एक अप्रैल हर साल मूर्ख दिवस के रूप में मनाया जाता है ! यूँ तो एक अप्रैल याने की मूर्ख दिवस पश्चिम देशों का त्यौहार है लेकिन अब तो भारत ही नहीं पूरी दुनिया ने इस त्यौहार को दिल से अपना लिया है ! ओशो प्रेमी इस दिन को मुल्ला नसरुद्दीन दिवस के रूप में मनाते है और मुल्ला नसरुद्दीन के चुटकुलों का भरपूर स्वाद लेते है सबका मनोरंजन करते है ! मूर्ख दिवस के अलग-अलग देशों में अलग अलग मान्यताएं, किस्से, कहानियाँ प्रचलित है लेकिन हमारे यहाँ तो रोज की पति-पत्नी की बाते हो या बच्चों की बाते या फिर नेताओं की बाते हो इन शुद्ध देसी दैनंदिन हास्य पूर्ण बातों का एक अलग ही मजा अलग ही स्वाद होता है ! पति चाहे कितनी ही बड़ी पोस्ट पर क्यों न हो दुनिया के लिए वह कितना ही बुद्धिमान क्यों न हो लेकिन हर पत्नी की नजर में तो उसका पति घर में मूर्ख, बेवकूफ ही बना रहता है ! और वह नाते रिश्तेदारों में, आस पड़ोस में, सखी सहेलियों में बतियाते एक भी ऐसा मौका नहीं गंवाती उसे मूर्ख साबित करने का ! बेचारा पति हमेशा चुप रहने में ही अपनी भलाई समझता है यह सोचकर कि कौन इस मूर्ख औरत के मुँह लगे ! इसी तरह एक दूसरे को मूर्ख समझने में साबित करने में ही उम्र तमाम बीत जाती है !
बड़े तो बड़े हमारे बच्चे भी कुछ कम नहीं होते, अभी कल की ही बात है मै अपनी सहेली के साथ उसके घर पर शाम की चाय के साथ गप-शप कर रही थी , पास में उसकी बहु अपने बेटे बंटी को हिंदी का गृह कार्य करा रही थी बंटी की मम्मी ने कहा "बेटे शेर और बिल्ली का वाक्य में प्रयोग करो तो " आपको पता है बंटी ने क्या लिखा उसकी कॉपी में ?… "पापा जब ऑफिस से घर आते है तो बिलकुल शेर की तरह आते है और घर में बिल्ली की तरह प्रवेश करते है " अब क्या बताएं हंस हंस कर मेरा तो बुरा हाल हुआ था !
राजनीति में तो आजकल होड़ सी लगी है जनता को मूर्ख बनाने की, हर कोई नेता एक दूसरे को मूर्ख बता कर जनता को कैसे मूर्ख बनायें वोट कैसे बटोरे कुर्सी तक कैसे पहुंचे यही सोच कर कोई मुफ्त की चाय पिला रहा है कोई भाषण पिला रहा है मकसद सिर्फ सेवा की आड़ में मेवा खाना और क्या ! एक नेता चुनावी सभा में जनता को समझा रहे थे ! लेकिन जनता ने बड़ी हुड़दंड मचाई हुई थी हो-हल्ला होने लगा ! नेताजी ने नाराज हो कर गुस्से से कहा … "लगता है इस सभा में सारे मूर्ख गधे इकट्ठे हो गए है ! क्या अच्छा नहीं होगा कि एक बार में एक ही बोले ?? तभी सभा में से किसी व्यक्ति की आवाज आयी "ठीक है तब आप ही शुरू कीजिये !
मूर्ख दिवस की एक यह भी विशेषता होती है की इस दिन मूर्ख से मूर्ख भी रसिक बनकर जीवन का रस लेने लगता है हंसना हंसाना एकमेव उद्देश होता है न की किसी के मन को ठेस पहुँचाना ! अब चारो ओर से मूर्खों से घिरा कोई खुद को बड़ा बुद्धिमान समझता हो तो उससे बड़ा मूर्ख और कोई हो सकता है क्या, नहीं न ??