मन को अगर हमने प्रकृति से जोड़ा होता,तो शांति भी होती और प्रकृति का भी भला होता। अलबत्ता, कई लोगों ने चिड़ियों की चहचहाहट को अपना रिंगटोन ज़रूर बना लिया है,हालांकि हालात इतने बदतर नहीं दिखते।
आपकी प्रवि्ष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है! यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!
माहौल मायूसी का ही है ...
जवाब देंहटाएंअनूठा और काफी हद तक अछूता विषय चुना आपने ...
शुभकामनायें आपको !
क्या कहने,
जवाब देंहटाएंआपकी सोच को सलाम,
आने वाले समय की तस्वीर
खिंचती रचना
मन को अगर हमने प्रकृति से जोड़ा होता,तो शांति भी होती और प्रकृति का भी भला होता। अलबत्ता, कई लोगों ने चिड़ियों की चहचहाहट को अपना रिंगटोन ज़रूर बना लिया है,हालांकि हालात इतने बदतर नहीं दिखते।
जवाब देंहटाएंआने वाला समय तो सच में ऐसा ही होता हुआ दिख रहा है ....सटीक चित्रण
जवाब देंहटाएंआपकी प्रवि्ष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है!
जवाब देंहटाएंयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!
आने वाला क्या ..बस समझो कि आ ही गया है यह समय ... बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर, सशक्त एवं प्रासंगिक भाव ... लगता तो यही है सुमनजी
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति,...आने वाला समय न जाने क़्या२ गुल खिलायेगा,..
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट के लिए काव्यान्जलि मे click करे