी है ! काम के इस स्ट्रेस को टेंशन को निजात पाने का क्या अच्छा तरीका निकाला है इन्होने देखिये वीकेंड को दोस्तों के साथ मिल बैठ कर या तो ड्र्ग्स लेने या फिर शराब जैसे मादक द्रव्यों का सहारा लेने का, इस बात का सबुत है आये दिन काम के प्रेशर की वजह से आत्महत्या करते आज की ये युवा पीढी जो रोज अख़बार की सुर्ख़ियों में रहती है ये खबरे ! 

जीवन के पॉजिटिव वैल्यू सिखाने वाली शिक्षा जैसे कि, संगीत,शिल्प,साहित्य को हमने पीछे रखा और बच्चों के आगे रखी एक ऐसी शिक्षा पद्धति जिससे जीवन का आनंद नहीं केवल पैसे कमाए जा सकते है, बैंक बैलंस बढ़ाया जा सकता है ! जो कमजोर है या तो पैसे कमाने का शार्ट कट अपनाएगा या फिर आत्महत्या कर लेगा, जो कमजोर नहीं है जिसने सारे प्रेशर को स्ट्रेस को पी गया है जो मशीनों के साथ बारह बारह घंटे चौदाह घंटे ऑफिस में काम कर के एक मशीन हो गया है भले ही उसके जीवन में आगे चलकर ऐशोआराम के न जाने कितने ही कीमती सामान उपलब्ध रहेंगे ! पर नहीं रहेगा तो बस समय उससे आनंद लूटने का, न मन की शांति रहेगी न समाधान ! ऐसा मनुष्य जीवन भर केवल दुखी ही रहेगा ! ये कैसी शिक्षा है ये कैसी नौकरियाँ है जिसमे युवावों की मन की शांति सुकून खो दिया है ? 

चलते-चलते एक बात कहूँगी मेरे बच्चों जैसे उन तमाम युवाओं के लिए है    … जोशुआ लिबमेन ने लिखा है   … "मै जब युवा था, तब जीवन में क्या पाना है इसके बहुत से स्वप्न देखता था ! फिर एक दिन मैंने उन सबकी सूची बनायीं जिन्हे पाकर व्यक्ति धन्यता को उपलब्ध हो जाता है ! स्वास्थ्य,सौंदर्य,सुयश,शक्ति,संपत्ति इस सूची को लेकर मै एक बुजुर्ग के पास गया और उनसे कहा कि क्या इन बातों में जीवन की सब उपलब्धियां नहीं आ जाती ? मेरी बातों को सुन कर मेरी बनायीं सूची को देखकर वे वृद्ध हंसने लगे और बोले " मेरे बच्चे, तुमने बहुत अच्छी सूची बनायीं लेकिन, सबसे महत्वूर्ण बात इसमे छोड़ दी जिसके अभाव में शेष सब व्यर्थ हो जाता है ! किन्तु, उस तत्व के दर्शन मात्र विचार से नहीं, अनुभव से ही होते है "! मैंने पूछा "वह क्या है ??" क्योंकि मेरी दॄष्टि में तो सब कुछ ही आ गया था ! उस वृद्ध ने उत्तर में मेरी पूरी सूची को बड़ी निर्ममता से काट दिया और उसकी जगह लिख दिया  "peace of mind" मन की शांति    .... !!

रविवार, 19 जनवरी 2014

अस्तित्व के साथ मिलकर ...

सृजनात्मक जीवन शैली 
जीने का सुन्दर ढंग है 
संपूर्ण सत्य नहीं,
इस सृजन से कितने लोगों ने 
तारीफ़ की कितनी टिप्पणियाँ 
मिली यह महत्वपूर्ण नहीं है 
महत्वपूर्ण है हम कितने 
आनंदित हुए इस सृजन से !
शब्द भी प्रवास करते है 
कंठ से लेकर कान तक 
समझने वाले अपनी-अपनी 
बौद्धिक क्षमता के अनुसार 
सोचते है समझते है !
तो फिर सत्य क्या है ?
प्रश्न एक पर उत्तर अनेक 
मेरा सत्य आपका नहीं 
आपका सत्य मेरा नहीं 
बुद्धि से परे इस सत्य को 
शब्दों में ढालना समझाना 
ऐसे ही है जैसे   … 
किसी अँधे व्यक्ति को 
प्रकाश के बारे में समझाना,
स्वभावता यह प्रश्न ही नहीं है
मेरे लिए 
सत्य न सोच है न समझ है !
अँधा व्यक्ति कैसे सोच समझ 
सकता है प्रकाश के बाबत ?
जीवन को महसूस करने का 
एक सुन्दर ढंग है सत्य 
इस विराट अस्तित्व में 
अस्तित्व के साथ मिलकर 
जीने का एक तरीका … !







शनिवार, 11 जनवरी 2014

एक संवेदनशील कवि और लेखक .....


"नारी जागरण का अर्थ यह बिलकुल नहीं कि हम अपने बड़ों की इज्जत करना भूल जाय, या बड़ों की निंदा करने और उन्हें खरी-खोटी सुनाने में गर्व महसूस करे ! यदि आप अपनी सास का सम्मान अपनी माँ की तरह करके, बच्चों में संस्कार की नीव डालने का कार्य शुरू करे, सास और ससुर के निर्देश अपने माता-पिता के आदेश की तरह स्वीकार करे, तो हर घर एक चहकता-महकता स्वर्ग बन सकता है " !
इन पंक्तियों को पढ़कर आप सबको निश्चित एक संवेदनशील कवि और लेखक हमारे ब्लॉग जगत के वरिष्ठ ब्लॉगर मित्र "सतीश सक्सेना" जी की  हाल ही में छपी उनकी पुस्तक "मेरे गीत" की याद आयी होंगी है ना ?  पेशे से इंजिनियर पर ह्रदय से बहुत ही भावुक प्रकृति के सतीश सक्सेना जी ब्लॉग जगत में किसी परिचय के मोहताज नहीं है !
अक्सर पारिवारिक मूल्यों की बात अपने गीतों में कहने वाले इस भावूक कवि ने अपनी पुत्री के जरिये उन लाखो करोडो पुत्रियों को "पिता का ख़त पुत्री को" से प्यारी सी वसीयत के रूप में अपने गीतों में कलमबद्ध किया है ! सच में उनकी बिटिया के जरिये हम सबको एक अनमोल तोहफा दिया है उन्होंने ! एक ख़ुशी की खबर आप सबसे शेअर करना चाहती हूँ जो की मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है यह पढ़कर :) !
हैदराबाद से निकलने वाली पत्रिका "डेली हिन्दी मिलाप " के रविवारीय परिशिष्ट "मिलाप मजा" में लगातार सतीश जी के बारे में, उनके गीतों को छाप रहा है यह हम सबके लिए बहुत गर्व की बात है ! सतीश जी, यह आपके "मेरे गीत" घर-घर पहुंचे और नए संस्कारों में पली बढ़ी आज की हमारी आधुनिक पीढ़ी पारिवारिक इन मूल्यों को आपके उन गीतों के जरिये जाने पहचाने यही मेरी कामना है ! इस पत्रिका में छपे आपके प्रकाशन पर बहुत बहुत बधाई हो आपको :)!

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

खतरे की बात है ...

ताजा मौसम की 
जानकारी के अनुसार 
इन दिनों 
कड़कड़ाती सर्दी ने 
पिछले सारे रिकॉर्ड 
तोड़ दिए है !
धरती से लेकर 
अम्बर तक 
जीवन,जनजीवन 
अस्तव्यस्त-सा 
दिखाई देने लगा है !
संक्रमण फैलाने वाले 
वायरस बढ़ गए है !
रजनी चाची देर तक 
सो रही है 
सूरज चाचा देर से 
जाग रहे है  !
बहकी-बहकी-सी 
चल रही पुरवाई है !
कई शहरों में शीत 
लहर चल रही है !
ठंड का खासा असर 
ब्लॉग जगत पर भी 
पड़ा है !
कुछ ब्लॉग चल ही 
नहीं रहे है !
कुछ ठंड से ठिठुर
रहे है !
कुछ तो बर्फ जैसे 
जम गए है !
डॉक्टर ध्यानचंद 
के कहे अनुसार 
ब्लॉगिंग के 
मरीजों के लिए 
यह खतरे की 
बात है    …:)

बुधवार, 1 जनवरी 2014

कभी फुरसत से फुरसत में आना … !

पेड़-पौधे जागे 
सुबह-सुबह 
फुरसत से 
फुरसत में, 
पंछियों ने मधुर 
गीत गाये 
सुबह-सुबह 
फुरसत से 
फुरसत में, 
कलि-कुसुमों पर 
भौरे इतराये 
सुबह-सुबह 
फुरसत से 
फुरसत में,
आज तन-मन 
व्यस्त है 
जग के 
कोलाहल में 
मस्त नहीं है 
कविता, 
तू भी फुरसत 
का तराना है 
इसलिए,आज नहीं 
कभी फुरसत से 
फुरसत में 
चली आना 
कोई मीठा 
गीत सुनाने
आज फुरसत 
नहीं है    … ! 
यह सच है 
साथ तुम्हारा 
मन को भाता 
साथ तुम्हारा 
थकान मिटाता 
किन्तु अक्सर 
ऐसा क्यों नहीं 
हो पाता    … ??