रविवार, 14 अप्रैल 2013

प्रकृति के साथ छेड़खानी ....


ठंड के दिन थे सुबह का धुंधलका छाया था ! कोहरे में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था ! मुल्ला नसुरुद्दीन कहीं जा रहा था ! मोटर साइकिल पर सवार दो व्यक्ति गिर पड़े थे पेड़ से टकराकर !  नसुरुद्दीन ने उनके पास जाकर देखा एक को बहुत चोट आई थी दूसरा मर चुका था ! चोट खाए व्यक्ति की नसुरुद्दीन ने मदद की चोट खाने से उसका सिर उलटा हो गया था पीठ की तरफ मुंह घूम गया था तब उसने बड़ी मेहनत कर घुमा फिरा कर उसका सिर ठीक किया इस बीच वह आदमी चीखा चिल्लाया फिर शांत हो गया ! तब तक पुलिस भी वहां आ गई थी ! और पुलिस वाले ने पूछा कि, क्या ये दोनों आदमी मर चुके ? नसुरुद्दीन ने कहा एक तो पहले ही मर चूका था जिसे चोट आई थी मैंने उसे सुधारने की बहुत कोशिश की पहले तो वह बहुत चीख पुकार मचाई फिर शांत हो गया ! दरअसल बात कुछ यूँ हुई थी गौर से देखने से पता चला कि, जो आदमी मोटर साइकिल पर पीछे बैठा था उसने ठंड की वजह से उल्टा कोट पहना था , ताकि आगे से सीने  को हवा न लगे इसलिए ! और उलटा कोट देख कर नसुरुद्दीन ने समझा कि, इसका सिर उलटा हो गया है, तो उसने घुमा कर सिर सीधा कर दिया उसी बीच वह आदमी मर गया ! नसुरुद्दीन अगर उसे न सुधारता तो शायद बच भी जाता ! 

जाने अनजाने में जो गलती नसुरुद्दीन ने की है करीब-करीब हमने भी प्रकृति के साथ कुछ ऐसे ही छेड़खानी की है ! नतीजा जंगल कट गए वातावरण में कार्बन डायअक्साइड की मात्रा बढ़ने से विश्व की पर्यावरण व्यवस्था ही बदल गई है ! ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने लगी है ....भीषण गर्मी, पानी,बिजली का संकट गहराने लगा है ! लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे है ! हमारे शहर में कुछ क्षेत्र ऐसे है जहाँ सरकारी टैंकर पानी लेकर आता है तो युद्ध जैसी स्थिति दिखाई देने लगी है ! असंख्य गाँव सूखे की चपेट में है ! गांवों में दूध नहीं है पीने को पानी नहीं है लेकिन शराब जरुर बेचीं और खरीदी जा रही है ! किसान कर्जबाजारी होकर आत्महत्या कर रहे है ! मन में एक दुःख सदा के लिए रह गया है कि,मै अपने बच्चों को मेरे गाँव की वह कल-कल बहती सुन्दर नदी दिखा न सकी जिसमे मै अपने भाईयों के साथ बचपन में खूब तैरा करती थी ! वह सुन्दर-सुन्दर प्राकृतिक दृश्य दिखा न सकी जिसमे मेरा सारा बचपन हंसते-खेलते बीता था !

अधुनिकता की अंधी दौड़ में गलत सलत जीवन शैली अपना कर शुद्ध हवा पानी जैसी आधारभूत जरूरतों को हम कैसे भूलते जा रहे है जिसपर हम सबका जीवन निर्भर है ! क्या तरक्की इसे ही कहते है ? हमने तो जैसे तैसे जीवन जी लिया पर अधुनिक पीढी का आने वाली हमारी पीढ़ी का क्या होगा ? अगर ऐसे ही चलता रहा तो ....! प्रकृति और मनुष्य के बीच कभी जो एक गहरा स्नेह का रिश्ता -नाता था आज बिलकुल ही बिखर गया है ! स्थिति अब नियंत्रण से बाहर होती जा रही है ! काश हम सब प्रारंभ से ही जीवन में संतुलित जीवन शैली अपनाते तो आज स्थिति कुछ बेहतर होती !

8 टिप्‍पणियां:

  1. आज की जीवन शैली पर विचारपूर्ण आलेख
    सार्थक
    सुंदर प्रस्तुति
    बधाई

    मेरे ब्लॉग में
    एक गीत पढें
    जीवन लगे लजीज----

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  2. बहुत ही बेहतरीन सार्थक चिंतन,आपका सादर आभार.

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  3. बिल्कुल सही विष्लेषण किया आपने, आज हम आदमी मुल्ला नसरूद्दीन के नक्शे कदम पर चल रहा है.

    रामराम.

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  4. कैसे बंजर में, जल लायें ?
    हरियाली और पंछी आयें ?
    श्रष्टि सृजन के लिए जरूरी,
    जल को,रेगिस्तान में लायें !
    आग और पानी न होते, कैसे बनते, मेरे गीत !
    तेरे मेरे युगल मिलन पर,सारी रात नाचते गीत !

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  5. सार्थक चिंतन .... आगे की पीढ़ी के लिए चिंता की बात है ...

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  6. विचारणीय बात .... हम सबको सोचना होगा

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