एक दिन कबीर ने देखा की, एक बकरा रास्ते से मै-मै करता हुआ जा रहा था ! फिर एक दिन वह मर गया ! और किसी ने उसकी चमड़ी उतार कर तानपुरे के तार बना दिए ! तानपुरे पर इतना सुंदर गीत बजने लगा की, जो भी देखता, सुनता तारीफ करने लगता ! कबीर ने भी इतने सुंदर गीत को सुनकर उस आदमी से पूछा की, कहाँ से पाया है तुमने इतना सुंदर तानपुरा ? उस आदमी ने कहा आपने देखा होगा वह बकरा जो रोज यहाँ से गुजरता था ! मै-मै-मै किये जाता था ! यह वही है ! बेचारा मर गया ! मै-मै करने वाला वही बकरा अब तानपुरे का तार बन गया है ! और सुंदर संगीत पैदा कर रहा है !
कबीर यह बात सुनकर खूब हसने लगे ! यह तो क्या खूब कही जिन्दा बकरा जीवन भर मै-मै करता रहा और मरकर क्या खूब संगीत बजा रहा है ! और लौटकर अपने साथियों से कहा कितना अच्छा होता हम भी मर जाते ! छोड़ देते इस मै-मै को ! अभी- अभी मै एक चमत्कार देखकर आ रहा हूँ ! एक जिंदा बकरा कभी गीत गा न सका पर मरकर सुंदर गीत गाने लगा है !
किस मरने की बात कर रहे है कबीर ? कही हमारे अहंकार के मरने की तो बात नहीं कर रहे है ? जी हाँ कबीर हमारे इसी फाल्स इगो के बारे में कह रहे है जो समय के साथ और भी ठोस बनता गया है ! मै भी कुछ हूँ का भाव ! जब तक मै-मै करने वाला हमारा मन परमात्मा की वीणा नहीं बन जाता तब तक, हम अपने नेगेटिव विचारोंसे किसी के ह्रदय को चोट पहुंचाते रहेंगे और स्वयं को भी चोट पहुंचाते रहेंगे !
कबीर यह बात सुनकर खूब हसने लगे ! यह तो क्या खूब कही जिन्दा बकरा जीवन भर मै-मै करता रहा और मरकर क्या खूब संगीत बजा रहा है ! और लौटकर अपने साथियों से कहा कितना अच्छा होता हम भी मर जाते ! छोड़ देते इस मै-मै को ! अभी- अभी मै एक चमत्कार देखकर आ रहा हूँ ! एक जिंदा बकरा कभी गीत गा न सका पर मरकर सुंदर गीत गाने लगा है !
किस मरने की बात कर रहे है कबीर ? कही हमारे अहंकार के मरने की तो बात नहीं कर रहे है ? जी हाँ कबीर हमारे इसी फाल्स इगो के बारे में कह रहे है जो समय के साथ और भी ठोस बनता गया है ! मै भी कुछ हूँ का भाव ! जब तक मै-मै करने वाला हमारा मन परमात्मा की वीणा नहीं बन जाता तब तक, हम अपने नेगेटिव विचारोंसे किसी के ह्रदय को चोट पहुंचाते रहेंगे और स्वयं को भी चोट पहुंचाते रहेंगे !