गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

हमारे महानगरों में कूड़ा कचरा एक भयावह समस्या …


कल कूड़े कचरे पर सतीश सक्सेना जी की लिखी रचना पढ़ रही थी, उनकी रचना ने मुझे इस लेख को आप तक पहुँचाने के लिए प्रेरित किया आभार सतीश जी ! कूड़ा कचरा आज हमारे महानगरों में एक भयावह समस्या बनती जा रही है ! कचरा किसी के लिए व्यर्थ की चीज है तो किसी के लिए अनर्थ और किसी के लिए जीवन जीने के लिए उपयोगी है ! कैसे आईये इस लेख द्वारा जानते है ! इस लेख को लिखा है न्यूयार्क के एक लेखक ने नाम है एंड्रूऑडो पोर्टर ने और हम तक पहुंचाया है ओशो प्रेमी अनिल सरस्वती ने ! अनिल जी, अगर आप मुझे पढ़ रहे है तो आभार इस महत्वपूर्ण लेख के लिए !

पोर्टर लिखता है    … "मै एक लेखक हूँ, मेरी अच्छी खासी आय है, मेरे पास सुविधाओं का भंडार है ! बस कमी है तो एक चीज की, वह है समय ! मेरे घर में उपयोग के बाद बहुत सी प्लास्टिक और कांच की बोतले जमा होती रहती है जिन्हे मै सुपर मार्केट में जाकर लौटा सकता हूँ और बदले में मुझे मिलेंगे  ५ सेंट प्रति बोतल ! यदि मै बीस बोतलें लौटाता हूँ तो एक डॉलर मिलता है ! अब जितना समय मै इन बोतलों को जाकर लौटाने में लगाउंगा उससे कही अधिक मूल्य का समय गँवा दूंगा ! मै इन बोतलों को कचरे में फ़ेंक देता हूँ ! इस कचरे को उठवाने के लिए मै नियमित रूप से पैसे देता हूँ ! जहाँ मेरे लिए प्लास्टिक की बोतलों का कोई मूल्य नहीं वही भारत में कचरा बीनने वाले बच्चे के इन दो रुपये प्रति बोतल से भरी एक बोरी बड़ी मूलयवान है क्योंकि आज उसने अपना खाना नहीं खाया है "!
पोर्टर आगे लिखता है "जहाँ नार्वे के निवासी अपने कचरे को उठवाने और उसे छांटने के लिए  ११४ डॉलर प्रति टन भुगतान करने के लिए तैयार वही बहुत से देशों के किसान इस कचरे को अपने खेतों में खाद की भांति उपयोग करने के लिए पैसे देते है !"
तारा बाई एक दस वर्षीय बच्ची है जो मुम्बई के कूड़ेदानो से प्लास्टिक और धातुओं से बनी चीजों को इकठ्ठा करती है ! जब उससे पूछा गया कि क्या उसे अपने काम से नफरत है तो वह गुस्से से सर हिलाती हुई बोली, 'नफरत का सवाल ही नहीं है, मै इस काम के कारण जिन्दा हूँ !"
तारा एक किसान की बेटी है ! उनके गांव में आयी बाढ़ से बर्बाद हो वे मुंबई आ गए पर भीख मांगना गंवारा न था तो उसका परिवार कचरा बीनने लगा ! कचरे के ढेरों में रेंगते कीड़ों के बीच से उठाना होता है उन्हें अपनी आजीविका का साधन !
कोई नहीं जानता भारत में कितने कचरा बीनते बच्चे है ! मात्र राजधानी दिल्ली में  ३००००० कचरा बीनने वाले है ! यह आठ घंटा काम करके ५० से १०० रुपये तक कमाते है ! इनके अधिकारों के लिए काम करने वाली एक संस्था चिंतन के अनुसार वे दिल्ली नगर पालिका के ६०००००  रुपये प्रतिदिन बचाते है ! जो काम प्रशासन को करना चाहिए वह बच्चे कर रहे है ! अपने आजीविका के लिए काम कर रहे यह बच्चे  ५० रुपये प्रतिदिन कमाने के लिए प्रत्येक दिन एक भयावह जीवन जीते है ! इन्हे अपनी चपेट में लेने वाले रोगों की सूचि में कैंसर,दमा,टीबी और चर्म रोग शामिल है !
इस असहनीय कार्य से पैदा हुए प्रभाव को कम करने के लिए यह बच्चे कच्ची आयु में ही धूम्रपान, शराब और अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करने लगते है !
अब इन कचरा बीनते बच्चों के पास कोई चुनाव नहीं है ! उन्हें जीवित रहने के लिए अपने जीवन को खतरे में डालना अनिवार्य है ! लेकिन पोर्टर और हम में से वे लोग जिनके पास चुनाव सुविधा है, अपने प्रयास कर सकते है !
भारत के महानगरों में घरों से निकलने वाला कचरा एक भयावह समस्या बनता जा रहा है!
मुंबई का सबसे बड़ा कचरा संग्रह देवनार कचरा स्थल पर होता है ! ११० हेक्टेयर में फैली इस जगह पर ९२ लाख टन कचरे का ढेर लगा है ! मुंबई के घरों से हर रोज  १०००० टन कचरा निकलता है !
देवनार इलाके के पास बसी बस्तियों में प्रत्येक  १००० से ६० बच्चे जन्म लेते ही मर जाते है ! बाकी मुंबई में यह औसत ३० बच्चे प्रति हजार है ! इसके पास रहने वाले लोग मलेरिया, टीबी, दमा और चर्म रोगों से ग्रसित रहते है !
राजधानी दिल्ली भी इससे पीछे नहीं है ! १९५० से लेकर आज तक यहाँ १२ बड़े कचरे संग्रह स्थल बनाये जा चुके है जिनमे लाखों टन कचरा जमा है ! एक जगह पर कचरे का ढेर सात मंजिला ऊँचा है ! इनमे कचरा जमा करने की क्षमता तेजी से घट रही है !
भारत में बढती हुयी जनसँख्या और विकास दर के साथ यह समस्या एक विकराल रूप लेती जा रही है !
भारत में २०२० तक जनसंख्या का अनुमान  … १,३२,०००००० लोग ! भारत में प्रत्येक व्यक्ति आधा किलो कचरा रोज उत्पन्न करता है ! इस गणित से पूरा भारत हर दिन २०२० में  ६,६०,०००  टन कचरा पैदा करेगा यह सारा कचरा कहाँ जायेगा किसी को कोई अनुमान नहीं !  

21 टिप्‍पणियां:

  1. सटीक
    आभार महोदया-

    चरावरी रविकर करे, हरदिन व्यर्थ प्रलाप |
    कवि खातिर वरदान ही, पाठक खातिर शॉप |
    पाठक खातिर शॉप, कीजिये खातिरदारी |
    कूड़ा-कचरा साफ़, नहीं फैले बीमारी |
    लेकिन कई कमाँय, मात्र है एक आसरा |
    पाएं नियमित आय, फेंकते हम जो कचरा-

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  2. महानगरों में ही नहीं अन्य छोटे शहरों में भी कचरे का निष्पादन सही ढंग से नहीं हो रहा.सामान्यतया इस कार्य को करने वाली एजेंसियां रिहायशी इलाकों में कचरा डंप कर देती हैं.
    नई पोस्ट : आराम बड़ी चीज है

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  3. जब कभी इस तरह के सामाजिक सरोकारों की बात होती है तो मुझे बस सिन्धु घाटी की सभ्यता याद आ जाती है, जहाँ हड़प्पा के अवशेषों में वहाँ की नागरीय योजनाओं के विषय में जानकारी मिलती है. उनकी गलियों के किनारे बनी नालियाँ और सार्वजनिक स्नानगृह!
    आज घर के किनारे नालियाँ नहीं, नालियों के किनारे घर बने हैं. पटना में दो मुख्य सड़कों को जोड़ने वाली सहायक सड़क पूरी तरह कूड़ास्थल में बदल चुकी है. इसके लिये भी आदतन सिर्फ नागरिक ही नहीं, आवश्यक रूप से सरकार उत्तरदायी है. बल्कि सरकार का दोष अधिक है. लोगों को कूड़े तो घर से बाहर फेंकना ही है... जब हम टैक्स देते हैं तो क्या इतनी भी अपेक्षा न रहे कि मुहल्ले में घरों के हिसाब से कूड़ेदान की व्यवस्था हो और फिर वहाँ से कूड़ा उठाए जाने का भी इंतज़ाम हो? मगर सारे कचरादान नेताओं के पेट की तरह भरे पड़े हैं और प्लेग के रोगी की तरह सड़क पर उल्टी कर रहे हैं.
    जब हस्पतालों की जगह नर्सिंग होम हो ही गए हैं, पुलिस की जगह निजी एजेंसियों के चौकी दार हैं, डाकघरों की जगह कोरियर सर्विस आ गई है और नगरपालिका की जगह वेस्ट मैनेजमेण्ट एजेंसियाँ. ऐसे में जब सारी सुविधाओं का प्रबन्ध हमें ही करना है तो टैक्स क्यों देना. जो आपको देंगे उससे अच्छा मिलाकर हम अपनी सफ़ाई का इंतज़ाम ख़ुद कर लेंगे! और बेहतर कर लेंगे!
    आपका आलेख एक भयानक सचाई प्रस्तुत करता है, जिससे आँख तो मोड़ सकते हैं, नज़रें नहीं चुरा सकते हैं. यह वो सुरसा है जो हमारा सबसे बड़ा धन स्वास्थ्य ही निगल लेगी एक रोज़!! धन्यवाद आपका!!

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    1. बहुत बहुत आभार सलिल जी इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के लिए,
      काश हर मनुष्य सोच ले तो क्या कुछ नहीं हो सकता, प्लास्टिक को री सायकलिंग किया
      जा सकता है, सूखे कचरे को जला कर उससे उत्पन्न ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता, है कचरे को कंपोस्ट के जरिये पौधों के लिए खाद बनायीं जा सकती है ! लेकिन प्रशासन को इस ओर ध्यान देना और दिलाना होगा नहीं तो पुरा देश कचरे का ढेर बनने में देर नहीं
      लगेगी ! आभार !

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    2. देशव्यापी समस्या पर ध्यान दिलाने का आभार। सलिल जी की टिप्पणी से अक्षरशः सहमत हूँ। लोग हैं तो कचरा उत्पन्न होगा ही, उसके निस्तारण में भी प्रशासन वैसा ही लापता है जैसा कि अपनी अन्य जिम्मेदारियों से। कोई लोकपाल ला रहा है, कोई जोकपाल। कोई नई क्रान्ति का सपना बेचता है, कोई पहले ही सम्पूर्ण क्रान्ति बाँट चुका लेकिन जनता की सामान्य मूलभूत समस्याओं के लिए आस्तिक-नास्तिक सभी राम-भरोसे ही हैं। अफसोस!

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  4. बहुत ही सामयिक विषय उठाया आपने, लगता है एक दिन कचरे के ढेर पर ही सोना पडेगा.

    रामराम.

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    1. भीतर की बेहोशी ने हमारी सुन्दर धरती को भी कचरा घर बना दिया है, ऐसा ही चलता रहा तो हमें कचरे के ढेर पर ही सोना पड़ेगा सच कहा ताऊ आपने, आभार !

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  5. आज तो हर जगह सलिल जी ही छाये हुऐ हैं क्या समीक्षा की है वाह ! सुंदर सम सामायिक आलेख !

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    1. सुशिल जी, सार्थक टिप्पणिया करना भी एक कला है और सलिल जी इसे जानते होंगे तभी इतनी सुन्दर समीक्षा करते है, किसी भी पोस्ट पर उनकी टिपण्णी मै अवश्य पढ़ती हूँ :) आभार आपका !

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  6. बढ़िया चौंकाने वाले आंकड़े दिए हैं आपने !
    आज सुबह पार्क में , वाक के बाद , काफी कचरा खुद बीना है , सोंच रहा हूँ कुछ स्लोगन बना कर मोहल्ले की मार्किट आदि में लगा दूं ! शायद कुछ चेतना जाग्रत हो ! :)

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    1. आईडिया बुरा नहीं है, खुद से ही शुरू करना होगा , आभार :)

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  7. bahut khoob likha hai sahi hai aaj apne desh me kuchh aesa hi hai .
    rachana

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  8. >> हमें रसोई घरों के अवशिष्ट को अनिवार्यतम स्वरुप में पशु-पक्षियों के आहार में रूपांतरित कर उन्हें परोसना चाहिए,

    >> उद्योंगो को नालों का पानी परिशोधन कर प्रयुक्त करना चाहिए, उनकी मालकिनों को इसे पीना थोड़े ही है, इस हेतु नदियों के जल का प्रयोग प्रतिबंधित करना चाहिए.....

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  9. यह आज ही इतनी भयावह समस्या है कि भविष्य की सोचकर ही भय लगता है ...... उचित निस्तारण ज़रूरी है....

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  10. बाल शर्म उन्मूलन के लिए काम करने वाली संस्थाओं के साथ यह ६७ साला प्रजा तंत्र का हासिल है। कचरे बीनते हाथ,स्लेट बत्ती ,

    कापी पेंसिल से महरूम हाथ ,



    सब "हाथ" का कमाल ,

    भले ये सबके साथ। एक प्रतिक्रिया ब्लॉग :

    http://sumanpatil-bhrashtachar-ka-virus.blogspot.in/2014/02/blog-post_977.html

    भले ये सबके साथ।

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  11. इस गंभीर समस्या को देखते सब हैं पर अपनी बार कन्नी काट जाते हैं .अगर सभी नागरिक सावधान रहें और कूड़े का सही निस्तारण करें तो कूड़े की मात्रा बहुत कम हो जाए .-कागज़ -चिथड़े अलग ,हरा कूड़ा अलग ,प्लास्टिक का उपयोग एकदम कम(हो सके तो अपने स्तर समाप्त) कर दें , भोजन सड़ने की नौबत न आए और बहुत आसान बातें . अगर अपने पर नियंत्रण रखें और थोड़ा प्रयास करें तो काफ़ी असर पड़ने की संभावना है .लेकिन किससे कौन कहे ,सामने टोक दो तो लड़ने पर उतारू हो जाते हैं लोग !

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  12. एक भयावह सत्य जिससे सभी आँखें मूँद के बैठे हैं ...
    इस विषय पे सरकार को भी कारगर कदम उठाने पढेंगे ... दुनिया के कई देशों ने इस तरफ काम करना शुरू कर दिया है ...

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