मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

बादलों में क्यों छुप गए हो आज ...

ओ चाँद ,
चमक तुम्हारी 
बढ़ जायेगी  खास 
फलक पर आओ 
हम भी  महक 
लेंगे  जरा   … 

रूप  अपरूप 
निहार लेंगे 
जी भर कर 
शीतल तुम्हारा 
तुम भी निहार लो 
हमें  जरा   … 

प्यार और पूजा के 
बीच का भाव स्वीकारो 
बादलों  में  क्यों 
छुप गए हो  आज 
स्याह बादल हटाओ  
तो जरा    … 

16 टिप्‍पणियां:

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  2. वाह ... बहुत बढियां मस्त अभिव्यक्ति !!
    मगर यह चाँद गया कहाँ ??

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    1. कहाँ जायेगा अपनी चांदनी को छोड़कर ? कभी कभी खास कर करावा चौथ के दिन चांदनी के साथ आंखमिचौली खेलता रहता है, इसलिए काले बादलों के पीछे छिप जाया करता है
      बेचारे का यही एक दिन तो खास होता है :)

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    2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. प्यार और पूजा के
    बीच का भाव स्वीकारो
    बादलों में क्यों
    छुप गए हो आज
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

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  4. इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-24/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -33 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....

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  5. bahut sundar rachna hai..
    mere blog par bhi aap sabhi ka swagat hai..
    ek baar jarur padharen..
    http://iwillrocknow.blogspot.in/

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  6. बहुत खुबसुरत अभिव्यक्ति -बहुत अच्छा
    नई पोस्ट मैं

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  7. आसमां का चाँद भी आज नटखट हो जाता है ... छुपान छुपाई का खेल खेलता है ...
    ये भी तो प्रेम का एहसास ही है ...

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  8. खुद को छुपाने से हमसे भी बहुत साड़ी चीजे छुपी रह जाती है
    चाँद को भी यह बदरी हटा बाहर आना चाहिए

    सादर !

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  9. करवा चौथ के दिन चांद के लिये आपके द्वारा लिखे गये अल्फ़ाल ही अक्सर सूझते हैं, बहुत ही सुंदर भाव.

    रामराम.

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