मंगलवार, 27 सितंबर 2011

परमात्मा की वीणा !

एक दिन कबीर ने देखा की, एक बकरा रास्ते से मै-मै करता हुआ जा रहा था ! फिर एक दिन वह मर गया ! और किसी ने उसकी चमड़ी उतार कर तानपुरे के तार बना दिए ! तानपुरे पर इतना सुंदर गीत बजने लगा की, जो भी देखता, सुनता तारीफ करने लगता ! कबीर ने भी इतने सुंदर गीत को सुनकर उस आदमी से पूछा की, कहाँ से पाया है तुमने इतना सुंदर तानपुरा ? उस आदमी ने कहा आपने देखा होगा वह बकरा जो रोज यहाँ से गुजरता था ! मै-मै-मै किये जाता था ! यह वही है ! बेचारा मर गया ! मै-मै करने वाला वही बकरा अब तानपुरे का तार बन गया है ! और सुंदर संगीत पैदा कर रहा है !
कबीर यह बात सुनकर खूब हसने लगे ! यह तो क्या खूब कही जिन्दा बकरा जीवन भर मै-मै करता रहा और मरकर क्या खूब संगीत बजा रहा है ! और लौटकर अपने साथियों से कहा कितना अच्छा होता हम भी मर जाते ! छोड़ देते इस मै-मै को ! अभी- अभी मै एक चमत्कार देखकर आ रहा हूँ ! एक जिंदा बकरा कभी गीत गा न सका पर मरकर सुंदर गीत गाने लगा है !
किस मरने की बात कर रहे है कबीर ? कही हमारे अहंकार के मरने की तो बात नहीं कर रहे है ? जी हाँ कबीर हमारे इसी फाल्स इगो के बारे में कह रहे है जो समय के साथ और भी ठोस बनता गया है ! मै भी कुछ हूँ का भाव ! जब तक मै-मै करने वाला हमारा मन परमात्मा की वीणा नहीं बन जाता तब तक, हम अपने नेगेटिव विचारोंसे किसी के ह्रदय को चोट पहुंचाते रहेंगे और स्वयं को भी चोट पहुंचाते रहेंगे !

17 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है। बहुत सुंदर.
    सच है कि लोग अगर अंहकार को मार दें तो कम से कम सही मायने में इंसान तो बन जाएंगे।
    अनुकरणीय

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  2. कही हमारे अहंकार के मरने की तो बात नहीं कर रहे है ? जी हाँ कबीर हमारे इसी फाल्स इगो के बारे में कह रहे है जो समय के साथ और भी ठोस बनता गया है

    WAAH...SARTHAK POST...BEJOD...

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  3. अनुकरणीय और सार्थक आलेख....आभार...

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  4. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  5. अर्थपूर्ण और सार्थक आलेख ..

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  6. कबीर दास जी ने सच ही कहा अहि ... मैं के आवरण के पीछे कुछ दीखता नहीं है ...

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  7. आपको सपरिवार
    नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  8. गहरे भावों का सम्प्रेषण ....विचारणीय पोस्ट

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  9. गहन भावों का समावेश प्रत्‍येक शब्‍द में .. आभार ।

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  10. सुंदर प्रेरक कथा । हमारा अहंकार ही है जो हमें स्वाभाविक जीवन जीने नही देता ।

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  11. विचारणीय, अर्थपूर्ण आलेख .......

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