ठक-ठक ठक-ठक सुबह-सुबह स्वर्ग के दरवाजे पर दस्तक हुयी ! कौन है ? भीतर से देवदूत की आवाज आयी ! कृपया दरवाजा खोलिए बाहर खड़े व्यक्ति ने कहा ! देवदूत ने जरा सी खिड़की खोली और पूछा कौन हो और क्या चाहते हो ?? मै भीतर आना चाहता हूँ बाहर खड़े व्यक्ति ने कहा ! यह बताओ की शादीशुदा हो या गैर शादीशुदा हो देवदूत ने प्रश्न किया ! जी, शादीशुदा हूँ उस व्यक्ति ने विनम्रता से कहा ! ठीक है नरक तो तुमने धरती पर ही देख लिया अब स्वर्ग में आ जाओ स्वागत है कहते हुए देवदूत ने दरवाजा खोल दिया ! अभी दरवाजा बंद किया ही था की फिर से दस्तक हुई ठक-ठक !
देवदूत ने फिर से जरा सी खिड़की खोली और खिड़की से झांक कर अपना प्रश्न दोहराया कौन हो और क्या चाहते हो ?? बाहर खड़े उस व्यक्ति ने कहा जो अभी-अभी भीतर गया है मै उसीका मित्र हूँ हम दोनों साथ-साथ मरे थे लेकिन उसकी चाल हमेशा मेरी चाल से थोड़ी अधिक तेज थी इसलिए वह जरा तेजी से यहाँ आ गया सो, दरवाजा खोलिए ! देवदूत ने पहले वाले व्यक्ति से किया गया प्रश्न दोहराया शादीशुदा हो या गैर शादीशुदा ?? बाहर खड़े व्यक्ति ने कहा एक नहीं तीन बार की है चौथी के चक्कर में बुरा फंस गया कुछ पछतावे भरे स्वर में उसने कहा … !!
पहली शादी एक ही भूल समझ कर माफ़ करने लायक है दूसरी बार शादी अनुभव अभी कच्चा है पका नहीं समझ कर फिर भी माफ़ी लायक है लेकिन बार-बार की गयी गलती की यहाँ माफ़ी नहीं हो सकती ! यह स्वर्ग है कोई धरती का पागलखाना समझा है देवदूत ने खिड़की बंद करते हुए कहा … !!
देवदूत ने फिर से जरा सी खिड़की खोली और खिड़की से झांक कर अपना प्रश्न दोहराया कौन हो और क्या चाहते हो ?? बाहर खड़े उस व्यक्ति ने कहा जो अभी-अभी भीतर गया है मै उसीका मित्र हूँ हम दोनों साथ-साथ मरे थे लेकिन उसकी चाल हमेशा मेरी चाल से थोड़ी अधिक तेज थी इसलिए वह जरा तेजी से यहाँ आ गया सो, दरवाजा खोलिए ! देवदूत ने पहले वाले व्यक्ति से किया गया प्रश्न दोहराया शादीशुदा हो या गैर शादीशुदा ?? बाहर खड़े व्यक्ति ने कहा एक नहीं तीन बार की है चौथी के चक्कर में बुरा फंस गया कुछ पछतावे भरे स्वर में उसने कहा … !!
पहली शादी एक ही भूल समझ कर माफ़ करने लायक है दूसरी बार शादी अनुभव अभी कच्चा है पका नहीं समझ कर फिर भी माफ़ी लायक है लेकिन बार-बार की गयी गलती की यहाँ माफ़ी नहीं हो सकती ! यह स्वर्ग है कोई धरती का पागलखाना समझा है देवदूत ने खिड़की बंद करते हुए कहा … !!
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (09.01.2015) को "खुद से कैसी बेरुखी" (चर्चा अंक-1853)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंअब तो हम अपनी नौकरी के बारे में यही कहने लगे हैं!! वैसे अच्छा लगा.. !!
जवाब देंहटाएंहमने तो इसीलिए आपकी वाली नौकरी से एक नहीं दो-दो बार इस्तीफा स्वीकृत कराया था।
हटाएंसार्थक।
जवाब देंहटाएंजोरदार, सुमन जी।
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : सच ! जो सामने आया ही नहीं
मजेदार,
जवाब देंहटाएंरोचक , अर्थपूर्ण
जवाब देंहटाएंVERY NICE TOPIC DEAR KEEP GOING SUPERB
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मुझे तो लगा जैसे इसमें किसी नेता के लिए सन्देश है जो आजकल ख़बरों में हैं.
जवाब देंहटाएंजी, सही पहचाना है :)
हटाएंआभार !
सही जवाब !!
जवाब देंहटाएंदिल को छूने वाली रचना
जवाब देंहटाएंवह गलती भी क्या गलती जिसे मौका मिलते ही सुधार लिया जाय। :)
जवाब देंहटाएंमस्त ... नेता जी को मेल कर दीजिये ... मेरा दावा है वो समझ के भी नहीं समझेंगे ...
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