तम की विकट
निशा बीती !
सुहानी भोर में
सूरज की सुनहरी
धुप निकली !
अहम पिघला
गर्माहट से,
भावों की बाढ़
आ गई !
बाढ़ में,
बह गया कवि !
हाथ में धरी
चाय की प्याली
रह गई
धरी की धरी ... !
निशा बीती !
सुहानी भोर में
सूरज की सुनहरी
धुप निकली !
अहम पिघला
गर्माहट से,
भावों की बाढ़
आ गई !
बाढ़ में,
बह गया कवि !
हाथ में धरी
चाय की प्याली
रह गई
धरी की धरी ... !
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंकवी कहाँ बहता है ... उसकी सोच कहीं नहीं बहती ... कमजोर हो जाती है पर कुंद नहीं होती ... गहरा चिंतन ...
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आई, और एक नई कविता से भेट हुई। कवि का भावों में डूबना तो स्वाभाविक है। तभी तो जन्म होता है कविता का।
जवाब देंहटाएंYou have to share such a wonderful post,, you can convert your text in book format
जवाब देंहटाएंpublish online book with Online Gatha