मंगलवार, 26 जुलाई 2011

दिन और रात के संधि-पल .........

       रात और दिन है दोनों गहरे प्रेमी
        किन्तु स्वभाव दोनों का अलग-अलग
        रात है सौन्दर्य प्रिय, आराम पसंद तो,
        दिन है कर्मठ, व्यावहारिक !
        अक्सर दोनों में इसी बात पर
        हो जाती है तू-तू मै-मै !
        रात हर वक्त सजती संवरती है तो,
        दिन हमेशा भागता दौड़ता है !
        कभी लेटे-लेटे रात, नदी के बहते पांनी में
        अपनी परछाई को निहारती है तो
        कभी बादलों की लटों को अपने
        मुखड़े पर बिखरा लेती है !
        कभी चंदा-सी खिलखिलाती है तो
        कभी सिकुड़कर आधी रह जाती है !
        जब भी रात और दिन आमने- सामने
        पड़ते तो दोनों में फिर से शुरू तू-तू मै-मै !
        रात कहती है कामसे जादा आराम जरुरी है
        दिन कहता है आराम से जादा काम जरुरी है !
        जब एक दिन दोनों में बहस असह्य हो गई तो,
        न्याय मांगने गए अपने रचयिता के पास !
        रचयिता ने दोनों को समझाते हुये कहा ....
        तुम दोनों महत्वपूर्ण हो मेरे लिये
        इसी लिये मैंने तुम दोनों की रचना की है!
        गुण-अवगुण तो एक ही पहलु के
        दो दृष्टिकोण है! फिर भी दोनों समझे नहीं!
        तब हारकर उन्होंने थोड़े समय के लिये
        रात को दे दी उजाले वाली चादर और
        दिन को दे दी अँधेरी वाली चादर ताकि,
        दोनों रात और दिन बनकर अपना-अपना
        महत्त्व समझ सके! हुआ भी यही
        अपनी-अपनी चादर बदलकर ही
        दोनों को पता चला की, वे दोनों कितने
        एकदूसरे के लिये महत्वपूर्ण है !
        तबसे आजतक दोनों में फिर कभी
        झगड़ा नहीं हुआ! नाही दोनों एकदूसरे को
        निचा दिखाकर अपमान करते है कभी !
        अब दिन रोज सुबह ख़ुशी-ख़ुशी दुनिया को
        कर्मठता का पाठ पढ़ाता है! और रात
        चंदा की चांदनी लेकर घर-घर जाकर
        थकी-हारी दुनिया को सुख और शांति की
        नींद सुलाती है! आज भी दोनों अपनी-अपनी
        चादर बदल लेते है ............................
        इसीलिए हम सब को उन दोनों के
        संधि- पलों की खातिर सुबह और शाम
        कितने सुहाने लगते है !
        सच में, अच्छा बुरा तो कुछ नहीं होता
        प्यार और नफरत तो बस हमारी निजी
        जरूरतों का ही तो नाम है !
        है ना?

10 टिप्‍पणियां:

  1. bahut ajab anokhi kavita likhi hai aapne suman ji.padhte padhte man itna ram gaya ki jab ye pooori ho gayi to bahut khalipan laga.bahut sundar bhavabhivyakti.badhai

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  2. संधि पल वास्तव में बहुत सुंदर होते है नयी सोंच , बधाई

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  3. बहुत सुंदर होते है नयी सोंच , बधाई

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  4. मिलन तो सुहाना होता है. चाहे सुबह हो या शाम .

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  5. खूबसूरत अभिव्यक्ति है ....शुभकामनायें !

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  6. बहुत सुंदर भाव।.

    अब दिन रोज सुबह ख़ुशी-ख़ुशी दुनिया को
    कर्मठता का पाठ पढ़ाता है! और रात
    चंदा की चांदनी लेकर घर-घर जाकर
    थकी-हारी दुनिया को सुख और शांति की

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  7. प्यार और नफरत तो बस हमारी निजी
    जरूरतों का ही तो नाम है !
    है ना?

    गहन अभिव्यक्ति ...विचारणीय भाव लिए पंक्तियाँ

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  8. आपकी कल्पना की उडान अनूठी है.
    भाव 'सुमन' खिल उठा है.

    सच में, अच्छा बुरा तो कुछ नहीं होता
    प्यार और नफरत तो बस हमारी निजी
    जरूरतों का ही तो नाम है !
    है ना?

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.

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  9. व्यक्ति का अपना अगर कुछ है,तो वह अनुभव ही है। रात और दिन भी इसी से अपनी असलियत और सीमाएं समझ सके।

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