शनिवार, 26 नवंबर 2011

एक पल तो जी ले !

कहाँ मिलेगी
स्नेह तरु की
सघन छाँव !
भटक-भटक कर 
थक गए अब 
ये प्राण !
किसने दिया जो 
ऐसा श्राप
जीवन हुआ 
अभिशाप 
कही ममता की 
छाँव नहीं
जीना कितना 
दुश्वार हुआ !
उगने चाहिए थे
गुलाब 
पेड़ बबुल का
उग रहा !
आओं प्रिय ...
जंगल चले 
पेड़-पौधों की 
छाँव तले !
फूलों संग बैठ 
तितलियों से 
गुफ्तगू कर ले !
प्यार के कुछ
मधुर गीत गायें 
आओं ....
उस मस्ती के 
पल में 
एक पल तो 
जी ले !

11 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल सच,
    उस मस्ती के पल में एक पल तो जी ले...
    सुंदर भाव

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  2. भावपूर्ण रचना .. अब जंगल में ही मंगल दिखाई दे रहा है

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  3. प्रकृति की गोद में सबसे अधिक सुकून मिलता है।

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  4. सुरभित सुमन ....
    शुभकामनायें आपको !

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  5. प्रकृति से बढ़कर सुकूनदायी क्या है..... ? सुंदर रचना

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  6. वो जो विशालकाय बबूल है,हमने ही किया था उसका बीजारोपण। हां-हां, प्रेम और समर्पण की छांव तले ही मिलेगा तितलियों-सा वात्सल्य,निर्झर से उठता गीत,ज़िंदगी-बोध की मस्ती और निर्विचार के पल!

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  8. मानव के लिए सबसे अनुकूल प्रकृति की गोद ही तो है ....

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  9. उस मस्ती के पल में एक पल तो जी ले..!!!!
    भावपूर्ण सुंदर रचना,...

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  10. .


    प्रकृति की गोद में जो सुख है , और कहां ?

    सुंदर भाव ! सुंदर रचना !


    साधुवाद !

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  11. उगने चाहिए थे गुलाब पेंड बबूल का उग रहा .
    क्या करें हम बो भी तो बबूल ही रहे हैं

    आइयेगा मेरे ब्लॉग पे भी

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